'हंस' संपादकीय दिसंबर 2015



अपनी अपराधिक हद की मूर्खतापूर्ण हरकतों से अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सहित पश्चिमी शक्तियों ने दुनिया का जीना हराम कर डाला है

-  संजय सहाय

विश्वभर के मुस्लिम समुदाय के लगभग नब्बे फीसदी सुन्नी मुसलमानों का सिर्फ 0.003 प्रतिशत हिस्सा ही सलाफ़ी/वहाबी अतिवाद में सक्रिय है फिर भी हर आतंकी घटना के बाद विश्वभर के मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे उस पर सफाई देते फिरें! 



एशिया और अफ्रीका के लाखों लोगों के कातिल अपने हरे–भरे मुल्कों में शायद अपने खूबसूरत परिधानों और अपनी परिष्कृत तहजीब के कारण कुछ अतिरिक्त मानव लगने लगते हैं :  संजय सहाय

13 नवंबर 2015 को पेरिस में हुए सिलसिलेवार आतंकी हमले में एक सौ उनतीस लोगों ने अपनी जान गंवा दी, तीन सौ से अधिक घायल हुए. सात आतंकवादी भी मारे गए. इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आइसिस) ने इस घटना की जिम्मेदारी ली है. निरीह जनों की हत्या चाहे फ्रांस में हो, नाइजीरिया में हो, सीरिया या लेबनान में हो, फिलिस्तीन में या अफगानिस्तान में हो, अमेरिका, इराक या हिंदुस्तान में हो—पाशविक है, दुखद है, निंदनीय है और दंडनीय भी. किंतु एशिया और अफ्रीका के लाखों लोगों के कातिल अपने हरे–भरे मुल्कों में शायद अपने खूबसूरत परिधानों और अपनी परिष्कृत तहजीब के कारण कुछ अतिरिक्त मानव लगने लगते हैं. जाहिर है उनकी मौतें बड़ी खबर बनती हैं और उस पर लोगों को कुछ ज्यादा ही गहरा सदमा पहुंचता है—जैसा कि राजघराने के सदस्यों की मृत्यु पर रिआया को पहुंचना चाहिए! आखिर उजड्ड किस्म के उत्पाती हिंसक लोगों में और अति उदारवादी, मानवीय मूल्यों की रक्षक और समानता में विश्वास रखने वाली कौमों के बीच कुछ तो अंतर होगा ही! किंतु एक छोटे से अंधड़ से ही उनका मुखौटा दरकने लगता है और भीतर से वही हिंसक पशु दांत–नख काढ़े बाहर निकल आता है जिसके बारे में वे अभी–अभी व्यंग्य से कोई ओछी सी टिप्पणी दे रहे थे और अपनी नैतिक महानता की स्थापना कर रहे थे. 



 ‘‘....या तो तुम हमारे साथ हो या फिर हमारे खिलाफ...’’—जॉर्ज बुश जूनियर, सितंबर 2001 

