सोशल मीडिया : यौन उत्पीड़न का नया अड्डा @BDUTT @kavita_krishnan @priyankac19


आप फ्री सेक्स की पैरोकार हैं, आपके साथ फ्री सेक्स किया जाए 

कृष्णकांत (तहलका) की ज़रूरी रिपोर्ट .... 

Tehelka report on how even empowered women are getting abused on social media for sharing their views
Barkha Dutt | Photo (c) Bharat Tiwari

Tehelka report on how even empowered women are getting abused on social media for sharing their views

सोशल मीडिया : यौन उत्पीड़न का नया अड्डा — कृष्णकांत

सोशल मीडिया पर अक्सर किसी महिला पत्रकार या नेता को विरोधस्वरूप हजारों की संख्या में गालियां दी जाती हैं. बरखा दत्त, सागरिका घोष, राना अयूब, कविता कृष्णन, अलका लांबा, स्मृति ईरानी, अंगूरलता डेका, यशोदा बेन आदि महिलाएं इस अभद्रता की भुक्तभोगी हैं. जो लोग किसी की बात-विचार या व्यक्तित्व को नापसंद करते हैं तो वे लोग इसका विरोध गंदी गालियों या चरित्र-हनन के रूप में करते हैं. हाल ही में बरखा दत्त के नाम के साथ गाली जोड़कर ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड कराया गया और यह पहली बार नहीं था.

केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह के बयान से चर्चा में आया ‘प्रेस्टीट्यूट’ शब्द का किसी भी महिला पत्रकार के लिए इस्तेमाल आम है. सागरिका घोष और उनकी बेटी का बलात्कार करने की धमकी दी गई. हाल ही में फेसबुक पर कविता कृष्णन ने कथित ‘फ्री सेक्स’ के बारे में विचार रखे तो उनके खिलाफ एक वरिष्ठ पत्रकार ने अभद्र टिप्पणी की. असम में नवनिर्वाचित भाजपा विधायक अंगूरलता डेका की फोटो शेयर करके अपमानजनक टिप्पणियां की गईं. अदाकारा अंगूरलता की इंटरनेट पर मौजूद उनकी एक्टिंग या मॉडलिंग से जुड़ी तस्वीरों को उनके चरित्र से जोड़कर पेश किया गया. राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली दमदार अभिनेत्री कंगना रनाैत भी सोशल मीडिया पर होने वाली अभद्रता का शिकार हुईं. ऋतिक रोशन के साथ विवाद, पासपोर्ट पर उम्र विवाद जैसी वजहों को लेकर कंगना पर विवाद छिड़ हुआ था. कुछ उनके पक्ष में लिख रहे थे, कुछ विपक्ष में. राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के बाद कंगना के खिलाफ ट्विटर पर कैरेक्टरलेस कंगना, फेक फेमिनिज्म जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे. 17 से 19 मई तक फेक फेमिनिस्ट कंगना हैशटैग ट्रेंड करता रहा. इसके बाद 19 मई को एक बार फिर क्वीन ऑफ लाइफ हैशटैग ट्रेंड हुआ.


भाजपा समर्थक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे कहा, आप आइए इंडिया गेट पर, आप फ्री सेक्स की पैरोकार हैं, आपके साथ फ्री सेक्स किया जाए 

इस बारे में कविता कृष्णन कहती हैं, ‘आॅनलाइन तो यह हो ही रहा है, लेकिन ऐसे भी नेता हैं जो मीडिया के जरिए सीधे तौर पर यही व्यवहार करते हैं. उदाहरण के तौर पर, फ्री सेक्स के नाम पर जेएनयू, जादवपुर विश्वविद्यालय और मेरे जैसे कार्यकर्ताओं को हजारों हजार गालियां पड़ती हैं. वही बात सुब्रमण्यम स्वामी टेलीविजन चैनल पर मुझसे कर लेते हैं. एंकर कुछ नहीं बोलते. बंगाल भाजपा नेता दिलीप घोष ने जादवपुर की लड़कियों को कहा कि आपके साथ तो कोई यौन उत्पीड़न करेगा ही क्योंकि आप बेहया हैं. वह यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा. मैंने कहा कि यह फ्री सेक्स कोई चीज नहीं होती. या तो सेक्स है या तो बलात्कार है. फ्री है तो मर्जी से ही है. फ्रीडम से क्यों डर रहे हैं. लेकिन यह कहने के बाद भाजपा समर्थक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे कहा, आप आइए इंडिया गेट पर, आप फ्री सेक्स की पैरोकार हैं, आपके साथ फ्री सेक्स किया जाए. इश्यू तो यौन उत्पीड़न है, लेकिन इश्यू बना दिया गया फ्री सेक्स को, जिसके लिए गाली दी जा रही है. मैंने जिस इंडिया गेट पर महिलाओं के आंदोलन का नेतृत्व किया, जब मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं तो आम महिलाओं के साथ क्या करते होंगे?’

