गिरिराज किशोर की प्रेम कहानी 'नायक'



नायक 

— गिरिराज किशोर

सेक्स के कई सच हैं। और सेक्स के सचों पर खूब लिखा भी गया है और लगातार लिखा भी जा रहा है। ये लिखना तब आज-का साहित्य है जब सेक्स-दृश्यों के वर्णन रीतिकालीन नहीं हों और वह मुद्दे से कतई न डिगे। देश में आयातित ‘एक्सचेंज’ संस्कृति, सेक्स का विकृत मुक्तभोग, को वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर ने कहानी ‘नायक’ में बखूबी दिखाया है। काम के इस रूप का एक प्रामाणिक चित्रण बगैर चटाखेदार भाषा के लिखना गिरिराजजी के दायित्वबोध को प्रदर्शित करता है...

भरत तिवारी




गिरिराज किशोर की कहानी 'नायक'

नायक (Girraj Kishore ki Kahani Nayak)

आँगन में वह बास की कुर्सी पर पाँव उठाए बैठा था। अगर कुर्ता-पाजामा न पहले होता तो सामने से आदिम नजर आता। चूँकि शाम हो गयी थी और धुँधलका उतर आया था, उसकी नजर बार-बार आसमान पर जा रही थी। शायद उसे असुविधा हो रही थी। उसने पाव कुर्सी से नीचे उतार लिये और एक पाव दूसरे घुटने पर चढ़ा लिया। इतने ही से उसके आदिमपन मे कमी आ गई और चेहरा संभ्रांत निकल आया। उसने दोनों हाथों को पीछे झुकाकर अंगड़ाई ली और मुँह से आवाज निकाली। वह उठ जाना चाहता था। पर वह उठा नही बल्कि और जम गया ।

शाम पूरी तरह से हो आयी ! उसने पत्नी को पुकारा। पुकारने के दौरान उसे फिर जम्हाई आ गई और आवाज छितरा गई। उसे फिर पुकारना पड़ा! लेकिन पत्नी के आने मे बहुत उत्सुकता या दौड़ना शामिल नहीं था। ठंडापन था। वह आकर कुर्सी के पास खड़ी हो गई। उसने पत्नी की तरफ देखा और बोला, 'अँधेरा तो काफी अँधेरा हो गया।'

‘हाँ तुम भी काफी देर से बैठे हो !

'देर से ? हाँ, बैठा तो हूँ।'

'तुम बोली नहीं?’

'आ रही थी ।'

'शायद दोनों काम साथ न हो पाते?’

'हो तो सकते थे—आने का काम ज्यादा जरूरी था।'

‘तो तुम आ रही थीं? कुछ देर खामोश रहकर कहा, इसीलिये तुम नही बोली ? यह भी ठीक है। यह भी एक एप्रोच हो सकती है। वह चुप रही।

उसने अपने आप ही कहा, 'शायद तुम बैठना चाहो, बैठो। कुर्सी पर इत्तफाक से मैं बैठा हूँ।'

वह सीढ़ियों के नीचे पड़ी खटिया पर बैठे गई। उसने फिर आसमान की तरफ देखा औ कहा. इसका मजा तो दिन में है। रात विमट-सी जाती है। वह भी ऊपर देखने लगी। चेहरे पर कोई खास बात नजर नही आयी; गर्दन नीचे करके बोली, 'हूँ !'

'आजकल शाम वैसी नही गुजरती।' वह खामोश रही।

‘काम नही होता।" उसी ने फिर कहा।

'किया करो।'

'अब पहली वाली बात नहीं।'

‘अब कौन-सी बात है?, उसने पत्नी के सवाल का जवाब नहीं दिया।

‘जब मैं आयी- आयी थी तब तो तुम करते थे।

'अब ऊबता रहता हूँ।' उसकी पत्नी के बैठने में उठना शामिल होने लगा था

उसने ही पूछा, 'तुम भी तो ऊबती होगी ?’ पत्नी एकाएक कुछ नही बोल सकी। उसी ने सुझाव दिया, तुम्हें इससे बचना चाहिए।

और तुम्हें ?'

'मेरे लिए मुश्किल है। मुझे लोग समझ नही पाते?

'शायद मुझे भी लोग न समझते हो।'

'औरतों को समझने में कोई मुश्किल नही होती, सिर्फ असुविधा हो सकती है। ‘

अच्छा, मैं चलती हूँ। काम—‘

उसने बीच मे ही कहा 'हों काम— -काम तो अच्छी चीज है।’ फिर रुककर बोला मैंने रज्जु से कहा था, आ जाए। तुम्हारी थोड़ी बदल हो जाएगी। बदल करते रहना चाहिए।' वह खुलकर जाने लगीं!

