कहानी- बाबुल मोरा - ज़किया ज़ुबैरी

लिसा पुलिस चौकी के पिछले दरवाज़े पर तेज़ी से भागती हुई पहुँची।  नीले डेन्हिम के शॉर्ट्स  उसकी लम्बी लम्बी गुलाबी टांगों के ऊपर टेढ़े होकर फंसे हुए थे। छोटी सी कुर्ती, जिससे उसकी पतली सी कमर झांक रही थी, वह कुर्ती भी उसकी ग़ुस्से से भरी चाल के साथ क्रोध से डोल रही थी। उसके सुनहरे रंग के बाल जो उस समय उलझे हुए सिर के चारों ओर बिखरे पड़े थे। ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबी पानी में आग लगी हो।
“मां मैने कह दिया, मैं यह घर नहीं छोड़ूंगी।”

“क्यों नहीं छोड़ेगी और कैसे नहीं छोड़ेगी..?”  

“क्योंकि यह मेरा भी घर है।”

“यह किसने कह दिया तुझ से..?”

“यह मेरे डैड का घर है..!” “मैं तुझे यहां नहीं रहने दूंगी क्योंकि तू फ़िल के साथ नहीं रहने को तैयार है।”

“मैं क्यों रहूँ उसके साथ..? अब तो तुम्हें भी उस तीन साल जेल काटे हुए अपराधी को घर में नहीं आने देना चाहिए।”

“लिसा यह मुझसे नहीं होगा।”

“क्यों नहीं होगा? क्या मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूँ..?”

“तूं 18 वर्ष की हो गई है, क्यों नहीं जाकर उस काउंसिलर के पीछे पड़ जाती कि तुझको एक कमरे का फ़्लैट दिलवा दे?”

“जब मेरे पास अपना घर है तो मैं क्यों जाऊं?”

“तो फिर तुझे फ़िल के साथ ही रहना होगा इस घर में..!!”

लिसा सोचने लगी... कितनी कठोर और बेहिस  हो गयी है उसकी माँ...! फ़िल के कारण अपनी 18 वर्ष की बेटी को घर से निकल जाने को कह रही है. वह घबराने लगी... अगर यह शैतान घर में वापस आ गया तो कुछ पता नहीं उसके साथ कैसा व्यवहार करे... शायद उसी तरह फिर से दरवाज़े से निकलकर भागेगा बेशरम वहशी......

उस दिन...!!

वह कमरे के दरवाज़े से बाहर भागने ही वाला था की लिसा बिजली की तेज़ी से पलटी, कोहनियों को नरम  बिस्तर के ऊपर ज़ोर से दबा कर शरीर को सहारा दिया और शिकारी कुत्ते की तरह दोनों हाथ उसकी बग़ल के नीचे से डालकर उसको दबोचा और गर्दन के पीछे कंधे के नीचे पूरी ताक़त से दांत ऐसे गड़ा दिए जिन्हें निकालते ही खून बहने लगा।


‘ओह गॉड’.... ओह गॉड’ की मकरूह सी आवाज़ कमरे में चारो ओर चक्कर लगाने लगी। और वह चकराता हुआ कमरे से बाहर उन तंग सीढ़ियों से आड़ा तिरछा होता हुआ नीचे भागा। हाथ से गर्दन का पिछला हिस्सा छुपाए हुए था की कोइ बाहर का देख न ले की वहां गरदन के नीचे किस शेरनी ने उस गंदे काले खून की होली खेली है...! वह तो क्लिनिक भी नहीं जा सकता था की वहां क्या बताएगा? कि क्या गुनाह कर के आया है...! नैन्सी को तो वह मना लेगा पर नैन्सी को काम से वापस आने में काफ़ी समय था।

लिसा समय को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। माँ की प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहती थी। पर ग़ुस्सा और संकोच दोनों एक दूसरे में गड-मड हो रहे थे। पुलिस स्टेशन तो पड़ोस में ही था। उसके एरिया की करप्शन को देखते हुए सरकार ने एक छोटी  पुलिस चौकी वहीं बना दी थी। कबूतर के काबुक की तरह बने हुए फ़्लैटों  में से एक ग्राउंड फ़्लोर के फ़्लैट में पुलिस स्टेशन था। पुलिस स्वयं भी सामने का दरवाज़ा बंद करके बैठती। पिछले दरवाज़े से आने जाने का काम लिया जाता। जब कभी वे बाहर निकलते तो  हथियारों से लैस निकलते और दो तीन एक साथ होते।

