विजय चौक लाइव (उपन्यास अंश) - शिवेंद्र कुमार सिंह | Vijay Chowk Live (Novel excerpts) - Shivendra Kumar Singh

चौबे जी ने आव देखा ना ताव- रख कर दिया एक थप्पड़ सीधे दाहिने गाल पर। अब तो माहौल बिल्कुल ही बदल गया। वेब टीम का रिपोर्टर एक सेकंड के लिए तो सन्न रह गया। फिर होश संभालते हुए बोला- चौबे जी, लखनऊ का रहने वाला हूं, हमारे यहां मारते कम हैं घसीटते ज्यादा हैं... "



शिवेंद्र कुमार सिंह। उप कार्यकारी संपादक इंडिया टीवी । इलाहाबाद की पैदाइश और इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई-लिखाई। अमर उजाला से पत्रकारीय करियर की शुरुआत। एबीपी और जी न्‍यूज में भी रहे। ईमेल: kumarsingh.shivendra@gmail.com

विजय चौक लाइव

शिवेंद्र कुमार सिंह

इस बुलेटिन का कोई स्वरूप नहीं है। इस बुलेटिन का कोई रन ऑर्डर नहीं है। ये बुलेटिन सिर्फ आपको ध्यान में रखकर तैयार किया जाएगा। यहां खबरों की प्लेसमेंट इस बात पर तय होगी कि किस खबर में आपकी दिलचस्पी ज्यादा होगी। इस बुलेटिन की एंकरिग की जिम्मेदारी चेयरमैन ने महेश उपाध्याय को सौंपी है। महेश काफी सीनियर एंकर हैं और तुकबंदी में इनका कोई तोड़ नहीं है। उपाध्याय जी ने चेयरमैन से ये वायदा कर दिया है कि ऑन एयर जाने के 6 महीने के भीतर ये बुलेटिन अपने स्लॉट में सबसे ज्यादा टीआरपी वाला बुलेटिन होगा। तो चलिए अब हम कैमरे के फ्रेम से गायब होते हैं और आगे अब सबकुछ उपाध्याय जी के हवाले।

काउंटडाउन स्टार्ट...10...9...8....7...6...5...4...3...2...1...0  बुलेटिन बंपर
(कट टू एंकर)
नमस्कार, लुटियंस की दिल्ली के दिल विजय चौक से इस लाइव बुलेटिन में आपका स्वागत है। टेलीविजन की दुनिया की हर खबर लेकर मैं हाजिर हूं आपका महेश उपाध्याय। खबरों की दुनिया में आपको ले चलूं, इससे पहले हेडलाइंस।

मालिक का नौकर जमकर दे रहा है ज्ञान। संपादकीय टीम को बताता है कि किस स्टोरी के साथ जंचेगी किस गाने की तान।
बहार टीवी के एक सीनियर अधिकारी ने ऑफिस की पार्टी में पेग लगाए चार, संपादक को दी गाली साथी रिपोर्टर को थप्पड़ दिया मार
ट्रेनी रिपोर्टर को लिखे प्रेम पत्र की शिकायत को संपादक ने दिया टाल, लेकिन अकेले में चटकारे ले-लेकर किया सवाल
और
पत्नी से नाराज संपादक ने उतारा इंटर्न पर गुस्सा, 4 दिन बाद ही दोबारा नाइट शिफ्ट में ठूसा...

(उपाध्याय जी अपने चेहरे को टर्न करते हुए अब दूसरे कैमरे को लुक देते हैं, ये पहले से प्रोड्यूसर के द्वारा तय किया जा चुका है, आगे से जब उपाध्याय जी कैमरा चेंज करेंगे तो सिर्फ कैम-2 लिखा आएगा, आपको समझना होगा कि उपाध्याय जी ने चेहरा घुमा लिया है।)  

