भारतीय मुसलमान और 2014 का आम चुनाव - शमशाद इलाही शम्स Indian Muslims and the 2014 general election - Shamshad Elahee Shams

भारतीय मुसलमान और 2014 का आम चुनाव

- शमशाद इलाही शम्स (कनैडा)

 यह भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसके एजेंडे से 20 करोड़ मुसलमान और 20 करोड़ दलित आबादी के जलते प्रश्न सिरे से गायब है। 
भारत की सौलहवी संसद का चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। गत दस वर्षो की कांग्रेस हुकूमत और उसके दौरान जनता के धन, संपदा की की गयी अपरिमित लूट के रूप में मनमोहन-सोनिया गांधी का नेतृत्व अपने भ्रष्ट आचरण के चलते जो नजीरे दे गया है उसका हिसाब-किताब करना असाध्य कार्य है। 2012 के अंत में करीब आधा दर्जन राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव हुए जिसमे गुजरात में मोदी सरकार लगातार चौथी बार जीत कर आयी तभी से भारत के शासक वर्ग ने गुजरात के कथित विकास माडल को देश भर में प्रचारित कर उसके नाम पर केंद्र की हकुमत बनाने का मंसूबा बना लिया था। समय गुजरा और पिछले वर्ष भारत की विपक्षी दल भाजपा द्वारा मोदी को अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।

          मीडिया और देशी-विदेशी औद्योगिक घरानों ने इस चुनाव में जिस प्रोफेशनल सक्रियता का नमूना-दर्शन देशवासियों के समक्ष रखा है वह अपने आप में अनूठा है। यह सक्रियता उनकी बेकली का सबूत है।
प्रचार माध्यमो द्वारा ऐसे भ्रामक प्रचार भारत के इतिहास में अपना पहला अनुभव है
प्रचार माध्यमो द्वारा ऐसे भ्रामक प्रचार भारत के इतिहास में अपना पहला अनुभव है। ऐसा लग रहा है कि देश में संसद का चुनाव नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद के लिए सीधा चुनाव हो रहा हो। पूरे चुनाव में राजनीतिक दलों के किसी घोषणा पत्र, आर्थिक नीति, विदेश नीति, सामाजिक कार्यक्रमों आदि पर चर्चा किये बगैर सिर्फ मोदी, राहुल अथवा केजरीवाल जैसे राजनीतिक चरित्रों पर फोकस किया जा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने गत दस वर्षो के कांग्रेसी शासन में की गयी कारगुजारियो के चलते भाजपा को लगभग वाक् ओवर दे चुके है ऐसे पस्त हालात में मीडिया को केजरीवाल जैसा ‘फिलर’ नमूना मिल गया है जिसका दोहन वह मोदी समर्थित नरभक्षी-जनविरोधी ताकतों के पक्ष में दिन रात कर रहा है। मोदी को डिजाईनर पारंपरिक लिबास में पगड़ी थमा कर तो कभी तलवार के साथ स्टेज पर किसी ऐसे नायक की तरह विधिवत पेश किया जाता है जैसे वह कोई राजनीतिज्ञ नहीं वरन कोई फ़िल्मी हस्ती हो जो अपने किसी फिल्म के प्रमोशन के लिए देश भर की गली कूचे नाप रहा हो। मोदी के स्टेज पर आते ही सीटियाँ बजती है जिससे आप यह अंदाजा लगा सकते है कि भारत का कौन सा प्रबुद्ध समाज उनकी राजनीतिक विचारधारा का बोझ उठा रहा है।
मोदी के स्टेज पर आते ही सीटियाँ बजती है जिससे आप यह अंदाजा लगा सकते है कि भारत का कौन सा प्रबुद्ध समाज उनकी राजनीतिक विचारधारा का बोझ उठा रहा है
          सवा अरब से अधिक दुनिया का दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश जब अपने अगले पांच वर्षीय राजकाज का निर्णय लेने वाला हो, उसकी पूर्वसंध्या पर देश की राजनैतिक आबो-हवा देश की ज्वलंत समस्याओं पर केन्द्रित न होकर व्यक्ति आधारित हो तब पाठक अंदाजा लगा सकते है कि भारत का भविष्य कैसा होगा? देश की तमाम बुनियादी समस्याओ पानी, बिजली, सड़क, परिवहन, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान-तकनीक, रोजगार के मसले जहाँ एक तरफ मुँह चिढाते है वही देश के लगातार बिगड़ते सामाजिक परिवेश पर कहीं कोई चर्चा ही नहीं हो रही है। देश में बढ़ते सांप्रदायिक दंगे, खापों का बढ़ता प्रभाव, आनर किलिंग, सत्ता में अकलियतो, पिछडो और दलित तबको की भागीदारी पर न कोई विचार है न कोई नीति न दिशा। भारत के शासक वर्ग द्वारा इन तमाम समस्याओं से जनता का ध्यान हटा कर मोदी जैसे गुब्बारे को इतना फुला देना ही उनके हित में है जिसकी ओट में वह देश के संसाधनों पर अपने विदेशी आकाओं के साथ मिलकर अपनी लूट को अनवरत रूप से न केवल जारी रखे बल्कि उसे स्थायी अमली जामा पहना सके। यह भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसके एजेंडे से 20 करोड़ मुसलमान और 20 करोड़ दलित आबादी के जलते प्रश्न सिरे से गायब है। गुजरात के कथित विकास के माडल पर मीडिया और कार्पोरेट ताकतों ने जिस तरह तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है वह निसंदेह अकल्पनीय है। विकास माडल को देश भर में बेचने के साथ साथ राजनितिक दुष्प्रचार की भी सभी सीमाएं लांघ दी गयी है। छः करोड़ की आबादी वाले गुजरात प्रदेश में लगभग 10 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। मोदी की फासीवादी प्रचारक संस्थाएं एक ऐसे झूठ को देश भर में फैला रहे है कि गुजरात का मुसलमान २००२ के हुए जन संघार को भूलकर मोदी के पीछे खड़ा है और उसे वोट देता है। भाजपा का मुसलमानों के प्रति क्या राजनीतिक दृष्टिकोण है यह जगजाहिर है लेकिन यहाँ इस बात को गौर से देखना चाहिए कि बतौर एक प्रतिपक्ष केन्द्रीय दल अथवा कई सूबों में सत्ता संभाले इस दल का रवैय्या देश के सबसे बड़े अल्प संख्यक समुदाय के प्रति कैसा है?

