लट्ठमार कवि सम्मेलन वाया अदमापुर - पंकज प्रसून | Hindi Kahani - Latthmar ... - Pankaj Prasun

लट्ठमार कवि सम्मेलन वाया अदमापुर 

पंकज प्रसून


बलई पांडे बल्लू लूटपाट के आरोप में तीन साल की कैद-ए बामुशक्कत के बाद इतने प्रतिष्ठित हो गए थे कि अदमापुर से बीडीसी का चुनाव निर्विरोध जीत गए थे. अब उनका अगला लक्ष्य था ब्लाक प्रमुख बनना. इसी लक्ष्य के तहत उन्होंने अदमापुर में पिछले सात सालों से ठप पड़े कवि सम्मलेन को फिर से शुरू करने का मन बनाया.इसके पीछे उनका उद्देश्य साहित्य सेवा नहीं बल्कि समाज सेवा का था और समाज सेवी बनने के लिए उनको ब्लाक प्रमुख बनाना जरूरी था.
लटूरी लट्ठ जी कवियों में सबसे महंगे थे. इसलिए नहीं कि उनकी कविता जोरदार थी, बल्कि इसलिए कि उनके पास चुटकुले जोरदार थे. आज के दौर में जिस कवि के पास चुटकुले जोरदार होते हैं , वह टीवी पर आता है. जिसके पास कविता जोरदार होती है वह आल इण्डिया रेडियो के छतरपुर स्टेशन पर. आकाशवाणी ही उसका आकाश होता है. यह निरीह प्राणी होता है जो बीबी से लात खाता है. क्योंकि यह नाम कमाने के चक्कर में घर का पैसा गंवाता है. 

पंकज प्रसून
टीएम-१५ टैगोर मार्ग
सी एस आई आर कालोनी
लखनऊ
मो-9598333829
कवि सम्मलेन के लिए आयोजक मंडल के अध्यक्ष बलई पांडे ‘बल्लू’ ने फिरोजाबाद के प्रसिद्ध कवि लटूरी लट्ठ जी को फोन लगाया.

लटूरी लट्ठ ने नया नंबर देखकर फोन तुरंत अपनी बीबी को दे दिया

‘हैलो,मैं लटूरी जी की पर्सनल सेकेट्री मोनिका बोल रही हूँ’

इस मधुर आवाज ने  बल्लू के दिल के तार (जहाँ भी होते हों ),झंकृत कर दिए.

‘जी मोनिका मैडम,मैं ग्राम अदमापुर से बलई पांडे ‘बल्लू’ बोल रहा हूँ.मुझे कवि सम्मलेन में लटूरी जी को बुलवाना है,यदि उनके चरण अदमापुर में पड़ेंगे हमारा जीवन सफल हो जाएगा..और यदि आप भी आ गयीं तो फिर हम सीधे धन्य हो जायेंगे’

‘वो तो ठीक है, पर आपको मालूम होना चाहिए कि लटूरी जी गाँव –कस्बों के कवि सम्मलेनों में नहीं शिरकत करते हैं.उनका पेमेंट आप दे पायेंगे क्या ?’

बल्लू की स्वाभिमान जाग उठा ‘क्या बात करती हैं मैडम,मैं गाँव में बीडीसी सदस्य हूँ,ब्लाक प्रमुख की चुनाव लड़ने वाला हूँ.मुझे मालूम है कविता बेशकीमती होती है.

‘ओके डेट बताइये’

‘पांच मार्च’

‘लेकिन इस डेट में लटूरी जी ब्राजील कवि सम्मलेन में जा रहे हैं. (असल में लटूरी जी इस दिन बलिया में बुक थे,लेकिन मार्केट बनाने के लिए बलिया को ब्राजील कहना पड़ता है)

‘ठीक है हम दस मार्च रख लेते हैं’

‘जी बल्लू जी,लटूरी जी आपको शाम को फोन करेंगे. मैंने आपका आर्डर बुक कर लिया है’

‘धन्यवाद मोनिका जी. हम आपके आभारी रहेंगे’

फिर टेक केयर , सीयू बाय आदि जो भी विदाईसूचक संबोधन होते हैं उनके साथ बात समाप्त हुयी. या यूं कहें की शुरू हुयी.