अब खबरें विस्तार से।

एंकर- देश के प्रमुख न्यूज चैनल “दी न्यूज” के मालिक के नौकर से पूरा का पूरा संपादकीय विभाग इन दिनों सहमा हुआ है। दरअसल, इस नौकर की चैनल के मालिक तक सीधी पहुंच है और लोगों को इस बात का डर है कि इसकी बात ना मानने की सूरत में उनकी नौकरी पर आंच आ सकती है। दबी जुबान से लोग आरोप लगा रहे हैं कि ये नौकर अब अपने काम की बजाए ज्यादातर वक्त संपादकीय विभाग में ही टहलता रहता है और हर खबर पर कौन सा गाना सटीक बैठेगा ये सुझाव दिया करता है। 

(कट टू पैकेज)
वीओ 1- सत्ता के गलियारों में जिस रिपोर्टर का नाम बेहद इज्ज्त के साथ लिया जाता है, उनका नाम है मुनींद्र सिंह। मुनींद्र को देश की तमाम बड़ी राजनीतिक पार्टियों की कवरेज करते दो दशक से ज्यादा का वक्त हो गया है। लंबे समय तक अखबार में काम करने के बाद इन्होंने दी न्यूज टीवी चैनल ज्वाइन किया था। मुनींद्र को शिकायत है कि एक दिन जब वो पैंट्री में राम सिंह से चाय मांगने गए तो उसने ये कहते हुए चाय बनाने से साफ इंकार कर दिया कि  उसने क्या चाय बनाने का ठेका ले रखा है? मुनींद्र का कहना है कि पिछली बार उसने एक रिपोर्ट के साथ एक बेहद ही चलताऊ किस्म के गाने को लगाने का सुझाव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया...लिहाजा राम सिंह इसी बात को लेकर उनसे खफा है।

बाइट- (मुनींद्र सिंह, वरिष्ठ विशेष संवाददाता) अब देखिए ना सत्ताधारी पार्टी के इतने बड़े मंत्री के विदेश जाने की खबर थी, उसमें ये राम सिंह कह रहा था कि भैया, वो वाला गाना लगा दीजिए- परदेस जाके परदेसिया भूल ना जाना पिया...कोई नौटंकी थोड़े ना हो रही है, बुलेटिन है बुलेटिन। न्यूज बुलेटिन। मैंने भी दिल रखने के लिए चाय का कप लेते हुए कहाकि- ठीक है, ठीक है, देखता हूं। गाना ना तो लगाना था ना ही लगा।

वीओ 2- सुना आपने किस तरह मुनींद्र बता रहे हैं अपनी मजबूरी, लेकिन वो कुछ कर नहीं सकते...क्योंकि राम सिंह के खिलाफ इस चैनल में आवाज उठाना संभव नहीं। चैनल में किसी की भी ज्वाइनिंग से लेकर रिज़ाइन तक राम सिंह को सब पता होता है। ज्वाइन करने के बाद मालिक से मिलना है या रिज़ाइन करने से पहले मालिक से मिलना है...दी न्यूज के मालिक का रास्ता राम सिंह से होकर ही गुजरता है।

बाइट- (राम सिंह, वरिष्ठ कर्मचारी) उस दिन साहब ही कह रहे थे कि आजकल हर स्टोरी के साथ गाना लगाने का ट्रेंड चल रहा है। गाने के नाम पर ही स्टोरी बिकती है। टीआरपी आनी चाहिए, टीआरपी...ये काम तो मैं भी कर सकता हूं। अब साहब ने इस काम के लिए लाख लाख रुपये के लोग रखे हैं, मैं तो ये काम पांच हजार में कर दूं...सिर्फ पांच हजार में।

वीओ 3- बात बड़ी सीधी है, गलती दरअसल राम सिंह की भी नहीं दिखती। अब जब चैनल के मालिक ने ही उन्हें स्टोरी के साथ गाने की अहमियत समझाई है तो फिर मुनींद्र सिंह क्या करेंगे...ऐसे में मुनींद्र के लिए बेहतर यही होगा कि वो अपनी अगली स्टोरी में राम सिंह के सुझाव से गाने का इस्तेमाल जरूर करें, वरना दी न्यूज की पैंट्री से उनका हुक्का पानी बंद।