मुझे लड़का पसन्द है। उसकी इस बात पर वह चुप लगा गई ! वह खुद ही बोला, लड़कियों की पसन्द के लिए ऐसे लड़के मुनासिब होते है।

"हाँ, वह उस तरह का है।'

'यह अच्छी बात है, तुम मेरी राय से सहमत हो! वह एक चुलबुला लड़का है ! आँखें चमकती हैं। दरअसल उनमें एक ढंग भी हैं। फैलने वाली आँखें अच्छी होती है। लेकिन आवाज़---?'

वह बोली ‘ख़राब है।”

 नही, ऐसी कोई खराब नहीं, कुछ हो सकती है। इस बात को कोई जवाब न देकर उसने पूछा, 'तुम कही जाओगे ?

'चाहता था । वह हूँ करके चुप हो गई। वह बोला, जाना तुम्हें भी चाहिए।' ‘कहाँ? ‘‘

'यह सोचने की बात है। वह कुछ देर बाद बोला, लड़कियाँ दोस्ती के बारे में शंकालु होती है। दोस्ती कोई मूल्य नही, वक्त गुजारने का तरीका है। दूसरे मुल्कों मे इससे शारीरिक जरूरतें भी पूरी हो जाती है। चेंज के लिए दोस्ती नायाब चीज हैं।

'चेंज | पत्नी ने दोहरा दिया! ‘मैं समझता हूँ औरतों को इसकी ज़्यादा जरूरत होती है। 'तुम ऊब की बात कर रहे थे। ऊब पैरो से चढनी शुरू होती है और दिमाग तक पहुँचती है।'

'हूँ !' करके वह रह गया। पत्नी उठकर जाने लगी। उसके जाने को वह देखता रहा। उसकी यह आदत बन गई थी। जाती हुई पत्नी की एक चीज पर निगाह गड़ाकर परखा करता था। उसके कूल्हो के बारे में वह ज्यादा सोचना चाहता था। उनके बारे में उसका ख्याल कभी अच्छा नहीं रहा। उनका हल्कापन उसकी देह के प्रभाव को हल्का कर देता है। दरअसल जो अहसास होना चाहिए वह नहीं हो पाता।

उसने पुकारा, 'सुनो !'

'क्या ?’ वह वही खड़ी हो गई ! उसने नज़दीक आने का इशारा किया। नजदीक आने पर उसने पूछा, 'तुम कभी अपनी देह के बारे मे सोचती हो ?’ वह जवाब नही दे पायी !

उसने फिर पूछा, 'में यह जानना चाहता हूँ कभी तुमने सोचा है एक अच्छी किस्म की औरत के जिस्म में क्या-क्या होना चाहिए ?

'मुझे सोचने के लिए आदमी ज्यादा मजेदार लगता है।

'रज्जु के बारे में तुम क्या कहोगी ?

'अभी तक बड़े सिर का एक सुडौल लड़का है।

'मैं तुम्हारे कूल्हो के बारे में जानना चाहता हूँ तुम्हारी क्या राय है ?

 'तुम मुझे अपनी राय बता चुके हो। तब भी मेरे हिब्स की वजह से तुम्हें परेशानी हुई थी। गोश्त ज्यादा न होने की वजह से किसी बीमारी का एहसास हुआ था। तुम्हारी राय से मैं सहमत हूँ। गोश्त एक महत्वपूर्ण चीज होती है! लेकिन अब आता जा रहा है !'

'आदमियों के बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल हैं? पूछने के बाद वह मुस्कराया।

"कोई खास नहीं, वजन कम होना चहिए!" पत्नी ने जम्हाई ली। वह कुछ हतप्रभ होकर बोला, तुम मेरे बारे मे अपनी राय साफ तौर से बता सकती हो। 'मैं कई बार बता चुकी हूँ। तुम्हारे शरीर से कभी-कभी गन्ध आती है। वैसे तुम मजबूत आदमी हो।'

'मजबूती के बारे में ज्यादा जानना चाहूँगा।'

‘मजबूती---यांनी स्ट्राँग !'

'अच्छा, अब तुम जाओ, तुम्हें काम करना है !’

