ये कविताएं वहां से आई हैं जहां सूरज भी नहीं जाना चाहता - वर्तिका नंदा | Tinka Tinka Tihar - Vartika Nanda

Vartika Nanda on her book of poems on women’s rights

Vartika Nanda juggles journalism, teaching and writing poetry. She has brought the three together in her recently published book of poems, Thee, Hoon, Rahungi, touching on issues of exploitation of women. “I think, today a woman can either speak up, choose to die or pick up the pen. I have picked up the pen and tried to show the pain of those women,” says Nanda.

A 2005 recipient of the Bharatendu Harishchandra Award of the Government of India’s Ministry of Information and Broadcasting, she maintains, “Today the situation of women’s safety is very grim. Given the recent death of Fiza Mohammed, I can say that women of elite households succumb to the pressures of men. My book, Thee, Hoon, Rahungi is in fact the first in India, which has poetry on the issue of crime against women, especially domestic violence.”

The anthology won the Rituraj Parampara Samman. “I started working with poetry in 1984-85,” says Nanda. “Then I got associated with a few TV channels and print media houses as a crime journalist. I realised that I wasn’t doing justice to the cause by putting up a three-minute news clip on the news channel.” That is when, she says, she turned to writing.

Covering the crime beat, Nanda saw many cases of domestic violence. She couldn’t bear the torture some women had to face at the hands of their husbands. “My book also talks about how when wives go to the authorities against their husbands, the husbands resort to defaming them,” says the journalist who teaches in a Delhi University college, adding, I’m not a feminist but I’m against criminal activities towards women.”

She is miffed at the commercialisation of crime and clumsy treatment of sensitive cases by the electronic media. Nanda feels that media-persons should be taught when they are working on sensitive stories. “I feel distressed to see that the name of the victim is flashed repeatedly and the accused moves freely in the society. There was no need to show the clip and the name of the girl who was misbehaved with in Guwahati.”

She gives the credit for her achievements to the women she tries to give a voice to and who choose to live with strength and dignity despite their horrendous experiences. “I’m writing a novel on the same issue and also making a seven-minute film which will be shown at major police stations and NGOs in India,” she signs off.
दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर वर्तिका नंदा, एक सौम्य और सशक्त पत्रकार, चिंतक, कवयित्री और मीडिया शिक्षक हैं साथ ही अपराध पत्रकारिता में एक सुस्थापित नाम है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली में तीन साल तक एसोसिएट प्रोफेसर रही वर्तिका ने अपनी पीएचडी 'बलात्कार और प्रिंट मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर प्रस्तुत की है।
प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा की प्रसार भारती के नवीनीकरण पर बनाई हाई-प्रोफाइल कमेटी की वे सदस्य हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की महिला अपराध शाखा में मीडिया सलाहकार भी हैं।

वर्तिका नंदा की कर्मठता उनके कार्य और जीवन के हर क्षेत्र में नज़र आती रही है। लेकिन इस दफ़ा उन्होंने जैसे अपने ही बनाये रिकॉर्ड को तोड़ने की ठानी थी। 'जेल !' दो अक्षर का शब्द लेकिन कितना डरावना ...  वहाँ जा कर, कैदियों के साथ वक़्त बिताना आसान नहीं है।... और ये तब और कठिन हो जाता है जब आप उनमे से ऐसी प्रतिभाएं तलाश करना चाहते हों, जो स्वयं में होने वाली प्रतिभा को खुद भूल चुके हों।
        तिहाड़ में, कविता लिखने वाली महिला क़ैदी तलाशने की सोचना, उस सोच को पूरा करना और उनकी कविताओं के तिनके जोड़-जोड़ कर संग्रह प्रकाशित करने के लिए वर्तिका को जितनी भी बधाई दी जाये कम है।
       बहरहाल "तिनका तिनका तिहाड़" के विमोचन में मैं नहीं पहुँच सका, बहुत दुःख हुआ। इसी बीच ये ख्याल आया कि क्यों ना संग्रह से जुड़ी बातों को एक जगह एकत्र कर दूं नतीज़ा आप के सामने है - जिसमे शामिल है ☛ वर्तिका नंदा से ऋचा अनिरुद्ध की बातचीत, ☛ वर्तिका और संग्रह, ☛ कुछ कवितायेँ, ☛ कुछ वीडियो/रेडियो, ☛ कुछ तस्वीरें और कहाँ-कहाँ 'तिनका तिनका तिहाड़' चर्चा में  है (यहाँ से बीबीसी तक)। पुस्तक को ऑनलाइन खरीदने के लिंक भी हैं।
       अंत में इतना कहूँगा कि 'तिनका तिनका तिहाड़' एक ज़रूरी किताब है, होनी चाहिए आप के पास। और यदि इससे जुडी कोई और जानकारी चाहिए हो तो sampadak@shabdankan.com पर मेल भी कर सकते हैं।
भरत तिवारी