एंकर- और अब बात बहार टीवी की। बहार टीवी की सालाना पार्टी में उस वक्त रंग में भंग पड़ गया जब चैनल के ही एक अधिकारी ने शराब के चार पटियाला पेग लगा लिए। शराब पीने में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन दिक्कत तब हो गई जब इस अधिकारी ने मर्यादा को ताक पर रखते हुए अपने ही संपादक को गालियां दे डाली। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब पार्टी खत्म होने के कुछ मिनट पहले इस अधिकारी ने थोड़ी सी बहस पर साथी पत्रकार के गाल पर तमाचा झड़ दिया। 

वीओ 1- पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी। साल में सिर्फ एक बार होने वाली इस पार्टी का आयोजन ऑफिस के ही पिछले हिस्से में किया गया था। शराब खुलकर चल रही थी। अपने चौबे जी ऑलरेडी सेट हो चुके थे। उन्होंने ज्यादा पेग नहीं बल्कि बड़े पेग लगाए थे। कदम और जबान दोनों लड़खड़ा रहे थी, लेकिन चौबे जी के लिए ये कोई नई बात नहीं है। उन्होंने शेरो-शायरी का दौर शुरू कर दिया। जिस जगह पर चौबे जी खड़े थे, वहीं से बिल्कुल थोड़ी सी दूरी पर आग जल रही थी। जाहिर है ठंढ से बचने के लिए वो आदर्श जगह थी। चौबे जी की शायरी वेज से नॉनवेज और नॉनवेज से वेज शैली के बीच निर्बाध गति से चल रही थी। फराज़, गालिब, जौंक, साहिर से लेकर नॉनवेज शायरी लिखने वाले अनाम शायरों के तमाम कलाम उन्होंने सुना डाले थे। उनके आस पास जमा महफिल को देखकर चैनल के संपादक के कदम भी उधर ही बढ़ गए। संपादक महोदय वहां पहुंचे तो कई लोग तो वहां से फौरन खिसक लिए। कोई खाना लेने चला गया, किसी को ठंढ में भी प्यास लग गई और किसी ने अपने ड्रिंक को दोबारा लेने के नाम पर वहां से कट लेने में भलाई समझी। चौबे जी पर कोई फर्क नहीं, राहत बस इस बात की थी कि फिलहाल चौबे जी नॉनवेज शेर नहीं सुना रहे थे। ग़ज़ल का दूसरा ही शेर अभी चौबे जी की जुबान पर आया था कि संपादक जी का फोन बज गया, चौबे की बमक गए।
“भट...कौन है साला...फेंक दूंगा मोबाइल समेत। तमीज नहीं है क्या शेरो-शायरी सुनने की”। संपादक महोदय ने भी ज्यादा गुस्सा दिखाए बिना चुपचाप चौबे जी की तरफ अपना मोबाइल बढ़ा दिया। हाथ की पकड़ के दायरे में संपादक के मोबाइल को देखकर चौबे जी का नशा थोड़ा कम हुआ। उन्होंने अपनी हरकत के लिए माफी मांगी और कुछ मिनट के लिए वहां सन्नाटा छा गया। संपादक जी शरीफ थे, उन्हें लगा पार्टी में तो कम से कम लोगों को इन्जॉय करने की छूट मिलनी चाहिए, सो वो वहां से निकल गए। उनके जाते ही चौबे जी दोबारा शुरू हो गए। “हां भई, तो मैं कहां था” किसी ने कहा- आप यहीं थे चौबे जी, बोले- अबे चुतिए मेरी ग़ज़ल कहां थी। किसी ने टूटे फूटे अंदाज में ग़ज़ल का शेर चौबे जी को याद दिलाया। गलत शेर सुनते ही चौबे जी को यूं लगा मानो ग़ज़ल की तौहीन हो गई है, लेकिन माफ कर दिया उन्होंने ग़ज़ल की तौहीन करने वाले को। शायद ये सोचकर माफ कर दिया कि गलत ही सही लेकिन उसने कम से कम शेर तो याद दिला दिया। तब तक वेब टीम के एक दूसरे साथी वहां प्रकट हुए, उन्होंने भी आते ही दिलीप के कंधे पर हाथ मारा और चौबे जी से कहां- हां