 ‘‘...इस युद्ध में दया की गुंजाइश नहीं होगी...’’— फ्रांसुआ ओलांदे, नवंबर 2015 


Serena Shim
सालभर पहले 19 अक्तूबर 2014 के दिन एक सड़क हादसे का जामा पहनाकर लेबनानी मूल की अमेरिकी पत्रकार सेरेना शिम (Serena Shim) की टर्की में हत्या कर दी गई. सेरेना ने एक दिन पहले ही आइसिस को टर्की सहित अन्य पश्चिमी देशों से मिल रही मदद का पर्दाफाश किया था और वह इस संबंध में पुख्ता सबूत जुटा रही थी. उसकी हत्या पर व्हाइट हाउस की रहस्यमय चुप्पी स्तब्ध कर देने वाली थी. उधर आतंकियों से सांठ–गांठ के आरोप में स्वीडिश नागरिक बेरलिन गिल्डो पर लंदन के ओल्ड बेली कोर्ट में चल रहा मुकदमा तब औंधे मुंह जा गिरा जब ये तथ्य सामने आ गए कि ब्रिटिश इंटेलिजेंस भी उसी अतिवादी समूह की मदद कर रहा था जिसकी मदद करने का आरोप बेरलिन गिल्डो पर था. 1 जून 2015 को अभियोग पक्ष ने आनन-फानन में मुकदमा वापस ले लिया. गिल्डो और ब्रिटिश इंटेलिजेंस दोनों ही सीरिया में अलकायदा का प्रतिनिधित्व करने वाले जबहत–अल–नुसरा की सहायता कर रहे थे जिसका हाल–फिलहाल तक आइसिस एक अभिन्न हिस्सा हुआ करता था. बहरहाल, ये दोनों घटनाएं अनेक ऐसी घटनाओं की तरह छिपा–भुला दी जातीं अगर आइसिस ने पेरिस में इस बड़ी आतंकी घटना को अंजाम न दिया होता. अब बड़ी मात्रा में साक्ष्य उपलब्ध होने लगे हैं कि सीरिया में बशर–अल–असद की सरकार के खिलाफ पश्चिमी देशों ने जमकर हथियारबंद विरोधियों को मदद पहुंचाई है. ये विरोधी अतिरूढ़िवादी कट्टर सलाफ़ी/वहाबी सुन्नी इस्लाम के अनुयायी हैं और आइसिस उनका हिस्सा है. 2010 में ट्युनीशिया से आरंभ हुए ‘अरब वसंत’ विद्रोह—जिसमें इजिप्ट, लीबिया, यमन सहित अनेक देशों में सत्तापलट की घटनाएं घटी थीं—उसने भी ऐसी ज़मीन तैयार की जिसमें आइसिस जैसे संगठन को पनपने का मौका मिला  




फ्रांस में हुई घटना के उपरांत ओबामा प्रशासन को भी कांख–कूंखकर स्वीकार करना पड़ा है कि आइसिस के उदय में बुश सरकार की नीतियों और इराक में छोड़े गए सत्ता शून्य तथा फेंक दिए गए अमेरिकी हथियारों का बड़ा हाथ रहा है. हालांकि यह भी एक चतुराई भरी स्वीकारोक्ति है. ईमानदारी तब होती जब आइसिस की वर्तमान स्थिति में अपने प्रशासन की भूमिका का भी वे खुलासा करते—खासकर तब जब उनके और पूर्व प्रशासन के लोग भी आइसिस को दिए गए हथियारों और सैन्य प्रशिक्षण में पश्चिम की भूमिका का चिट्ठा खोलने लगे हैं 

वही कहानी बार–बार दोहराई जा रही है. सोवियत संघ की मूंछे मरोड़ने के लिए अफगानिस्तान में मुजाहिदीन को सीने से लगाते हैं बदले में तालिबान मिलता है! बिन–लादेन की आरती उतारते हैं—अलकायदा उछल आता है. सामूहिक नरसंहार के हथियारों का हौवा खड़ा कर इराक को नेस्तनाबूद करते हैं, लीबिया और सीरिया को तबाह करते हैं—आइसिस पैदा हो जाता है– अपनी अपराधिक हद की मूर्खतापूर्ण हरकतों से अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सहित पश्चिमी शक्तियों ने दुनिया का जीना हराम कर डाला है! और यह सारा कुछ असीमित लोभ, बचकानी कूटनीति के कारण और ज़ियानिस्ट राज्य की रक्षा तथा सऊदी राजघराने के तुष्टीकरण के लिए हुआ है 




wahabi cartoon
पहली सहस्त्राब्दी के अंत में उपजी सुन्नी इस्लाम की अति कट्टरवादी सलाफ़ी धारा और 18वीं सदी में जन्मी अतिवादी वहाबी धारा सऊदी राजशाही का राज्य-पोषित अधिकृत धर्म है और यही इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया...या इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत(जिसमें साइप्रस, मिस्र, इराक, इजरायल, जॉर्डन, लेबनान, फिलिस्तीन, सीरिया और टर्की तमाम भूखंड शामिल हैं) या दाईश—जो भी नाम दे लें उनकी भी संचालक शक्ति का स्रोत है. कोई ताज्जुब नहीं कि इतने बड़े पैमाने पर उन्हें धन और साधन प्राप्त हो रहे हैं. अब तो सऊदी अरब, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इजरायल, टर्की और कतर के साथ–साथ जी–20 के कुछ देशों (जिसका भारत भी एक सदस्य है) के नाम भी उछलने लगे हैं. अलकायदा, आइसिस, नाइजीरिया का बोकोहरम, शहाब आदि सब उन्मादी सलाफ़ी/वहाबी सुन्नी धड़े हैं और पिछले अनेक वर्षों से इन्हें सऊदी अरब की राजशाही का संरक्षण प्राप्त है. मज़ेदार बात यह है कि विश्वभर के मुस्लिम समुदाय के लगभग नब्बे फीसदी सुन्नी मुसलमानों का सिर्फ 0.003 प्रतिशत हिस्सा ही सलाफ़ी/वहाबी अतिवाद में सक्रिय है फिर भी हर आतंकी घटना के बाद विश्वभर के मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे उस पर सफाई देते फिरें! 
हंस
जनचेतना का प्रगतिशील कथा–मासिक
Hans december 2015 cover