          गुजरात विधान सभा में 182 सीटे है जिसका 10 प्रतिशत यानि 18 सीटे मुसलमानों की होनी चाहिए। गुजरात भाजपा ने 2012 के विधानसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को अपना टिकट नहीं दिया। 2007 की विधान सभा में कुल पांच मुस्लिम विधायक थे जो 2012 में घटकर मात्र दो रह गए। गुजरात भाजपा, मुसलमानों को मात्र वार्ड प्रत्याशी बनती है। जामनगर जिले के सलाया नगर (33 हजार आबादी 90% मुसलमान) में भाजपा ने 27 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे जिसमे 24 जीते, ध्यान रहे ये सभी मुस्लिम बाहुल्य आबादी से थे। इसके अतिरिक्त भुज और अंजार जैसे नगरो में भाजपा के मुस्लिम कुछ कार्पोरेटर है जिनमे से एक रियल स्टेट का बड़ा कारोबारी है।

          मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में 500 विधायको के टिकट में भाजपा ने कुल छः टिकट मुस्लिम प्रत्याशियों को दिए जिनमे करीब 50 मुस्लिम बाहुल्य आबादी के चुनाव क्षेत्र शामिल है जिसमे मात्र एक सदस्य आरिफ अकील भोपाल से चुना गया। चुनाव पूर्व इन राज्यों में मुसलमान विधायको की संख्या 17 थी। राजस्थान में 8.5 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है जहाँ भाजपा ने 200 सीटो वाले सदन में से कुल 4 टिकट दिए जिनमे मात्र 2 विधायक चुने गए, यह संख्या उनकी आबादी के अनुपात में 17 विधायको की होनी चाहिए थी। दिल्ली में 12% मुसलमानों की आबादी है 70 सदस्यों वाले सदन में भाजपा ने सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर चुनाव लड़ाया जबकि यह संख्या ८ होनी चहिये थी।        

