लघुकथा (हिंदी कहानी) : उतर जा...! - क़ैस जौनपुरी | Qais Jaunpuri Hindi Kahani Utar Ja

उतर जा...!

क़ैस जौनपुरी


मुंबई की लोकल ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पे रूकी. फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे में फ़र्स्ट क्लास वाले आदमी चढ़ गए. फ़र्स्ट क्लास वाली औरतें अपने डिब्बे में चढ़ गईं. तभी एक नंग-धड़ंग आदमी फ़र्स्ट क्लास लेडीज़ डिब्बे में चढ़ गया. वो शकल से खुश दिख रहा है. उसके दांत और आंखें अन्धेरे में चमक रही हैं. बाकि पूरा बदन उसका काला है. 
वो जैसे ही चढ़ा, औरतों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, “ये फ़र्स्ट क्लास है. ये फ़र्स्ट क्लास है. उतरो नीचे. ये फ़र्स्ट क्लास है.” मगर उसको तो जैसे कुछ फ़र्क ही नहीं पड़ रहा. वो अब भी हंस रहा है. और औरतों की आवाज़ सुनके कुछ फ़र्स्ट क्लास वाले आदमी लोग भी चिल्लाने लगे, “अरे...क्या कर रहा है? देखता नहीं वो लेडीज़ डिब्बा है?” मगर वो तो हंसे ही जा रहा है. लोग चिल्ला रहे हैं. औरतें चिल्ला रही हैं. मगर उसे कुछ फ़र्क नहीं. और वो उतरने को तैयार ही नहीं.

       और अब ट्रेन भी चल दी. मुंबई की लोकल ट्रेन कुछ सेकेण्ड्स के बाद किसी का इन्तज़ार नहीं करती. चाहे कोई नंग-धड़ंग आदमी फ़र्स्ट क्लास लेडीज़ डिब्बे में ही न चढ़ जाए. लोग चिल्लाए जा रहे हैं, “उतर...उतर जा...” 

       ट्रेन चल दी. अब वो उतर भी नहीं सकता है. एक बार को वो मुड़ा कि उतर जाए मगर ट्रेन चल दी थी. तभी एक एक फ़र्स्ट क्लास वाले भाई साहब को कुछ ज्यादा ही जोश आ गया और वो चेन खींच के ट्रेन को रोक देना चाहते थे. और उस नंग-धड़ंग आदमी को लेडीज़ डिब्बे से उतार देना चाहते थे. जिसे सब लोग थोड़ी ही देर में समझ गए कि वो पागल है. 

       उसे किसी की बात का कोई असर ही नहीं हो रहा है. लोग चिल्लाए जा रहे. औरतें चिल्लाए जा रहीं. और वो हंस रहा. तभी किसी ने कहा, “अब तो ट्रेन चल भी दी. अब उतरेगा भी तो कैसे?” और ये सुनके जो हाथ चेन खींचने ही वाले थे, पता नहीं क्या सोचके रूक गए.

       अब सबकी सांसे तेज़ हो गई हैं. वो पागल लेडीज़ डिब्बे में सफ़र कर रहा है. वो भी फ़र्स्ट क्लास में. और बिना टिकट के. उसके पास तो पहनने को कपड़े भी नहीं हैं और कपड़े नहीं हैं तो जेब भी नहीं है. और जेब ही नहीं तो टिकट का वो क्या करता? उसका काला शरीर सबको डराए जा रहा है. और वो हंस रहा है. 

       फिर वो थोड़ा सा लेडीज़ की ओर बढ़ा और औरतों ने चिल्लाना शुरू कर दिया. फ़र्स्ट क्लास के आदमी लोग फिर से खड़े हो गए. वो तो लेडीज़ और जेन्ट्स के बीच में एक दीवार है, नहीं तो इतने में जाने कितने लोग लेडीज़ डिब्बे में पहुंच चुके होते अब तक.

       तभी एक भाई साहब बोले, “पता नहीं कहां से आया है?” और ये सवाल वाकई सोचने लायक है. कहां से आया होगा वो? उमर होगी करीब पच्चीस साल. आंखें अन्दर धंसी हुई. गाल पिचके हुए. बदन पे एक भी कपड़ा नहीं. कहां से आया होगा वो? 