मूल संस्थापक : प्रेमचंद : 1930
पुनर्संस्थापक : राजेन्द्र यादव : 1986
पूर्णांक–350 वर्ष: 30 अंक: 05 दिसंबर 2015
आवरण चित्र : बंशीलाल परमार

संपादक: संजय सहाय
संपादन सहयोग (अवैतनिक): बलवंत कौर / विभास वर्मा
प्रबंध निदेशक : रचना यादव
मूल्य : 40 रु., वार्षिक : 400 रुपए
संस्था और पुस्तकालय : 600 रुपए
आजीवन : 10,000 रुपए

विदेशों में : 70 डॉलर

इस अंक में
संपादकीय : कितने भस्मासुर और ? : संजय सहाय
अपना मोर्चा
कहानियां
इनबॉक्स में रानी सारंगा—धइले मरदवा
के भेस हो : संजीव चंदन
चचेरी : दीपक शर्मा
कल और कल के बीच : मृदुला बिहारी
सामंतों के शहर की राजकुमारी :
केदारप्रसाद मीणा
अदीब का खत : गुलाम गौश अंसारी
थैंक्स ए लॉट पुत्तरा! : केसरा राम
(पंजाबी कहानी), अनु– भरत ओला
कविताएं
चंदन, कमलजीत चैधरी
ख़रामा–ख़रामा
चुप्पियों के साथ एक संवाद :संजीव कुमार
संस्मरण
तमाशा–ए–अहले करम देखते हैं :ज्ञानप्रकाश विवेक
बीच बहस में
विविध सम्मान और लेखक–कलाकार:अजित कुमार
साहित्य का अघोषित आपातकाल और मोदी की खतरनाक चुप्पी के बीच :अरविंद कुमार सिंह
सरकारी लेखक और असरकारी लेखक : विनोद साव
अच्छे दिनों की बात : कौशलेन्द्र प्रताप यादव
घुसपैठिये
अंधेरा : गौरव कुमार
भारतीय मुस्लिम नवजागरण
मुस्लिम नवजागरण की महानेत्री बी अम्मा : कर्मेन्दु शिशिर
लघुकथा
भरत तिवारी, आशा खत्री ‘लता’
ग़ज़ल :ज़हीर कुरेशी
परख
लोकस्मृति में मीरांबाई की छवियां : मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
निर्दोष होने से बड़ा कोई दोष नहीं : सौरभ शेखर
अधूरे जीवन का पूरा कोलाज़ : अकबर रिज़वी
सितारों की दास्तान : बॉलीवुड सेल्फी : मीनू मंजरी
शब्दवेधी/शब्दभेदी
यह बम नहीं है : तसलीमा नसरीन
रेतघड़ी
सृजन परिक्रमा
विशेषांकों का इंद्रधनुषी संसार : दिनेश कुमार

दूसरी तरफ इरान समर्थित हेज़बोला एक शिया अतिवादी संगठन है जो लेबनान में स्थित है. हेज़बोला का गठन 1982 में इजरायल द्वारा लेबनान पर हमले के उपरांत हुआ था. हेज़बोला सीरियाई गृहयुद्ध में ‘विपक्ष’ के खिलाफ लड़ रहा है. उसका मानना है कि सीरियाई विपक्ष राष्ट्रपति असद का तख्तापलट करने के लिए इजरायलियों और वहाबियों का एक संयुक्त षड्यंत्र है. जो तथ्य अब सामने आ रहे हैं उससे इस अवधारणा की पुष्टि होती हैफिर भी हेज़बोला पर आंखें बंद कर भरोसा करना नादानी होगी और असद के मानवाधिकार हनन के मामलों पर आंखें खुली रखना बुद्धिमानी! 