भाजपा समर्थक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे कहा, आप आइए इंडिया गेट पर, आप फ्री सेक्स की पैरोकार हैं, आपके साथ फ्री सेक्स किया जाए


किसी भी मसले पर महिलाओं के चरित्र हनन की कोशिश समाज में आम है. लेकिन कविता कृष्णन कहती हैं, ‘समाज तो जैसा है वैसा है ही, लेकिन चिंता की बात ये है कि जो राजनीतिक गोलबंदी के तहत हो रहा है उसे आप समाज के कंधे पर नहीं धकेल सकते. अगर ये प्लान के तहत हो रहा है तो उसका आयोजक कौन है? ऐसा करने वालों का आत्मविश्वास यहां से आ रहा है कि प्रियंका चतुर्वेदी को बलात्कार की धमकी मिलती है तो भाजपा की मंत्री (स्मृति ईरानी) कह देती हैं कि तुम लोग तो अभी-अभी असम में हारे हो. तुम क्या शिकायत करोगी? सत्ता में जो लोग बैठे हैं, वो गोलबंदी के तहत ऐसा करा रहे हैं तो यह गंभीर मामला है. केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली कह रहे हैं कि इसके साथ जीना होगा.’

आपके साथ बलात्कार करके निर्भया की तरह क्रूरता से आपकी हत्या करनी चाहिए


हाल ही में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर ऑनलाइन अभद्रता की शिकार होने वाली महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए कदम उठाने की बात कही है. मेनका गांधी ने कहा, ‘महिलाओं को कई बार इंटरनेट पर क्रूरता का सामना करना पड़ता है. पहले इंटरनेट प्रदाता हमसे इस बाबत बात करने को तैयार नहीं थे लेकिन बाद में उन्होंने संबंधित विस्तृत जानकारी देने की बात मान ली.’ गांधी ने गृह मंत्रालय से कहा है कि सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ होने वाले बर्ताव को लेकर संहिता बनाई जाए.

हालांकि, पत्रकार प्रणव राय को दिए एक इंटरव्यू में केंद्रीय वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ‘आॅनलाइन गाली देने वालों का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसा लोग निजी स्तर पर करते हैं. मैं नहीं समझता इस पर किसी तरह की सेंसरशिप संभव है. मेरे ख्याल से हमें इसके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए. हमें उनको नजरअंदाज करना सीखना है, हमें उनको बर्दाश्त करना सीखना है, हमारी रणनीति हमें निर्धारित करनी है.’


कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को ट्विटर पर एक व्यक्ति ने कहा, ‘आपके साथ बलात्कार करके निर्भया की तरह क्रूरता से आपकी हत्या करनी चाहिए. आप राहुल गांधी की लिव इन पार्टनर क्यों नहीं बन जातीं…’ इस पर प्रियंका चतुर्वेदी ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को टैग करके कहा, ‘उनके पास तो जेड सिक्योरिटी है, लेकिन मैं बलात्कार और हत्या की धमकियां झेल रही हूं.’ इस पर स्मृति ईरानी और प्रियंका चतुर्वेदी में ट्विटर वॉर भी हुआ.