लटूरी लट्ठ ने अपनी बीबी इस तरह गले लगाया जैसे कि अचानक प्रोफ़िट होने पर कंपनी का बॉस सेकेट्री को लगाता है.

‘लव यू डार्लिंग, मेरी बीए पास बीबी’.

‘लटूरी लट्ठ की शादी में भले ही ससुर ने महंगाई की दुहाई देते हुए दहेज न दिया हो पर लड़की ऐसी दे दी थी जो लटूरी को महंगा कवि बना रही थी’

अदमापुर में कवि सम्मलेन की परंपरा बहुत पुरानी थी. कई लब्ध प्रतिष्ठ कवियों ने यहाँ कविता पाठ किया था. घनाक्षरी, सवैया, चौपाई, दोहे, गीत सुनाने वाले कवि ही बुलाये जाते थे. अब सवाल यह उठता है कि फिर लटूरी लट्ठ जैसे चुटकुलेबाज को इतनी मान-मनौवल के साथ क्यों बुलाया जा रहा है? इसका कारण है- विकास. साहित्य का नहीं बल्कि सड़कों का. तब प्रगतिशील कवि यहाँ नहीं पहुँच पाते थे. पहुँचते कैसे? प्रगतिशील तो प्रगति के पथ पर चलता है, चिकनी सपाट सड़कों पर. शहर से अदमापुर कोई तुलसीदास जैसा प्रकृतिशील ही पहुँच सकता था. रास्ते में नदी पड़ती थी जिसका पुल इतना जर्जर था कि कोई जर्जर इंसान चले, तो भी टूट जाए.जबसे इस गाँव में बिजली,सड़क व फोन आया प्रगतिशील साहित्य व चुटकुलापरक कविता ने प्रवेश किया. पारंपरिक कविता को गरीबों ने जिंदा कर रखा था. गाँव की गरीबी जैसे-जैसे दूर हुयी कविता भी दूर होती चली गयी.. जैसे जैसे गाँव खुशहाल होता गया लोग चुटकुलों की ओर अग्रसर होने लगे. जिनका पेट भरा होता है वो आनदं की खोज में चुटकुलागामी हो जाता है. जिसकी आंते सिकुड़ी होती हैं, पेट अधभरा होता है, जो हंसना भूल चुका होता है वही कम्बल ओढ़ सारी रात घनाक्षरी सुनता है. पर धीरे धीरे श्रोता कवि दोनों छंद के अनुशासन से विमुख होते गए. अनुशासन में बंध कर एक कमाई कहाँ होती है. इसके लिए आपको भष्ट होना पड़ेगा, कुशासन लाना पड़ेगा. ठीक इसी तरह जो छंद के अनुशासन में बंध जाता है वह सुमित्रा नन्दन पन्त बन सकता है, सुरेन्द्र शर्मा नहीं.

लटूरी लट्ठ जी कवियों में सबसे महंगे थे. इसलिए नहीं कि उनकी कविता जोरदार थी, बल्कि इसलिए कि उनके पास चुटकुले जोरदार थे. आज के दौर में जिस कवि के पास चुटकुले जोरदार होते हैं , वह टीवी पर आता है. जिसके पास कविता जोरदार होती है वह आल इण्डिया रेडियो के छतरपुर स्टेशन पर. आकाशवाणी ही उसका आकाश होता है. यह निरीह प्राणी होता है जो बीबी से लात खाता है. क्योंकि यह नाम कमाने के चक्कर में घर का पैसा गंवाता है. इस तरह के घनानंद-भूषण के उपासक संता-बंता के अनुयायी कवियों के घर में पानी भरते पाए जाते हैं. ये घनानंद-भूषण अपनी कविता का स्तर जितना ऊपर उठाते हैं उनका पेमेंट उतना ही नीचे गिर जाता है.फिर भी जो घनानंद-भूषण नहीं सुधरते यानी कि अपनी कविता का स्तर नहीं गिराते, वह मंच की मुख्य धारा से काट दिए जाते हैं. यदि वह उम्रदराज हैं तो संयोजक उनको मंचों की अध्यक्षता सौंप देता है और यदि प्रौढ़ या युवा हैं तो पेमेंट लेकर ही मंच पर पर चढ़ाता है.