लेकिन वह बैठ गयी उसके इस तरह बैठ जाने ने उसे थोड़ा डिस्टर्ब कर दिया। उसने फिर दोनो पांव उठाकर कुर्सी पर रख लिए। वह बोली, ” तुम इस तरह क्यो बैठते हो ? मेरा ख्याल है मर्दों में बुनियादी तौर पर बेपर्दगी होती है।

उसने सिर्फ कहा, 'मैं मानता हूँ!' और उसी तरह पाँव किए बैठा रहा! दोनों के बीच कुछ देर खामोशी रही।

पत्नी ने अपना पाव घुटने पर रख लिया। घुटने और टांग के बीच एक साफ-सुथरा कोण स्थित था। अगर उसकी साड़ी बहुत ज्यादा बीच में आ गई होती तो शायद ऐसा न होतीं।

वह अचानक बोला, 'मैं रज्जु के बारे में सोच रहा हूँ। तुम्हारा क्या ख्याल है ? तुम्हारे ख्याल पर मेरा सोचना काफी निर्भर करता है !" वह चुप रही। वह फिर बोला, ‘मेरा ख्याल है उसके पास औरतों के बारे में एक सहनशील और मुलायम दृष्टिकोण है।

'औरतो के अलावा भी उसके पास दृष्टिकोण मुलायम है। "दरअसल औरतों के प्रति आदमी का दृष्टिकोण ही उसके और दृष्टिकोणो को बनाता है।'

उसने धीरे से कहा, 'उसका दृष्टिकोण मुलायम है।

पत्नी की बात से वह चौका नही । थोड़े धीमे स्तर में कहा, 'मेरा ख्याल है तुम उसे जान गई। फ्री होना अच्छा होता है।

'तुम इसे जरूरी समझते हो ?

 'दोनों के लिए ! जिन्दगी मे सिर्फ एक आदमी को जान लेना काफी नही होता ! एक बहुत कम होता है। मैं इसीलिए एक से अधिक औरतो को जानना चाहता हूँ। हर एक एक अनुभव और प्रतिक्रिया अलग होते हैं। मैंने तुम्हें कभी उतना "एक्साइटेड नहीं देखा। तुममें बहुत ठड़ापन है। वैसे लड़कियाँ काफी पगला जाती है। तुम्हें देखकर लगता है पानी के टब में लेटी हो !

उसने सिर्फ गर्दन हिला दी।

वह फिर बोला आदमी भी शायद अलग अलग तरह 'बीहेव करते हैं। मसलन मैं और रज्जु जरूर अलग तरह 'बीहेव करेंगे। हो सकता है रज्जु पहले शरमाए, तब आवेश मे आए। तुम्हारा क्या ख्याल है ?

'मेरे ख्याल से वह काफी फुर्तीला है।'

'तुम्हें उसे स्टड़ी करना चाहिए, ही इज ए कैरेक्टर।'

'उसे स्टड़ी करने का मेरा कोई इरादा नही।’

'यह मैं समझ सकता हूँ।'

वह कुछ देर खामोश रहा। फिर बोला, मैंने रज्जु से आने के लिए कहा था। क्योंकि मुझे जाना होगा। उसे यही रहना चाहिए। तुम्हें अकेलापन शायद अच्छा न लगे।'

‘नही, मैं अधिक खुलेपन से सो सकती हूँ। हर बार किसी को छोड़कर जाना संभव नही हो सकता। जरूरत समझने पर मैं किसी को भी आलंगित कर सकती हूँ।'

'मैं आज पीकर सड़क पर चलते रहना चाहता हूँ। ऐसा करना थ्रिल पैदा करता है। सड़क झूला मालूम पड़ती है। बत्तियो मे दूरी बढ़ जाती है। सन्नाटा कानो तक खिच जाता है, किसी तरह नही टूटता। तुम भी पी सकती हो।

'मुझे तुमने पिलायी थी, कई दिन तक मुँह मे कड़वापन घुला रहा था।'

‘सिवाय थोड़ी-सी उत्तेजना के तुम मे कोई परिवर्तन नही हुआ था।'

‘वह काफी थी।'

मैं अब चलना चाहूँगा। हो सकता है मेरे तैयार होने तक रज्जु आ जाए। इससे तुम्हारी मोनोटनी भी टूटेगी।'

'मुझे लगता है तुम्हारे जाते ही मैं सो जाऊँगी। सोना भी मोनोटनी को तोड़ता है। रज्जु के आ जाने पर मुझे कुछ और जागना पड़ सकता है।

‘मैं चाहूँगा सोने की तरफ तुम कम ध्यान दो।'

'कपड़े और रूपये अलमारी में है। इस बीच तुम थोड़ा बहुत खा-पी सकते हो। वैसे पीने के साथ भी तुम्हें कुछ खाना होगा। शायद तुम सेन्डविचेज ज्यादा पसन्द करते हो।'

वह अन्दर चला गया। उसकी पत्नी खाट से उठकर कुर्सी पर बैठ गई।

अन्दर से लौटने पर उसने चेहरे पर बाहर जाने की ताजगी थी। बैठे ही बैठे पत्नी ने पूछा, 'तुम कुछ खाओगे ?