भाई चौबे जी, कितने हो गए। चौबे जी को सवाल करने का ये अंदाज पसंद नहीं आया। चौबे जी ने आव देखा ना ताव- रख कर दिया एक थप्पड़ सीधे दाहिने गाल पर। अब तो माहौल बिल्कुल ही बदल गया। वेब टीम का रिपोर्टर एक सेकंड के लिए तो सन्न रह गया। फिर होश संभालते हुए बोला- चौबे जी, लखनऊ का रहने वाला हूं, हमारे यहां मारते कम हैं घसीटते ज्यादा हैं। अभी यही मैदान में घसीट घसीट कर इतना मारूंगा ना कि सारा नशे एक सेकंड में उतर  जाएगा, बस इसलिए छोड़ रहा हूं कि मैंने आपकी तरह शराब नहीं पी। चौबे जी के साथ खड़े कुछ समझदार लोगों ने मामले की गंभीरता को समझते हुए वेब टीम के रिपोर्टर को तुरंत वहां से हटाया, हर कोई ये मान रहा था कि गलती पूरी तरह से चौबे जी की है। चौबे जी हाथ में पेग थामे चुपचाप खड़े थे। थोड़ी देर में मामले की गंभीरता समझ आई तो उन्होंने जेब से एक सिगरेट निकाली और जला कर कश लगाने लगे। फिर वेब टीम के रिपोर्टर की तरफ बढ़े- उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाते हुए बोले- भाई माफ कर दे, गलती हो गई। सबके सामने माफी मांग रहा हूं, चाहे तो मेरे भी थप्पड़ रसीद कर दे। गलती से हो गया यार। दिमाग खराब हो गया था। शराब ना बहुत खराब चीज होती है। चौबे जी अकेले ही बोले जा रहे थे। इस बात की परवाह किए बिना कि कोई उनकी बात सुन और समझ रहा भी है या नहीं। वेब टीम के रिपोर्टर ने एक शब्द भी नहीं बोला, सिर्फ चला गया वहां से, उसके जाने के बाद चौबे जी ने एक और पेग लिया चंद लोगों की बची महफिल में अपनी ग़ज़ल पूरी की, और लड़खड़ाते कदमों से पार्किंग की तरफ बढ़ गए। अगले दिन सुनने में आया कि अपनी बाइक तक पहुंचने से पहले उन्हें ठोकर भी लगी थी और बाइक पर बैठकर घर रवाना होने से पहले किसी की स्कूटर पर बैठकर काफी देर तक वो किसी किसी को गालियां भी दे रहे थे। बेव टीम के रिपोर्टर से अगले दिन उन्होंने सार्वजनिक तौर पर फिर से माफी मांग ली है। फिलहाल चौबे जी इस बात से डरे हुए हैं कि कहीं मैनेजमेंट में उनकी शिकायत ना कर दी जाए। उन्होंने अब इस बात का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया है कि दरअसल बीते दिन उन्होंने बुलेटिन के चक्कर में पूरे दिन कुछ खाया नहीं था, इसलिए ही उन्हें शराब चढ़ गई थी। वैसे चौबे जी डरपोक नहीं हैं लेकिन इस बार मामला चूंकि बदत्तमीजी का है, इसलिए उन्हें थोड़ी फिक्र है। मामले को रफा दफा करने की गुजारिश के साथ वो संपादक के केबिन में भी जाते देखे गए...हालांकि संपादक ने ये कहकर उन्हें वापस भेज दिया कि वो बेकार में अपनी ही तरफ से बात का बतंगड़ बना रहे हैं, कोई भी उनसे नाराज नहीं है। उन्हें आगे से अपनी इस तरह की हरकतों पर ध्यान रखना चाहिए और इस मामले को यहीं खत्म करना चाहिए। इस भरोसे के बाद भी चौबे जी 4-5 बार पूछ आए हैं कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई तो नहीं की जाएगी।

कट टू एंकर- तो इन दो बड़ी खबरों के बाद वक्त है एक छोटे से ब्रेक का। कहीं मत जाइएगा हम फौरन लौटेंगे...ब्रेक के बाद आपको बताएंगे लव लेटर की कहानी। एक छोटे सा ब्रेक...