अब आप समझ गए होंगे कि लटूरी लट्ठ जी की इतनी डिमांड क्यों थी.

तो शाम ढले बल्लू पांडे के मोबाइल पर लटूरी जी का फोन आया.

‘बल्लू जी मैं लटूरी लट्ठ बोल रहा हूँ, मेरी सेक्रेटरी ने आपके कार्यक्रम के बारे में बताया’

‘जी लटूरी जी, बहुत नेक महिला हैं वो. आप हमारे आयोजन में शिरकत करेंगे तो कृतार्थ हो जाएगा अदमापुर’

‘अरे बल्लू जी, आपकी बात है इसलिए आ रहा हूँ वर्ना आप तो जानते ही हैं कि मैं हाई प्रोफाइल कवि हूँ’

‘हम भी हाई प्रोफाइल आदमी हैं, बीडीसी जीते हैं निर्विरोध.. आपकी सेवा में कोर-कसर नहीं रहेगी. आप जैसा कहेंगे वैसा होगा’

‘ठीक है, मैं टीम बना देता हूँ, कितना बजट है आपका?’

‘यही कोई एक लाख’

‘वैसे पचास हजार  तो मेरा खुद का पेमेंट है पर आपकी बात है, इसलिए एक लाख में पूरा आयोजन करवा दूँगा.’

‘लटूरी जी, यहाँ पर अगर कवि पसंद आ जाएगा तो अतिरिक्त माल भी मिलता है इनाम के रूप में और अगर महिला कवियत्री हो तो इस अतिरिक्त माल की कोई सीमा नहीं है.’

‘फिर ठीक है, महिला कवियत्री आयेगी’ लटूरी ने अपनी पत्नी का हाथ दबाते हुए कहा 

‘जी धन्यवाद’

‘एक और कार्य करिये बल्लू जी, आप एक सम्मान भी शुरू करिये अपने पिताजी के नाम पर’

जिसने बचपन में सहपाठियों की पेन,किताबें चुराने से लेकर युवावस्था में किताबों की दुकान पर डाका डाला हो,उसके नाम पर सम्मान ? पर बल्लू को लगा कि अपने पिता को अमर करने के लिए इससे बढ़िया मौका और नहीं मिलेगा’

थोड़ा सोचने के बाद बोले ‘हाँ बिलकुल शुरू करता हूँ -‘बब्बन साहित्य सम्मान’,लेकिन दूँगा किसको ?’

‘अब लटूरी लट्ठ से अधिक सम्मानित भला और कौन हो सकता है’

‘जी, आपको ही मिलेगा. उसके लिए मोमेंटो, शाल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र आदि का इंतजाम करना पड़ेगा’

‘उसकी आप चिंता मत करें. मैं सब यहीं से बनवाकर ले आऊंगा, बस आप मेरे पेमेंट में तीन हज़ार बढ़ा दीजियेगा.’

‘धन्यवाद लटूरी जी मैंने ऐसा उदार ह्रदय वाला कवि ने देखा जो अपना सम्मान खुद लेकर आता हो. नमन आपको. आपकी ब्राजील यात्रा की शुभकामनाएं’

दस मार्च का दिन. बल्लू पांडे  की पूरी टीम आयोजन को सफल बनाने की तैयारियों में जुटी थी. दो लाख  के आस पास चन्दा आया था. ब्लाक से विजयी हुए सारे बीडीसी सदस्य आमंत्रित किये गए थे. ये वो सदस्य होते हैं जो दस-दस हजार में बिक जाते हैं. जो ब्लाक प्रमुख प्रत्याशी इनको रकम देते हैं उसके पक्ष में ये वोट देते हैं. बल्लू के अतिरिक्त एक दूसरे प्रत्याशी भी चुनाव में खड़े होने का मन बना रहे थे - ‘राम पल्टन’. इस बात का अंदेशा बल्लू को हो गया था. इसलिए बल्लू ने राम पल्टन और उनके समर्थकों के नाम बैनर पर नहीं छपवाए थे. हालांकि कवि सम्मलेन के नाम पर चन्दा ले लिया था. बैनर लगते ही राम पल्टन ने इस अवसरवादी राजनीति का विरोध किया. फिर समर्थकों के साथ मिलकर कवि सम्मलेन को असफल बनाने की योजना बना डाली.

