कवितायेँ: नीलम मैदीरत्ता 'गुँचा' | Hindi Poetry : Neelam Madiratta - Guncha


‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

कवि श्री जगदीश कुमार नागपाल 'साधक'  की पुत्री नीलम मैदीरत्ता 'गुँचा' का जन्म 18 फरवरी को गन्नौर (हरियाणा) में हुआ है, विज्ञानं स्नातक नीलम की कविताओं का पहला संग्रह “तेरे नाम के पीले फूल” बोधि प्रकाशन से  हाल में ही प्रकाशित हुआ है.
शब्दांकन पर उनका स्वागत करते हुए आप कविता प्रेमियों के लिए पेश हैं संग्रह की कुछ कवितायेँ.
"तेरे नाम के पीले फूल" को अपने संग्रह में शामिल करना चाहने वालों के लिए पोस्ट के अंत में विवरण दिया जा रहा है.

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

लड़की 

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

सब से अमीर होती है वह लड़की,
जिस के पास खोने के लिए,
अपनी इज्ज़त के सिवा कुछ नहीं होता,
और यह जानते हुए भी,
कि भीड़ भरे रास्तों पर,
उसे कोई छू पाए या ना छू पाए,
पर उछाले जा सकते है पत्थर और कीचड़,
वो तोड़ती है हाथों की चूड़ियाँ,
वो तोड़ती है अपनों का विश्वास,
लांघती है घर की दहलीज़,
 बांधती है सर पर कफ़न,
मुहँतोड़ देती है जवाब,
उसे नहीं दिखाई देते,
अपने आँचल के धब्बे,
दिखती है तो सिर्फ,
मछली की आँख,
लडती है कर्मक्षेत्र,
और जिंदा रह कर,
जीती है अपनी ज़िन्दगी...
सब से अमीर होती है वो लड़की ...

सब से गरीब होती है वह लड़की,
जिस के पास खोने के लिए होती है,
अपनी इज्ज़त के साथ-साथ,
माँ-प्यो दी इज्ज़त,
सारे कुनबे दी इज्ज़त,
अपनों का प्यार और विश्वास,
आन-बान और शान,
वो पहनती है रंग-बिरंगी चूड़ियाँ,
सीती है अपनी गुलाबी जुबान,
ओड़ती है सपनों की चूनर,
मरती है रोज़ लम्हा लम्हा,
और मुस्कुराते हुए,
जीती है अपनी ज़िन्दगी ...
सब से गरीब होती है वह लड़की ...
‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

प्रेम 

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

तुम्हें लगता है ना कि,
मै बहुत प्रेम प्रेम करती हूँ,
पर प्रेम ने तो कभी छुआ ही नहीं मुझे,
मै ही पगली थी,
प्रेम प्रेम जपती रही,
और इतना जपी कि,
प्रेम से हामला हो गयी,
पर सुना है,
इस कलयुग में भी बिन बाप के,
बच्चे नहीं जन्मते,
और यह गर्भ तो नौ महीने की,
परिधि भी नहीं समझता,
तो अब मै क्या करूँ?
इस प्रेम माँस के लोथड़े का,
क्या करूँ,
यह तो कभी जन्म ना लेगा,
हाँ !! जपती हूँ,
"गर्भपात ...गर्भपात ...गर्भपात",
नहीं ... जपने से नहीं होगा,
चिल्लाना होगा,
जोर से चिल्लाती हूँ,
"गर्भपात ...गर्भपात ...गर्भपात",
.
.
.
अब थक गयी हूँ,
और मुझे नींद आने को है ...

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

ऋतुराज

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

सृष्टि के सारे पुराने पत्तों ने,
निर्जला उपवास रखा है,
तुम्हारे आने के इंतज़ार में,
सब सूख से गए है,
अभी तेज हवा का कोई झोंका आएगा,
और इन्हें उड़ा कर ले जाएगा,
और तुम कहोगे,
कि पतझड़ है,
तय है, पुराने पत्तों का,
शाख़ से टूट कर गिरना,
इन में से, मै भी एक हूँ,
सभी प्रतीक्षारत है,
तुम्हारे आगमन हेतु,
पलकें बिछाए है,
सभी तुम्हारा अभिनन्दन करेंगे,
और मेरा अंतिम संस्कार कोई नहीं करेगा,
कोई बात नहीं,
मै स्वयं ही विलीन हो जाऊँगी इस धरा में,
ताकि खिल सके शाख़ पर,
नयी पत्तियां, नए पुष्प,
और तुम मुस्कुरा कर पहन सको,
पीले फूलों के हार,
हमारा बलिदान भूलोगे तो नहीं ऋतुराज,
हाँ भूलना नहीं !!
तुम्हारा ना भूलना ही,
मुझे देगा एक नया जन्म,
और फिर लिखूंगी मै,
एक दर्द भरी अभिव्यक्ति,
और बताऊँगी तुम्हें ,
कि जब शाख़ से टूटता है पत्ता,
तो कैसा लगता है?
.
मै आ रही हूँ लौट के,
पहचान सको तो पहचान लेना ....

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

बसंत आयेगा

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

सुनो !
सारे दरवाज़े बंद कर दो,
सारी खिड़कियाँ भी,
चिटकनी ठीक से लगाना,
और बाहर एक बोर्ड भी लगा दो,
कि "यहाँ कोई नहीं रहता।"
जब पता है कि द्वार खुलेगा नहीं,
फिर भी लोग खटखटाते क्यों है?
और हाँ !!!
एक कब्र भी खोदों,
तुम्हें छिपना होगा,
कोई भरोसा नहीं,
ये दरवाज़े तोड़ कर भीतर आ जाये,

हाँ हाँ !!
मैंने सहेज लिया है,
तेरी यादों की गठरी को,
सो जाओ तुम,
बस निश्चिंत हो सो जाओ,
बहुत थक गयी हो तुम,
नींद ....आएगी ....बाबा ..आ जायेगी,
कहो तो मै सुला दूँ ,
कोई लोरी सुना दूँ,
या थपथपा दूँ,

क्या कहा ? ..वो पीले फूल?
हम्म !!उम्र बीत  गई
अब भी उस का नाम लेते हुए,
तेरे लब कांपने लगते है,
ब सं त आयेगा.. ...बसंत ज़रूर आएगा,
अभी शीत है,
फिर पतझड़,
और......फिर आएगा बसंत
अब ये ना कहना,
कि कैसे आएगा?
सारे द्वार तो बंद है?
जैसे ये प्रकाश आता झिरियों से,
ऐसे ही आएगा,
बसंत भी ऐसे ही आएगा ......
सो जाओ तुम !!!!!!!

‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗‗

संपर्क: S 15/14 I द्वितीय तल, डीएलएफ फेज़ 3, गुडगाँव - 122 002. 

तेरे नाम के पीले फूलकविता संग्रह, नीलम मैदीरत्ता, संस्करण 2013, पेपरबैक, मूल्य रु 70/-
बोधि प्रकाशन 
F-77, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर -302006.
संपर्क: माया मृग, मो० +91-98290 18087, ईमेल : bodhiprakashan@gmail.com

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. बधाई नीलम ………भरत नीलम की इस किताब पर मैने भी समीक्षा लिखी थी :)

    जवाब देंहटाएं
  2. फुल हैं शब्दों के आपकी कविताओं के ...बधाई

    जवाब देंहटाएं