लता मंगेशकर का भजन देवता सुनते थे


यतीन्द्र मिश्र — लता मंगेशकर का भजन देवता सुनते थे
यतीन्द्र मिश्र — लता मंगेशकर का भजन देवता सुनते थे! 

लता: सुर-गाथा : अंश 1:10

यतीन्द्र मिश्र

शुरुआती दौर में, जब लता मंगेशकर ने फ़िल्मों में बतौर पार्श्वगायिका गीत गाना विधिवत ढंग से शुरु भी नहीं किया था, उस दौरान वे अपने पूरे परिवार के साथ नाना चौक में रहने आयी थीं। पूरे परिवार का मतलब सिर्फ़ माई, लता, मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ ही नहीं, बल्कि मौसेरी बहन इन्दिरा जोशी और उनके तीन बच्चों का कुनबा भी साथ में शामिल था। यह समय 1945 से 1952 तक का है।




जहाँ वे रहती थीं, वह एक धर्मशाला या सराय की तरह लगती हुई जगह थी, जहाँ पर किराये पर मिलने वाले कुछ मकान बने थे। इसी जगह पर भाड़े पर लेकर दो कमरे में ही पूरा घर बना लिया गया था। इसी घर के नीचे गलियारे में ही चिक डालकर उसे बैठने के कमरे का रूप दिया गया था।

लता मंगेशकर परिवार
लता मंगेशकर परिवार


लता जी बताती हैं कि वहाँ महादेव का एक मन्दिर था, जिससे यह जगह सटी हुई थी। मन्दिर के सामने एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। यह एक सार्वजनिक चबूतरा था, जिस पर शहनाई वाले और मन्दिर के पण्डे-पुजारी बैठते थे। इसी जगह पर मौजूद लम्बे अहाते के ऊपर पहली मंजिल पर कुछ लोग रहते थे, जिनमें विनायक राव के कैमरामैन पापा बुलबुले भी शामिल थे। घर के बगल थोड़े से मकान ऐसे भी थे, जिनमें किराए पर कुछ वकील रहते थे।

उस वक्त हुआ यह था कि 1947 में जब मास्टर विनायक की मृत्यु हुई, तब उसके बाद पापा बुलबुले ही लता मंगेशकर को संगीतकार हरिश्चन्द्र बाली से सेण्ट्रल स्टूडियो में मिलाने ले गये थे। बाली जी ने लता का गाना सुना और तुरन्त बाँधी गयी एक तर्ज पर गीत गवाने का वादा किया। यह गीत फ़िल्म ‘लव इज़ ब्लाइण्ड’ के लिए रिकार्ड होना तय हुआ था। लता को पारिश्रमिक के तौर पर तीन सौ रुपये पेशगी मिले।

लता ,वसंत देसाई, बिस्मिल्ला खान, बेगम अख्तर और अंजनिबाई मालपेकर के साथ
लता ,वसंत देसाई, बिस्मिल्ला खान, बेगम अख्तर और अंजनिबाई मालपेकर के साथ


इसी पेशगी से माई ने नाना चौक में किराये पर इसी जगह पर दो कमरे लिये। उस सस्ते जमाने में भी, बम्बई में दो कमरों का भाड़ा तीन सौ रुपये जितनी भारी रकम होती थी। वे बताती हैं कि नाना चौक में आने से पहले दक्षिण बम्बई के एक इलाके गिरगाँव, खेतवाड़ी की एक संकरी गली निकतबरी लेन में वे मास्टर विनायक की कम्पनी ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ के अन्य सदस्यों के साथ रहती थीं। वे जब उन दिनों को याद करती हैं, तो पिता की मृत्यु के बाद परिवार पर आए हुए भावनात्मक व आर्थिक संकट की खरोचों को निस्संग तटस्थता से याद करती हैं। उस समय का यह पता ‘शंकर सेठ मन्दिर, नाना चौक’ ही 1952 तक उनका घर बना रहा।

[*]

नाना चौक के इसी धर्मशाला में, अकसर उसके गलियारे में बने हुए बैठक घर में और कई बार दोपहर में मन्दिर के सामने चबूतरे पर बैठे हुए लता मंगेशकर घण्टों कोई भजन या गीत गुनगुनाती रहती थीं। मन्दिर के पुजारी वहीं आकर जब कोई गाथा पढ़ते रहते थे या पूजा वगैरह में संलग्न होते थे, लता अपनी ऊँची आवाज़ में गाने का रियाज़़ जारी रखती थीं। मालूम नहीं कि बाद में उन्हें इस बात का भान हुआ या नहीं कि वहाँ के शिवाला में मौजूद देवता दोपहर को अपना सोना स्थगित करके अकसर लता मंगेशकर का भजन या गीत सुनना पसन्द करते थे। धीरे-धीरे वह समय भी आया, जब पूरे भारतवर्ष में न जाने कितने मन्दिरों और गर्भगृहों तक बाकायदा उनकी आवाज़ देवता की नवधा-भक्ति में संगीत अर्चा के लिए रेडियो, स्पूल टेपों, रिकार्ड्स और कैसेटों के माध्यम से पहुँचने लगी।

जोहरा जान, राजकुमार, अमीरबाई कर्नाटक, हमीदा बानु, गीता रॉय (बाद में गीता दत्त), लता मंगेशकर, मीना कपूर, (और पीछे खड़े) शैलेश मुखर्जी, तलत महमूद, दिलीप ढोलकिया, मोहम्मद रफी, शिव दयाल बातिशी, जीएम दुर्रानी, किशोर गंगुली (बाद में किशोर कुमार) और मुकेश
जोहरा जान, राजकुमार, अमीरबाई कर्नाटक, हमीदा बानु, गीता रॉय (बाद में गीता दत्त), लता मंगेशकर, मीना कपूर, (और पीछे खड़े) शैलेश मुखर्जी, तलत महमूद, दिलीप ढोलकिया, मोहम्मद रफी, शिव दयाल बातिशी, जीएम दुर्रानी, किशोर गंगुली (बाद में किशोर कुमार) और मुकेश


नाना चौक में रहते हुए गाने का रियाज़़ करने वाली लता मंगेशकर की आकाँक्षा को जैसे उन्हीं देवताओं का स्नेहिल वरदान हमेशा के लिए सुलभ हो सका। अब लता मंगेशकर वहाँ से निकलकर वाल्केश्वर के नये घर में अपने संगीत के साथ आ गयीं, जहाँ वे 1960 तक रहीं। उसके बाद पैडर रोड के ‘प्रभु-कुंज’ वाले अपने स्थायी-निवास में आ बसीं, जिसके पड़ोस में संगीतकार मदन मोहन, सलिल चौधरी और कल्याणजी-आनन्दजी का बसेरा था। अब पहले से अधिक प्रसन्न और संगीत में लगातार प्रगति की राह बढ़ती हुई यह गायिका पैडर रोड से लेकर दुनिया के किसी भी कोने में ईश्वर को समय-असमय अपने गीतों से रिझा सकती थी।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