स्थानीय विधायक मंजू भैया का मुख्य अतिथि के रूप में आना तय हो चुका था. कवियों का इंतज़ार हो रहा था.

लटूरी लट्ठ अपनी टीम के साथ अदमापुर पहुंचे. उनके साथ स्कार्पियो से तैश रामपुरी, बेखटक हाहाकारी, बिन्नू बावरा, अनपढ़ झंझटी,व सुनीता शर्मीली नीचे उतरीं.

कार्यकर्ताओं ने उनका माल्यार्पण कर स्वागत किया. ये वो कवि थे जो मूल रूप से चुटकुलेबाज थे कबिता जिनके चुटकुलों का बाईप्रोडक्ट थी. ये सारे कवि लटूरी के ही शहर के थे परन्तु कवि सम्मेलन को अखिल भारतीय बनाने के लिए इनके नाम बदल दिए गए थे. यह राज कवियों के अलावा किसी को मालूम न था कि सुनीता शर्मीली लटूरी लट्ठ की पत्नी थी उर्फ सेक्रेटरी मोनिका.

जैसा कि कवि सम्मेलनों में होता आया है कि कुछ कवि मंचों पर दबावयुक्त इंट्री करते हैं. राम पल्टन व उनके समर्थकों की जबरदस्त सिफारिश पर स्थानीय कवि अशोक छंदक को भी शामिल किया गया. ये वह  सुकवि थे जो झाडू भी छंदबद्ध तरीके से लगाते थे. इसलिए इनको जीरो पेमेंट पर मौका दिया गया. इनके ऊपर दबाव इस बात का था कि कविता पढते समय राम पल्टन की तारीफ़ में कसीदे गढ़ने हैं.

सारे कवि मंच पर आसीन हो चुके थे. मंच का आरम्भिक सञ्चालन खुद बल्लू पांडे ने संभाल रखा था. विधायक जी के आते ही करतल ध्वनि और गगनभेदी नारों से स्वागत किया गया. फिर पचास किलो वजन की माला पहनाकर गेंदे के फूलों की बेइज्जती की गयी. फिर कवियों का माल्यार्पण, लटूरी लट्ठ का सम्मान और विधायक जी का साहित्य पर जोरदार भाषण हुआ. उन्होंने बल्लू को साहित्य का सारथी बताते हुए राजनीति और साहित्य का अंतरसंबंध स्थापित किया. वह यह बताना नहीं भूले कि लाल किले के कवि सम्मेलन में सीढियां चढ़ते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के कदम लड़खड़ाये थे तो दिनकर जी ने  उनको थाम लिया था. नेहरु ने जब धन्यवाद बोला तो निराला ने जवाब दिया था-‘ इसमें धन्यवाद किस बात का. राजनीति के कदम जब भी लड़खड़ाते हैं , साहित्य सहारा देता है.’

इसके बाद विधायक जी ने बल्लू का मेयार बढ़ाया. बल्लू की तुलना जवाहर से और लटूरी लट्ठ की तुलना राष्ट्रकवि दिनकर से की.

राम पल्टन से यह बर्दास्त नहीं हो रहा था. वह माइक तोड़ने के लिए बार-बार उठ रहे थे पर उनके समर्थक बैठा दे रहे थे. विधायक जी को लग रहा था कि राम पल्टन उनके सम्मान में बार-बार उठ रहे हैं. 

विधायक जी ने अपना काव्य जौहर दिखाया और सुनीता शर्मीली को समर्पित करते हुए दो कौड़ी की तुकबंदी पेश की, जो ट्रक के पिछवाड़े से चुराई लग रही थी. सुनीता शर्मीली ने शरमाते हुए उनकी कविता को स्वीकार किया. और इस तुकबंदी को बाकायदा कालजयी कविता मान कर कवियों ने खड़े होकर तालियाँ बजाईं. अपने पूरे भाषण के दौरान विधायक जी सुनीता शर्मीली को ताड़ते रहे और अंत में उन्ही के पास जाकर बैठ गए. लटूरी लट्ठ कुछ नहीं कर सके क्योंकि उनको अब कवि सम्मेलन  का सञ्चालन करना था और संचालक का माइक कवियों से इतर लगाया जाता है.

