कहानी "विरोध ज़ारी है" - प्राण शर्मा | Virodh zari hai - Hindi Story by Pran Sharma

गोरी - चिट्टी कमला की क्या बात है ! घर का हर काम वह समय पर निबटाना पसंद करती है। मधुर भाषी है लेकिन अनुचित बात पर वह गुस्सा भी खाने में गुरेज़  नहीं करती है। स्ट्रीट में सभी महिलाओं की वह चहेती है। उनमें कुछ अँगरेज़ महिलाएँ भी हैं। उसकी शादी को दस साल हो गये हैं लेकिन अभी तक उसे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है।

          परमानन्द उसका पति है। वाकई वह परमानन्द है। अपने नाम के अनुरूप वह दिन के ग्यारह - बारह बजे तक बिस्तर पर पड़ा - पड़ा ऊँघता रहता है। जल्दी उठ कर नाश्ता करने की चिंता उसको बिलकुल नहीं है। रात को पी शराब का नशा उसके पेट में डेरा डाले रखता है। उसकी वजह से वह कभी - कभी फैक्ट्री की ड्यूटी से ` फरलो भी मार लेता है। जागुअर लैंड रोवेर फैक्ट्री में काम करता है। फोरमैन है। अच्छी तनख्वाह मिल जाती है। रात के नौ बजे काम से छूटते ही वह बढ़िया शराब की एक - दो बोतलें खरीदता है। सीधे घर आता है। उसके साथ तीन चमचे यानि चापलूस होते हैं, उन पर परमानन्द की बहुत मेहरबानियाँ हैं। उनका सिगरेट और शराब का गुज़ारा उसके आसरा से ही होता है। शायद ही कोई रात हो जब वे उसके साथ नहीं होते हैं। उन चिमचों के नाम हैं - पन्ना लाल , अमीर चंद और कस्तूरीलाल।

          पन्ना लाल। माँ-बाप ने बड़े  प्यार और विश्वास  से उसका नाम पन्ना लाल रखा था लेकिन अनगढ़ पत्थर निकला है। सप्ताह में वह एक बार नहाता है। सर्दियों में तो कई सप्ताह ही गुज़र जाते हैं  उसके नहाने में। पूछने पर वह झट जवाब देता है - " हज़ूर , इंग्लैण्ड की कड़ाके की ठंड में रोज़ - रोज़ कौन नहाये ?

          अमीर चंद। काश , वह कुछ तो अमीर लगता ! साफ़ कपडे पहनना उसने सीखा ही नहीं है। उसके कोट से  कई दिनों से पडी किसी बासी दाल की बदबू आती है। उसके जूतों की हालत कोयले की खान से कोयला निकालने वाले व्यक्ति के जूतों से कम नहीं।

          कस्तूरी लाल। उसके व्यक्तित्व में कस्तूरी की महक है। गठा हुआ शरीर है उसका। बस एक साधारण सा रोग है उसे। बोलते समय उसके मुँह से थूक की झाग निकलती है।

          पन्ना लाल , अमीर चंद और कस्तूरी लाल तीनों ही बेकार हैं। सोशल सेक्योरिटी के बेकार भत्ते पर आश्रित हैं

          परमानन्द के कमरे में रात के बारह बजे तक शराब की की महफ़िल जमती है। पहले यह महफ़िल  महीने में एकाध बार ही जमती थी लेकिन अब तो रोज़ ही जमती है। शराब के दो - तीन दौर चलते हैं। हर दौर में परमानन्द की तारीफ़ से कमरा गूँज उठता है। अपना गुणगान सुन - सुन कर परमानन्द का आनंद दुगुना - तिगुना हो जाता है और वही आनंद उसकी नींद की लोरी का काम करता है।

          शराब के दौर चलें और शेरो शायरी नहीं हो , ऐसा मुमकिन ही नहीं है। यूँ तो पन्ना लाल और कस्तूरी लाल शेर सुनाने में कतई कम नहीं हैं लेकिन अमीर चंद का जवाब नहीं। शेर का भण्डार है वह तो। कितने ही शायरों के शेर उसने  रट रखे हैं ! उसके मुंह से वे ऐसे निकलते हैं जैसे बसंत ऋतु में कलियाँ चटकती हैं। वह ये शेर तो बार - बार गा सुनाता है -