प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, ‘यह ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. लग रहा था कि 2014 के चुनाव के बाद कम होगा. जो पार्टी सत्ता में आने की कोशिश कर रही थी, सोशल मीडिया जैसे माध्यमों पर ज्यादातर लोग इनके समर्थक थे. लग रहा था कि शायद सरकार बनने के बाद यह खत्म होगा, लेकिन यह बढ़ता ही जा रहा है. सारा संवाद जो ट्विटर पर होता है, वही अब चैनल पर होने लगा है. इससे सोशल मीडिया के ट्रॉल्स को और प्रोत्साहन मिलता है. वे देखते हैं कि किसी तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. केंद्रीय मंत्री आकर कह देते हैं कि हमें उनके साथ ही रहना है. इससे उनको और प्रोत्साहन मिलता है. यह ट्रेंड खत्म होते नहीं देख रही हूं. अगर सभी दल मिलकर राजनीति से ऊपर उठकर इसका निदान ढूंढ़ पाते हैं, अगर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री यह कहते कि हमें देखना है कि क्यों इस तरह से भाषा का स्तर गिर रहा है, क्यों बहसें नहीं हो पा रही हैं, हम इस पर ध्यान देंगे. लेकिन उन्होंने इसे नकार दिया. तो मैं तो इसे उनके लिए प्रोत्साहन ही समझूंगी जो ऐसी हरकतें करते हैं.’


प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, ‘हम तो 2014 से बोल रहे हैं कि भाषा का स्तर गिरता जा रहा है. महिलाओं पर अभद्र टिप्पणियां की जाती हैं. उनके साथ गाली-गलौज की जाती है. चरित्र हनन होता है. इस पर नियंत्रण जरूरी है. अब अगर सरकार निर्लज्ज-सी हो गई है, उनको लगता है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. हम इस मुद्दे को आगे भी उठाते रहेंगे. ऐसे प्लेटफाॅर्म पर भारत के संदर्भ में अलग से गाइडलाइन होनी चाहिए.’

सवाल उठता है कि अगर कोई व्यक्ति जिसकी पहचान हो जाती है, तब भी उस पर कार्रवाई क्यों नहीं होती.’


सोशल मीडिया पर काफी अभद्रता और गाली-गलौज का सामना कर चुकीं आम आदमी पार्टी की नेता अलका लांबा कहती हैं, ‘यह ट्रेंड बहुत पुराना नहीं है. यह पिछले दो सालों से हो रहा है. इस बारे में मैंने साइबर क्राइम ब्रांच में करीब 40 एफआईआर करवाई हैं. मैंने स्क्रीन शॉट, फोटो सब दिए. इसे करीब दो साल होने जा रहा है, लेकिन साइबर क्राइम इस बारे में कार्रवाई करने में नाकाम रहा है. साइबर क्राइम ने हाथ खड़े कर दिए कि हम कुछ नहीं कर सकते. दो साल में चार्जशीट भी फाइल नहीं हुई. इससे लोगों के हौसले बढ़े हैं. कैसे ऐसे लोगों की पहचान की जो प्रधानमंत्री मोदी के लंच में शामिल हैं, उनसे हाथ मिलाते हुए फोटो है, वही लोग सोशल मीडिया पर गाली-गलौज कर रहे थे. उनकी पहचान होने के बाद भी भाजपा द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई न करना यह साबित करता है कि उन्हें खुली छूट दे दी गई है. हमारे फर्जी अकाउंट बनाकर भी ट्वीट किए गए. हमें बदनाम करने की कोशिश की गई. हमारे खिलाफ फैलाया गया कि मैं रैकेट चलाती हूं. ऐसे लोग हजारों की संख्या में हैं. सवाल उठता है कि अगर कोई व्यक्ति जिसकी पहचान हो जाती है, तब भी उस पर कार्रवाई क्यों नहीं होती.’