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उधर टीवी पर सैफ अली खान ने चाय को अपने होठों से लगाया, और इधर उपाध्याय जी का कान से टॉकबैक निकाल कर चिल्लाए- अबे चुतिए हो क्या सारे के सारे...दिखाई देना बंद हो गया है क्या, साले बुलेटिन का पहला दिन है- सब कुछ लाइव चल रहा है...उसमें कौन सा साला जो पीछे से चिल्ला चौट मचाए हुए था। एक फंबल का मतलब नहीं पता है क्या उसे, था कौन...चुतिया।

चुतिए को अगले ही पल पेश किया गया। वो उन्हीं के चैनल का बिल्कुल ताजा ताजा रिपोर्टर था। अरे, भई... तुमको ज्यादा दिन नौकरी नहीं करनी, मत करो...मेरे बुलेटिन की क्यों मां-बहन एक कर रहे हो। भाई सीधा चेयरमैन साहेब देख रहे हैं, विजय चौक से ये लाइव बुलेटिन उनका पुराना ब्रेन चाइल्ड है...तुम साले जाने कौन सी दो कौड़ी की बाइट के लिए उत्पात मचाए हुए थे।

उपाध्याय जी ने जिस रिपोर्टर को अभी अभी चुतिया का दर्जा दिया है, बोला- कुछ नहीं सर। वो अंग्रेजी चैनल के रिपोर्टर को टूरिज्म मिनिस्टर की बाइट मिली थी, मैंने कहा- ट्रांसफर दे दो, तो कहती है- मेरे यहां चल जाएगी तभी दूंगी ट्रांसफर। कितनी बार मैंने बाइट दी है सर, बिना किसी चिल्ल पौं के...एक बार तो एफएम (फाइनेंस मिनिस्टर) की एक्सक्लूसिव बाइट थी मेरे पास, इसी ने मांगी, मैंने ये सोचकर दे दी कि थोड़ी देर में तो पार्लियामेंट के बाहर आकर एफएम बाइट दे ही देंगे...

उपाध्याय जी ने नवोदित रिपोर्टर को चुप कराते हुए कहा- इसीलिए ना साले तुमको हम चुतिया बोले। अरे पूछता कौन है बे टूरिज्म मिनिस्टर को? तुम भी...साले यहां राम सिंह के जलवे पर स्टोरी चल रही है और तुम टूरिज्म मिनिस्टर की बाइट के लिए रिरिया रहे हो। उपाध्याय जी अभी और लंबा ज्ञान देते तब तक कैमरा असिस्टेंट हाथ में टॉकबैक पकड़े भागता हुआ आया। सर, स्टैंड बाइ हो गया है। उपाध्याय जी वापस अपनी कुर्सी पर गए। बैठे- खुद को एक पॉकेट साइज आइने में निहारा, बालों में उंगलियां फेरी और वापस स्टैंड बाइ हो गए।

काउंटडाउन स्टार्ट...10...9...8....7...6...5...4...3...2...1...0, क्यू सर....

एंकर- ब्रेक के बाद विजय चौक में आपका दोबारा स्वागत है। अब एक चुटीली खबर। हुआ यूं कि भारत टीवी के एक असिसटेंट प्रोड्यूसर ने ट्रेनी रिपोर्टर को प्रेम पत्र लिख डाला। ट्रेनी रिपोर्टर प्रेम पत्र को लेकर एचआर हेड के पास पहुंच गई। एचआर हेड ने प्रेम पत्र को पढ़ने के बाद मामले को निपटाने की जिम्मेदारी चैनल के संपादक पर डाल दी।