 सीरियाई राष्ट्रपति बशर–अल–असद के विरूद्ध खड़ा अमेरिका और फ्रांस सहित उसके मित्र राष्ट्र मिला–जुलाकर अलकायदा और आइसिस की ही मदद कर रहे थे. उनकी समझ में सीरिया में चल रहा यह युद्ध दरअसल रूस का ही पर्द–युद्ध है जिसे इरान और हेज़बोला का समर्थन मिल रहा है. फ्रांस की घटना के बाद स्थितियां बदलने लगी हैं और अमेरिका भी आइसिस के खिलाफ युद्ध में रूस के साथ–साथ लड़ने को तैयार दिख रहा है. हालांकि आदत से लाचार वह आइसिस को हराने के क्रम में और कितने भस्मासुर पैदा कर डालेगा कहना मुश्किल है. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांदे ने भी 16 नवंबर को घोषणा कर दी है कि फ्रांस का दुश्मन असद नहीं है—फ्रांस का दुश्मन आइसिस है. यह कहना राष्ट्रपति की मजबूरी भी है चूंकि यदि वे जल्द ही ठोस कार्रवाई नहीं करते तो अगले चुनाव में नव फासीवादी ‘फ्रंट नेशनल’ पार्टी को नरम संयमित मुखौटे वाली नेता मरीन ले पेन के सहारे सत्ता में पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा 

 बड़ी समस्या यह है कि हथियारबंद सीरियाई विपक्ष में अनेक घटक हैं — आइसिस, जबहत–अल–नुसरा(अलकायदा), आर्मी ऑफ मुजाहिदीन सहित दर्जनभर इस्लामी अतिवादी संगठन वहां पर बैठे हैं और इन सबके पश्चिमी धर्म–पिताओं को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं रूस इस संयुक्त अभियान में उनके किसी ‘अपने आतंकवादी’ पर बमबारी न कर बैठे. पेरिस ने सबको साथ मिलने पर बाध्य तो कर दिया है पर यह मेल कब तक कायम रहता है समय ही बताएगा. हां, इस बीच पश्चिम और चीन के हथियार निर्माताओं की चांदी हो रखी है और सट्टा बाजार में उनके शेयर उछाल मार रहे हैं 

अफ्रीका, मध्य–पूर्व एशिया, पश्चिमी जगत और इजरायल के बनते–बिगड़ते समीकरणों, कूटनीतिक पेचीदगियों और जटिल अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बीच एक बड़ा प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है. विश्व भर में एक सार्वभौमिक नियम है कि हत्या के लिए हथियार उपलब्ध कराने वाला, प्रशिक्षण और साधन प्रदान करने वाला भी बराबर का दोषी होता है. आइसिस को तो उसके किए की सज़ा मिलने जा रही है किंतु पश्चिम के इन प्रभुओं को, सऊदी राजशाही को, कतर, तुर्की और इजरायल को उनके किए की सज़ा कब मिलेगी ? यह बड़ा सवाल है.  


  • बिहार के चुनावी नतीजे धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों में मुल्क की आस्था का प्रमाण हैं. बिहार ने तय कर दिया है कि जुमलेबाजी से और धार्मिक/जातिगत उन्माद जगाकर चुनाव नहीं जीते जा सकते. महागठबंधन की जीत में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, अगड़ों—सबका साथ रहा है. सबसे बड़ा समर्थन तो महिलाओं का मिला है जिन्होंने थोक भाव से महागठबंधन को वोट डाले. यदि इस आस्था को कायम रखना है तो अहंकार, परिवारवाद और निजी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगानी पड़ेगी. लोभों से हर कीमत पर बचना होगा. राज्य के प्रति समर्पित हो विकास की राह धरनी होगी. सौहार्द्र बनाए रखना होगा. जंगलराज की शंकाओं को सुशासन से ही दफनाया जा सकता है. यदि इन सब पर खरे न उतरे तो ध्यान रहे—फासीवादी ताकतों की प्रतिशोध के साथ वापसी होगी.  
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sampadak@shabdankan.com

  • इस अंक में गुलाम गौश अंसारी की कहानी ‘अदीब का ख़त’ हमें कुछ अर्सा पहले प्राप्त और स्वीकृत हुई थी. हम उनसे संपर्क साधने का लगातार असफल प्रयास कर रहे हैं. यदि गुलाम गौश जी स्वयं या उनके बारे में जानकारी रखने वाले मित्र या शत्रु हमसे संपर्क करा सकें तो कृपा होगी 

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