लिसा पुलिस चौकी के पिछले दरवाज़े पर तेज़ी से भागती हुई पहुँची।  नीले डेन्हिम के शॉर्ट्स  उसकी लम्बी लम्बी गुलाबी टांगों के ऊपर टेढ़े होकर फंसे हुए थे। छोटी सी कुर्ती, जिससे उसकी पतली सी कमर झांक रही थी, वह कुर्ती भी उसकी ग़ुस्से से भरी चाल के साथ क्रोध से डोल रही थी। उसके सुनहरे रंग के बाल जो उस समय उलझे हुए सिर के चारों ओर बिखरे पड़े थे। ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबी पानी में आग लगी हो।

आग तो उसके भीतर सुलग रही थी। मगर वह डर भी रही थी की अभी जिसको दांतों से उधेड़ चुकी थी  फिर कहीं से निकलकर आ न जाए। वह चौकी के पिछले दरवाज़े पर खड़ी घंटी के बटन से हाथ नहीं हटा रही थी। ऐसा लगता था जैसे उसका हाथ घंटी से चिपक गया हो। कभी एक पैर दूसरे पर  रखती तो कभी दूसरा पहले पर।  इस से  बेचैनी का आभास हो रहा था या शायद ऊंची नीची ज़मीन पैरों में चुभ रही थी...

न जाने दोनों छोटी बहने कहाँ होंगी कहीं वह उन दोनों को भी.....! नहीं..नहीं.. नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी...! मैं नैन्सी को सब बता दूंगी...घर से निकलवा दूंगी उसको...! यह पुलिस न जाने कहाँ मर गई है..? दरवाज़ा क्यों नहीं खुलता..?

“हेलो लिसा..!”

उसने पलट कर देखा तो पीछे सार्जेन्ट लैंग्ली खड़ा हुआ था.

“कैसे आना हुआ?”

कुछ क्षणों के लिए लिसा का जी चाहा की अपने बाप की तरह अपने दोनों हाथ सार्जेन्ट के गिर्द लपेट कर सीने पर सिर रख कर अपने अन्दर के बंद ग़ुस्से को आंसुओं के साथ उसके सीने में जज़्ब कर दे। अपने दुःख हमेशा की तरह अपने बाप की झोली में डाल कर आप हल्की हो जाए....यही तो हुआ करता था बचपन में जब वह अपसेट होती तो अपने डैड से लिपट जाती और आंसुओं का कटोरा उसके सीने में उंडेल देती।  बाप की कमीज़ जब भीगने लगती तो ''अरे लिसा तू रो रही है?'' कहते हुए उसे गोद में उठाकर ज़ोर से लिपटाकर सिर पर प्यार करता और उस वक़्त तक लिपटाए रखता जब तक लिसा आप ही अपना सिर बाप के कन्धों से उठाकर उसके मुंह को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी ओर न घुमा लेती।  दोनों की आँखें मिलतीं,  आँखों ही आँखों में दोनों एक दूसरे के प्रति प्यार का यकीन दिला लेते और फिर बाप लिसा को ज़ोर से गदीले सोफे पर पटख़ देता। फिर खूब हँसता और लिसा को छेड़ता की कितनी वज़नी हो गई है मेरे हाथ टूटे जा रहे थे।

“लिसा खाना खाया तुम तीनो ने?”

“नहीं डैड अभी ममी घर नहीं आई..!”

“काम से छुट्टी को तो काफ़ी देर हो गई है..!! ”

''आती ही होंगी डैड।''

''मगर..''

“आओ लिसा अन्दर चलें।” सार्जेन्ट लैंग्ली ने चिंता में डूबी  लिसा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

बाहर लगी नंबरों की तख़्ती पर उसने कोड नंबर मिलाया और दरवाज़े का हैंडल घुमाकर दरवाज़ा खोलते हुए पहले लिसा को अन्दर चलने को कहा।

भयभीत लिसा...अन्दर जाते हुए झिझकी.. मगर सार्जेन्ट लैंग्ली ने हलके से कंधे पर हाथ रख कर उसे अन्दर कर लिया और जल्दी से बिजली का बटन दबाया तो तीन चार बल्ब एक साथ जल उठे। छोटा सा एक कमरा बाहर ही को बना हुआ था; एक ऊँची सी लिखने पढ़ने वाली मेज़ रखी हुई थी; तीन चार कुर्सियां पड़ी हुई थीं। सार्जेन्ट ने लिसा को बैठ जाने का इशारा किया और ख़ुद दूसरा दरवाज़ा खोलकर दूसरे कमरे के अन्दर चला गया। वहां से टेलीफ़ून पर बातों की आवाजें आने लगीं। अपने साथियों से ऑपरेशन का रिज़ल्ट  मालूम कर रहा था। लिसा समझ गई थी कि आज शायद उसके क्षेत्र में छापा पड़ा है। ऐसा अक्सर होता था।  कोई अपराधी कहीं भी अपराध करता पर छुपता आकर इसी इलाक़े में था।

“यस लिसा हाउ कैन आई हेल्प यू..?”

