बलात्कार का मज़हब — अभिसार @abhisar_sharma #RapeReligionPolitics


Abhisar Sharma on 'Rape Religion & Politics'

बलात्कार का मज़हब होता है ?

— अभिसार

Rape Religion & Politics

आसपास नज़र दौडाएं… फेसबुक पर twitter पर… देखें कि बुलंदशहर बलात्कार पर क्या संवाद चल रहा है। एक लिस्ट दिखेगी जो बताएगी कि बलात्कार के तमाम आरोपी मुसलमान हैं। उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं, ज़ाहिर सी बात है  कि बुलंदशहर के बलात्कारियों को उनके जघन्य अपराध से कम, उनके मज़हब से ज्यादा जाना जायेगा। स्वाभाविक है, उन राक्षसों के अपराध का बोझ अब सारी कौम को उठाना पड़ेगा। है न ? क्योंकि अब आतंक के साथ साथ, बलात्कारी का भी मज़हब हो गया है। मुझे twitter पर बार-बार ताना मारा जाता है। “अरे सेक्युलर पत्रकार, देख लो, बुलंदशहर में तुम्हारे शान्ति दूतों की करनी। अब कुछ नहीं बोलोगे?” ऊपर से आदत में मजबूर आज़म खान, जो कोई मौका नहीं छोड़ते अखिलेश यादव को शर्मिंदा करने का। उनका एक बयान आता है और समाजवादी पार्टी की चार सीटें कम हो जाती हैं। जो लोग नहीं जानते, उन्हें बता दूँ,  कि आज़म खान ने बुलंदशहर बलात्कार को एक राजनीतिक साज़िश बताया था।


आज़म खान के बयान की बेशर्मी को हम झेल ही रहे थे  कि बीजेपी प्रवक्ता आईपी सिंह ने बता दिया कि उनकी पार्टी अभी बेशर्मी की गर्त में खुद को और भी दफन कर सकती है। सिंह साहब आज़म खान की पत्नी और उनकी बेटी... खैर, बात समझ से परे है  कि आज़म खान से राजनीतिक नफरत का खामियाजा उनकी पत्नी और बेटी क्यों भुगते ? औरत क्या तुम्हारी निजी जागीर है, जिसे तुम अपने वहशीपन में रोज़ घसीटते रहते हो ? जब तुम किसी की बीवी या बेटी पर अभद्र टिप्पणी करते हो तब तुम्हें अंदाजा होता है कि इसकी आंच से तुम्हारा परिवार भी नहीं बच सकता ? बिलकुल वैसे ही, दयाशंकर सिंह की बसपा नेता मायावती पर की गयी अभद्र टिप्पणी का खामियाजा उनकी बेटी और पत्नी क्यों भुगतें? नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं की मौजूदगी में बसपाईयो ने जो गंदे नारे लगाये, उसकी भर्त्सना क्या सिर्फ ये कहकर हो जाएगी के पार्टी के किसी सीनियर नेता ने यह बयान नहीं दिया या इसका अनुमोदन नहीं किया ? और सबसे शर्मनाक बात ये, की मायावती ने एक बार भी, बगैर लाग लपेट, बगैर किन्तु परन्तु, इस बयान की आलोचना नहीं की। दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा क्या हैं, मैं नहीं जानता। मुझे उससे कोई मतलब भी नहीं। बीजेपी शायद उनमें एक संभावित MLA देख रही है। मगर स्वाति, जो एक माँ है, उनके जज्बे को सलाम। एक माँ ने जिस तरह अपनी बेटी का बचाव किया, उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। उनके शब्दों में एक अच्छे वकील की धार और एक MBA विद्यार्थी का तर्क तो था ही, साथ ही एक बहादुर माँ का आक्रोश भी था।



बहरहाल, वापस मुद्दे पर आता हूँ। बुलंदशहर वारदात और उसपर आज़म खान के शर्मनाक बयान में बीजेपी को कहीं न कहीं मौका दिख रहा है। उनके समर्थकों की भाषा तो आप पढ़ और देख ही रहे होंगे, अब धीरे धीरे पार्टी के नेता भी सामने आयेंगे। बीजेपी के प्रतिभाशाली प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा एक डिबेट में समाजवादी पार्टी के बयानवीर आज़म खान को बार बार “मुहम्मद” आज़म खान संबोधित कर रहे थे। इसमें उन्हें इतना जोर देने की क्या ज़रूरत थी मैं नहीं जानता। वो आज़म भी कहते तो भी दुनिया जान जाती  कि वो मुसलमान हैं। मगर श्रीकांत शर्मा का लक्ष्य आज़म खान के आगे है। उनकी निगाह बुलंदशहर से संभावित ध्रुवीकरण पर है, जिसे बीजेपी भुनाने की कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यानी आतंक के साथ साथ, बलात्कार का भी मज़हब होता है। क्यों? सही है न ? कैराना में कथित हिन्दू पलायन का झूठा प्रोपोगेन्डा जब औंधे मुंह ज़मीन पर गिरा, तब लगा  कि क्यों न तलाश को और सघन किया जाए। जिसके चलते अलीगढ़, मुजफ्फरनगर (फिर से) सब टटोला जा रहा है। और बलात्कार तो है ही संवेदनशील मुद्दा। मगर नारी का सम्मान बीजेपी के नेता कितना कर पाएंगे, ये बात दयाशंकर सिंह और आईपी सिंह बता चुके हैं।

उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य यही है  कि राजनीतिक विकल्प के नाम पर, उसके पास या तो बीजेपी की ‘संस्कारी’ सोच है, नेताजी का छद्म समाजवाद है या बसपा की वो सोच जिसमें पूरी दुनिया में सिर्फ एक महिला सम्मान योग्य हैं। कांग्रेस फिलहाल विश्वसनीयता के जिस संकट से गुज़र रही है, उसमें उसे अभी और संघर्ष करना पड़ेगा। सत्ता हासिल करने के प्रति मैं उसे एक गंभीर दावेदार नहीं मानता। हालांकि उत्तर प्रदेश में कुछ पत्रकार कांग्रेस में एक नयी ऊर्जा अवश्य देख रहे हैं। बनारस में सोनिया गाँधी की ‘अधूरी’ रैली इसकी एक मिसाल है।
खैर, मुझे ये भविष्य वाणी करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है  कि उत्तर प्रदेश में इस बार के चुनाव उसके इतिहास के सबसे गंदे और उग्र चुनाव होंगे। भाषा की शालीनता, सांप्रदायिक सौहार्द सब कुछ दाव पर होगा। बिहार में बीजेपी ने ध्रुवीकरण की ज़बरदस्त कोशिश की थी, नाकाम रहे। उसका मलाल पार्टी के कुछ योद्धाओं को है । उत्तर प्रदेश अलग है। यहाँ मुजफ्फरनगर का इतिहास है। यहाँ अयोध्या और बनारस जैसे प्रतीक हैं और सबसे बड़ी बात, अब राष्ट्रवादियों को बलात्कार में भी मज़हब दिखाई दे रहा है।

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2 टिप्पणियाँ

  1. Very precise and relevant article Abhisar Sir. Because of the journalist like you, there is still neutrality left in journalism. All your articles are great. I keep waiting for your articles. Thank you.

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  2. बिलकुल सही लिखा है शर्माजी आपने! भला ये भी कोई बात हुई की बलात्कारी और पीड़िता की जाति या धर्म देखा जाये, ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिये !एक बलात्कारी सिर्फ अपराधी होता है और एक पीड़िता सिर्फ एक नारी ! है ना ? अब सवाल सिर्फ ये रह जाता है की जब आप इतने समझदार हैं तो ...दलित महिला का बलात्कार, अल्पसंख्यक समुदाय की महिला का बलात्कार, अगड़ी जाति के लोगों द्वारा बलात्कार आदि संज्ञा/विशेषण का प्रयोग 24X7 अनजाने में तो नहीं करते होंगे ? TV स्टूडियो में सूट बूट पहन कर जब आप भारतीय समाज को जाति और धर्म के आईने में बाँट कर दिन रात चिल्लाते हैं तो उस के पीछे क्या मकसद होता है शर्मा जी ? कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहते की जब पीड़ित कोई दलित या अल्पसंख्यक हो तब तो जाति धर्म की बात करना जायज है अन्यथा नहीं ! बुलंदशहर की पीड़िता की जाति आपने यानि आप की बिरादरी ने नहीं बताया, क्या ये काफी नहीं है ये समझाने के लिये की उस की जाति क्या रही होगी ? भारत की मीडिया ने हमें इतना समझदार तो बना ही दिया है ! आप ही ने हमें बताया की उना में गौ रक्षा के नाम पर दलित युवकों की पिटाई कर दी गयी ! मेरे मन में ये सवाल तभी से चल रहा है की क्या उनको दलित होने की वजह से मारा गया ? क्या वो किसी और जाति के होते तो उनको नहीं मारा जाता ? आप ये भी तो कह सकते थे की "उना में युवकों की पिटाई की गयी" ! सवाल ये नहीं है की राष्ट्रवादियों को बलात्कार में मजहब क्यूँ दिख रहा है, सवाल ये है की हर अपराध हर बात में जाति और धर्म देखने वाले #presstitutes को बुलंदशहर में तो कुछ नहीं दिख रहा है लेकिन उना में सबकुछ क्यूँ दिख रहा है ??

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