चेस्टिटी बेल्ट - गीताश्री Chastity Belt - Geetashree

ऐसा तो नहीं कि मर्दवादी मानसिकता से लड़ते लड़ते हम खुद उसके शिकार हो गए हैं

पहले लड़कियों की ड्रेस को लेकर, फिर उसकी देह को लेकर और अब उसके लेखन को लेकर, ना जाने कितने मोड़ो पर, चेस्टिटी बेल्ट(सतीत्व मेखला) लिए औरतें खड़ी दिखाई दे रही हैं। साहित्य के कौमार्य के बहुत सारे रक्षक पैदा हो गए है जिनके हाथों में चेस्टिटी बेल्ट(सतीत्व मेखला) है। (मध्य युग में औरतो के प्राइवेट पार्टस में इसे लगाया जाता था ताकि उनके कौमार्य की रक्षा हो सके)

महिला दिवस की तैयारियां और सभा सेमिनारो में बहसो के दौर शुरु हो गए हैं। हरेक साल घूम फिर कर वही वही सवाल आ जाते हैं जिनके जवाब हम पिछली कई शताब्दियों से तलाश रहे हैं। कोई स्त्री जो सवाल उन बीती शताबदियों में उठाती रही है वे सवाल आज भी कायम हैं, बस उनकी शक्ल बदल गई हैं। हमें लगता है, माहौल बदला है, लोग बदले हैं, नजरिया बदला है, पुरुषवादी सोच बदली है। पर क्या हम औरते बदली हैं। ऐसा तो नहीं कि मर्दवादी मानसिकता से लड़ते लड़ते हम खुद उसके शिकार हो गए हैं। ये स्वभाविक प्रक्रिया है कि जिससे लड़ते-भिडते हैं, हम उसकी तरह एक दिन सोचने और बोलने लगते हैं। क्या औरते भी उसी मर्दवादी आंगन में खड़ी हो गई हैं। चाहे लड़कियों के लिए ड्रेस कोड की हिमायत हो या स्त्री लेखन को लेकर अंगार-उगलने वाली वाणी हो या दांत किटकिटा किटाकिटा कर-“एक एक को चुन चुन कर मार डालूंगी-“ कि तर्ज पर दिया गया फतवा। कौन हैं ये औरतों की खोल में, किसकी है जुबान। क्या अपनी कोई निजी कुंठा, विफलता या उम्र का हाथ से छूटता सिरा। कौन है उसके पीछे। ये मुखौटा है या असली चेहरा। तो क्या इसीदिन के लिए दुनिया की सारी औरते एक छाते के नीचे आई थीं। जब क्रांति की बात हो तो हम, “दुनिया की औरते एक हो” का नारा उछालते हैं और जब ओले पड़ते हैं तो अपने सिरों पर मर्दवादी छतरी तानते देर नहीं लगती। जिस मर्दवाद को गाली देकर स्त्री-विमर्श का सारा वितंडा खड़ा किया गया था, उसने तो हथियार डालकर, पल्ला झाड़ लिया और अपने सनातन अंकुश का, फतवे का अभिशप्त पतवार कमजोर इच्छाशक्तिवाली औरतों को ही थमा गया जो मर्दो की सत्ता में, उनके बनाए नियमों में ही सुकून पाती है।

      हम इसी यथास्थितिवाद और इन्हीं कूपमंडूक सोचो को बदलने में लगे रहे। क्या आपने सोचा है कि जहां एक तरफ हम जिस सत्ता से टकराते रहे, वह सत्ता घुन की तरह हमारे विचारो को अंदर अंदर खोखली करती रही। यकीन न हो तो देखिए कि औरते ही कैसे औरतों की जिदंगी, सोच और अभिव्यक्ति पर पहरे बिठाती है। हम अपनी परछाईं से कैसे लड़ सकते हैं। वह हमारी छाया से हमें ढंक कर मार देती है। पहले लड़कियों की ड्रेस को लेकर, फिर उसकी देह को लेकर और अब उसके लेखन को लेकर, ना जाने कितने मोड़ो पर, चेस्टिटी बेल्ट(सतीत्व मेखला) लिए औरतें खड़ी दिखाई दे रही हैं। साहित्य के कौमार्य के बहुत सारे रक्षक पैदा हो गए है जिनके हाथों में चेस्टिटी बेल्ट(सतीत्व मेखला) है। (मध्य युग में औरतो के प्राइवेट पार्टस में इसे लगाया जाता था ताकि उनके कौमार्य की रक्षा हो सके)

      इतिहास गवाह है कि कई बार अपने रक्षको की वजह से कौम खतरे में पड़ जाती है। हमें इन्हें चिन्हित करने की जरुरत है।

