दामिनी यादव की कवितायें | Damini Yadav ki Kavitayen


एक से बढ़कर एक तलवारें, एक से बढ़कर एक उनकी धारें. कविता को राह दिखाती दामिनी यादव की चार एक से बढ़कर एक कवितायेँ - भरत तिवारी 


दामिनी यादव 

||| बिकी हुई एक कलम...

बिकी हुई कलम के दाम बहुत होते हैं
पर बिकी हुई कलम के काम भी बहुत होते हैं
बिकी हुई कलम को कीचड़ को कमल कहना पड़ता है
बिकी हुई कलम को क़ातिल को सनम कहना पड़ता है
बिकी हुई कलम को मौक़े पर ख़ामोश रहना होता है
बिकी हुई कलम को बेमौक़े ‘सरकार की जय’ कहना होता है
बिकी हुई कलम एक खूंटे से बंधी होती है
बिकी हुई कलम की सियाही जमी होती है
बिकी हुई कलम रोती नहीं, सिर्फ़ गाती है
बिकी हुई कलम से सच की आवाज़ नहीं आती है
बिकी हुई कलम शाहों के तख़्त नहीं हिला पाती है
बिकी हुई कलम सिर्फ़ चरण-पादुका बन जाती है
बिकी हुई कलम से आंधियां नहीं उठती हैं
बिकी हुई कलम से सिर्फ़ लार टपकती है
बिकी हुई कलम एक बेबस वेश्या होती है
बिकी हुई कलम खुशी से अनचाहे जिस्मों को खुद पे ढोती है
बिकी हुई कलम की कोख बंजर होती है
बिकी हुई कलम अपनों की पीठ में घुसाया ख़ंजर होती है
बिकी हुई कलम से लिखा इतिहास सिर्फ़ कालिख पुता कागज़-भर होता है
बिकी हुई कलम का कांधा सिर्फ़ अपने शब्दों का जनाज़ा ढोता है
बिकी हुई कलम और जो चाहे बन जाती है
पर बिकी हुई कलम सिर्फ़ कलम ही नहीं रह पाती है
बिकी हुई कलम सिर्फ़ कलम नहीं रह पाती है...
                              ______________



दामिनी यादव की कवितायें | Damini Yadav ki Kavityen



दामिनी   यादव
damini2050@gmail.com


||| भविष्य की मौत


ये जो दहक रही हैं चिताएं
यहां से वहां तक, वहां से यहां तक
     देखते हैं ये वक़्त
     ले जाएगा हमको कहां तक,
मांस का लोथड़ा-भर है
अभी मुंह में ज़बान
      कुछ न कहने का जारी किया है
      आक़ा ने फ़रमान
कटी जबानों से भी
       कुछ लोग बड़बड़ा रहे हैं
लहू से रंगी हत्यारी कटारों की
       खिल्ली उड़ा रहे हैं,
देखते रहो अभी खामोशी से कि
      आक़ा के हाथी के पांव तले
                ये सब के सब कुचल दिए जाएंगे
पर ज़िद ऐसी है कि
सर फिर भी नहीं झुकाएंगे,
उधेड़ दो खाल इनकी हंटरों से
चाहे उखाड़ लो इनके नाखून
सड़ा दो यूं इनकी लाशों को
                 कि उनसे आए बदबू,
पर अजीब है ये नौजवां कौम
अजीब है ये नस्लें
       कटे हाथों से भी उगा रहे हैं
       खेतों में उम्मीद की फसलें,
लाशों पे रखके कुर्सी
       बैठा है आज जो आक़ा
डाल रहा है आज जो
       मुल्क़ के हर घर में डाका,
कितने घर, कितनी बस्तियां
ये अभी और जलाएंगे
आख़िर तो जाके उनके पांव
       खुद बहाए लहू की कीचड़ में धंस जाएंगे,
कांपेगी इनकी भी रूह
मौत का डर इनके सर पर भी मंडराएगा
तब इनके लहू से सूरज धोकर ही
ये आज का कुचला वर्ग नया सवेरा लाएगा,
तब तक सर्द पड़ा है जिनका लहू
       उसे पिघलने दो,
       जलने दो ये चिताएं अभी
       यहां से वहां तक,
              वहां से यहां तक जलने दो.
                              ______________