          उपरोक्त आंकड़ो से भाजपा का मुसलमानों और उनके राजनीतिक नेतृत्व में हिस्सेदारी के प्रश्न को लेकर समझ साफ़ हो जाती है। अखंड भारत और हिंदू राष्ट्र के सिद्धातों में मुसलमानों की क्या स्थिति होगी यह अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। मरहूम सिकंदर बख्त, मुख्तार अब्बास, शाहनवाज हुसैन, नजमा हेपतुल्लाह, आरिफ मोहम्मद खान और हाल में शामिल हुए ऍम जे अकबर जैसे चहरे दिखाने वाले मुसलमानों को प्रचार माध्यमो में रख कर देश का सबसे प्रमुख राजनीतिक दल अपनी मंशा साफ कर चुका है। चंद दिखावटी चेहरों का प्रदर्शन करके भाजपा- संघ परिवार भारत के बीस करोड़ मुसलमानों को किसी विधायिका में बैठने का हक़ छीन लेना चाहता है, उन्हें मुसलमानों की उन इदारों में बैठाने की कतई जरुरत महसूस नहीं होती जहाँ बैठ कर वह नीति निर्धारण करे अथवा अपने भविष्य के लिए किसी नीति-योजना पर कानून बना सके।
बोहरा टोपियों को दिखा कर देश भर के मुसलामानों को यह सन्देश दिया जा रहा है कि मोदी को मुस्लिम समर्थन प्राप्त है
          संघ परिवार का दूसरा सबसे बड़ा यह झूठ कि गजरात का मुसलमान उन्हें (भाजपा-मोदी) वोट देता है। यह एक तथ्य है और तथ्य सच नहीं होते। सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता प्रतीत होता है और हमें रात-दिन की अनुभूति होती है, सदियों तक इसी आँखों देखी बात पर मानवजाति ने यकीन किया लेकिन वस्तुत: पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही होती है, यह वैज्ञानिक सत्य है। गुजरात के मुसलमानों के वोट मोदी को पड़ना कोई ऐसा जटिल प्रश्न नहीं जिसे समझा न जा सके। बोहरा और खोजा दोनों मुस्लिम व्यापारी तबके है, और व्यापारियों के अपने निहित स्वार्थ उन्हें सत्ता के इर्द गिर्द रखने को मजबूर करते है। यह समुदाय आर्थिक दृष्टि से ऐतिहासिक रूप से समपन्न रहा है इन्ही बोहरा टोपियों को दिखा कर देश भर के मुसलामानों को यह सन्देश दिया जा रहा है कि मोदी को मुस्लिम समर्थन प्राप्त है। यह एक प्रायोजित सत्य है। बोहरा देश में मुसलमानों का एक प्रतिशत भी नहीं है। दूसरा कारण भय की राजनीती है जिसे न तो देश का मीडिया बताता है और न कांग्रेस जैसी राजनीतिक ताकतें। इस भय की राजनीती को समझने के लिए आइये इतिहास के काल- कर्मो का अध्ययन किया जाए।

          जर्मन का फासीवादी तानाशाह हिटलर और इटली का मुसोलिनी संघ की प्रेरणा के प्रमुख स्रोत्र है। हिटलर द्वारा जर्मन के यहूदी समुदाय का दमन किसी से छिपा नहीं है लेकिन उसके प्रचार तंत्र जिसका मुखिया गोयबल्स था उसने भी प्रचार किया था कि हिटलर को यहूदी समुदाय का समर्थन प्राप्त है। 1933 में मात्र 33३ प्रतिशत वोट प्राप्त करके संसद में आये हिटलर को जर्मन राष्ट्रपति पॉल वान हिंडेन्बार्ग ने सरकार का मुखिया बनाया था, 87 वर्ष की उम्र में 2 अगस्त 1934 को राष्ट्रपति की मृत्यु होने के तुरंत बाद हिटलर ने अध्यादेश पारित कर खुद को जर्मन का चांसलर घोषित कर दिया जिसके तहत सभी संवैधानिक ताकत उसके पास आ गयी। इस अध्यादेश का जनता से अनुमोदन लेने के लिए 19 अगस्त 1934 को जर्मनी के 3.8 करोड़ मतदाताओं से एक जनमत संग्रह कराया गया था। अभी तक हिटलर की सत्ता को मात्र 19 माह हुए थे और उसके नाजी प्रोग्राम के चलते देश में जनतंत्र को कुचल कर सभी विपक्षी दलों के नेताओ को या तो जेल में डाल दिया गया था या उनकी हत्याएं कर दी गयी थी। 19 अगस्त 1934 के न्यूयार्क टाइम्स में इस जनमत संग्रह के रिपोर्ट की छपी खबर आज बड़ी प्रासंगिक है। जनमत संग्रह में 90% मतदाताओं ने हिटलर को ‘हाँ’ में जवाब दिया था। इसी मत दान में यहूदियों और कम्युनिस्ट समर्थको ने भी हिटलर के पक्ष में मतदान किया था। यह भी एक तथ्य है लेकिन सच से दूर।