इंटरनेट पर इस तरह के तत्व मौजूद हैं और हर महिला ऐसे बुरे अनुभव झेल चुकी है. पत्रकार सर्वप्रिया सांगवान कहती हैं, ‘औरतों को टारगेट करना बहुत आसान होता है. मेरे लिए किसी ने इसी तरह कमेंट किया तो मेरे पिता ने मुझे ही टोका कि तुम क्यों लिखती हो. आप किसी पुरुष के चरित्र पर बात करते हो तो फर्क नहीं पड़ता, लेकिन औरत के चरित्र पर उंगली उठा दो तो वह चुप हो जाएगी, डर जाएगी. रवीश कुमार के साथ भी गाली-गलौज होती है तो उनकी मां या बहन को गाली दी जाती है, उनकी पत्नी के लिए अपशब्द इस्तेमाल किया जाता है. महिला पत्रकारों को गालियां मिलती हैं, उनकी पत्रकारिता पर सवाल नहीं होते, उनके चरित्र पर सवाल होते हैं. इसने दो शादी की, उसने तीन शादी की, वह शराब पीती है. जबकि राजनीति पर लिखने वाली लड़कियां बहुत कम हैं. क्योंकि राजनीति पर बात करना बहुत कठिन है. हमारी परवरिश ऐसी है, कंडीशनिंग ऐसी है कि हम पर इस तरह हमले होते हैं तो हम बस चुप हो जाते हैं. दूसरी बात, नेता चैनल पर बैठकर भी अभद्रता कर जाते हैं तो कुछ नहीं होता. ऐसे में छिपी हुई पहचान और फेक आईडी पर कार्रवाई होनी तो और भी मुश्किल है. सब लोग इसके खिलाफ बोलेंगे तो शायद इस पर रोक लगे.’


पत्रकार आशिमा का मानना है, ‘यह कोई अनोखी बात नहीं है. महान राजनेता बयान देते हैं कि हम हेमा मालिनी के गाल जैसी सड़क बनवाना चाहते हैं. हमारे समाज की संरचना में ये चीजें मौजूद हैं कि यह महिलाओं के प्रति अपमानजनक रवैया अपनाता है. हमें एक काउंटर समाज तैयार करना चाहिए. इसके खिलाफ भी लोग बोल रहे हैं. ऐसे लोग बढ़ेंगे तो यह व्यवहार कम होगा.’

Krishna Kant कृष्णकांत
Krishna Kant

साहित्यकार सुजाता तेवतिया कहती हैं, ‘आभासी दुनिया इसी दुनिया का हिस्सा है. स्त्री के लिए जितना विरोध और घृणा बाहर है उतनी ही यहां भी. फ्री सेक्स का ही मामला नहीं है औरत के लिए फ्री स्पीच और फ्री थिंकिंग को भी बर्दाश्त नहीं करता मर्दवादी समाज. स्त्री-देह पर प्रीमियम अपने आप साबित होता है जब आप सेक्स शब्द बोलते हुए भी स्त्री को बर्दाश्त नहीं कर सकते. भीड़ का हिस्सा होते ही कोई एक पत्थर उस औरत की तरफ मारने को उतावला है जो निडर, बेखौफ होकर अपनी बात सामने रख सकती है. विवेकशील और तार्किक होना स्त्री की बनावट के साथ नहीं जाता.’

सुजाता कहती हैं, ‘टेक्नीकली, यह हतोत्सहित करने का मामला है. स्पेस पर पहला दावा पुरुषवादी सत्ता अपना मानती है, आभासी स्पेस में भी स्त्री को औकात में रखने की कोशिशें होती हैं. भाषा पुराना हथियार रही है स्त्री के खिलाफ. वही स्त्री की भी ताकत है अब. भीड़ का हिस्सा होकर जितना आसान लगता है एक पत्थर औरत की तरफ फेंक देना वैसा है नहीं… सोशल मीडिया के पास अपनी तरह से निपटने के तरीके हैं. समाज आभासी ही सही… सिर्फ साक्षर नहीं पढ़ा-लिखा, यहां मौजूद है इसलिए ‘नेम एेंड शेम’ के जरिए, स्क्रीन शॉट्स लगाकर, स्त्री-विरोधी भाषाई व्यवहार के लिए पब्लिकली शर्मिंदा करना ज्यादा कारगर तरीके साबित होते हैं.’

स्त्रियां इन तरीकों से भले ही यौन हमलों से निपट लें, या बर्दाश्त कर लें, लेकिन फिलहाल सरकार या कोई राजनीतिक पार्टी इस असामाजिक प्रवृत्ति पर रोक लगाने की पहल करती नहीं दिख रही है. इंटरनेट पर सूचनाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन क्या सामाजिक और भाषाई रूप से अभद्र, आक्रामक और महिला विरोधी होते जा रहे समाज पर भी नियंत्रण नामुमकिन है?
तहलका से साभार 
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