ये कविताएं वहां से आई हैं जहां सूरज भी नहीं जाना चाहता ... 


वर्तिका नंदा से ऋचा अनिरुद्ध की ''तिनका तिनका तिहाड़'' कविता संग्रह पर बातचीत 

तिनका तिनका तिहाड़….

उस बड़ी सी अभेद दीवार के पीछे की जिंदगी के बारे में कभी सोचा आपने ?….आप न जाने कितनी बार उसके पास से होकर गुज़रे होंगे लेकिन उसके अंदर कैद लोगों के दिन कैसे गुज़रते होंगे, ये ख्याल कभी आया मन में ? ….मैं बात कर रही हूं जेल की। जहां हज़ारों ज़िंदगियां कैद होती हैं.। या तो इंसाफ की या फिर मौत की राह तकते जिनके दिन रात बीतते हैं। कुछ अपने किए की वजह से वहां होतीं है तो कुछ किसी और के किए की सज़ा भुगतने….वजह जो भी हो, वो ज़िंदगी आसान तो नहीं होती होगी…..

       कुछ विचारशील, संवेदनशील लोग समाज के उस वर्ग के बार में भी सोचते हैं जिन्हे हम अपराधी, गुनाहगार, कैदी, सज़ायाफ्ता मुजरिम जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं । जानी मानी पत्रकार, चिंतक, वर्तिका नंदा उन चंद लोगों में से एक हैं जो बड़े ही सहज लेकिन स्पष्ट शब्दों में महिला अधिकारों, संवेदनाओं और संघर्षों के बारे में खुल कर लिखते और बोलते हैं।

       वर्तिका ने अपने इसी काम को आगे बढ़ाते हुए तिहाड़ की दीवारों और सलाखों के पीछे कैद महिलाओं तक एक सुझाव भेजा…कविताएं लिखने का…मन में जो कुछ है उसे कागज़ पर उड़ेल देने का…अपनी आप-बीती, विचार, द्वंद को कविता के ज़रिए व्यक्त करने का। और कई महीनों की मेहनत, महिला कैदियों को सुनने  समझने के बाद जो सामने आया वो है एक अद्भुत कविता संग्रह- तिनका तिनका तिहाड़… मैंने वर्तिका से बातचीत की….

ऋचा अनिरुद्ध

ऋचा - तिनका तिनका तिहाड़.ये सोच कहां से आई कैसे आई

वर्तिका - मेरी किताब "थी हूं रहूंगी " घरेलू हिंसा पर पहला कविता संग्रह था जिसको लिखने के दौरान मुझे महसूस हुआ कि घरेलू हिंसा से पीड़ित ज़्यादातर महिलाएं बोल ही नहीं पातीं। या तो वो तिल तिल कर मर जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं या जेल पहुंच जाती हैं। मैं ये नहीं कहूंगी कि सारी महिलाएं फंसाई जाती हैं लेकिन पुरुषों के मुकाबले महिला अपराधियों की संख्या बहुत कम होती है और कई बार हालात ऐसे हो जाते हैं जो उन्हें अपराध करने पर मजबूर कर देते हैं। मैं उन महिलाओं के सुनना और महसूस करना चाहती थी। शुरू में तो वो महिला कैदी अपनी बात कह ही नहीं पाती थीं लेकिन धीरे धीरे उनमें उत्साह आने लगा

