मोदी ने अभी तक तो सही संतुलन बनाये रखा है लेकिन युद्ध-प्रेमियों को कब तक दरकिनार रख पाएंगे #SurgicalStrike


मोदी का विपक्ष के एक अतिउत्साही नेता से सामरिक संयम के लिए ढांचा तलाशते राजनीतिज्ञ में बदलने की यह प्रक्रिया, एक तरह से, लोकतंत्र की वह शक्ति दर्शाती है, जिसमें एक जटिल समाज पर शासन की चुनौतियां, राजनीतिक उन्माद की धार का पैनापन कम कर देती हैं... — राजदीप सरदेसाई


rajdeep sardesai on modi and surgical strike pakistan

टीवी ने युद्ध के लिए एक बड़ा निर्वाचन क्षेत्र बना दिया है

MODI'S FIRM MESSAGE BUT CAN WAR-MONGERS BE KEPT AT BAY?

इस 24x7 मीडिया के ब्रह्मांड में, छुपने के लिए सचमुच कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी का वह विडियो वायरल हुआ जिसमें वह गुजरात मुख्यमंत्री के रूप में तब की यूपीए सरकार की पाकिस्तान नीति के ख़िलाफ़ बोलते नज़र आ रहे हैं। वीडियो में मोदी मनमोहन सिंह सरकार का मजाक इसलिए उड़ाते दिखते हैं क्योंकि पाकिस्तान को आतंकवादी हमले करने के लिए करारा जवाब नहीं दिया गया। उन्हें वीडियो में यह कहते हुए सुना जा सकता है "दुनिया से समर्थन के लिए भीख माँगने के बजाय पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं कर रहे हैं" । पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों पर उड़ी हमले के बाद हड्डीतोड़ हमले (surgical strike) की घोषणा की यही वजह है, यह प्रधानमंत्री के लिए निर्णय की घड़ी है : 2014 के चुनावों के पूर्व किये गए वादे "पाकिस्तान को सबक सिखाना" को पूरा करने के लिए मोदी अब क्या-क्या कदम उठाते हैं।"

मोदी का विपक्ष के एक अतिउत्साही नेता से सामरिक संयम के लिए ढांचा तलाशते राजनीतिज्ञ में बदलने की यह प्रक्रिया, एक तरह से, लोकतंत्र की वह शक्ति दर्शाती है, जिसमें एक जटिल समाज पर शासन की चुनौतियां, राजनीतिक उन्माद की धार का पैनापन कम कर देती हैं। अपने हाल के भाषणों ‘कोझिकोड’ और ‘मन की बात’ में, मोदी ने पाकिस्तान पर अपनी टिप्पणी में एक आश्वासनपूर्ण व्यावहारिकता दिखायी है : जैसा कि पहले दिखाई देता था उसके विपरीत, बगैर लड़ाई के लिए उत्सुक या मिडिया में छाने की कोशिश किये, मोदी ने इस्लामाबाद को एक कड़ा सन्देश दिया। यहाँ तक कि सर्जिकल स्ट्राइक भी एक तरह से पहली चेतावनी की तरह है न कि युद्ध की कोई घोषणा। एक हद तक मोदी की नीति को असंगत के बजाय उपयुक्त प्रतिक्रिया मिली है ।



इसके ठीक विपरीत उनके समर्थकों, जिनमें से बहुतों का मानना है कि मोदी को और बड़े कदम उठाने चाहियें। भाजपा महासचिव राम माधव का कहना है "दाँत के बदले पूरा जबड़ा"। एक टीवी बहस में भाजपा के एक नेता ने अजीब ढंग का दावा किया कि अगले स्वतंत्रता दिवस से इस्लामाबाद के ऊपर भारतीय ध्वज लहरा रहा होगा। सोशल मीडिया पर भाजपा की इंटरनेट सेना "सर्जिकल स्ट्राइक'' की ख़बर से उन्मादित हो और बड़ा, और अधिक होने की आशा दिखा रही है। जबकि सेना ने एक सीमित कार्यवाही की बात कही है, फिर भी टीवी स्टूडियो और कम्प्युटरी संसार में युद्ध घोषित किया जा चुका है।

यह अनियंत्रित अंधराष्ट्रीयता दोबारा आये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। "आओ युद्ध करें "... टीवी पर दिखता यह पागलपन न सिर्फ राजनीतिक सरगर्मी बल्कि टीवी कार्यक्रम की टीआरपी को भी बढ़ावा देता है। ‘अच्छे' टीवी के लिए, धुर विरोधी भारतीय और पाकिस्तानी जनरल - ऐसा रूपक तैयार करते हैं जिसमें शोरगुल और हाथापाई-जैसे माहौल के बीच 'भावना' की जगह 'सनसनी' ले पाये। टीवी ने युद्ध के लिए एक बड़ा निर्वाचन क्षेत्र बना दिया है: यहाँ WWE-सरीखी कुश्ती जैसे प्रारूप वाली बहस में संयत, सूक्ष्म विचारों के लिए बहुत कम जगह है।