सार्जेन्ट ने हाथ में एक राइटिंग पैड और पेन्सिल पकड़ी हुई थी जिसके पीछे रबर लगा हुआ था।

लिसा चौंक गई....घबरा सी गई....मैं यहाँ क्यों आ गई....अब मैं क्या बताऊँ....कैसे बताऊँ..!! माँ के बारे में भी बताना होगा....यह...यह...है कौन...कैसे आया हमारे घर में...?

कितना अच्छा है उसका अपना बाप...कितना शरीफ़...न जाने क्यों माँ ने उससे तलाक़ ले  लिया...!!

देखने में भी तो कितना सुन्दर है मेरा बाप...! यह बास्टर्ड तो देखने में ही गिद्ध लगता है... मां शायद बस फंस गई होगी..!!

मेरे पिता के पास तो नौकरी भी थी यह तो हरामखोर है।  न जाने क्यों मेरी मां ने हंसता  खेलता परिवार श्मशान घाट बना दिया?

“हेलो लिसा...कैसे आना हुआ..?”

लिसा ने अपना मुंह अपनी पतली पतली लम्बी लम्बी उंगलियों वाले हाथों से छिपा लिया और आंखें मूंदकर सिर मेज़ पर टिका दिया। एक लम्बी सांस के साथ डरी हुई शर्मिन्दा सी कांपती हुई आवाज़ में बोलने की कोशिश की, मगर आवाज़ गले में फंस कर अटक गई।

कम ऑन लिसा बोलो जो सच है...

लिसा स्वयं आंखें बन्द किये शुतुरमुर्ग की तरह समझ रही थी कि वह छिप गई है और उसे कोई देख नहीं सकता...

फिर उसने झिझकते हुए कहना शुरू किया। दुर्घटना का विवरण कुछ इस गति से दे रही थी बीच में ना तो कोई अल्पविराम और ना ही विराम। एक सांस में बस तोते की तरह जो कुछ ग़ुबार भीतर भरा था सब उगल दिया

“वह... अधिकतर मेरी छोटी बहनों के साथ कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता है या फिर टी.वी. के सामने बैठा क्रिस्प खाता है और गहरे भूरे रंग के कालीन पर बिखेरता रहता है टी.वी. से

अधिक उसके मुंह से निकली कुरुर कुरुर की ध्वनि कानों को बेचैन कर देती है जितना खाता है उतना ही फ़्लोर पर गिराता और फिर बग़ैर साफ़ किये वह नैन्सी के पास कमरे में घुस जाता है और थोड़े ही समय पश्चात् निकलकर किचन में पहुँच  जाता है और दूसरे दिन का तमाम खाना खा जाता है। कभी कभी तो सुबह के नाश्ते के लिये टोस्ट भी नहीं बचते हैं। नैन्सी जब सुबह नाश्ता बनाने जाती है तो यह देख कर बहुत प्यार से हंसती है और बाहर निकल जाती है ब्रेड लाने। ना जाने क्यों उसे ग़ुस्सा नहीं आता ? हम बहनों में से अगर कोई ऐसा करे तो गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाती और हम में से एक को दौड़ाती है ब्रेड लाने को। वह पड़ा सोता रहता है और नैन्सी कमरे का दरवाज़ा बाहर से बन्द कर देती है कि कहीं शोर से उठ ना जाए।”

सार्जेन्ट लिसा को हमदर्दी भरी नज़रों से पढता जा रहा था की कितनी गहरी चोट लगी है इसछोटी सी उम्र में। क्या यह इस दुःख से कभी उबर भी पाएगी?  वह चुप चाप  सुनना चाहता था लिसा के दुःख।

सार्जेन्ट की टीम वापस आ गई थी। लिसा को वहां बैठा देख कर सब अन्दर वाले कमरे में चले गए।

“लिसा, पानी पियोगी?”

“हाँ... !” लिसा ने जल्दी से कहा। उसका गला सूख़ा जा रहा था मगर समझ में नहीं आ रहा था की कहाँ रुके और पानी कब मांगे। वह तो जल्दी से जल्दी मालूम करना चाह रही थी कि

सार्जेन्ट बताए कि अब आगे वह क्या कार्यवाही करेगा? उसको क्या सज़ा देगा? क्या उसके डैडी फिर से वापस आ जाएँगे? हर क़दम पर डैडी को याद कर रही थी लिसा।

सार्जेन्ट ने इस बीच अपनी टीम से भी सवाल कर लिया, “क्या रेड (छापे) से कुछ नतीजा भी निकला?”