ऋचा - लेकिन आपने आखिर में ४ महिला कैदियों की ही कविताएं चुनीं…

वर्तिका - मुझे ऐसा लगा कि इन चारों ने इन कविताओं को जिया था और इनके जीने की सबसे बड़ी ताकत कविता ही है। जो किताब में आखिरी कविता मौन है वो बहुत ताकतवर कविता है। मैं हमेशा कहती रही हूं कि एक महिला की सबसे बड़ी ताकत, दुख, कमज़ोरी मौन ही है।

ऋचा - निजी तौर पर एक महिला होने के नाते आपके लिए एक बड़ा अनुभव रहा होगा ये किताब तैयार करना

वर्तिका - मैं कहूंगी कि मैं बदल गई..क्योंकि मुझे लगा कि हम कितने खुशनसीब हैं कि हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। दूसरा मुझे ये भी लगा कि इस हिस्से का दुख तो वो दुख है जिसके बारे में कोई सोचना भी नहीं चाहता।आज जब मैं देखती हूं कि धार्मिक जगहों के लिए चंदा हो रहा है तो मुझे लगता है कि हम समझ ही नहीं रहे कि चंदे की, या हमारे सहयोग की असल ज़रूरत किसे है। एक और बात मैंने सीखी वो ये कि दुख में हर आदमी अकेला होता है…और सुख में ये मान लेना कि दुख हमारे पास नहीं आएगा ये बहुत बड़ी बेवकूफी है। इसलिए ये मेरे लिए ये एक ज़बर्दस्त भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा रही है।

ऋचा - हम कई बार ऐसी महिलाओं की कहानियां सुनते हैं जिन्हें सुन कर बहुत हताशा होती है कि हम इनके लिए कुछ नहीं कर सकते। आपको भी कई कहानियां सुन कर ऐसा लगा होगा...

वर्तिका - हर बार ऐसा होता है। मुझे लगता है कि हर औरत को बार बार टूटना पड़ता है, टूट कर जुड़ना पड़ता है जुड़ कर फिर खड़ा होना पड़ता है। मैॆ जितनी बार इन महिलाओं से मिली मैं उनकी आंखों में नहीं देख पाती थी। और मेरी कोशिश रही कि में उन्हें कोई सलाह न दूं न उनके अपराध पर कोई टिप्पणी करूं। हां उन्होंने अपने दिल की बात कही बार बार कही लेकिन मैंने कभी ये नहीं कहा कि ऐसा क्यों किया, ऐसा नहीं करना चाहिए था या ऐसा भी तो किया जा सकता था । मैंने सिर्फ उनको सुना।

ऋचा - ये किताब लेते वक्त किसी को क्या उम्मीद हो

वर्तिका - ये किताब एक साधना है । मैं जो भी लिखती हूं, सरस्वती को ध्यान में रख कर लिखती हूं लक्ष्मी को नहीं। इसलिए इस किताब से जो भी आमदनी होगी वो सामाजिक काम में आएगी। लोग इस किताब को इसलिए पढ़ें क्योकि ये कविताएं वहां से आई हैं जहां सूरज भी नहीं जाना चाहता….

तिनका  तिनका  तिहाड़  एक  बेहद  संवेदनशील  किताब है।  ऐसी  किताब  जो  जब  आपके  हाथ  में  आती  है  तो  आपकी  रूह  को  झकझोरे  बिना  हटती  नहीं . . .   ऋचा अनिरुद्ध








दुख से उपजी कविताएं किसी भी व्याकरण से आगे होती हैं... 