‘नही, वही ठीक रहेगा। हो सकता है वह भूखा आए।

उसके लिए मेरे पास काफी बचेगा।'

वह कुछ दूर तक जाकर लौट आया और बोला, अगर तुम चाहो तो मैं उसके घर की तरफ से निकल सकता हूँ।'

'तुम्हें सीधे जाना चाहिए! मैंने पहले ही कहा है उसके आने पर मुझे जगते रहना पड़ सकता हैं !'

'तुम शायद नही जानती ऊब कितनी अजीब चीज़ होती है। मैं भी इसलिए जा रहा हूँ! तुम्हें भी कोई रास्ता निकालना चाहिए।'

'रात में शायद तुम नहीं आ सकोगे।'

"पीने के बाद ऐसा करना मुश्किल होगा। पीने से ही समरसता खत्म नही होती। उसके बाद की और स्थितियों से भी गुजरना जरूरी हो जाता है।

'शायद दरवाजा बोल रहा है। दरवाजा खुलता है तो एक लकीर-सी खिचती जाती है। सिर्फ 'हूँ। करके उसने अपनी पत्नी की बात का जवाब दिया।

रज्जु भी हो सकता है!’ कहकर उसने पति की तरफ देखा। वह चुप रहा।

वह कुछ देर बाद फिर बोली, शायद नहीं है !" उसने भी गर्दन हिला दी।

पत्नी ने बिना इधर-उधर देखे कहा, 'अब तुम्हें जाना चाहिए। मैं दरवाजा बन्द करके लेट जाना चाहती हूँ!"

वह दो-चार कदम जाकर लौट आया, 'मैंने कुछ रूपये तुम्हारे लिए छोड़ दिए है।' उसकी आवाज दरवाजे तक खिचती चली गई। दरवाजा खुलने और बन्द होने के कारण पत्नी को दो लकीरे खिंचती मालूम हुई। वह अपने दोनो पॉव जमीन से रगड़ने लगी।

बाहर ठंड थी। इस तरह का ठंडापन मजेदार होता है और गरमाई भी बनाए रखता है। लेकिन वह उसे महसूस कर रहा था। मफलर उसके दिमाग मे बराबर बना था। चौराहे के करीब उसे रुकना पड़ा। वहाँ भीड़ तो बहुत कम थी। लेकिन दिशा निर्देशित नहीं कर पाया। उसने वहां खड़े हो कर उबासी ली। चौराहा और भी ठंडा महसूस हुआ पान वाले की दूकान दूर थी। उसका ख्याल था शायद कुछ लोग वहाँ पान खाते हुए भी मिल सकते हैं। पानवाला टाईम आफिस का काम अच्छा करता है। यह सुविधा विलायतों को प्राप्त नही है।

चौराहे से आगे बढते हुए उसे रज्जु का ख्याल आया । बांये घूमकर रज्जु के कमरे पर पहुँचा जा सकता था। वह मोड़ पर रूका और कमरे के हर दरबे का अंदाज़ा लगनी लगा। लगभग पचास क़दम पर उसका घर बिजली के खम्बे की परछाई से ढका था। उस कमरे से उसे कोई बाहर आता हुआ महसूस हुआ। वह तेजी से आगे बढ़ गया।

रज्जू उसे पसन्द है। वह भी अच्छी है। बस उसमे एक ही कमी है। अगर वह न होती तो शायद पत्नी का जवाब नहीं होता। वह हमेशा जवाब न होने की टर्म्स मे ही सोचने का आदि है। जवाब हो भी तो क्या उखड़ता है | वह पानवाले की दूकान पर पहुँचा। पान वाला व्यस्त था। इस मखलूख को कभी कोई खाली नही देखता-ग्राहक हो या न हो। वैसे उसे पान लगाने की कला पसन्द है। जिन्दगी की ऊब हमेशा उसे पान की दूकान की तरफ खीचती है। पान लगाना एक मजेदार अनुभव होता है।

दो आदमियों के साथ एक औरत स्कार्फ बाधे थी। वे लोग जोर-जोर से हस रहे थे। उस औरत का शरीर काफी सुडौल लगा। चेहरा उतना अच्छा नही था। लेकिन शरीर एक महत्वपूर्ण चीज होती है।

उनमे से एक आदमी ने कहा, 'एक्सचेज इज नो रॉबरी।'

वह महिला तुरन्त बोली, 'यह तो व्यवसाय का प्राचीनतम सिद्धान्त है।

दूसरे ने हसकर कहा, "ठीक है, मैं जल्दी से जल्दी इसका प्रबन्ध करूंगा। उसके बिना एक्सचेज मुमकिन नही। महिला ने दूसरे की तरफ देखकर ऑख का कोना दबा दिया।

उन लोगो के पान तैयार थे | पान वाले ने उन लोगों के हाथ में थमाकर पैसे वसूल लिये। पैसो के गुल्लक से टकराने की आवाज उसे बहुत नजदीक सुनाई पड़ी!