“हाँ एक लड़का पकड़ा गया है और दो भाग गए।”

ग्राहम पार्क का रोज़ का यही  तमाशा था। न मालूम कहाँ से सारे जहां के गुंडे  बदमाश यहीं आकर बस गए थे और बेचारे सीधे साधे लोग इनके चक्कर में पिस रहे थे।

सार्जेन्ट ने जैसे ही पानी का गिलास लिसा के हाथ में दिया वह एक ही सांस में गटा-गट हलक़ से उतार गई।  उसकी मासूम, गुलाबी शीशे की तरह चमकती गर्दन से पानी नीचे को जाता हुआ महसूस हो रहा था। उसके सूखे होंठों में कुछ तरावट आई. दांतों से होंठ काटने लगी। फिर बेचैन होकर सिर मेज़ पर रख कर आँखें बंद कर लीं।

“लिसा फिर क्या हुआ?”

लिसा ने सार्जेन्ट को सिर उठा कर देखा और आंसू बहने लगे। सार्जेन्ट ख़ामोशी से बैठा रहा। लिसा के अन्दर का दुःख बह जाने देना चाह रहा था। पानी सूखी हलक़ से नीचे उतरा  तो दुःख आँखों से बह निकले .

वह मुझसे भी वैसे ही खेलना चाहता था जैसे मेरी बहनों के साथ खेलता। ज़िद करता की मैं भी उसके साथ बैठ कर फिल्म देखूं और क्रिस्प खाऊ।. मुझे ‘ओ' लेवेल्स की तैयारी करनी है कहकर मैंने हमेशा पीछा छुड़ाया। मुझे उसकी हरकतें अच्छी नहीं लगती थीं. वह एक ग़ैर-जिम्मेदार, मानसिक बीमार और ख़ुदगर्ज़ इंसान लगता था। और फिर मेरे डैड की जगह लेकर बैठ गया था। न मालूम मेरी माँ को उसमें क्या नज़र आया था। नौकरी भी नहीं करता था। मेरे डैड तो रोज़ सवेरे पैदल काम पर चले जाते। कार नैन्सी के लिए छोड़ जाते। शनीचर इतवार हम तीनों बहनों को पार्क में ले जाते या बच्चों की फिल्म दिखाने ले जाते। कभी कभी मैक्डॉनल्ड्स में भी खिलाते। ममी को शॉपिंग कराने ले जाते। हर समय कोई न कोई काम ही किया करते। घर की कोई चीज़ भी टूटती तो आप ही जोड़ लिया करते पर जब उनका अपना दिल टूटा तो हम में से कोई न जोड़ सका।”

“मैंने माँ से बहुत मिन्नत की कि डैड को न छोड़े तलाक न ले पर उसपर न जाने क्या भूत सवार था की हमारा रोना पीटना भी उसकी सोच को न बदल सका। डैड बेचारे न जाने कहाँ रहने चले गए। इतनी मेहनत से उन्ही ने तो यह घर बनाया था मगर हमारे आराम की ख़ातिर उन्होंने कुर्बानी दी और नैन्सी को घर दे दिया कि हम बहनों को तकलीफ न हो। मेरे डैड जब हमसे मिलने आते तो मैं सवेरे ही से उठ कर बैठ जाती उनके इंतज़ार में। मैं उनको दूर ही से पहचान लेती क्योंकि लम्बे और हैंडसम हैं मेरे डैड। मगर अब झुक कर चलने लगे हैं शायद खाने  पीने का ख्याल नहीं रखते ।” वह उदास हो गई।

“लिसा तुम्हारे पैरों में चप्पल क्यों नहीं है?”

सार्जेन्ट लिसा को उसके मुद्दे की और लाना चाहता था और लिसा मुद्दे से दूर भाग रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था इतनी घिनौनी हरकत सार्जेन्ट से कैसे कहे..!!

सार्जेन्ट बात की तह तक पहुंच चुका था; लिसा को शर्मिन्दा नहीं करना चाहता था इसलिए उसे बड़े पुलिस स्टेशन में शिफ़्ट कर दिया था जो कि उस छोटी सी चौकी के क़रीब ही था। रूथ एक अनुभवी अफ़सर है। वह लिसा को संभाल लेगी। इसीलिये सार्जेन्ट ने केस पी.सी. रूथ को सौंप दिया था।

“हेलो लिसा.. मै रूथ हूँ।”

लिसा चौंकी और सीधी बैठ गई।

“लिसा फिर क्या हुआ..?” रूथ ने अपनी मीठी और दयालु आवाज़ में लिसा से आगे बात करने को कहा।