वर्तिका और ‘तिनका तिनका तिहाड़’ (जेल में सिमटी महिलाओं का अनूठा काव्य संग्रह)


एक तिनका

जेल नंबर 6, तिहाड़, दिल्ली। पिन कोड 110064। इस पते पर कोई खत लिखना नहीं चाहता। इस गेट के बाहर सांसारिक सुख ठिठके रहते हैं। बाहर सड़क से गुजरते लोगों को अक्सर इस बात का भान तक नहीं होता होगा कि अंदर एक दूसरी दुनिया पल रही है जहां से आसमान भी अलग दिखता है और सितारे भी। 


एक खास दोपहर जब मैनें महिला कारागार की औरतों से आग्रह किया कि वे अपनी लिखी कुछ कविताएं मुझे सुनाएं तो कोई भी अपनी कविता पूरी सुना न पाई। वे रो पड़ीं। वे जहां चुप हुईं, वहीं से कविता शुरू भी हुई शायद। - वर्तिका नंदा

       इन सलाखों के पार एक छोटी – सी खिड़की से झांकते हैं – सपने। शहर जब सो जाया करते हैं, जेलें जागती हैं। बंद चारदीवारियों में आने वाले कल के सफेद फाहे यहां-वहां से उड़ कर जबरदस्ती अंदर आ जाते हैं। यहां समय की गति मंथर है। थमी हुई। बोझिल। घड़ी की सुइयां भी जैसे किसी से इजाजत लेकर आगे बढ़ती हैं। हर दिन पिछले दिन जैसा और आने वाले दिन की कोई ठोस खबर नहीं। जहां नाते सूखते हैं, वहां एक नई कोंपल उग आती है। कड़ी जंजीरों के बीच यहां उम्मीदों के सूरज को थामे रखने में मदद करती है – एक अदद कविता। 
Buy 'Tinka Tinka Tihar' Online Now !

       जेल को पहली बार 1993 में देखा था। दुख को संजोए रखने वाली जेल अपने कैदियों को आस के सहारे जिंदा रखने की हिम्मत भी दे सकती है, उसकी यह मेरी पहली क्लास थी।

       बाद के कुछ सालों एनडीटीवी में रिपोर्टिंग के दिलचस्प-चुनौती से सराबोर दिनों में भी जेल में अलग-अलग स्टोरीज को कवर करने का मौका मिलता रहा फिर बीच में वह सिलसिला कहीं छूट गया। 

       विमला मेहरा के आने के बाद मैनें फिर सोचा कि तिहाड़ को नए सिरे से देखूं। इस बार तिहाड़ और भी विस्तार से दिखा। बाहर की सड़क से अलग एक पूरा द्वीप बसा हुआ दिखा मुझे यहां। इन कुछ सालों में कई हाई-प्रोफाइल हस्तियों के यहां आने की वजह से तिहाड़ खबरों में भी बसा रहा पर तिहाड़ की आत्मा शायद किसी की पकड़ में न आई। 

दुनिया की हर औरत कभी न कभी एक ऐसे मुकाम से गुजरती है जहां उसे अपनी चुप्पी और जुबान के बीच में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है। - वर्तिका नंदा

       एक खास दोपहर जब मैनें महिला कारागार की औरतों से आग्रह किया कि वे अपनी लिखी कुछ कविताएं मुझे सुनाएं तो कोई भी अपनी कविता पूरी सुना न पाई। वे रो पड़ीं। वे जहां चुप हुईं, वहीं से कविता शुरू भी हुई शायद। कई बार जाकर इन कविताओं को सहेजा। इसलिए इस समय आपके हाथों में जो है, वह आंसुओं और सपने के बीच झूलते हुए नरम-से शब्द हैं। इन कविताओं में अधूरापन चिपका है। ये साबित करते हैं कि दुख से उपजी कविताएं किसी भी व्याकरण से आगे होती हैं। 

       तिनका तिनका तिहाड़ – इस शीर्षक का प्रसव अशोक चक्रधर के एक दोहे से हुआ जो एक गीत की शुरूआत में था। उस दोहे की दो पंक्तियां इन महिलाओं की उधेड़बुन को छील कर प्रस्तुत करती हैं। इन सभी औरतों ने कभी अपने बसेरे को बसाना चाहा था पर ऐसा हो न सका। कुछ यूं था वह दोहा – तिनका तिनका जोड़ कर, चिड़िया नीड़ बनाय, हत्यारी पापिन मरी, पवन उड़ा ले जाय। 