      आधुनिक हिंदी की प्रथम आत्मकथा (संपादन-नैना,राजकमल प्रकाशन) में लेखिका स्फुरना देवी
लिखती हैं-पुरुष चाहें तो जितने उचित अनुचित विषय भोगे, चाहे जितनी स्त्रियों के साथ दुराचार करें, चाहे जितनी अबलाओं पर अत्याचार करें, पर स्त्री बाल-ब्रहम्चारिणी रहकर शरीर के “प्राकृतिक वेगो की वेदना” सहती हुई जन्म भर दुखिया बनी रहे…”

      18वीं शताब्दी की एक स्त्री बयान देखिए। इक्कीसवीं शताब्दी में भी स्थिति कुछ कुछ ऐसी नहीं दिखती?



पुरुष अपनी खोल से बाहर आता है-बोल फूटते हैं..स्त्री लेखन घोर अनैतिक है। वह समूचे समाज का सच नहीं, केवल 2 प्रतिशत हिस्से का सच है। हम उसे स्वीकार नहीं सकते। उन्हें वही लिखना होगा, जैसा हम चाहते हैं। आखिर मान्यता हमीं देंगे उनको।

      एक स्त्री मांद से बाहर आती है-स्त्रियां छोटे कपड़े न पहनें। सारे फसाद की जड़ ये भड़काऊ कपड़े हैं। आखिर कपड़े हमी देंगे उनको।

      पुरुष सिर हिलाता है..बोल जमूरे, स्त्रियां अराजक हो गई हैं। समाज और साहित्य खतरे में पड़ गया है।

      “हां उस्ताद, अब क्या करें..?

      “करना क्या है..? उनके बीच से कमजोरो की पहचान कर, फोड़ ले उन्हें. कौम को नष्ट करना हो तो संगठन को फोड़ डाल। सारी क्रांति हवा हो जाएगी।“

      उस्ताद की कुटिल-खलकामी मुस्कान दिगंत में फैल गई।

      “उस्ताद...बहुत मुश्किल से अभिव्यक्ति की आजादी मिल पाई है उस्ताद...बोलने दे उन्हें..उनके भीतर भी जटिलताएं हैं सरकार, मंथन चल रहा है सरकार..देह मुक्ति के गलत निहितार्थ को लेकर घमासान है उस्ताद।“

      “बहुत अच्छे जमूरे...सही वक्त है। ये हमारा दिया हुआ जुमला है। इसी हथियार से वार कर दे। कोई न कोई नकली नैतिकतावादी, जिस पर अभी तक हमारी घुट्टी का असर है, चिल्लाएगी, उन पर वार करेगी और तहस नहस कर देगी। तैयार हो जा...पहचान इन्हें..

      “पर ऐसा क्यों उस्ताद...?”

      जमूरे...

      “अभिव्यक्ति की आजादी सबसे खतरनाक होती है। वह हमेशा समय का सच कहती है और सच पर संदेह भी करती है। वंचितो की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नैतिक कर्म है प्रश्न करना और हिंसा को तोड़ना। बहुत प्रश्न करेगी तो हमारा अस्तित्व खतरे में न पड़ जाएगा। हमने अब तक जो उन्हें पढाया लिखाया, समझाया और दिखाया, सब ओझल न हो जाएगा। हमारे पाठ का कुपाठ होते देर न लगेगी।“
इतना कहकर उस्ताद थोड़ी देर रुके..पानी पीया और गला साफ किया...

      “हां तो हम कहां थे जमूरे...?”

      “उस्ताद, इसके पहले कि आप कर गुजरे, एक चुटकुला सुनाता हूं, शायद आपके काम आ जाए सरकार..सुनिए..”

      एक शैतानी चुड़ैल ने 60 साल के हसबैंड और उसकी वाइफ से कहा-“मैं तुम दोनों की एक एक विश पूरी कर सकती हूं।“

      पत्नी-“मैं अपने पति के साथ सारी दुनिया घूमना चाहती हूं।“

      चुड़ैल ने चुटकी बजाई और 2 टिकट आ गए।

      फिर पतिदेव से पूछा।

      “तुम बोलो क्या चाहते हो?”

      पति-“मुझे अपने से 30 साल छोटी पत्नी चाहिए।“

      चुड़ैल ने चुटकी बजाई और पतिदेव को 90 साल का कर दिया।

      उस्ताद को हंसी नहीं आई।

      क्या मतलब ?