 “हम सभी बिखर गए....” लिसा ने सांस को अंदर को खींचते हुए कहा। “दोनों छोटी बहनें फ़िल को अपने साथ खेलने वाला खिलौना ही समझती रहीं। उसके साथ ख़ूब उछल कूद करती रहतीं। उन्हीं के बहाने तो मां ने फ़िल का आना जाना इस घर में शुरू करवाया था। मगर मुझे उसका इस तरह हमारे परिवार का हिस्सा बन जाना कभी भी पसन्द नहीं आया था। छुट्टी के दिन सुबह सवेरे ही से आ धमकता तो सारा दिन मेरे परिवार के साथ ही बिता देता। मेरे बाप को तो मां छुट्टी के दिन भी काम पर भेज देती ओवर टाइम करने के लिए क्योंकि परिवार बड़ा था पूंजी भी अधिक चाहिए थी। वह ख़ुद छुट्टी के दिन घर पर ही  रहती। सारे सप्ताह के कपड़े धोने बाहर लॉण्डरेट में जाती। फ़िल भी उसके साथ मैले कपड़ों का थैला बना चला जाता।” लिसा को फ़िल हमेशा गन्दगी का थैला ही महसूस होता था। उसे फ़िल में कोई क्लास या बौद्धिक्ता नहीं दिखाई देती थी। वह एक खिलंदड़ा था... ग़ैर-ज़िम्मेदार... सिर्फ़ खाने के लिये जीने वाला पशु... !

लिसा सोचती माँ इसको क्यों इस तरह घर में घुसाए रहती है?  कहीं माँ मेरी अरेंज्ड मैरिज के चक्कर में तो नहीं है। यह तो हमारा कल्चर नहीं है..!! मैं क्यों माँ की पसंद से शादी करूँ.! मैं तो अपने बॉय-फ़्रेण्ड को अपने डैड से सब से पहले मिलवाउगी। मैं शादी करूंगी। जैसे डैड ने की थी...पहले से किसी को पार्टनर नहीं बनाउंगी.. मैं शादी करूंगी... ऐज़ ए वर्जिन गर्ल शादी करूंगी... वही मेरा वैडिंग गिफ़्ट होगा मेरे अपने बुने हुए सपनों को...

“यस मिस लिसा जॉन्सन लेट अस डू दी जॉब..! ”

लिसा उछल पड़ी. रूथ उसे गौर से देख रही थी शायद उसके दुखों को बगैर सुने ही पढ़ लेना  चाहती थी।

‘’आज कितनी गर्मी है! तापमान 30 डिग्री पहुँच गया है। मुझे भी बहुत गर्मी लग रही है।मेरे फ़्लैट के कमरे बिलकुल मुरगी के दड़बे जैसे हैं। हम तीन बहनें एक बॉक्स रूम जैसी काल कोठरी में रहती हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। मेरा बाप हम तीनों से बहुत प्यार करता था। उसको मेरी मां ने हम सबसे अलग कर दिया। आजकल मेरा बाप बीमार है और अकेला भी है... मैं... मैं तो... ”

“लिसा बताओ यहाँ कैसे आना हुआ..?”

वह फिर सोच में पड़ गयी ... उठी और बाहर जाने लगी.

“मुझे कुछ नहीं बताना है... ”

“लिसा ऐसा नहीं करो। पोलिस हमेशा मदद करती है। पोलिस से कुछ नहीं छुपाते... तुम्हारी इज्ज़त मेरा फ़र्ज़ है।” रूथ ने प्यार से मद्धम पर गंभीर आवाज़ में कहा।

लिसा फट पड़ी... ‘’मैं ‘ओ' लेवेल्स के एक्ज़ाम्स के लिए पढ़ रही थी नैन्सी मेरी माँ काम पर गयी हुई थी बहनें स्कूल थीं, फ़िल न जाने कब घर में आ गया मुझे पता ही नहीं चला. चुपके से मेरे कमरे में दाख़िल होकर देखो यह सब क्या कर दिया...!!’’

देखिये ऑफ़िसर, वो वहशी मेरे बालों को अपने मुंह के ऊपर लपेट लपेट कर खींचने लगा। बालों को चूस चूस कर बुरी तरह गीला कर दिया। ना जाने कबसे मेरे सुनहरी बालों पर नज़र गढ़ाए बैठा था।... और फिर मेरे शरीर को सहलाने लगा और रूथ... अंत में... भेड़िये की तरह भंभोड़ कर रख दिया।... वह कांपने लगी और उसने अपने उलझे हुए लम्बे बाल गर्दन से हटाए और लाल लाल ख़ून जमे हुए निशान पूरी गर्दन पर दिखाए.... ‘जब वह निकलकर भागने लगा तो मैंने भी पीछा कर के दरवाज़े ही पर पकड़ा और दांत गाड़ दिये उसकी पीठ में मगर अभी तक चैन नहीं आ रहा है मुझे.’’ “आज जो एक लड़का पकड़ा गया है उसकी गर्दन के पीछे कन्धे की नीचे भी दांत के निशान हैं पर वह बता नहीं रहा की किसने काटा... ”

“लिसा तुम फिक्र मत करो  डी. एन. ए. टेस्ट से सब कुछ साबित हो जाएगा। और हां वक्त आने पर तुम्हें प्रेगनेन्सी टेस्ट भी करवाना होगा, उसे सज़ा तो पक्की है।”

“कितने वर्षों की..?”

