ये हैं हमारे देशभक्त नेता — अभिसार — @abhisar_sharma


हाँ देशभक्ति की अफीम का कोई इलाज नहीं. मानता हूँ जो भौकाल आपने बना दिया है, जो जलवा आपने जमा दिया है, उसके बाद शायद जनता राष्ट्रवाद की घास फूस पर जिंदा रह सकती हो, मगर यह आपकी वास्तविक योजना नहीं थी...

ये हैं हमारे देशभक्त नेता — अभिसार

देशभक्ति किसी की जागीर नहीं

— अभिसार

ये हैं हमारे देशभक्त नेता. इनको परहेज नहीं कि वो एक आरोपी के अंतिम संस्कार में जाकर उसे अपनी श्रधांजलि दे सकते हैं, तिरंगे में लिपटे उसके पार्थिव शरीर को देख सकते हैं, मगर जिस अखलाक़ को जानवर की तरह ज़लील करके मौत के घाट उतार दिया गया, उसके लिए एक शब्द नहीं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक अब पुलिस अखलाक़ के परिवार को उस आरोप से मुक्त करने वाली है कि उसके घर में गौ की क़ुरबानी दी गयी.



क्या यह तिरंगे का अपमान नहीं है? अब नथुने फुलाते बक्शीनुमा विशेषज्ञ जो महात्मा गांधी का मज़ाक उड़ाकर सावरकर का महिमा मंडन करते हैं, इस पर ख़ामोश रहेंगे?

महेश शर्माजी, कम से कम एक सतही और औपचारिक बयान ही दे देते? मगर नहीं. बयानबाजी आप करेंगे, मगर सोच समझ कर. क्या करें किसी अखलाक़ के पक्ष में बोलना आपने सीखा नहीं. हाँ आरोपी कैसे पीड़ित बन जाता है, उसका नज़ारा हम देख चुके हैं.

आपको राहुल गाँधी के बयान में सैनिकों का अपमान दिखता है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर सैनिकों के खून की दलाली का आरोप लगाया. बयान बेतुका था. प्रधानमंत्री की तौहीन थी. मौके की संवेदनशीलता का बिलकुल भी ख्याल नहीं रखा गया, मगर यह बयान देशद्रोही नहीं. और न ही केजरीवाल का बयान पाकिस्तान परस्त. अगर उनका मीडिया अपने हित में उसे ‘स्पिन’ देकर हमारे यहाँ अफरा-तफरी मचा रहा है, तो उसमें हमारी मूर्खता है.

अब जरा राष्ट्रवादी सरकार के रक्षा मंत्री की बात करते हैं. उत्तराखंड के पौड़ी जिले में रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर ने क्या कहा ? गौर करें ज़रा –

“Indian troops were like hanuman who did not quite know their power before the surgical strikes!”

“सर्जिकल स्ट्राइक के पहले भारतीय सेना हनुमान की तरह थी जिसे अपनी शक्ति का ठीक से पता नहीं था”

सच्ची परिक्कर साहब ? यानी देश की सेना का गौरवशाली इतिहास 16 मई 2014 को आरम्भ हुआ? वाकई? यानी अगर जामवंत (रक्षा मंत्री) न होते तो हनुमान हिन्द महासागर की तरफ़ (LOC) ही बैठे रहते? क्या सेना के शौर्य का इससे बड़ा मज़ाक कुछ हो सकता है? यह देशभक्ति है ? इस पर कोई सवाल नहीं ?

और इस बात पर भी कोई सवाल नहीं कि आने वाले चुनावों में बीजेपी सर्जिकल स्ट्राइक को चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है? जिसकी ज़मीन उसके छुटभैये नेता अभी से तैयार कर रहे हैं, मोदीजी को पोस्टर में राम का दर्जा दे कर? यह देशभक्ति है?

modi as ram poster varanasi
The posters have been put up on auto-rickshaws, buses and at various spots in Kutchery area in Varanasi. (HT Photo)

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सेना से कोई सवाल नहीं लेकिन आपकी नग्न पैंतरेबाज़ी पर भी कोई सवाल नहीं? क्यों? मानता हूँ कि आपके सामने सब दंडवत हैं. मगर देशभक्ति किसी की जागीर नहीं. कम से कम उन लोगों की तो बिलकुल नहीं जो सियासी कारणों से इसका इस्तेमाल करते हों.




विडम्बना यह है कि ख़ुद प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक पर उन्माद मत मचाओ. यही नसीहत थी न उनकी? इस नसीहत को सबसे ज्यादा अगर किसी को मानने की ज़रूरत है तो ख़ुद बीजेपी के नेताओं को.


The Telegraph: Thank you, Amitji, Who needs James Bond?
देशभक्ति इतना बड़ा मजाक इतना बड़ा प्रपंच हो गया है कि मुझे लगने लगा कि यह अब एक उद्योग बन गया है. और पिछले दो सालों में इसका प्रसार घरेलू स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक दिख रहा है. मुझे तो लगता है कि सरकार को इसे औपचारिक रूप से ‘व्यवसाय’ घोषित कर देना चाहिए. इसका लाइसेंस भी जारी करना चाहिए. एक विज्ञापन दे देना चाहिए, घोषणा के साथ.
“लाइसेंस के इच्छुक ११ अशोक रोड संपर्क करें. जिन्हें आजीवन लाइसेंस चाहिए, वो नागपुर में आवेदन कर सकते हैं”.

देशभक्ति का मजाक न बनायें. और भी ग़म हैं ज़माने में इस छद्म देशभक्ति के सिवा. “अच्छे दिन” पे बेशक अपने कॉपीराइट को बीजेपी ने यह कहकर त्याग दिया हो कि यह तो मनमोहन सिंह का आइडिया था, मगर बाबा रामदेव को छोड़ बाकी सब इसका इंतजार कर रहे हैं. हाँ देशभक्ति की अफीम का कोई इलाज नहीं. मानता हूँ जो भौकाल आपने बना दिया है, जो जलवा आपने जमा दिया है, उसके बाद शायद जनता राष्ट्रवाद की घास फूस पर जिंदा रह सकती हो, मगर यह आपकी वास्तविक योजना नहीं थी. आप इस देशभक्ति का सियासी फायदा उठाना चाहते हैं. आपने अपने ब्रांड की देशभक्ति में सवालों पर अंकुश लगा दिया है. वह पूछना भी गुनाह है.

इसकी मिसाल अमित शाह अपनी प्रेस कांफ्रेंस में पेश कर चुके हैं, जब असहज सवालों से उनकी बौखलाहट साफ़ दिख रही थी. जब टेलीग्राफ के दादरी पे पूछे गए सवाल को आपने बेवजह के तंज पर टाल दिया था. यह बात अलग है कि अपनी चिर परिचित पत्रकारिता का परिचय देते हुए, उन्होंने आपको अगले दिन करारा जवाब दे दिया था... मिसाल देख चुके होंगे आप. 
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

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