आँचल उन्नति
स्नातक दिल्ली विश्वविद्यालयब्लॉग: आँचलसंपर्क: avidaanchal@gmail.com
१. " माँ कहती है परी हूँ मैं..."
माँ की प्यारी नन्ही हूँ मैंमाँ कहती है परी हूँ मैं...
माँ का महकता आँचल हूँ,
माँ से ही तो जुडी हूँ मैं.
माँ कहती भूल बुरी बात,
तू कर एक नयी शुरुआत.
माँ बनती हर वक़्त ढाल,
रखती क्यूँ है इतना ख्याल.
माँ की प्यारी नन्ही हूँ मैं
माँ कहती है परी हूँ मैं...
हर गलती पर माफ़ वो करती,
मांगे पर भी सजा ना देती.
मेरी तो पूरी दुनिया हैं माँ
भोली निराली सबसे प्यारी माँ...
माँ की प्यारी नन्ही हूँ मैं
माँ कहती है परी हूँ मैं...
२. रात में बातें अलबेली होती हैं
यूँ तो रात अकेली होती हैलेकिन इस रात में बातें अलबेली होती हैं
रात का सन्नाटा कई यादें साथ लाता है
कुछ पुरानी,
कुछ नयी,
कुछ अनकही,
कुछ अनसुनी का एहसास लाता है
कभी उदास करती ये यादें दिल को
कभी चेहरे पे एक मीठी मुस्कान छोड़ जाती है
आती रहो ऐसे ही रात तुम
करती रहो ढेर सारी बात तुम
उसी मासूमियत उसी रूमानियत के साथ
ऐ रात!
तुम्हार इंतज़ार
हर रोज़ होता है...
३. देखो तो
अपनी परिपक्वता को कभीमेरी मासूमियत की चाशनी में घोल के देखो तो...
अपनी समझदारी को कभी
मेरे पागलपन के साथ कैद करके देखो तो...
मेरी बेवकूफाना, बचकाना, उत्साही हरकतें
सिर्फ तुम्हारे लिए है...
अपनी रम्यता को कभी मेरे भोले दीवानेपन के साथ संजो कर देखो तो...
6 टिप्पणियाँ
सुंदर रचनाये है मासूमियत भरी और रिश्ते को परिभाषित करती हुयी .......आभार!
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए शुक्रिया आपका.
हटाएंsunder mradu bhaav se bhari sabhi rachnaayen***badhaai aanchal ji
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए शुक्रिया आपका.
हटाएंSachi sondhi kavitaayen.
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए शुक्रिया आपका.
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