जाकिर नाइक, 50 करोड़ मुस्लिम मस्तिष्कों पर यह हमला हो रहा है — शेखर गुप्ता @ShekharGupta #ZakirNaik



आप इस परिदृश्य से कैसे निपटेंगे जहां युवा, शिक्षित मुस्लिम पेशेवर गूगल की शरण में और आधुनिक टीवी प्रचारकों की शरण में जाकर अपने धर्म के बारे में जानते हैं? 

हालांकि उनका तरीका बिना जोखिम भरा नजर आता है लेकिन वह खतरनाक हैं क्योंकि वह कौतूहल भरे, मासूम दिमाग लोगों के साथ खेलने की क्षमता रखते हैं।

— शेखर गुप्ता





जाकिर नाइक एक सौम्य, रॉकस्टारनुमा मत प्रचारक हैं जो टेलीविजन पर प्रचार कार्य करते हैं। लेकिन वह इन मायनों में खतरनाक हैं कि मुस्लिम युवा, इस्लाम की उनकी कट्टरपंथी व्याख्या, उत्पीड़न के शिकार होने और चरमपंथ को उचित ठहराने की उनकी कोशिश से प्रभावित हो सकते हैं।

 जब तक पाकिस्तानी टीकाकार खालिद अहमद ने जाकिर नाइक का नाम मुझे नहीं बताया था तब तक मैं जानता भी नहीं था कि इस नाम का कोई शख्स है। मेरे ख्याल से वर्ष 2009 में एक सम्मेलन में हुई चर्चा के दौरान खालिद इस बात को लेकर चकित थे। खालिद ने मुझसे कहा, 'पीस टीवी को जरा ध्यान से देखिए। आपको पता चलेगा यह आदमी कौन है। हमें भविष्य में इस शख्स के बारे में काफी कुछ जानने को मिलेगा।‘

भारतीय उपमहाद्वीप में सऊदी शैली के इस्लाम के सबसे महत्त्वपूर्ण, मुखर और ताकतवर प्रवक्ता

 मैं भी वहीं गया जहां हर शख्स जाता है। यानी हजरत गूगल की शरण में जाकर जाकिर नाइक के बारे में पढ़ना शुरू किया और उनके रिकॉर्डेड भाषण देखने शुरू किए। खालिद की बात को समझना मुश्किल न था। डिग्रीधारी एलोपैथिक चिकित्सक से टेलीविजन धर्म प्रचारक बने नाइक भारतीय उपमहाद्वीप में सऊदी शैली के इस्लाम के सबसे महत्त्वपूर्ण, मुखर और ताकतवर प्रवक्ता बनकर उभरे।

उनको अन्य मौलाना नुमा वक्ताओं से अलग

उनकी भाषा, सहज मुस्कराने की प्रवृत्ति, कुरान की आयतें, गीता, उपनिषद तथा बाइबल के विभिन्न उद्धरण देने की उनकी प्रवृत्ति और ईसाइयों, हिंदुओं और नास्तिकों के सवालों के जवाब देने को लेकर उनका रुझान उनको अन्य मौलाना नुमा वक्ताओं से अलग करते हैं। वह सूट और टाई पहनते हैं और व्यवस्थित अंग्रेजी में नपेतुले वाक्य बोलते हैं। हालांकि उनकी दाढ़ी और टोपी उनके समर्पित मुस्लिम होने का इशारा करती हैं। मैं अपने एक सहयोगी की मदद से उनके लोगों तक पहुंचने में कामयाब रहा और उन्हें मेरा यह विचार पसंद आया कि मैं उनका साक्षात्कार करूं। मार्च 2009 में हमने वह साक्षात्कार रिकॉर्ड किया।

टेलीविजन मत प्रचार का रॉकस्टार

 जाकिर नाइक के पास कोई आधिकारिक या धार्मिक पदवी नहीं है। उन्होंने कैमरे के समक्ष ही मौलाना या मौलवी कहे जाने पर आपत्ति की। जबकि टेलीविजन मत प्रचार का रॉकस्टार कहे जाने पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की और इसे सहर्ष स्वीकार किया। उन्होंने भारतीय संविधान, न्यायपालिका में अपनी पूरी आस्था जताई (उन्होंने कहा कि जल्दी या देर से ही सही सभी मुस्लिमों को न्याय मिलता है) और उनकी तारीफ की। विभाजन पर उनके विचार आरएसएस से अलग नहीं थे। उनका मानना यही था कि यह एक त्रासदी थी और भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक देश के रूप में खेल से लेकर अर्थव्यवस्था तक वैश्विक महाशक्ति होते।