वह धीरे से बुदबुदाया इनमें से दूसरे आदमी को क्वारा और चालू होना चाहिए।'

उन लोगो के चले जाने पर वह पानवाले के बिल्कुल सामने जा खड़ा हुआ। बिना दुआ-सलाम के पानवाला बोला, 'रज्जु भैया कई बार पूछ चुके हैं।

वह एक मिनट रूका। फिर बोला, 'उसे तो मैंने घर बुलाया था।

'हो सकता है वही गए हों।" पान वाले की बात से वह चौंका तो नही लेकिन उसकी शक्ल की तरफ जरूर देखा। फिर कहा, ‘सुना है कत्था-चूना ठीक मिकदार से मिल जाने पर खाने वाला पसीने से तरबतर नज़र आने लगता है। तुम्हारा लगाया तो देखकर ही पसीने आने लगा।

पानवाला हंस दिया। हँसी का प्रभाव उसके चेहरे पर काफी देर तक बना रहा। उसने पान को तीन-चार जगह से झटका देकर मोड़ा और करारेपन को परखा, फिर बोला, ‘जरा खाकर देखो, ऐसा ही पान रज्जु बाबू को खिलाया है। नासो मे पानी उतर आया था। बाबू पान मुँह रंगने के लिए नही खाया जाता। लोग आजकल अपनी औरतो को भी खिलाने लगे हैं। यह औरत खड़ी थी एक फुल पावर का पान लगाकर दे देता इन दोनों से भी कम न चलता! वह हस दिया

 उसे अपनी पत्नी का ख्याल आया। पान का इसे शौक है। उसका इरादा पूछने का हुआ, कही रज्जु पान न ले गया हो। लेकिन यह सोचकर टाल गया, क्या फर्क पड़ता है। वह अपने ही वाक्य से चौक गया। हमेशा से उसका ख्याल है ऐसा कहने वाले को ही ज्यादा फर्क पड़ता है ; लेकिन उसके साथ ऐसी बात नहीं।

उसने दूसरा सवाल किया, कोई और तो नही पूछ रहा था ?

पानवाले ने क्षण-भर सोचकर पूछा, 'पहले जो लड़की तुम्हारे साथ आया करती थी, उसकी शादी हो गई ?'

'क्यो ? उसने आवाज काफी मोटी करके पूछा।

वह आज आई थी, पान खाकर गयी है। साथ में शायद उसका आदमी ही था।

हूँ ! फिर बोला रायजादा के बार से तो आज कोई नही होगा ? '

नहीं, मंगल है न !'

'त्तो ?'

'रायजादा कृष्णा मेडिकल स्टोर में बैठा होगा, निकालकर दे देगा। मंगल वाले दिन दस बजे तक वही बैठकर ग्राहकों का इन्तजार करता है।

उसने उसकी बात का जवाब न देकर कहा, ‘अच्छा, चार और बाँध दो।वैसे ही गरमा-गरम।‘

पान वाले ने जल्दी-जल्दी चार पान घसीट दिये। उसने पानों को उलट-पुलट कर देखा और बोला, वैसे नही लगे !

किसी लड़की को खिलाकर मजा देखो | पीछा छुड़ाते नही बनेगा। एक-एक पाँच- पाँच रूपये का हैं !'

उसके मुड़ते ही पानवाले ने रोज़नामचा उठाया, खोलकर देखा, फिर रख दिया।

कृष्णा मेडिकल स्टोर के पास उसने पैसे निकालकर गिने। रायजादा वहां नहीं था। उसे वहां चक्कर काटना अच्छा लगा। आगे बढ़ गया। वह कहीं बैठकर रायजादा का इंतज़ार करना चाहता था। लेकिन बैठकर इंतज़ार करने के लिए जगह नहीं थीं, इसीलिए उसे चलते रहना पड़ा।

अगर रज्जु नही पहुँचा होगा तो वह सो गई होगी। वह स्वय भी इस बात से सहमत था, सो जाना भी मोनौटनी को खत्म करता हैं, बशर्ते आदमी अकेला हो उसकी पत्नी के संदर्भ में यह शर्त पूरी हो सकती थी यह बात दूसरी है रज्जू आ गया हो और वे लोग बाते करते लगे हो। अगर वह सो गई होगी तो उसे उठाना मुश्किल होगा। सोने पर उसका कई बार फ्री शो हो जाता हैं। लेकिन वह ऐसा नहीं करेगी !