          उदहारण के लिए जर्मनी के एक जिले में यहूदी इलाके से 168 ‘हाँ’ 92 ‘न’ 46 वोट रद्द हुए। दूसरे जिले के एक यहूदी वृद्ध आश्रम से 94 वोट ‘हाँ’ 4 वोट ‘न’ 3 मत रद्द हुए। दचाऊ स्थित यातना शिविर में 1554 वोट ‘हाँ’ 8 मत ‘न’ और 10 मत रद्द हुए। जाहिर है इनमे अधिकतर यहूदी समुदाय से थे। ठीक इसी प्रकार पश्चिमी बर्लिन क्षेत्र जो कि मजबूत कम्युनिस्ट प्रभाव क्षेत्र था वहां क्रमश: 840 ’हाँ’ 237 ‘न’ और दूसरे कम्युनिस्ट गढ़ वेडिंग जिले में 949 वोट ‘हाँ’ 237 वोट ‘न’ के पड़े। ध्यान रहे उस वक्त कम्युनिस्ट नेता अर्नेस्ट थेलमान को हिटलर ने जेल में डाला हुआ था। पूरे जर्मनी के शहरों में नाजियो ने बिल बोर्ड लगाए थे जिनकी इबारत कुछ यूँ थी - “जर्मनी के पुनर्जन्म के लिए हिटलर अब तक हवाई जहाज, रेल, मोटर कार, पैदल 15 लाख किलोमीटर का सफ़र तय कर चुका है, तुम घर से 100 मीटर चलो और उसे ‘हाँ’ की वोट दो”। मतदान 19 अगस्त की सुबह आठ बजे से शुरू होना था लेकिन हिटलर के नाजी दस्ते जिसमे हिटलर यूथ ट्रूप्स, नाजी लेबर यूनियन और अन्य संगठनों के कार्यकर्ता थे , सुबह 6 बजे सड़को पर सक्रिय हो चुके थे और जनता को मतदान में जाने के लिए उकसा रहे थे। मतदान केन्द्रों पर हिटलर की पुलिस, फ़ौज और गेस्टापो के दस्तों की गहरी नज़र प्रत्येक मतदाता को देख रही थी और दबाव बना रही थी कि जनता को क्या वोट करना है। इन परिस्थितियों की पड़ताल किये बिना कोई मतदान के मनोविज्ञान को कैसे अनदेखा कर सकता है? लेकिन यह सच है कि हिटलर उस जनमत संग्रह में 90 % वोट पाकर जनता द्वारा अनुमोदित हुआ था।

          उपरोक्त घटना के अध्ययन के बाद गुजरात में भाजपा-मोदी को पड़े मुस्लिम वोटो का मूल्यांकन करना जरुरी है। भारत में वोटो की गिनती के दौरान यह सब जानकारी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं हो होती है कि किस वार्ड में कितने मुस्लिम मतदाता है और चुनाव जीतने अथवा हारने वाले दल को किस-किस जन समुह से कितने वोट मिले। 2002 का महा जनसंघार भुगत चुके मुस्लिम अवाम के इस भय ग्रस्त मनोविज्ञान के चलते यदि कोई गुजरात के मुसलमानों को भाजपा का मतदाता बता रहा है तो वह हिटलर-गोयबल्स के ही व्यक्तव्य को दोहरा रहा है जब 1934 में उन्होंने प्रचार किया कि यहूदियों का उनकी सरकार को समर्थन प्राप्त है। भाजपा विरोधी वोट करके गुजरात का मुसलमान क्या फिर कोई नई आफत मोल लेगा? क्या यह वही जगह नहीं जहाँ दंगों के बाद केंद्र सरकार की राहत राशि भी वितरित नहीं हुई, आज अहमदाबाद

Photo: Shailendra Pandey, Tehlka.com
Characterised by overflowing gutters, Bombay Hotel area is developing into second biggest minority ghetto in Ahmedabad - counterview.org (click to read
The Truth Behind The Stage Show - tehelka.com (Click to read)
के बाम्बे होटल एरिया में दंगा पीडितो को खत्तो पर बसाने वाली मोदी सरकार से उन्हें किसी रहम की उम्मीद हो सकती है जहाँ न बिजली है, न पानी, न चिकित्सा और न शिक्षा। गुजरात के मुसलमानों को दण्डित करने के मोदी छाप फासीवादी हथकंडे आज पूरे देश को न बताये जा रहे है न दिखाए जा रहे है। हाल ही में बी बी सी के मधुकर उपाध्याय ने गुजरात के कथित विकास की तस्वीर विस्तार से बताई है। उन्होंने मुसलमान बस्तियों में जाकर उनका मन टटोलने की कोशिश भी की लेकिन भय का वातावरण इतना व्याप्त है कि उन्हें सफलता न मिली। एक मदरसे में जब वह यह बातचीत करने पहुंचे तो उन्हें धकिया कर बाहर कर दिया गया। मधुकर उपाध्याय का तजुर्बा मेरे उपरोक्त आंकलन का जीता जागता सबूत है।