भाजपा के कट्टर समर्थकों के लिए, जो अभी भी विभाजन को मान्यता नहीं देते, कठोर राष्ट्रवाद जो पाकिस्तान को वह स्थायी 'शत्रु' मानना चाहता है जिसे हर हाल में नष्ट किया जाना चाहिए, उनके अखण्ड भारत के वैश्विक नजरिये से मेल खाता हैं, यह तक़रीबन पाकिस्तान के उन चरमपंथी संगठनों जैसा ही है जो भारत का खून बहते देखना चाहते हैं। भगवा विचारधारा का लम्बे समय से यही मानना है कि कांग्रेस एक कमज़ोर राष्ट्र बन के पाकिस्तान को ज़रूरत से कहीं ज्यादा छूट देती है। उनकी नेहरू के प्रति घृणा और कुछ हद तक महात्मा गांधी के लिए भी, इस आरोप के चलते है कि कांग्रेसी नेताओं ने 1947 से ही कभी पाकिस्तानयों के झांसों को सामने नहीं आने दिया, ख़ासकर कश्मीर के घाव को। और अब चूंकि यहाँ बहुमत से बनी पहली दक्षिणपंथी सरकार है, जिसका नेता ख़ुद ही अपने सीने को छप्पन इंच का बताता है, तो यह अकारण नहीं कि भगवा योद्धाओं को लगता है कि पुरानी गलतियाँ अब दूर हो जाएँगी। न सही पूरा पाकिस्तान लेकिन कम से कम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पुनः कब्जा किया जाना चाहिए।

यही वजह है मोदी के कई सबसे प्रबल समर्थक प्रधानमंत्री को इसबात के लिए लगभग उकसा रहे हैं कि रुकिए नहीं , जल्द से जल्द युद्ध का आह्वान कर दें। सरकार की, पाकिस्तान के राजनयिक अलगाव, उसे अलग-थलग करने की कोशिशें, एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अनेक देशों को अपने साथ लाना होगा। इसके लिए कौशल और संकल्प की ज़रूरत है और इन दोनों से भी अधिक ज़रूरत है 'धैर्य' की ह। इस रास्ते पर चलने की कोशिश मोदी से पहले मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी, जिसके मिश्रित परिणाम आये थे। यहाँ दिक्कत यह है कि मोदी की छवि वास्तविकता से बड़ी एक उस शक्तिवान-राजनीति से तैयार की गयी है , जो उन्हें एक अर्नाल्ड श्वार्जनेगर-सरीखे 'टर्मिनेटर' की तरह देखती है न कि एक ऐसे राजनेता की तरह जिसका मुख्य हथियार कूटनीति होती हो।

rajdeep sardesai on surgical strike and narendra modi


अब सवाल यह उठता है कि क्या मोदी और उनका प्रशासन इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर और ठोस हमले करेगा। उत्तर प्रदेश, एक प्रमुख राज्य में चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और मोदी को पता है कि वह नवाज शरीफ के साथ किसी तरह की 'झप्पी-पप्पी' जैसा आदानप्रदान नहीं कर सकते, यही वजह है कि सार्क शिखर सम्मेलन में जाने से इंकार कर दिया गया। और इसके साथ ही मोदी को इस्लामाबाद पर आतंकियों को शरण देने के लिए भारी आर्थिक दबाव भी डालना है। एलओसी पार किया गया यह सोचा-समझा आक्रमण भले ही एक कठोर सन्देश देगा लेकिन असली सवाल यह है कि मोदी इसे किस हद तक आगे बढ़ाने का जोख़िम उठा सकते हैं, क्योंकि यह भारत के विकास की गाथा को ख़त्म कर सकता है। यह पल समय से पहले उत्सव के बजाय गंभीरता की मांग करता है। अभी तक तो मोदी ने सही संतुलन बनाये रखा है लेकिन युद्ध-प्रेमियों को कब तक दरकिनार रख पाएंगे।

पुनश्च: सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि उनकी सहयोगी सुषमा स्वराज को भी अपनी प्रतिक्रियाओं को लेकर सावधान रहना होगा। 2013 में जब भारतीय सैनिक का गला काटने की घटना हुई थी तब सुषमा ने फौरन एक के बदले 10 पाकिस्तानी सिरों की बात कही थी। अब संयुक्त राष्ट्र में उनके द्वारा दिए गए, अच्छी तरह से तैयार भाषण से पता चलता है कि घरेलू मैदान में खेलना और आतंकवाद के खिलाफ एक वैश्विक गठबंधन बनाना दो बिलकुल अलग काम हैं।

राजदीप सरदेसाई के अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद - भरत तिवारी
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2 टिप्पणियाँ

  1. राजदीप जी अगर भारत पाक युद्ध नहीं होगा तो टीवी चैनल करवा देगें हद इतनी गैर जिम्मेदार पत्रकारिता की |

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