रज्जू आयेगा भी तो बात ही करेगा। जिस लड़की का पानवाला जिक्र कर रहा था, उसके साथ भी शुरू मे वह बाते ही किया करता था। शुरू की बाते कोई मायने नहीं रखतीं। रज्जु उसकी पत्नी से बात भी क्या कर सकता है। विवाहित लड़कियों से बात करने में कोई स्कोप नही रहता। वह लड़की अविवाहित थी तो भी उसका बाप थोड़ा-बहुत बीच में बना रहता था। औरतो के साथ बात करने मे यही परेशानी रहती हैं- कभी बाप, कभी मिया, कोई न कोई बना ही रहता है। इस तरह की मौजूदगी थोड़ी परेशानी पैदा कर देती है। सब काम जल्दी-जल्दी करने पड़ते हैं।

उनके साथ ऐसी कोई बात नही होगी। ज्यादा इत्मीनान से बात कर सकेंगे। रज्जु उतना डैशिंग नहीं । वह बात पर बात करता चला जायेगा। वह ज्यादा लम्बी बातों और ख़ामोशी दोनों से ही ऊबती है। ज़रूर ऊबने लगेगी। कहीं उबास दिया तो भाई का नशा काफूर हो जायेगा। मर्द के साथ ऐसा ही होता है। औरत को उबासना आदमी को कही का नही छोड़ता ।

वह काफी दूर निकल आया था। पान उसकी मुट्ठी मे दबे थे। जेब में रखने से शर्ट खराब हो सकती थी। उस पानवाले की बात पर हँसी आ गई। अगर वैसा ही फुल-पॉवर का पान रज्जु ने उसे खिला दिया होगा तो ? दरअसल उसे पान का बहुत शौक है वह जरूर खा जायेगी। इससे पहले भी रज्जु पान कई बार ले गया है और खिलाया है। वह चबाकर खाती है और थूक देती है। कभी कोई असर नही हुआ। वह इस बात पर फिर हस दिया। अगर उत्तेजित होना होता है तो उसके लिए पान-धान की जरूरत नही होती।

वह खुद कम बात करता है। इसी वजह से वह ठंड़ी पड़ जाती है। उसके साथ वह दो-चार बार ही उत्तेजित हुई है। उसमें बातों का बहुत हिस्सा होता है! रज्जु हो सकता है उससे दूसरी तरह की बाते करे। बात मे भी एक तरह का 'स्लायवा होता है। रज्जु ज्यादा से ज्यादा उसका हाथ अपने हाथ में ले सकता है। दरअसल लड़का होते हुए भी उसके मन में भय बना रहेगा कही नाराज न हो जाये। इस तरह का भय कुछ करने नही देता। जब तक आदमी खतरा उठाने को मूल्य नहीं मानता उसे कुछ मिलता-मिलाता नही। नये लड़को की यही हालत है। इन्तजार मे बैठे रहते हैं, टपके तो गुप ले।

लौटाने पर रायजादा कृष्णा मेडिकल स्टोर के बाहर ही मिला वह अपनी दूकान की तरफ जा रहा था। उसके चेहरे पर चौकन्नेपन के साथ-साथ तेजी भी थी । उसे देखकर वह ठिठक गया और बोला, 'आपको भी चाहिए ?

'वन क्वार्टर दे सकेंगे ?

‘दे देंगे।'

"कितना होगा ?'

'दो ज्यादा मंगल है न ! पूरी खोलनी पड़ेगी।'

‘ठीक है।

उसने मुट्ठी की मुट्ठी उसकी हथेली पर खोल दी ! उसने नजर से उन्हे गिना और हसकर बोला, इसके अलावा दो अंडे भी हैं। वे तुम्हें दोस्ती मे दे दूँगा।'

"हाँ, मैं यही सोच रहा था, सब तो आपको दे दिये। साथ में खाऊंगा क्यों ?’

मै समझ गया था, समझ गया था... । वह हसता हुआ पीछे की तरफ से दूकान में घुस गया।

वह दूकान के बाहर बरामदे में रह गया था। दोनो बगलो में दबा लिये थे। बायी मुट्ठी मे पान होने के कारण दाहिनी बगल फूल आयी थी।

उसे उस लड़की की याद आयी। हालाँकि उसकी शादी हो गई है लेकिन उसकी मूल प्रवृत्ति में ज्यादा अन्तर नही हुआ होगा। जल्दी उत्तेजित होती होगी। प्रेम-काल मे उसे दो-चार घूट पिला दी थी। वह काफी मजे मे गई थी। उसने कोई एतराज नही किया था, बल्कि बड़ी मजेदार बात कही थी-अपने शरीर के बारे मे मैं खुद मुख्तार हूँ किसी भी हिस्से का कुछ भी इस्तेमाल कर सकती हूँ I उस दिन जैसा मजा देखने में नहीं आया।