वीओ 1- राहत फतेह अली खान के कन्सर्ट पर लिखी गई तुम्हारी स्टोरी को देखने के  बाद जाने मेरे दिल में क्या हो गया, ऐसा लगा कि राहत की जगह मैं स्क्रीन से बाहर आकर तुम्हारे सामने घुटनों पर बैठकर अपने प्यार का इजहार कुछ इन शब्दों में कर दूं...लागी तुमसे मन की लगन, लगन लागी तुमसे मन की लगन। सुरभि मेरा यकीन करो ये तो मैं नहीं जानता कि कब से लेकिन हां मैं तुम्हें पूरे दिल से प्यार करता हूं। असिसटेंट प्रोड्यूसर की लिखी चिट्ठी के इतने हिस्से को पढ़ने के बाद संपादक जी ने पहले सुरभि को अपने केबिन में बुलाया। क्या हुआ सुरभि, तुमने अमोल की शिकायत की है।

हां सर...उसने मुझे ऊंटपटांग बातें लिखी थीं

ऊंटपटांग, नहीं ऐसा तो कुछ नहीं था चिट्ठी में (फिर अचानक संपादक जी को लगा कि उन्हें ऐसे नहीं कहना चाहिए था। इससे तो ऐसा लग रहा है कि जैसे वो अमोल का पक्ष ले रहे हों) मेरे कहने का मतलब है कि मैंने तुम्हारी शिकायत के बाद एचआर से तुरंत पूछा था कि उसने चिट्ठी में कोई आपत्तिजनक बात तो नहीं लिखी है। एचआर ने मुझे बताया कि अमोल ने ऐसा कुछ नहीं लिखा है। फिर भी इस तरह चिट्ठी लिखना है तो गलत बात, तुमने बिल्कुल ठीक किया उसकी शिकायत करके। अच्छा (एक लंबा सा पॉज़) अब ये बताओ कि तुम चाहती क्या हो, तुम्हें उसमें कोई दिलचस्पी तो नहीं है ना? सुरभि ने मुंह बनाते हुए कहा- कम ऑन सर, बिल्कुल नहीं।

संपादक जी बोले- ठीक है फिर तुम जाओ, वैसे ये तो तुम भी नहीं चाहोगी कि उसकी नौकरी पर कोई खतरा आए, इसलिए अब तुम एचआर से कोई बात मत करना, मैं उसका बैंड बजाता हूं। यू डोंट वरी एट ऑल।
इसके बाद संपादक जी ने अमोल को खुद ही फोन करके केबिन में बुलाया। अबे चुतिए, किसने कहा था चिट्ठी लिखने को?

अमोल को तब तक इस बात की जानकारी नहीं थी कि मामला संपादक जी तक पहुंच गया है और उन्होंने चिट्ठी को पढ़ना तो दूर ऑलमोस्ट पूरी तरह याद कर लिया है।

नहीं सर, मैंने कोई चिट्ठी नहीं लिखी।

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अबे अमोल, साले थप्पड़ मारूंगा एक...चुतिया समझते हो मुझे। चिट्ठी नहीं लिखी।

अमोल को अब समझ में आ गया कि संपादक जी को पूरा किस्सा मालूम हो चुका है। लिहाजा उसने सर नीचे करके चुपचाप सरेंडर कर देने में ही अपनी भलाई समझी।

अबे तुम्हें तो लव लेटर भी लिखना नहीं आता। ये राहत फतेह अली खान से चिट्ठी शुरू करते हैं...साला रह जाएगा तू भी, अच्छी लगती है तुझे सुरभि

अमोल- नो सर, आई मीन यस सर

तो सीधे चिट्ठी लिख दी, पहले बात वात नहीं की थी क्या

अमोल- नो सर

साले फिर चिट्ठी ही क्यों दी, पकड़ लेता हाथ- और बोल देता कि लगन लागी तुमसे मन की लगन....अबे पहले समझ तो लेता कि लाइन क्लीयर है भी या नहीं। खड़ा हो गया रास्ते में। और ये क्या होता है बे कि ‘यू फैसीनेट टू मी’...साले सीधे सीधे बोलता ना कि सुरभि, मैं अपनी जिंदगी, जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव, तमाम खुशियों के बारे में जब भी देखता हूं तुम्हें अपने साथ खड़ा पाता हूं, क्या तुम सचमुच मेरे साथ हो...साले खट्ट से मान जाती वो...लगे इंग्लिश झाड़ने...