“सज़ा का फ़ैसला कोर्ट करेगी, हम क़ानून के बारे में कुछ नहीं बोल सकते। पर जुर्म बहुत संगीन है।  उसे सज़ा लम्बी होनी चाहिये, तुम अंडर-एज जो हो।”

प्रेगनेन्सी टेस्ट का सुनकर वह डर सी गई। पर यह सुनकर जैसे संतुष्ट हुई...पीले चेहरे पर थोड़ा सा रंग दिखाई देने लगा। पर एकदम से खड़ी हो गई ‘ऑफ़िसर मुझे अपने से घिन आ रही है...मैं पवित्र नहीं रही. मैं अछूत हो गई...मेरे पास से दुर्गंध आ रही है ना...? अब मैं नर्स कैसे बनूंगी... मरीज़ों को कैसे छू सकूंगी...अपनी बहनों को प्यार कैसे करुंगी...अपने डैडी को कैसे अपने दुख बताउंगी...!’

धड़ से कुरसी पर बैठ गई और मेज़ पर सिर को मारने लगी.

लिसा का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था; जैसे जैसे उसे अहसास हो रहा था अपना कुछ खो जाने का ; लुट जाने का...अपने ही घर में आंखों के सामने डाका पड़ जाने का और अपनी मजबूरी  का. उसके डैडी ने उसे कुछ संस्कार दिये थे। रोमन केथॉलिक होने के संस्कार। वह अपने जीज़स की बताई बातों पर चलना चाहती थी क्योंकि उसके डैडी को वही बातें पसन्द थी। नैंसी हमेशा मज़हब के ख़िलाफ़ बात करती... मज़ाक उड़ाती मज़हब का। उसके अनुसार मज़हब के अनुसार चलने वाले दक़ियानूसी  होते हैं... पिछड़े हुए लोग। शुक्र मनाती कि हेनरी अष्ठम ने मज़हब को आधुनिक चोला पहना दिया वर्ना आज भी हम कितने पीछे रह गये होते। उसके पिता सदा ही मध्य मार्ग की बात करते । छोटी बहने स्वयं ही बड़ी बहन को देख कर उसी के पदचिन्हों पर चलना चाहती थीं। इसी लिये कहा जाता है कि पहले बड़े बच्चे को अच्छे संस्कार दे देने से बाद के बच्चे ख़ुद ही उसके पीछे चलने लगते हैं।

लिसा की यह हालत देख कर पी सी रूथ ने केवल कंधे पर हलका सा हाथ रख दिया और चुप खड़ी रही. लिसा अब तुमको  अस्पताल जाना होगा चेकअप के लिए.

“क्या तुमको यक़ीन नहीं आ रहा जो मैं बक रही हूं..?”

“नहीं लिसा ऐसा नहीं... यह सब कोर्ट की रिक्वाएर्मेंट्स होती है।”

फिर लिसा सोचने लगी कि घर में चैन हो जाएगा....और अब वह अपने डैडी के दिये घर में मज़े से रह सकेगी...अपनी बहनों की भी देख भाल कर सकेगी... वे भी सुरक्शित रहेंगी उस भेड़िये से....ना मालूम जेल कब तक जाएगा..!!

नैन्सी ने कुछ दिनों से लिसा को समझाना शुरू कर दिया था कि ओ-लेवेल्स का इम्तहान देने के बाद अपने क्षेत्र की काउंसलर की सलाह उसकी सर्जरी में जाकर अपने लिये एक बेडरूम के फ़्लैट की मांग करे। हाउसिंग डिपार्टमेण्ट वाले फ़ौरन तो सुनते नहीं हैं। दुनियां भर की इंक्वायरी करते हैं। जैसे ही अठ्ठारह वर्ष की होगी, अलग फ़्लैट में रह सकेगी।