       इन कविताओं का संग्रह समाज के उस हिस्से को समझने में मदद कर सकता है जहां रवि और कवि आसानी से नहीं पहुंचते। इन कविताओं को लिखने वालों ने शायद कभी कविता के शब्दकोष को पढ़ा तक न होगा और शायद यहां आने से पहले कविता भी सहम कर कुछ सोचती होगी। 

       ये कविताएं इस बात का भी पक्का सुबूत हैं कि एक सशक्त औरत की अगुवाई में कई बार रेगिस्तान भी पसीज उठते हैं। इस किताब में अपनी जिंदगी से जुड़ी तस्वीरें इन कैदियों ने खुद ली हैं। इसलिए यह कहानी अक्षरों और कैमरे के लैंस से जुड़कर भावनाओं में लिपटी है। 
       जंजीरों में कैद इन औरतों की यह किताब औरत के मन के दस्तावेज को पढ़ने में एक नई पहल है। दुनिया की हर औरत कभी न कभी एक ऐसे मुकाम से गुजरती है जहां उसे अपनी चुप्पी और जुबान के बीच में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है। जहां अदालतें महज सरकती हैं, सत्ताएं सोचा करती हैं, संस्थाएं दावे करती हैं और मन थरथराया करता है – वहां कविताएं शर्म और धर्म को बचाए रखने का हौसला और मन में बुदबुदाता मंत्र बन जाती हैं। इन कविताओं में इतनी ताकत है कि वे कह लेती हैं – थी. हूं..रहूंगी..

       जब तक जेलें रहेंगी, तब तक रहेंगी कविताएं भी और उनके जरिए फूटतीं उम्मीदें भी। वैसे जेलों का कविता से कोई परंपरागत नाता नहीं है लेकिन हर युग इस बात का साक्षी रहा है कि कारागारों में साहित्य सांसें भरता रहा है और कोठरी से बाहर के उजाले की आस इसके जरिए छनकर अंदर आती भी रही है।

       तिहाड़ की इन यात्राओं ने आंतरिक लौ और ऊपरी शक्ति से मेरा एक खास परिचय करवाया है। आपको भी इस किताब में उधड़ चुकी कई लोरियों का अहसास होगा। बेशक तिहाड़ के अंदर की दुनिया बेहतरी के साथ बाहर आने को आतुर है। 

       तिनका – तिनका तिहाड़ इसी विश्वास और इंसानियत पर पूरे भरोसे के साथ अब आपके हाथों में। 
अगस्त 2013 
वर्तिका नन्दा 

सं ग्र ह   की   कु छ   क वि ता येँ


    रमा चौहान - कैद पिंजरे की 

                                                                                   
    एक ऐसा पिंजरा जिसमें रोज होता हाहाकार है,
    मिलता है जीना रहना, नहीं मिलता मां का दुलार है।
    मिलता है खाना पीना, नहीं मिलता बच्चों की किलकार है,
    मिलता है हंसना रोना, नहीं मिलता सपनों का संसार है।
    मिलता है चलना फिरना, नहीं मिलती पायल की झंकार है,
    मिलता है बंधू मानव, नहीं मिलती ममता की फुहार है।
    मिलता है बिस्तर पुराना, नहीं मिलता तन का सुकून है,
    मिलता है रिश्ता बनाना, नहीं मिलता मन की सूझ है।
    मैं रोज़ सोचती तोड़ दूं इस पिंजरे को, हो जाऊं आजाद,
    मगर जकड़ी पड़ी इन बेड़ियों को , हाय कैसे दूं मैं काट।

  

सीमा रघुवंशी - जीने की चाह 

                                                                                   

जीने की चाह है मुझे इन सलाखों में
ख्वाबों में क्या,

हकीकत में जीउंगी हर पल इन सलाखों के पीछे
क्योंकि जीने की सच्ची चाह है मुझे
दुखों का एक घरौंदा हैं ये सलाखें 
ख्बावों की झूठी आंखें हैं ये सलाखें 
परिंदों की ही नहीं
इंसानों की भी हैं ये सलाखें
ये सलाखें गुनाहगारों की ही नहीं
निर्दोषों की भी हैं
ये सलाखें गरीबों की ही नहीं
अमीरों की भी हैं
लोहे की ही नहीं, सोने की भी हैं
झूठ की ही नहीं, सच की भी हैं
पर जीने की चाह है इन सलाखों में 
कैद से रिहाई की जिंदगी हैं ये सलाखें