अमोल- सर वो दरअसल इंग्लिश मीडियम वाली है ना...अगली बार (इतना कहकर अमोल चुप हो गया, उसे समझ आ गया कि अगले 5-7 मिनट तक गाली खाने का मसाला उसने बॉस को दे दिया है)

क्या...क्या...क्या अगली बार, मुझसे लिखवाएगा लव लेटर, साले...फिर संपादक जी को जाने क्या सूझा, बोले हाथ वाथ छुआ था क्या कभी उसका।

अमोल- किसका सर,

अबे उसी का, सुरभि का

अमोल- नो सर

चलो भागो यहां से...अब दोबारा जाके उसको कुछ मत बोल देना और सुन चेहरा ऐसे झुका कर बाहर जाइयो कि लगे मैंने बहुत डांटा है। चिट्ठी मेरे पास ही रखी रहने दे, अगली बार अच्छी चिट्ठी लिखियो, ओके

एंकर- तो देखा आपने एक लव लेटर और लव गुरू की कहानी और उसकी परेशानी। वैसे परेशान तो बेचारा एक इंटर्न भी है। पूरे 3 महीने की नाइट शिफ्ट खत्म करने के बाद उसने सुबह की किरण देखी ही थी कि उसकी किस्मत ने दगा दे दिया। 3 महीने की नाइट शिफ्ट के बाद सुबह की शिफ्ट में आते हुए सिर्फ 3 दिन ही हुए थे कि एक दिन भन्नाए संपादक के सामने पड़ गया। संपादक ने झल्लाते हुए पूछा- क्या कर रहे हो। इंटर्न का जवाब था- कुछ नहीं। इस पर बौखलाए संपादक ने कहा- अभी के अभी घर जाओ और नाइट शिफ्ट में आना।

वीओ 1- हुआ यूं कि संपादक जी का मोबाइल पड़ गया उनकी पत्नी के हाथ। संपादक जी फ्रेश होने गए हुए थे, और बाहर निकले तो बीवी ने हंगामा खड़ा कर रखा था। क्या जी, ये “मुआह” (MUAHHHH)  क्या होता है, और ये किसको लिखे हो कि लॉट्स ऑफ लव। अब बेचारे संपादक जी तौलिया लपेटे बीवी के पीछे पीछे घूम रहे हैं और पत्नी घास नहीं डाल रही हैं। संपादक जी को डर है कि कहीं आगे के संदेश पढ़ लिए तो हो गया अनर्थ। अरे फोन तो दो ना मेरा, तुम ना... बेकार का लफड़ा करने का आदत पड़ गया है तुमको। कौन कहा था मेरा फोन छूने के लिए। अरे टीवी की नौकरी में लड़कियों को इ सब लिखना कोई अपराध नहीं है। कोई अपराध नहीं किए हैं हम। देखो ना वही ना लिखी है कि लव यू सर। लव यू का मतलब वही सब थोड़े ना होता है जो तुम पिक्चर में देखती हो। इमरान हाशमी और क्या तो नाम है उस हीरोइन का। अब बोलने की बारी बीवी की थी, ऐसे बोल रहे हो जैसे हीरोइन का नाम ही याद नहीं है। तुमको ना सब याद है...ड्रामा मत किया करो। लड़की को लिख रहे हो लॉट्स ऑफ लव, तभी हम कहें कि ‘लैट्रिन’ जाते वक्त भी मोबाइल लेकर क्यों जाते हो…अभीए बताते हैं बाबू जी को कि देख लीजिए इ पत्रकारिता के नाम पर का का कर रहे हैं....अब संपादक जी का गुस्सा और गरमा गया। तुमको समझ में नहीं आता है का कोई बात, बोल ना दिए कि इ सब दिल्ली का इस्टाइल है। हर बात में बाबू जी बाबू जी क्या करती हो? तुम्हारा भेजा में नहीं घुसेगा, जड़ कहीं की। बीवी कमरे से बाहर, संपादक जी कपड़े पहनने में मशगूल और इस बात की गारंटी कि आज संपादक जी खाना नहीं ले जाएंगे, उनका डायलॉग पेट है-तुम्ही बनाओ और तुम्ही खाओ खाना, हमको इ रोज रोज का किचकिच पसंद नहीं है। भर गया मेरा पेट, इसी किचकिच से....