“यह कैसी मां है?” लिसा सोचती। यहां तो बच्चे घर छोड़ कर भागने के चक्कर में होते हैं और यह मुझे भगाने के चक्कर चला रही है! मैने तो नहीं सोचा कि मुझे फ़्लैट लेकर अलग होना है। तो फिर मां को क्या जल्दी पड़ी है... ? हमारे डैडी तो हम तीनों बहनों के लिये ही घर छोड़ कर गये हैं कि हम सुखी रहें।

वह स्वयं ही मां के इस रवैये से चिंतित रहते थे, पर संकोच आता ऐसी गन्दी बातें पत्नी के बारे में सोचते हुए। उसकी उज्जवल धुली धुलाई साफ़ सुथरी बेटियों ने उसी मां की कोख से जन्म लिया है. ‘मेरी बेटियां तो मदर मेरी की तरह पवित्र, मासूम और सुन्दर हैं।’

कितना प्यार करते थे हमारे पिता हमसे, मुझको तो कितना बड़ा हो जाने तक कन्धे पर उठा लेते और पूरे घर के चक्कर लगाते... ये सोचकर लिसा को अपने बड़े हो जाने पर हल्की सी कसक महसूस होती....

ये सोचकर कि यदि आज डैडी होते और मैं अपने मज़बूत डैडी के मज़बूत कन्धों पर बैठ जाती तो मेरी टांगें तो धर्ती को चूमती ही रहतीं... वह यह सोच कर चकराने लगी कि उस दिन इन्हीं लम्बी टांगों से रक्त की बारीक़ सी कुंवारी लकीर बह कर घुटनों और टख़नों तलक पहुंचकर वैसे ही खो गई जैसे नदियां अपने अस्तित्व को समुद्र में समर्पित कर गुम हो जाती हैं। गुम वह भी थी इस उधेड़बुन में कि मां ने काउंसलर के पास जाने की रट क्यों लगाई हुई है...?

महसूस तो उसको होता था अन्दर से खोखलापन... टूट गई थी जैसे, जब उस अधखिली कुंवारी का प्रेगनेन्सी टेस्ट हुआ था। लॉर्ड जीज़स ने अपना स्नेह बनाए रखा और उसका टेस्ट निगेटिव निकला। यदि ऐसा ना होता... इसका उल्टा हो जाता तो क्या वह जी सकती थी इस पाप के बीज को लेकर! कभी नहीं ... कभी नहीं... ! हालांकि अब वह इस घनघोर समस्या से   बाहर आ गई थी... मगर....

समस्याओं ने तो उसका परिवार ढूंढ लिया था। घर तो उसी दिन दुखों की सुपर मार्केट बन गया था जिस दिन वह दुम हिलाता कुत्ता इस घर में आया था... अब वह फ़िल को ऐसे ही सम्बोधन से याद करती। लिसा का इतना बड़ा बलिदान देने के बाद उसकी अपनी मां सयंम से काम लेगी, लिसा सोचती। यही एक आशा उसको सहारा दिये हुए थी।... मगर मां, उसके बड़े हो जाने पर इसलिये ख़ुश है कि अब वह अलग फ़्लैट में शिफ़्ट हो जाएगी।

मां... ! मैं क्यों बेईमानी करूं... ! मेरे पास तो रहने को दिया हुआ घर मौजूद है। और हां डैडी को तो काउंसिल से फ़्लैट भी मिल गया है। मैं क्यों काउंसिल पर बोझ बनूं? मेरे बदले वो फ़्लैट किसी होमलेस व्यक्ति को मिल जाएगा।

लिसा जितनी ईमानदार थी, मां नैन्सी उतनी ही चाण्डाल। उसका तो ख़मीर ही गड़बड़ है। कोई सोच सीधी रेखा पर चलती ही नहीं थी। उलझी बातें करती और उसी में उलझा देती आसपास के रिश्तों को।

“लिसा, आज शनिवार है; काउंसलर दस से साढ़े ग्यारह बजे तक ग्राहम पार्क लायब्रेरी के एक कमरे में बैठती है। तू पौने दस बजे ही जा कर बैठ जा। शायद तेरा नंबर पहला ही आ जाएगा। सुना है काउंसलर दुःखी लोगों का कष्ट महसूस करने वाली महिला है।”

“मां तुमने जो दुःख दिया है उसको काउंसलर तो क्या संसार का कोई भी व्यक्त नहीं धो सकता।... मैनें कह दिया है... न तो मैं काउंसलर के पास जाऊंगी और ना ही अलग फ़्लैट में। मैं अपनी बहनों के साथ अपने डैडी के दिये हुए घर ही में रहूंगी।”

“मेरी बात मान ले लिसा... ज़िद ना कर... अब इस घर में भीड़ बढ़ रही है।”

“आजतक तो घर में भीड़ नहीं महसूस हुई। अब अचानक क्या हो गया है? मां... मैं कोई एसाइलम सीकर नहीं हूं... जिसके पास रहने की कोई जगह ना हो। मैं इस लिए नहीं जाऊंगी कि किसी ज़रूरतमन्द का हिस्सा मारा जाएगा और इसलिये भी नहीं जाऊंगी कि मेरे पास घर है... मैं बेघर नहीं हूं। हां बे-मां ज़रूर महसूस करने लगी हूं... !”