रूढ़िवादी मुस्लिम विभाजन के विरोधी रहे हैं

 उन्होंने कहा कि अधिकांश मुस्लिमों को न तो विभाजन की चाह थी न उन्होंने उसकी मांग की। अलहदा पाकिस्तान के लिए अभियान चलाने वालों में से कई लोग तो व्यवहार में मुसलमान भी नहीं थे। यकीनन आरएसएस के उलट इस पूरे परिदृश्य को देखने का उनका नजरिया मुस्लिम हितों के मुताबिक था और मुझे भी पता है कि रूढ़िवादी मुस्लिम विभाजन के विरोधी रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी इनका अगुआ था। परंतु आज की बहस में नाइक की दलीलों का स्वागत होगा और वह पाकिस्तान को नाराज करेगा।

 यहां तक कि कश्मीर पर उनका दृष्टिकोण ऐसा था जो उन सभी लोगों को स्वीकार्य होगा जो उनसे नफरत करते हैं। उनका कहना था कि कश्मीरी भारत और पाकिस्तान दोनों से थक चुके हैं अगर वहां स्वतंत्र मतदान हुआ तो शायद वे स्वतंत्र रहना पसंद करें लेकिन चूंकि ऐसा कोई विकल्प नहीं है इसलिए भारत को वहां शिक्षा, रोजगार और शांति कायम करनी चाहिए जिससे कश्मीरी प्रसन्न रह सकें।

वर्ष 2010 में वह इंडियन एक्सप्रेस के ताकतवर लोगों की सूची में चुने गए

 उन्होंने 26/11 और 9/11 की घटनाओं की निंदा करते हुए कहा कि जिस व्यक्ति ने ट्विन टॉवर नष्ट किए वह मुसलमान नहीं हो सकता उसकी निंदा की जानी चाहिए (वह निश्चित नहीं थे कि यह ओसामा बिन लादेन था)। उन्होंने कहा कि वह घूमते रहते हैं और इसलिए उनको वृत्तचित्रों से जानकारी मिलती रहती है। एक वृत्त चित्र कहता है कि यह अमेरिका की अंदरूनी हरकत थी जिसे खुद जॉर्ज बुश ने अंजाम दिया। मुस्लिमों पर उनके बढ़ते प्रभाव का एक उदाहरण यह है कि वर्ष 2010 में वह इंडियन एक्सप्रेस के ताकतवर लोगों की सूची में चुने गए।

पत्नी को दंडित करने का इस्लामिक तरीका। यानी हल्कीफुल्की मारपीट जायज

 ओसामा की शैली का उनका वाकछल बताता है कि आखिर उनमें गलत और खतरनाक क्या है। कुछ प्राचीन मूर्खताओं के साथ वह लगातार ऐसी बातों का समर्थन करते हैं मसलन पत्नी को दंडित करने का इस्लामिक तरीका। यानी हल्कीफुल्की मारपीट जायज या यह कहना कि मुस्लिमों के मकबरे गैर इस्लामी हैं। उनका एक उदार मुखौटा भी है। वह लगभग हर तीसरी पंक्ति में ऐसे उद्धरण पेश करते हैं जो इस्लाम के गहरे, रूढ़िवादी सिद्धांत से जुड़े होते हैं। हालांकि उनका तरीका बिना जोखिम भरा नजर आता है लेकिन वह खतरनाक हैं क्योंकि वह कौतूहल भरे, मासूम दिमाग लोगों के साथ खेलने की क्षमता रखते हैं। मैं नहीं मानता कि वह कभी अन्य लोगों या राज्य के खिलाफ हिंसा की वकालत करेंगे। यकीनन वह आईएसआईएस ISIS को इस्लाम के खिलाफ षड्यंत्र की संज्ञा देंगे लेकिन मासूम युवा मुस्लिम जेहन बहुत आसानी से उनकी कट्टर इस्लामी व्याख्याओं के शिकार हो सकते हैं जिनके जरिये वे कहीं अधिक कट्टर विकल्पों और तरीकों को उचित ठहराते हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि बांग्लादेशी आतंकियों में से कुछ उनके अनुयायी थे।

नए मुस्लिम आतंकी गरीब, अशिक्षित, अजमल कसाब जैसों से अलग क्यों हैं?