    रिया शर्मा - आजादी

                                                                                   
    क्या हम भी कभी उन हवाओं में
    उन घटाओं में
    उन फिजाओं में 
    खुलकर जी पाएंगें?
    या तमाम उम्र यूं ही 
    अपनी जिंदगी बिता देंगें?
    क्या हम भी कभी अपना हाले-दिल अपनों को सुना पाएंगें
    या 

    यूं ही दिल की बात
    दिल में ही रह जाएगी
    क्या हम भी कभी खुले आसमान में 
    आजादी की जिंदगी जी पाएंगें
    या 
    इस चारदीवारी में 
    हमारे अरमान दबकर रह जाएंगें
    क्या हम भी कभी अपने 
    घर-परिवार में जा पाएंगे
    या फिर यूं ही
    दूर-दूर से 
    उन्हें देखकर
    अपनी आंखों से आंसू बहाते रह जाएंगे! 
    

आरती - वक़्त की बात  

                                                                                 
हर गीत में एक साज होता है,
हर गुनाह के पीछे एक राज होता है।
मेरे गुनाह की फिक्र मत करना मेरे घरवालों,
चमकते हुए चांद में भी एक दाग होता है।
नूर को बेनूर बना देता है वक्त
छोटे से जख्म को भी नासूर बना देता है वक्त।
कौन चाहता था कि मैं गुनाह करूं
मगर गुनाह करने को मजबूर बना देता है वक्त।
आज जब रिश्ते-नाते बिखर गए
गैरों के साथ फिर क्यों चल पड़ते हैं हम। 
जब सुनने वाला कोई नहीं
फिर खत्म कहानी करते है।
जी कर के भी क्या पाया इतने बरसों में,
समझ ना सकी दस्तूर दुनिया के।
जब मिलता नहीं सुकून यहाँ
तो फिर इस दुनिया से चलते है।

तिनका तिनका तिहाड़ ... अख़बार और खबरें

 Hindustan Times Tihar prisoners publish collection of poems
☛ अमर उजाला महिला कैदियों ने लिखा 'तिनका-तिनका तिहाड़'
 Times of India Vartika Nanda at a musical day for women prisoners in Tihar
 The Hindu Out of bounds
 Mid Day Tihar Jail's true tales
 Deutsche Welle जयपुर में तिनका तिनका तिहाड़
 नवभारत टाइम्स 'तिनका तिनका' तिहाड़ का विमोचन
 हिंदुस्तान सलाखों के पीछे से आती आवाजें
☛ दैनिक भास्कर पढ़ें, तिहाड़ में सजा काट रही चार महिलाओं की दर्दनाक कहानियां
 बीबीसी (BBC) तिनका तिनका तिहाड़...

Team - Tinka Tinka Tihar
Left to Right
Vartika Nanda, Mondira Moitra, Vimla Mehra, Rinchen Ghosh, G. Sudhakar,
Back row - Harshyla Singh, Abhineet Singh

Translation to English : Mondira 
Chief Designer (book) : Abhineet


एक टिप्पणी भेजें

4 टिप्पणियाँ

  1. निश्चय ही सुन्दर किताब होगी.....बहुत ही मर्मस्पर्शी कविताएँ है...शुभकामनाएं और बधाई वर्तिका जी को !!
    अनुलता

    जवाब देंहटाएं
  2. सबसे बडी बात समाज से छुटे उस हिस्से को देखना और फिर महसूसना और फिर सहेजने की पुरजोर कोशिश करना एक संवेदनशील ह्रदय ही कर सकता है ………वर्तिका जी को बधाई………कोशिश करेंगे किताब पढने की।

    जवाब देंहटाएं
  3. संतप्त मन के ज्वार को इस तरह सहारा देना निश्चय ही बहुत सम्वेदनशील व्यक्तित्व का काम हो सकता है। इस काव्य-संग्रह के लिए शुभ-कामनायें और वर्तिका जी को सादर नमन

    जवाब देंहटाएं