          जाहिद , शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर 
          या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो  

          बड़ा बेदादगर वो माहजबीं है 
          मगर इतना नहीं जितना हसीं है 

          हर शेर पर उसे भरपूर दाद मिलती है।  परमानन्द तो ऐसा झूम उठता है जैसे कव्वाली गाता - गाता सूफी गायक झूमता है।

          कमला पति की रोज़ - रोज की ऐसी महफ़िल से तंग आ गयी है।  आराम से उसे सोना नसीब नहीं  होता है। एक दिन उसका मुँह खुल ही जाता है - " देखिये जी , आप घर-गिरस्ती संभालिये या अपने टुटपूंजिये दोस्तों को। ये पीना-पिलाना और शोर मचाना रोज़-रोज़ नहीं चल सकता है। आपके उन चिमचों से राम ही बचाये। दूसरों के घरों में उठने-बैठने की तमीज नहीं उन्हें। शराब पी कर न जाने क्या-क्या बकते हैं ? कैसे पति हैं आप ? घर की मर्यादा का कुछ ख्याल नहीं है आपको। नौ -दस बजे सोने का समय होता है लेकिन आप हैं कि शराब की बोतलें उठायें उन लफंगों को घर में ले आते हैं। "

          " बस , बस। रहने दे अपना उपदेश।  कैसी घर-गिरस्ती ? न बेटा और न ही बेटी। दस साल हो गये हैं हमारी शादी को। एक बच्चा  पैदा नहीं कर सकी है तू ? "

          " बातचीत में ये बच्चा कहाँ से आ गया है ? मैं बच्चा पैदा नहीं कर सकती हूँ या आप बच्चा पैदा करने में
सक्षम नहीं हैं। मेरी कोख के सभी टेस्ट हो चुके हैं। कोई खामी नहीं है।  आप ही अपना टेस्ट नहीं करवाते हैं। आप में ही खामी है। कोई अंग्रेज महिला होती तो कब से वो आपको छोड़ चुकी होती। मेरी बात कान खोल कर सुन लीजिये कि आइंदा इस घर में आपका दोस्तों को लाना और पीना-पिलाना बिलकुल नहीं चलेगा। "

          " दोस्तों को लाऊँ या नहीं लाऊँ , उन्हें शराब पिलाऊँ या नहीं पिलाऊँ , ये मेरा निजी मामला है। समझी ?
पति हूँ तेरा। पति स्वामी होता है। पत्नी का कर्त्तव्य है उसके अधीन रहना। आदि काल से यही चलता आ रहा है। जा , अब दाल बीन और वाटिका में फूल-पत्तों को पानी दे। धूप में वे सूख रहे हैं। "

          कमला खड़ी हो जाती है। पति की झकझक सुन कर वह अपना माथा पीट लेती है। मन ही मन कुढ़ने लगती है। उसकी आँखों के आगे वे दिन तैर जाते हैं जब वह परमानन्द की सुंदरता पर रीझ उठी थी और देखते ही देखते उसके साथ उसने सात फेरे ले लिये थे। उसकी खातिर उसने भारत को अलविदा कह दिया था। काश , ये मन के भी सुन्दर होते ! उसने तो सोचा था कि ये इंग्लैण्ड में जन्मे-पले हैं और वहीं पढ़े-लिखे हैं। ज़ाहिर है कि वहाँ की सभ्यता का प्रभाव इन पर होगा। स्त्री को बराबरी का दर्ज़ा देते होंगे। हाथी का दांत खाने को और दिखाने को और निकला। इनकी भी वही भारतीय मानसिकता है कि यूँ तो स्त्री देवी समान है लेकिन पुरुष के पैर की जूती है।

          ये यूँ ही नहीं सुधरेंगे।  लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं। कुछ तो करना ही होगा कमला अपनी अड़ोस-पड़ोस की तीन सहेलियों को इकट्ठा करती है। उन्हें अपना दुःख सुनाती है। तीनों ही सांत्वना देती हैं - " फ़िक्र नहीं कर, तेरे पति को सही रास्ता पर हम लाएंगी। "

          दूसरे दिन ही नौ बजे तीनों सहेलियाँ आ टपकती हैं कमला के घर में। आते ही ऊँची आवाज़ में गाने लगती हैं -