लेकिन पत्नी को केवल उफान-सा आकर रह गया था। आँखे जरूर चमकने लगी थी लेकिन वह टुकुर-टुकुर उसकी तरफ देखती रही थी और फिर उसी के ऊपर लेट गई थी | वह उसे बड़ा गिलगिलापन लगा था। उसके पास लिपटकर सो जाने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं बचा था।

रायजादा ने कागज में लिपटी हुई बोतल उसे पकड़ा दी। उसने कागज हटाकर देखा, चौथाई से थोड़ी कम थी। रायजादा खुश हो हसकर बोला, "एक कबाब रखा है। यह भी ले जाओ, मजा देगा । उसे कबाब खाना अच्छा लगा। उसके दोनो हाथ भर गये थे। इसलिए शीशी उसे जेब में सरका लेनी पड़ी। अण्डे और कबाब दूसरे हाथ में पकड़ लिए।

रायजादा ने पूछा, कहाँ पीयोगे ? चाहो तो कहीं इन्तजाम कर हूँ ? 'आज अकेले ही मूड है। ‘ठीक है, बहुत जोर की किक देगी। नायाब चीज है। एकदम सोलह साल की लड़की की तरह। आधी थी, चौथाई तुम्हें दे दी, बाकी मैं पी गया। किक दे गई साली। अब जा रहा हूँ। तब काम बनेगा ! इन्तजाम तुम्हारा भी कर सकता हूँ।' वह कुछ नही बोला। सिर्फ हँस दिया।

वह जेब में बोतल महसूस कर रहा था। हल्का-सा पसीना था । उसका ख्याल था वह ऐसी जगह बैठे जहाँ वह अकेला बना रहे। पार्क के बाहर पेड़ की दायी तरफ बेंच पर बैठ गया। बेच काफी ठंड़ी थी। पतलून की तली पर भीगापन-सा लगा। उसने जेब से बोतल निकलकर रौशनी में देखी। बोतल की रगीनी के कारण वह आर-पार कुछ नही देख सका। चुपचाप बराबर मे रखकर अंडा तोड़ने लगा। वह खाते हुए बराबर सोचता रहा कही किक न दे जाये और वह नही लौट जाये। वैसे रायजादा उतना ईमानदार नही है !

रज्जु शायद अभी भी बैठा हो। हो सकता है पत्नी उसकी बातो से ऊबकर लेट गई हो। पलंग पर लेटी हुई बिल्कुल खपटा-सी लगती है। उसकी एक बड़ी अजीब आदत है वह हाथ पकड़कर अपने कुल्हो पर रख लेती है। कई बार पूछ चुकी है...कुछ इम्प्रूव्ड लगे ? रज्जु से शायद ऐसा न कहे। वह कहा करती है विदेशों में मोटे हिल्स को ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती ! यह उसने रज्जू से ही सुना है। वह विदेशी पत्रिकाएँ पढ़ता रहता है। अगर वह पूछेगी भी तो भी रज्जु तारीफ ही करेगा। तारीफ काफी दिक्कत पैदा करती है।

उसे दूसरा अंडा अच्छा नहीं लगा। बिना नमक के बकबकापन महसूस हुआ। उसने बोतल मुँह से लगा ली। काफी सर्द थी। उसे फिर मफलर का ध्यान आ गया, हालाँकि ध्यान आना एकदम बेतुका था। बोतल के मुँह पर मफलर लगा-कर नही पिया जा सकता था । शायद कान ढके जा सकते थे। उसकी पत्नी के कान ठंडे नही रहते। रज्जु भी इस बात पर काफी हँसता है। रज्जु ने कहा था औरतो को कान पर सर्दी नही लगती । इस पर उसकी पत्नी बहुत हँसी थी। उसे उस बार काफी आश्चर्य हुआ था। आश्चर्य की बात भी थी । लेकिन वह काफी समय तक नही समझ पाया उसका संकेत किधर था। उसे कैसे पता औरतों को कहाँ ठंड लगती है !