लटूरी लट्ठ जी ने कशमकश की स्थिति में संचालन शुरू किया. विधायक जी और  बल्लू पांडे की तारीफ़ में खूब कसीदे पढ़ें. फिर मंच की अध्यक्षता के लिए उन्होंने स्थानीय कवि अशोक छंदक का नाम प्रस्तावित किया. यानी कि छंदक जी को आखिर में काव्य पाठ करना पड़ता. जिससे राम पल्टन व उनके सहयोगियों की प्लानिंग पर पानी फिर जाता. इसलिए उनके प्रस्ताव का विरोध किया गया. मजबूरीवश तैश रामपुरी को अध्यक्ष बनाया गया.

चूंकि विधायक जी को जाना था और उनकी तीव्र इच्छा थी कि वह सुनीता शर्मीली को सुन कर जायें. इसलिए सुनीता शर्मीली को लटूरी लट्ठ ने बाकायदा अश्लील माहौल बना कर आमंत्रित किया. थोड़ी देर के लिए वह यह भूल गए कि वह उनकी बीए पास पत्नी हैं.

शर्मीली विधायक जी को समर्पित करते हुए श्रृंगार के मुक्तक पर मुक्तक फेंकती जा रही थीं और विधायक जी हर मुक्तक पर मुक्त भाव से पांच सौ भेंट कर रहे थे. ये मुक्तक प्रायः आमंत्रण के मुक्तक होते हैं जिमसें विरहिणी प्रेमी को आमंत्रण देती है. विधायक जी खुद को प्रेमी समझ रहे थे. शर्मीले के मुक्तक समाप्त हो गए पर विधायक जी के नोट न खतम हुए. पर मुक्तकों का पूरा पैसा वसूल हो चुका था. असल में लटूरी जी गुमनाम देहलवी जी से सौ रुपये प्रति मुक्तक के रेट से लिखवाते थे.

विधायक जी का मन अभी भरा नहीं था. वह सुर कोकिला की आवाज में खो जाना चाहते थे. मजबूरी में शर्मीली ने बिना बहर वाले गीत पढ़े जो उनके खुद के लिखे हुए थे. जब मंच की कोई कवियित्री या शायर बिना बहर वाले गीत या गज़ल पढ़े तो हमें बिना सोचे समझे पर मान लेना चाहिए की वह मौलिक कवियित्री या शायरा है. पर विधायक जी का मानना था कि जब भाव पक्ष इतना प्रबल हो तो कला पक्ष को नजरंदाज कर देना चाहिए. शर्मीली मंच को खूब जमा रही थीं. यह राम पल्टन को नागवार गुजर रहा था . उन्होंने संचालक को पर्ची भेजी. संचालक ने समझा कि शर्मीली की किसी मुक्तक की डिमांड आयी है शायद. पर यह पर्ची विधायक जी के लिए थी जिसमें लिखा था कि अपनी निधि से एक हैण्डपम्प लगवा दीजिए.

पर विधायक जी ने उस समय उपलब्ध सम्पूर्ण निधि शर्मीली की काव्य प्रतिभा पर कुर्बान कर दी. विधायक जी ने शर्मीली का नंबर लिया और लटूरी की श्रीमती का नाम पद्म श्री के लिए नाम प्रस्तावित करने का वायदा किया. फिर निकल गए.

शर्मीली लटूरी के युगल प्रयास से विधायक जी लुट कर चले गए थे. जाते-जाते बल्लू की जीत के लिए शुभकामनाएं भी दीं जिससे रामपल्टन का क्रोध फिर परवान चढ़ा. इससे पहले की मंच पर चढ़ते, समर्थकों ने रोक लिया. इस बीच श्रोताओं की मांग पर स्थानीय कवि अशोक छंदक को लटूरी लट्ठ ने यह कहते हुए आमंत्रित किया कि अब मैं ऐसे कवि को पेश करना चाहता हूँ जो आपके धैर्य की परीक्षा  लेने आ रहा है.