संपादक जी नाराज होकर जब दफ्तर चले गए तो उनका बेटा मां के सामने हाजिर हुआ। बोला- क्या हुआ मम्मी? मां ने बच्चे के सामने मामले के खुलासे को ठीक नहीं समझा, तो कहने लगी अरे कुछ नहीं हम पापा का मोबाइल देख लिए तो उसी लिए थोड़ा नाराज हो गए। जाओ ना तुम जाकर पढ़ाई करो। बच्चा जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था कहा- अरे मम्मी मालूम है पापा न इंटरनेट पर बहुत गड़बड़ गड़बड़ वेबसाइट भी देखते हैं। संपादक जी की पत्नी को बात समझ नहीं आई, उन्होंने चौंकते हुए पूछा, गड़बड़ वेबसाइट वो क्या होती है?  आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे ने तुरंत भांप लिया कि मां इस मामले में बिल्कुल ही अनजान है तो पापा की करतूत को उसने छिपाने में ही भलाई समझी। बोला कुछ नहीं- कुछ नहीं। दरअसल पिछले दिनों एक दिनों उसका दोस्त कंप्यूटर के हिस्ट्री ऑप्शन में चला गया तो वहां पर एग्जेक्ट परफेक्ट गर्ल, टीनएजर गर्ल और ऐसी ही कुछ पॉर्न वीडियो वाली साइट का एड्रेस आया। संपादक जी के लड़के के दोस्त के होश उड़ गए, उसने कहा- साले तू ये सब देखता है कंप्यूटर पर। संपादक जी के लड़के ने मामले की गंभीरता को समझते हुए ये बताना ठीक नहीं समझा कि उसने कभी इस तरह की वेबसाइट नहीं खोली। बेटे ने वेबसाइट खोली नहीं, मां को वेबसाइट क्या होता है पता ही नहीं, तो फिर ये जरूर....खैर, बेटे ने अपने दोस्त से पूछ ही लिया यार ये तो बता दे कि ये वेबसाइट का अता पता अब गायब कैसे होगा। दोस्त ने अपनी दोस्ती निभाते हुए और अपने कंप्यूटर ज्ञान को उससे बेहतर जताते हुए बता दिया है कि वो किस तरह इंटरनेट के प्रॉपर्टीज में जाकर पहले सर्फ की गई वेबसाइट्स के एड्रेस को हिस्ट्री से हटा सकता है।

वैसे संपादक जी के बारे में उनके दफ्तर से मिली खबर के मुताबिक मामला संजीदा ही लगता है। सुनने में आया है कि वो दिन में जितनी बार चाय पीने जाते हैं उनके साथ एक महिला सहयोगी जरूर होती है। मॉर्निंग मीटिंग के बाद तो वो अपनी जिस महिला सहयोगी के साथ चाय पीने जाते हैं, उससे उनका हंसी मजाक भी होता है। असाइनमेंट वाला शेखर बता रहा था कि वो दोनों नॉनवेज जोक भी शेयर करते हैं। उस महिला सहयोगी का नाम वैसे तो मंजुला है, लेकिन संपादक जी उसे मैंजी बुलाते हैं।

एंकर- इस स्टोरी पर बाइट देने के लिए कोई राजी नहीं हुआ। हमारे संवाददाता मामले पर पैनी नजर बनाए हुए हैं और अगर कोई अपडेट होता है तो हम आप तक जरूर पहुंचाएंगे।

(कैम-2)
तो ये थी विजय चौक से हमारी खास पेशकश, बाकी की खबरों के लिए आपको सीधे लिए चलते हैं हमारे दिल्ली स्टूडियो...कल फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए मुझे यानी महेश उपाध्याय को दीजिए इजाजत, नमस्कार।

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