खाप की खाट / Guddu Rangeela Review


गुड्डू रंगीला / फिल्म समीक्षा Guddu Rangeela / Review खाप की खाट ~ दिव्यचक्षु निर्देशक-सुभाष कपूर कलाकार- अरशद वारसी. अमित साध, अदिति राव हिदारी, रोनित राय

गुड्डू रंगीला / फिल्म समीक्षा

Guddu Rangeela / Review

खाप की खाट ~ दिव्यचक्षु

निर्देशक-सुभाष कपूर
कलाकार- अरशद वारसी. अमित साध, अदिति राव हिदारी, रोनित राय


`फंस गए रे ओबामा’ और `जॉली एलएलबी’ के निर्देशक सुभाष कपूर की नई फिल्म `गुड्डू रंगीला’ खाप पंचायतों की खाट खड़ी करने के लिए बनाई गई फिल्म है। पिछले कुछ बरसों में खाप पंचायतें अपनी औरत विरोधी और जातिवादी हरकतों की वजहों से ज्यादा चर्चा में रही हैं और निर्देशक ने इसी को निशाने पर रखा है। फिल्म में गुड्डू (अमित साध) और रंगीला (अरशद वारसी) नाम के दो कलाकार हैं। गुडडू चुटकुले सुनाता है और रंगीला गाता है और दोनों गावों और कस्बों में अपने कार्यक्रम देते रहते हैं। पर दोनों एक और काम करते हैं। मुखबिरी का। पुलिस के लिए नहीं बल्कि अपराधियों के लिए। दोनों जिसके यहां गाने बजाने का कार्यक्रम करते हैं उसके यहां की धन की थाह लेते हैं और दूसरे दिन डकैतों को बता देते हैं कि किसके यहां कितना माल पड़ा है। लेकिन एक मामले में दोनों ऐसे फंसते हैं कि जान बचाने के लाले पड़ जाते हैं और इसी के साथ शुरू होती है खाप पंचायतों का आतंक जिसमें लड़कियों की हत्या इसलिए की जाती है कि वो दूसरी जाति के लड़के से शादी कर बैठी या प्रेम करने लगी।

वैसे तो फिल्म के केंद्र में अरशद वारसी हैं लेकिन दरअसल ये फिल्म टिकी हुई है रोनित राय पर जिसने बिल्लू पहलवान की वो भूमिका निभाई है जो विधायक भी है और अपनी जाति की उन लड़कियों की हत्या करता है जो दूसरी जाति के लड़के  से इश्क कर बैठी। रोनित के अंदाज, चालढाल और बोली में ठसक है और हर दृश्य में उनकी मौजूदगी दूसरों पर भारी पड़ती है चाहे वे अरशद वारसी ही क्यों हों। बल्कि अरशद हर दृश्य में रोनित के सामने दबे दबे लगे। बिल्लू के रूप में रोनित उस दबंग की तरह दिखते हैं जो आम तौर पर गावों और कस्बों में पाये जाते हैं और बोली- बानी से ज्यादा गोली-बंदूक से बात करते है।  निर्देशक ने जितना रोनित पर काम किया उतना न तो अरशद वारसी के चरित्र पर किया और न अदिति राव हिदारी के ऊपर। अदिति ने बेबी नाम की  एक ऐसी लड़की की भूमिका निभाई है जो खुद को अगवा कराती है ताकि बिल्लू से बदला ले सके। लेकिन बेबी का किरदार इतना चुप्पा  है कि शुरू से आखिर तक कोने में पड़ा रहता है। ये पटकथा की कमजोरी है। यही  नहीं बेबी के चरित्र के माध्यम से निर्देशक अपने घोषित मकसद  से उल्टा काम करता है। फिल्म एक तरफ खाप की दुनिया में औऱतों की दर्दनाक सामाजिक स्थिति को सामने लाने का प्रयास करती है तो दूसरी तरफ अमित साध और अदिति राव हिदारी के बीच जो संवाद होते हैं उसका मिजाज नारीविरोधी   है नारीवादी नहीं।

फिल्म को बचाती है (जहां तक बचा सकी है) उसमें निहित हास्य और मजाक। एक दृश्य में एक पुलिसवाले और गुड्डू के बीच गानों की जो अंत्य़ाक्षरी है वो  लोटपोट कर देती है।  इसी तरह  फिल्म का पहला गाना (जो विवाद में भी आ गया है) `माता का इमेल आया है’ भी हंसानेवाला है। गुड्डू के चुटुकुले भी आपको `हा हा हा’ करवाएंगे।


००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