दो-चार घूंट पी लेने पर भी उसे तल्खी महसूस नही हुई। मुँह का स्वाद वैसा ही सीठा-सीला बना रहा | ऐसा स्वाद ऊब का होता है। वह यह बरदाश्त नही करना चाहता था ! एक सास में वह कुल पी गया। कोई अन्तर न पड़ने के कारण वह उत्तेजित हो गया और बोतल फेक दी अड़े के छिलको को उसने बुरी तरह कुचल दिया।

यह बात एकदम गलत थी, उसकी पत्नी पान खाकर उत्तेजित हो जायेगी। हो भी जायेगी तो रज्जु ज्यादा देर नही रूक सकेगा। उसके शरीर में दम जरूर है लेकिन आदमी को पहली बार दहशत लगती है। उसी दहशत की वजह से वह कुछ नही कर पाता।

उसने हाथ का पान मुँह में रखकर उसे चबाया, दो-चार बार में ही थूक दिया। पान जैसी चीज से उत्तेजित होना नामर्दी है। अगर ऐसा होता तो वह बीस पैसे के पान से ही गुजारा चला सकता था। पान खाकर उत्तेजित रज्जु हो सकता हैं। अगर वह पान खाकर उत्तेजित हुआ होगा तो उस पर कुछ नही होगा। बिना रसीद के मनीआर्डर हो जाएगा।

उत्तेजित होने का उसका तरीका बिल्कुल दूसरा है। स्टेजेज मे उत्तेजित होती है। आँखों से बढ़नी शुरू होती है। कई जगह टटोलना पड़ता है। यह उसके वश की बात नहीं । ऐसी बात औरत अपने आप नही बताती। जों जानता रहता है वही जानता है। बता भी देगी तो वह क्या टेड़ा कर लेगा।

वैसे वह दोस्त आदमी है।

सड़क पर आकर उसे उतनी सर्दी नहीं लगी। कानों पर गर्माहट महसूस होने लगी। सड़क खाली थी। यह खालीपन उसे अपने साथ बने रहने मे काफी सहायता कर रहा था। सड़क के दूसरी तरफ गुजरते हुए लोगो की हँसी ने उसे उखाड़ दिया। उस हंसने को सिविक सेंस के खिलाफ होने की वजह से वह ज़्यादा पसन्द नही कर पाया । लोगो को घर से हँसकर चलना चाहिए या घर जाकर हसना चाहिए। नाराजगी के कारण उसके कदम कुछ तेज हो गये। इस सबके बावजूद काफी देर तक उन लोगों की हसने की आवाज सुनाई पड़ती रही। अन्ततः वह खामोश हो गया और चाल ढीली कर दी।

पेशाब के कारण उसे चुनचुनाहट महसूस हो रही थी। रुककर एक चहार-दीवारी के पास खड़े हो जाना पड़ा । उसका ख्याल था वह अपने घर के पास पहुँच गया है। रज्जु और पत्नी उसे एक साथ मिल सकेंगे। पत्नी जरूर सो गई होगी या सोने की तैयारी में होगी। हो सकता है रज्जु ने उसकी गैरहाजिरी मे उसी के कपड़े पहन लिए हो और वह भी सोने की तैयारी मे हो। वह कौन से कपड़े पहन सकता हैं ? हो सकता हैं न भी पहने। ऐसे में पहनने की कोई बन्दिश नही होती। वह बिना पेशाब किये लौट पड़ा । चुनचुनाहट के बारे में वह ज़्यादा सचेत नहीं रहा था।

उसे ख्याल हुआ रज्जु और पत्नी सड़क पर टहल रहे हैं। महिला का पिछला हिस्सा उसे लगभग सपाट लगा | चाल में भी वैसी ही लहक नजर आयी। आदमी की लम्बाई रज्जु जैसी ही थी। थोड़ी दूर पीछे चलकर वह रूक गया। पीछे जाना निहायत बेवकूफी है। वह लौट पड़ा और पीछे वाले चौराहे पर जाकर खड़ा हो गया।

उसका शरीर काफी गोरा है। रज्जु के दिखलाई पड़ने वाले सब हिस्से स्याही लिए हुए है। अगर रज्जु उसके शरीर के किसी हिस्से पर भी हाथ रखेगा तो कितना अन्तर मालूम पड़ेगा। ऐसे वक्त जरा-जरा-सी बातों की ओर कोई ध्यान नहीं देता । यह सब बेतुकापन और बकवास है।

उसे अपनी प्रेमिन लड़की का ख्याल आया । उसका घर यहाँ से काफी नजदीक है। वह पुष्ट देहवाली मजेदार लड़की है। उसका पति निहायत बेवकूफ है। उस लड़कों को मारे डाल रहा है। उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था । यह उसका पीहर है। चौकीदारी करता उसके पीछे-पीछे घूम रहा है। पीहर में लड़की पुराने से मिलती-जुलती है। इस तरह का व्यवहार जबरदस्ती और निकम्मेपन की हद में आता है।

उस लड़की का घर दूर से दिख रहा था। खिड़कियाँ बन्द थी और आँगन में बत्ती जल रही थी। उसे अपने घर का ख्याल आया। वैसे ही घर में खिड़कियाँ और रोशनदान कम हैं। इस समय वे सभी बन्द होगे |


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