 एक प्रश्न अक्सर पूछा जाता है: आखिर नए और युवा मुस्लिम आतंकी खासतौर पर आईएसआईएस के आतंकी, सुशिक्षित और अंग्रेजी बोलने वाले तथा समृद्ध परिवारों से ताल्लुक रखने वाले ही क्यों हैं? संक्षेप में कहें तो नए मुस्लिम आतंकी गरीब, अशिक्षित, अजमल कसाब जैसों से अलग क्यों हैं? इसका जवाब शायद उस बात में निहित है जो हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार मुझसे कही थी। वही ओवैसी जो हिंदू दक्षिणपंथियों के प्रिय दुश्मन हैं।

 वह मुझे हैदराबाद के अंदरूनी शहर के सफर पर ले गए। यह वह इलाका है जहां उनके परिवार और मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन ने दशकों तक शासन किया है। उन्होंने वहां चलने वाले अपने शैक्षणिक संस्थान दिखाए। उनके मेडिकल कॉलेज में मैं यह देखकर चकित रह गया कि एमबीबीएस की कक्षा में लड़कियों और लड़कों का अनुपात 70:30 का था। मैंने सोशल मीडिया पर वहां की कुछ तस्वीरें भी लगाई थीं। बस इस पर तो गालियों का भूचाल ही आ गया। अधिकांश की शिकायत थी कि सभी लड़कियों ने हिजाब पहन रखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि गाली देने वालों से पूछिए कि क्या ये लड़कियां मेडिकल की पढ़ाई करने के बजाय मदरसा जाएं! इसके बाद उन्होंने कहा कि शायद अच्छा ही हो अगर युवा मुस्लिम मदरसा भी जाएं। एक मौलवी उनको इस्लाम का मतलब, उसके सिद्धांत और जिहाद के बारे में बताएगा। उन्होंने कहा कि वह स्थिति बेहतर होगी बजाय इसके कि युवा मुस्लिम इंजीनियर, डॉक्टर और एमबीए कर लेते हैं और उनको अपने धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। वे अब जाकर जिज्ञासु हो जाते हैं। तो अब वे कहां जाएं सिवाय हजरत गूगल के। उन्होंने कहा कि एक युवा मुस्लिम जब गूगल पर जिहाद टाइप करता है तो काफी आशंका है कि उसे शीर्ष पर हाफिज सईद और जमात उद दावा के बारे में जानकारी मिले। उन्होंने कहा कि आज इस्लाम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है। निश्चित तौर पर वह आईएसआईएस को घृणा की दृष्टि से देखते हैं और उन्होंने पुराने शहर में उसके खिलाफ होर्डिंग लगवा रखे हैं।

करीब 50 करोड़ लोगों या दुनिया की मुस्लिम आबादी के 40 प्रतिशत के मस्तिष्क पर यह हमला हो रहा है।

 आप इस परिदृश्य से कैसे निपटेंगे जहां युवा, शिक्षित मुस्लिम पेशेवर गूगल की शरण में और आधुनिक टीवी प्रचारकों की शरण में जाकर अपने धर्म के बारे में जानते हैं? उनका दिमाग प्रोपगंडा और जाकिर नाइक जैसे लोगों की मुस्लिम उत्पीड़न की कहानियों से भर जाता है। इसके बाद कुछ स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष (दिग्विजय सिंह और कई कांग्रेस नेताओं समेत) इशरत जहां मुठभेड़ से लेकर बटला हाउस तक तमाम घटनाओं को उत्पीड़न बताते हुए इसे मासूम भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ षड्यंत्र करार देते हैं। अगर भारत में यह इतना जटिल है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में क्या स्थिति होगी। करीब 50 करोड़ लोगों या दुनिया की मुस्लिम आबादी के 40 प्रतिशत के मस्तिष्क पर यह हमला हो रहा है।
साभार बिज़नस स्टैंडर्ड 
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1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-07-2016) को "बच्चों का संसार निराला" (चर्चा अंक-2400) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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