माइक थामते ही अशोक छंदक ने आठ दस छंद राम पल्टन के सम्मान में झोंक डाले. राम पल्टन ने उस पर रुपयों की बारिश कर दी. माहौल राम पल्टन के पक्ष में बन रहा था. बल्लू ने लटूरी को इशारा किया कि इसको जल्द से जल्द रोका जाय. पर छंदक जी रुकने वाले नहीं थे. वह ‘पल्टन –महाकाव्य’ लिख कर लाये थे जिसे बिना किसी रुकावट बांच रहे थे . बल्लू की सहनशीलता खत्म हो गयी और उन्होंने माइक बंद करवा दिया. पर छंदक जी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा.वह बिना माइक के ही पढते रहे. और जेबें भरते रहे. छन्दक को समझ आ गया था कि जब पैसों की बारिश हो रही हो तो चारण और भाट बनने में कोई बुराई नहीं है.

तभी बल्लू पांडे उठे और दोनों हाथों से छंदक जी का मुंह बंद कर दिया. उधर राम पल्टन ने जनरेटर बंद कर दिया. फिर देखते –देखते दोनों गुटों में भिडंत हो गयी. तम्बू उखाड दिया गया. मंच तोड़ डाला गया. लटूरी लट्ठ ने मौके की संवेदनशीलता देखते हुए कवियों सहित भाग निकलने में भलाई समझी. और थोड़ी ही देर बाद वह कवियों को स्कार्पियो में बिठाकर नौ दो ग्यारह हो गए. दो किलोमीटर निकलने के बाद राहत की सांस लेते हुए बोले- ‘आज सबको बचाकर निकाल लाया यही कवि सम्मेलन की उपलब्धि रही.’

‘पर हम लोगों का पेमेंट’-तैश रामपुरी  कातर स्वर में बोले 

‘अमा, मियां मरने से बचे हो आज, जान पर बन आयी थी. पेमेंट कौन देगा ऐसे में ?

जबकि शर्मीली को यह बात मालूम थी कि एक पेमेंट के एक लाख लटूरी ने अदमापुर पहुँचते ही ले लिए थे. जो शर्मीली की पर्स में सुरक्षित थे.

स्कार्पियो अदमापुर की सीमा पार कर चुकी थी. तभी पीछे से एक बोलेरो ने उसे ओवरटेक किया. स्कार्पियो का संतुलन खराब हुआ, पर ड्राइवर के सूझबूझ ने देश के इन महान अकवियों को बचा लिया. वर्ना साहित्य तो मर ही गया होता. स्कार्पियो रुकी और उसके ठीक आगे बोलेरो.

तैश रामपुरी ने बोलेरो वालों को उनको ललकारा.

लेकिन जब आठ नकाबपोश लट्ठ समेत बोलेरो से निकले तो उनकी धिग्गी बंध गयी.. लटूरी नाम वाले  लट्ठ थे पर यहाँ तो काम वाले लट्ठ.

शर्मीली ने पर्स पर अपनी पकड़ टाईट कर ली.

अगले ही क्षण शर्मीली के छोड़कर सारे कवि पीटे जा रहे थे.

‘ससुरे .कविता के भतार .बल्लू की तारीफ़ करने आये थे या कविता सुनाने’

लटूरी को जब लट्ठ पड़ा तो शर्मीली चीख पड़ीं 

‘इनको छोड़ दो, पतली हड्डियों के सहारे इमारत खड़ी है.गिर जायेगी.’

एक नकाबपोश बोला 

‘का भतार है तुम्हारा ये जो इतना चीख रही हो’

‘हाँ मेरा सुहाग है ये, अगर ये उखड़ गए तो सुहाग उजड़ जाएगा’

दूसरा नकाबपोश को और भी क्रोध आया

‘ये साला तेरा भतार है तो क्या बाकी कवि का जीजा हैं तेरे. अच्छा धंधा खोल के बैठे हो घर में.’ दो लट्ठ और पड़े लटूरी को 

तीसरा नकाबपोश बोला –

‘चल माल निकाल लटूरी’

‘बेखटक हाहाकारी, बिन्नू बावरा, अनपढ़ झंझटी एक सुर में चिल्लाये - ‘ पेमेंट ही कहाँ मिला था?’