       फिर जब ट्रेन चल दी और अब उसके उतरने का कोई सवाल नहीं है, तब लोगों ने कहना शुरू कर दिया, “अगले स्टेशन पे उतर जाना.” और वो कहने वालों की ओर देखके ऐसे हंस रहा है, जैसे कहने वाला कोई बन्दर हो. और वो एक बच्चे की तरह कोई बन्दर देखके खुश हो रहा है. और हंस रहा है. 

       हंसते हुए उसके दांत दिखाई देते हैं. उसके दांत एकदम साफ़ हैं. बल्कि चमक रहे हैं. इससे पता चलता है कि वो कसरत से अपने दांतों को साफ़ करता रहा होगा या बहुत दिनों से उसने कुछ खाया नहीं होगा. उसकी हालत कुछ ऐसी है जैसे उसका सबकुछ अभी जल्दी ही में छिन गया है और वो कोई बड़ा सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया है और पागल हो गया है. 

       उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए. औरतें तो डर गईं कि, “पता नहीं क्या करेगा?” मगर उसने ट्रेन में खड़े होने वाले लोगों के लिए बने हैण्डिल को पकड़ लिया. ट्रेन चल रही है तो वो भी हिल रहा है. गिर न जाए इसलिए उसने हैण्डिल पकड़ लिया है. 

       अब सब फ़र्स्ट क्लास वाले आदमी और औरतें बेसब्री से इन्तज़ार कर रहे हैं कि अगला स्टेशन आए और ये बला उतरे और तब जाके सबकी जान में जान आएगी. 

       बारिश घमासान हो रही है. पूरी मुंबई में पानी भरा हुआ है. इकत्तीस जुलाई की शाम है. अन्धेरा भी गहरा चुका है. वो पागल अगले स्टेशन पे भी उतर के जाएगा कहां? उसके पास जब कपड़े नहीं हैं, तो घर भी नहीं होगा. जाहिर सी बात है. और ऊपर से ये फ़र्स्ट क्लास वाले लोग जल्दी मचाए हुए हैं कि, “उतर...उतर ये लेडीज़ डिब्बा है...फ़र्स्ट क्लास है...” 

       काला बदन. बदन पे कपड़े नहीं. नंग-धड़ंग. दिमागी तौर पे लाचार. औरतें उसे ऐसे घूर रही हैं कि, “उतर जा... नहीं तो चलती ट्रेन से बाहर फ़ेंक देंगे.” और वो है कि हंसे जा रहा है. पता नहीं किसपे हंस रहा है वो? 

       और सबकी राहत के लिए अगला स्टेशन आ गया और एक बार फ़िर सबकी आवाज़ें गूंजने लगीं, “उतर जा...स्टेशन आ गया...अगले डिब्बे में चला जा...” वो हंसते हुए इस तरह मुण्डी हिलाता है जैसे बच्चों के साथ कोई खेल खेल रहा हो और उससे मुण्डी हिलाने के लिए कहा गया हो.

       अगला स्टेशन आ गया. वो कांपते हुए कदमों से ट्रेन के पूरी तरह से रूक जाने का इन्तज़ार कर रहा है. लोग कह रहे हैं, “उतर जा...उतर जा....” और वो उतर गया. अब फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे में कोई दूसरे क्लास का आदमी नहीं है. और फिर एक सन्नाटा सा छा गया. सब जैसे मुर्दा की तरह हो गये. एक उस पागल के लेडीज़ डिब्बे में चढ़ जाने से जैसे सबके अन्दर जान आ गई थी. सबको कहने के लिए कुछ मिल गया था. सबको करने के लिए कुछ मिल गया था. एक तो चेन भी खींचने को तैयार हो गया था. उस एक पागल के आ जाने से कितनी हलचल हो गई थी. लोग खड़े हो हो के उसे देख रहे थे. उसके बदन पे कपड़े नहीं थे. और ये फ़र्स्ट क्लास के लोगों की आवाज़ को और ताकत दे रहा था...”उतर जा...उतर जा...ये फ़र्स्ट क्लास है.”

       और वो पागल हंसते-हंसते उतर गया. किसपे हंस रहा था वो? उसका कौन सा क्लास है...???


क़ैस जौनपुरी
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