      “उस्ताद,

      आप समझे नहीं...आप एक चुटकुला नहीं समझ सकते तो औरतों का लेखन कैसे समझ सकते हैं। मतलब ये कि “आदमी को याद रखना चाहिए कि चुड़ैल भी औरत ही होती है।“

      “मैं कभी उनमें एकता नहीं होने दूंगा..कभी नहीं..वे वही समझेंगी, जो मैं समझता हूं..मेरी कंडीशनिंग इतनी खराब नहीं हो सकती..”

      उस्ताद बौखलाए...उनकी सत्ता हिलने लगी। हाथ से डमरु खिसकने लगा। माथे पर पसीने चुहचुहा गए।
“उस्ताद...आप औरतों की दुनिया नहीं समझेंगे। आपकी डुगडुगी के शोर में उनकी चीखें, उनकी कामनाएं, उनकी हसरतें सब अनसुनी हो गई हैं। अपनी महानता के आगे, उनकी विराट पीड़ा आपको कैसे दिखाई देगी सरकार। अपना ये काले टीन का चश्मा तो उतारिए सरकार, और हां, पहले अपने कारनामों की डुगडुगी बजाना बंद करिए, फिर सुनाई देगा सरकार...मैं औरतों की हिम्मत की दाद देता हूं, उस्ताद..कितनी बेखौफ हैं, आपके चंगुल से निकल चुकी हैं, उनका लेखन, उनकी सदियों की चुप्पी का विस्फोट है, क्या कर लेंगे आप..?

      “जमूरेरेरेरर....उस्ताद दहाड़े।

      आंखें लाल पीली नीली..। आज से खेल बंद। हम तेरे साथ भालू का नाच नहीं, कोई और नाच करेंगे। चल फूट यहां से..।“

      “मैं भी ठोकर मारता हूं उस्ताद, तमाशा दिखाने वाला सिपाही बन गया, तमाशा कैसे दिखा पाऊंगा, मैं चला...ये रखो, अपना भोंपू, बहुत काम आएंगे, उन्हें देना, जिन्हें  आप घुट्टी पिला रहे हैं इन दिनों।
आपका भेद खुल गया है उस्ताद। ज्यादा दिन तक मजे नहीं ले पाओगे। आप औरतों के खिलाफ औरतों को भड़का रहे हैं। फूट डालो राज करो सरकार। आपने परचम को फिर से आंचल बना डाला है। उनके हाथ में आंचल थमा दिया है कि लो दूसरी औरत के सिर पर परदा डालो। आप बहुत घातक हो उस्ताद। आपका भोंपू इतना असरकारी निकला कि आधी दुनिया भी वही समझने लगी जो आप अब तक चिल्ला चिल्ला कर उन्हें बता रहे थे। बधाई और धिक्कार दोनों आपको। वंचित वर्ग की ताकत हमेशा कम होती है। जुड़ता भी जल्दी है और टूटता एक पल में। आप सफल रहे, गलतफहमियां फैलाने में। आपने नैतिक पहरा डाल ही दिया आखिर। पर रोक नहीं पाएंगे उनका रथ...देखना..उस्ताद...कह के जा रहा हूं..

(वैधानिक चेतावनी: इसके साइड इफेक्ट के लिए तैयार रहें साथ ही कुछ शर्ते लागू। नियमावली नीचे दी गई है)

      स्फुरना देवी ने अपनी आत्मकथा की प्रस्तावना के अंत में दो वाक्य लिखा है.."जिन महाशय को समाज के परदे के भीतर के रहस्य को देखने की इच्छा न हो और केवल इस लेख का मार्मिक तत्व ही पढना चाहें, वे सिर्फ सहनशीलता देवी का व्याख्यान ही पढें, और जो समाज की वास्तविक दशा से भली भांति परिचित होना चाहें, वे पुस्तक को आदि से अंत तक अवश्य पढें।"

      मैदान में खड़ा उस्ताद दहाड़ रहा है। जमूरा उछल रहा है और कोरस में निंदा का भ्रामक प्रस्ताव पास किए जा रहे हैं।

      और भालू....वह हैरानी से सारा तमाशा देख रहा है। उसे जंगल की बेतहाशा याद आ रही है।

गीताश्री
(संपादक बिंदिया)

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2 टिप्पणियाँ

  1. सोलह आने सच...आखिर कब तक हम अपने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए किसी के सर्टिफिकेट की दरकार रहेगी ?? अगर स्वतन्त्रता का अर्थ जानते हैं तो उसका मूल्य भी पहचानना होगा...ये कोई भीख या नौकरी नहीं है कि अपने को अभिव्यक्त करने के लिए सबसे सर्टिफिकेट मांगते फिरते रहें और जब मिल जाये तो खुश हो जाएँ कि चलो नियामत हो गयी...हमे भीख मे अधिकार मिल गया !!
    गीता दी...आपकी ठोस लेखनी के कायल हैं !!

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