‘कोई बात नहीं हम कुबूलवाना जानते हैं’

लटूरी चीखे 

परन्तु यह चीख शर्मीली के ऊपर कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी. क्योंकि चीख के प्रभाव से पर्स पर उनकी पकड़ ढीली हो सकती थी.

लेकिन पिटाई का सिलसिला चलता रहा 

लटूरी का दम निकल रहा था. इससे पहले कि वो बेदम हो जाते शरीर की सारी ऊर्जा समेत कर  सनी देओल स्टाइल में चिल्लाये –

‘शर्मीली,और कितना पिटवायेगी मुझे, तुझे पैसे ज्यादा प्यारे हैं या पति. अरे डकैतों जाकर छीन लो शर्मीली से पर्स, इससे पहले की शरीर से आत्मा निकल जाए,निकाल लो पैसे.’

फिर सारे नकाबपोशों ने आधे घंटे की मशक्कत के बाद पर्स छीनने में सफलता पायी.

कुल सवा लाख के आसपास नगदी बरामद हुयी. जिनमें पच्चीस हज़ार विधायक निधि के थे.

मुखिया नकाबपोश ने उनमें से दो हज़ार निकल कर लटूरी को वापस करते हुए बोला – ‘यह अपनी मोनिका भाभी को मेरी ओर से दे देना.. मेरा दिल आ गया है तेरी सेक्रेटरी पर’

‘बब ..बल्लू पांडे हो तुम’-लटूरी विस्मय भरी सकपकाई आवाज में बोले 

‘राम पल्टन हूँ ..राम पल्टन..कल एकआईआर राम पल्टन के नाम से ही दर्ज करवाना..वर्ना जानता नहीं है तू कितना हाई प्रोफाइल गुंडा हूँ मैं.तेरी कविता का अपहरण करवा दूँगा’

बोलेरो जा चुकी थी. लटूरी राहत की सांस लेने ही वाले थे कि बेखटक हाहाकारी लड़खड़ाते हुए उठे और लटूरी को एक लात लगाई- ‘हरामी,पैसा मार रहा था मेरा’

उनके इस लात ने बाकी पके पिटे हुए कवियों के पैरों में कैल्शियम की मात्र बढ़ा दी थी, नतीजन लटूरी लट्ठ को चाहत इन्दौरी, अनपढ़ झंझटी व तैश रामपुरी करीब पन्द्रह मिनट तक लतियाते रहे.

फिर सअपमान उनको स्कार्पियो पर बिठा कर थाने तक ले गए जहाँ राम पल्टन के खिलाफ नामजद एफआई आर दर्ज कराई गयी. विधायक जी ने उनको अंदर कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

इधर लूटे हुए चंदे के पैसे से बल्लू पांडे ने बीडीसी सदस्यों को खरीद लिया, और ब्लाक प्रमुख बन गया. वह साहित्य के सहारे सत्ता तक पहुँच गया था. निराला ने कहा था कि जब राजनीति लड़खड़ाती है तो साहित्य उसे सहारा देता है. लेकिन यहाँ साहित्य सहारा देकर लड़खड़ाने लगा था.

यानी कि लटूरी लट्ठ की टांग टूट चुकी थी.

साहित्य को इस बार राजनीति ने सहारा देकर बदला चुका दिया’. यानी कि विधायक निधि से लटूरी को बीस हज़ार प्राप्त हुए.

इसका कारण विधायक जी का  लटूरी के प्रति दया भाव नहीं बल्कि शर्मीली के प्रति प्रेम भाव था. इस प्रेम भाव की तासीर बिलकुल वैसे ही थी जैसे कि बल्लू पांडे की मोनिका के प्रति.

- पंकज प्रसून

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. बहुबहुत बढ़िया व्यंग्य है।पोलिटिक्स और साहित्य का मजेदार जुडाव हास्य पैदा करने में सक्षम है।....बधाई।

    जवाब देंहटाएं