उस दिन पहली बार लिसा के व्यवहार में कड़वाहट की मिलावट महसूस हो रही थी। लिसा का शहद की तरह मीठी लहजा शेविंग ब्लेड की तरह कटारी चीरता चला जा रहा था।

नैंसी तो बेहिस हो चली थी... ख़ुदग़र्ज, लापरवाह... केवल अपने बारे में सोचना... और... अपने ही लिये जीना... और फिर अपनी बेचारगी के दुःख रोना।

और....

कितनी बेचैन थी नैन्सी उस दिन....

उस दिन से वर्षों तक मुलाक़ात वाले दिन तीन घंटा जाना और तीन घंटा आना करती रही. लिसा को कोसती रही कि इस अभागन के कारण मेरा फ़िल जेल गया इसका भी तो सौतेला  बाप हुआ...इसको बाप का कोइ ख़्याल नहीं..!!

आज जब वह वापस आने वाला है तो सवेरे ही से नैंसी अपना बेडरूम सजाने में वयस्त है. अपने मोटे मोटे काले मैल भरे नाख़ूनों में से खोद खोद कर मैल निकालकर नाख़ूनों को गाढ़ा लाल रंग कर बीर बहुटी बना रही है। बालों में भी रोलर लगाए घूम रही है कि घुंघर वाले बाल ज़रा घने लगेंगे वर्ना सिर की खाल जगह जगह से दिखाई देने लगी है। ब्लाउज़ के साथ काली चमड़े की मिनी स्कर्ट, घुटनों से दस इंच ऊपर कूल्हों पर फंसी, पहनकर बाहर निकली और मॉडल बनकर खड़ी हो गई। दोनों छोटी बेटियों से राय लेने लगी कि – मैं कैसी लग रही हूं?... वो दोनों देखकर खिलखिलाने लगीं और लिसा की नज़र सीधे उसकी टांग पर उभरी हुई नाड़ियों पे जा टिकी – जैसे विश्व की एटलस की तमाम नदियां नीला जाल बिछाए और कहीं कहीं छोटे छोटे ख़ून जमे हुए टीले बने नज़र आ रहे थे।

वह कमरे से बाहर निकल गई, मां की लाल साटन की ब्लाउज़ पर नज़र डालते हुए जिसमें से उसके अंग बाहर को उबल पड़ रहे थे। नैन्सी ने बेटियों का भौंचक्कापन देखकर स्वयं ही सोचा कि ब्लाउज़ इतनी ऊंची होनी चाहिये कि उसकी गोरी कमर और पेट नज़र आए। कमरे का पीला बीमार सा बल्ब निकाल कर लाल रौशनी वाला बल्ब लगा दिया कि कमरा देखते ही

फ़िल के होश उड़ जाएं..... और...................!

उसे क्या मालूम फ़िल को तो कच्चा ख़ून मुंह को लग चुका है...!

और आज उस से कहीं अधिक बेचैन है लिसा....! उसे जब अहसास हुआ कि आज वह दरिन्दा वापिस आ रहा है और मां उसको इसी घर में वापिस ला रही है जहां उसकी अपनी बेटी की जीवन भर की तपस्या... कुंवारी रहने की तपस्या... जीज़स क्राइस्ट के बताए रास्तों पर चलने की तमन्ना, मदर मेरी की तरह पवित्र रहने की ख़्वाहिश और पिता के सिखाए संस्कारों पर क़ायम रहने की उमंग... अब तो सब भंग हो चुका है। पर यह नैन्सी अब भी बाज़ नहीं आती... क्या दोनों बहनों की भी बलि लेगी... ? ऐसा नहीं होने दूंगी... कभी नहीं...

काउंसिलर के सामने खड़ी गिड़गिड़ा रही है, “मैं कुछ नहीं जानती मुझे अलग फ़्लैट चाहिए...एक कमरे का चाहिये...मैं अपना घर छोड़ दूंगी...छोड दूंगी अपना घर... हां छोड़ दूंगी अपने डैडी का घर...”



लेखिका: ज़किया ज़ुबैरी
जन्मः  01 अप्रैल;  
स्थानः लखनऊ
मातृ भाषाः हिन्दी, 
बचपन एवं स्कूली शिक्षाः आज़मगढ़, इलाहाबाद।
शिक्षाः स्नातक, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय।

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