   उठ जाग मुसाफिर भोर हुई 
   अब रैन कहाँ जो सोवत है 
   जो सोवत है वो खोवत है 
   जो जागत है वो वो पावत है 

   मुझे जग की न आयी लाज 
   मैं इतना ज़ोर से नाची आज 
   कि घुँघरू टूट गये 

          गाने के बाद वे फूल वॉल्यूम पर रोक म्यूजिक बजाती हैं और ज़ोर-ज़ोर से नाच कर फर्श हिला देती हैं। ये क्रम और उपक्रम बार-बार चलता है।

          रोज़-रोज़ के ऐसे शोर-शराबे से पमानन्द की नींद की खुमारी फुर्र हो जाती है। पत्नी की इस चाल से
वह बौखला उठता है - " कमला , तूने ये क्या तमाशा लगा रखा है ? "

          " मैं समझी नहीं। "

          " इतनी नादान मत बन। सुबह-सुबह तू इनको घर में बुलाती है। अपने-अपने गले फाड़ कर कभी ये गाती हैं और कभी फूल वॉल्यूम पर म्यूजिक बजा कर ज़ोर-ज़ोर से नाचती हैं। मेरी नींद में खलल पड़ता हैं। समझी। "

          " बहुत खूब ! आपकी नींद में खलल पड़ता है , क्या मेरी नींद में खलल नहीं पड़ता है ? "

          "  इसका ये मतलब कि तू मुझसे बदला ले रही है। "

          "  आप यही समझ लें। "

          "  देख , कल से तेरा नाटक नहीं होगा। अगर होगा तो तेरी सहेलियों को बाहर सड़क पर पटक दूँगा। "

          " इनके भी दो-दो हाथ हैं। कहीं ये आपको बाहर सड़क पर नहीं पटक दें। संभल कर रहिएगा। "

          " देख लूँगा। मर्द हूँ , मर्द। "

          पति और पत्नी का आपस में वाक् युद्ध करना रोज़-रोज़ का ही काम हो गया है। दोनों की धौंस का असर एक-दूसरे  पर नहीं हो रहा है। न पति झुकने को तैयार है और न ही पत्नी।

          परमानन्द के मुरीद पन्ना लाल,  अमीर चंद और कस्तूरी लाल का आना और पीना-पिलाना बरक़रार है। कमला की तीनों सहेलियों का भी गाना-कूदना बरक़रार। है। वे अभी तक परमानन्द को सही रास्ते पर नहीं ला सकी हैं लेकिन अपने अभियान से पीछे नहीं हटी हैं।

- प्राण शर्मा
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7 टिप्पणियाँ

  1. इस कहानी के माध्यम से बहुत ही खूबसूरत सन्देश दिया है.यह जरूरी भी है,बधाई देता हूँ प्रिय भाई प्राण शर्मा जी को इतनी अच्छी कहानी पढवाने के लिए.

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  2. Diya ji , virodh zaaree hai . abhee unkaa abhiyaan samaapt nahin hua hai .

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  3. प्रिय दिव्या जी ,

    मेरे प्लान के बारे में पूछा है आपने। बरसों से यह समस्या है यह लड़ाई इतनी जल्दी ख़त्म

    नहीं होगी। अभियान अभी ज़ारी है। कहानी के शीर्षक पर ग़ौर फरमाइए - विरोध ज़ारी है।

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  4. Kahani mein aapki turn tu main ka sisila zayakedaar hai..jang Zaria hai aur rahregi jab tak qayanat salamat hai..rachak kahani ke liye daad Pran ji

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  5. praan ji
    hamesha kee tarah phir deri se aaya hoon .
    kahani kee rochakta ne ek saans me ise padhwa diya . aur scene itne acche se likhe gaye hai ki , lagta hai ki koi chhoti si film dekh rahe ho . bas maza aa gaya ji . aap yun hi likhte rahe yahi mangal kaamna hai .
    dhanywaad
    aapka
    vijay

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  6. शानदार कहानी...एक बड़ा संदेश...बधाई।

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  7. लगे रहना चाहिए पत्नी को भी और अगर मानना ही हो तो पति को मानना होगी अपनी गलती ...
    सामाजिक परिदृश्यों का सजीव चित्रण करती अच्छी कहानी ...

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