||| ग़द्दार कुत्ते


आवारा कुत्ते ख़तरनाक बहुत होते हैं
पालतू कुत्ते के दांत नहीं होते हैं
       दुम होती है,
दुम भी टांगों के बीच दबी होती है
दरअसल पालतू कुत्ते की धुरी ही दुम होती है
वो आक़ा के सामने दुम हिलाते हैं
       और उसी हिलती दुम की रोटी खाते हैं,
आवारा कुत्ते दुम हिलाना नहीं
सिर्फ़ गुर्राना जानते हैं,
जब उनमें भूख जागती है
वो भूख अपना हर हक़ मांगती है
उनकी भूख का निवाला सिर्फ़ रोटी नहीं होती है
       वो निवाला घर होता है
       खेत होता है, छप्पर होता है
उस भूख की तृप्ति कुचला नहीं
अपना उठा हुआ सर होता है,
इन हक़ों की आवाज़
उन्हें आवारा घोषित करवा देती है
और ये घोषणा उन्हें ये सबक सिखा देती है
       कि मांग के हक़ नहीं, सिर्फ़ भीख मिला करती है
       इसीलिए पालतू कुत्तों की दुम निरंतर हिला करती है,
उनका यही रूप व्यवस्था को भी भाता है
सो उन्हें हर वक़्त चुपड़ा निवाला
चांदी के वर्क में लपेट बिना नागा मिल जाता है,
       बदले में व्यवस्था उनसे तलवे चटवाती है
और बीच-बीच में उन्हें भी सहलाती जाती है,
आवारा कुत्ते उन्हें डराते हैं
वो पट्टे भी नहीं बंधवाते हैं,
इसीलिए चल रही हैं कोशिशें तमाम
कि इन कुत्तों को गद्दार और आवारा घोषित कर दो
और इनके जिस्म में गोलियां भर दो,
अपनी सत्ता वो ऐसे ही बचा पाएंगे
चुपड़े निवालों के लालच में
हर उठती आवाज़ को पट्टा पहनाएंगे,
हक के लिए उठती हर आवाज का
घोंट देंगे गला
और पालतू कुत्तों की देके मिसाल
सबसे तलवे ही चटवाना चाहेंगे,
       सिर्फ़ पालतू कुत्ते ही मिसाल होंगे वफ़ादारी की
       आवारा कुत्ते सज़ा पाएंगे थोपी हुई ग़द्दारी की,
ज़माना इन्हें नहीं अपनाएगा
पर इनके नाम से ज़रूर थर्राएगा,
हो जाओ सावधान,
सत्ता और व्यवस्था के ठेकेदारो,
कि जब ये आवारा कुत्ते अपने जबड़ों से
       लार नहीं लहू टपकाएंगे
तब ओ सत्ताधीशो वो तुम्हारी सत्ता की
नींव हिला जाएंगे
और इस नींव की हर ईंट चबा जाएंगे,
ये जीते-जी कभी नहीं बनेंगे पालतू तुम्हारे
       और मरकर भी आवारा ही सही
मगर आज़ाद कहलाएंगे, आज़ाद कहलाएंगे.
                              ______________


||| बिकाऊ तिरंगे


ख़रीद लो
ख़रीद लो कि बिक रहे हैं तिरंगे चौराहों पर
कुछ मासूमों के काले-गंदे-खुरदुरे हाथों में,
शायद उन तिरंगों से तुम्हें
अपनी गाड़ी या दफ़्तर सजाना हो,
शायद बिके तिरंगों की कीमत से उन्हें
उस दिन अपने घर का चूल्हा जलाना हो,
       ख़रीद लो तिरंगे
       कि तिरंगे बेचने वालों में शायद
       कई ऐसे हाथ भी शामिल हों
       जो व्यवस्था से लड़कर आगे तो आए
       मगर इस व्यवस्था की व्यवस्था से
       खुद को बचा नहीं पाए
इनकी कामयाबी पर तो
       सीना ठोककर हिंद भी नाज़ करता है
मगर सड़क किनारे जनमते और मरते इन बदनसीबों को
अक्सर कफ़न तक नहीं मिलता है, इसलिए
ख़रीद लो तिरंगे इनसे
कि तुम इन्हें तो क्या बचा पाओगे
इनका मुकद्दर तो क्या बदल पाओगे,
       बस इनकी एक सर्द शाम को भूखा रहने से बचा लो
       कीमत चुका दो आज इन तिरंगों की और
       खुरदुरे हाथों से ख़रीदे इन रेशमी तिरंगों को
शान से आसमान में फहरा लो.
                              ______________


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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