भारत की वतर्मान राजनीतिक स्थिती में अगर पढ़े-लिखे मुसलमानों ने अपना विश्वास खोकर, हथियार और आतंक का रास्ता अपना लिया तो उसका जिम्मेदार भारत का राजनैतिक वातावरण ही होगा 
          सूचना क्रांति के इन दिनों में गुजरात के मुसलमानों का दर्द पूरा देश देख रहा है, संघ-भाजपा की यह राजनीतिक महत्वकांक्षा है कि गुजरात के प्रयोग को पूरे देश में लागू किया जाए जिसके लिए उन्होंने विकास का नाम लेकर नरभक्षी मोदी को अपना उम्मीदवार बनाया है, लेकिन ऐसा नहीं है कि 20 करोड़ की मुस्लिम आबादी इस जहर को आराम से निगल जायेगी। इतिहास गवाह है कि एक कट्टरपंथ दूसरे रंग के कट्टरपंथ को खाद पानी देता है। यह जरुरी नहीं कि मुसलमान समुदाय पूरे देश में किसी योजनाबद्ध तरीके से इस राजनीतिक चुनौती का जवाब देगा। मोदी- तोगड़िया की वाणी औवेसी जैसी प्रतिध्वनि पैदा कर ही सकते है। हाल ही में राजस्थान में छ: मुस्लिम लड़को की गिरिफ्तारी ‘इन्डियन मुजाहीदीन’ के नाम पर की गयी है। भारत की कुख्यात पुलिस ने खुलासा किया कि वे मोदी पर हमला करने वाले थे। मुझे उनकी झूठी सच्ची दलीलों पर यकीन नहीं होता। लेकिन मेरे लिए फ़िक्र इस बात की है कि इनमे से तीन लडके इंजीनियरिंग के छात्र है। भारत की वतर्मान राजनीतिक स्थिती में अगर पढ़े-लिखे मुसलमानों ने अपना विश्वास खोकर, हथियार और आतंक का रास्ता अपना लिया तो उसका जिम्मेदार भारत का राजनैतिक वातावरण ही होगा जिसके दृश्य पटल पर आज मोदी का चेहरा लटका हुआ है। भारत का पूंजीपति वर्ग मानव इतिहास का सबसे दुष्ट चरित्र है, पूरी दुनिया में पूंजीपति ने अपने प्रभाव क्षेत्र और बाज़ार का विस्तार किया है लेकिन भारतीय पूंजीपति ने अपनी ही मातृभूमि को तोड़ कर टुकडे किये और अब ऐसे गुब्बारे में हवा भर रहा है जिसके फटने से पूरे देश में आग लगेगी और एक महा विध्वंस होगा।

शमशाद इलाही शम्स
shamshad66@hotmail.com

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3 टिप्पणियाँ

  1. सेकुलर ? सेकुलर होने का सिर्फ एक अर्थ है हमारे देश में . मुसलमान हो जाओ , इस्लाम कबूल कर लो - हो गये शाश्वत सेकुलर .. मुस्लिम हित कि जो बात करेगा , वो ही सेकुलर है .. पारसी को कभी मत याद करो .. उन उपधर्मों - जातियों को मत याद करो , जिनके इस धरती पे कुछ हजार या लाख लोग शेष हैं .. आधी दुनिया पे कब्जा जमाये मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहो - उनके लिये जिओ मरो , तो ही हो सेकुलर . सोनिया गाँधी का , उनके पाले हुए खानदानी कुत्तों को , अच्छे सच्चे कांग्रेसियों के अतीत के बल पर , आगे बढ़ाओ तो ही हो सेकुलर . समाजवादी पार्टी के बहुत लोग - अब अपनी कार बाइक पर यदुवंशी क्यों लिखा रहे हैं ज्यादा , ताकि उनको भी अनजान लोग भाईजान अस्सलावालेकुम ना समझ लें .. क्या है ऐसा , या मैं गलत हूँ .. ? मुझको ऐसा लगा . शाजिया और तोगड़िया दोनों से मैं सहमत हूँ . सामाजिक विघटन जब चरम पर हो , तो अपने धर्म के कट्टर कम्युनल तो सभी होते हैं . सुरक्षा के लिये लोग अपने समुदाय वालों के साथ सदा हुए .. अब अगर हजार मुस्लिम घरों के बीच दो - तीन हिन्दू घर या हजार हिन्दू के बीच २ - ३ मुस्लिम घर हों और मोदी नामक कोई डरावना राक्षस सबको खा जायेगा , वाला डराने का कार्यक्रम जारी हो तो ये बात प्रासंगिक है ..

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