आकाश में झूठ की धूल
— रवीश कुमार
रवीश कुमार, मीडियाकर्मी और लेखक। एनडीटीवी-इंडिया के वरिष्ठ कार्यकारी सम्पादक। |
क्या हम किसी भय के गणतंत्र में बदलते जा रहे हैं? यह समझने के लिए हमें थोड़ा-सा पीछे मुड़ना होगा। 2014 को देखना होगा। उस वक़्त क्या हो रहा था? देश का युवा जड़ताओं में जकड़ा हुआ था। वह ऐसे दौर की कल्पना कर रहा था, जो अभी तक उसे नहीं मिला था। इस वजह से वह ऐसे आंदोलनों में भागीदार बनता गया, जिनके बारे में वह खुद भी नहीं जानता था कि उनकी दिशा क्या होगी। उसका भविष्य क्या होगा, ढाँचा क्या होगा। वह फिर भी उन आंदोलनों में जा रहा था और अपने आप को हल्का कर रहा था। हम सब भी, उसे बयान करने की प्रक्रिया में, उसके हिस्सेदार बनते हुए नजर आ रहे थे।
हमें पता ही नहीं चला कि कब रिबेल के जनादेश को भय के जनादेश में बदल दिया गया। — रवीश कुमार #RavishKumar
तभी एक शख्स सामने आता है। सामने पहले से था, मगर वह नए मंसूबों से उठता है। एक विकल्प बनने की कोशिश करता है। और 2014 के आकाश में छा जाता है। उसे विराट जनमत मिलता है। उसे जो जनमत मिलता है, वह दरअसल विरोध का जनमत था। रिबेल का जनमत। और हमें पता ही नहीं चला कि कब रिबेल के जनादेश को भय के जनादेश में बदल दिया गया। जनता को बताया जाने लगा कि आप सवाल नहीं कर सकते, क्योंकि किसी का अवतार हो गया है। आप ललना का पलना झुलाइए। आप आलोचना नहीं कर सकते। ऐसी-ऐसी शर्तें बताई गईं कि हुजूर की तरफ उंगली उठाने पर यह पूछा गया कि आप सैंतालीस से पहले कहाँ थे?
मुझे इस प्रक्रिया को देख कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे तो यही लगा कि कोई पुराना गिला-शिकवा है, जो निकल रहा है। लेकिन नहीं मालूम था कि एक पूरा सिस्टम तैयार था, उस रिबेल के जनादेश के इस्तेमाल के लिए। उसे भय में बदलने के लिए। वह शख्स खुद को प्रधान सेवक कह कर हम सब के बीच में आता है। योजना आयोग को भंग कर देने से शुरुआत होती है। हमें बताया जाता है कि एक नई परंपरा की बुनियाद रख दी गई है। उसी दौरान मैं तीन मूर्ति भवन (नेहरू स्मारक) की ओर गया। वहाँ प्रो० सलिल मिश्र से अपने कार्यक्रम के लिए बात कर रहा था कि क्या है यह परंपरा।
वहां एक तख्ती टँगी थी। तख्ती पर लिखा था: “लोग मुझे भारत का प्रधान-मंत्री कहते हैं। लेकिन यह अधिक उचित होता यदि वे मुझे भारत का प्रथम सेवक समझते।" यह नेहरू का कथन था। अब कांग्रेस के लोगों को भी इसकी याद नहीं रही। पर यह नेहरू ने कहा और इस वाक्य को कोई और अपने नाम से इस्तेमाल करने लगे तो इसे प्लेजरिज्म कहते हैं। बौद्धिक चोरी। बस, प्रथम की जगह प्रधान कर दिया। मजा यह था कि कथन चुराया नेहरू का और नेहरू पर ही हमला करने लगे। सीधे नेहरू की विरासत पर।
इस द्वैध को देखकर मैं बहुत बेचैन हो गया। मुझे लगा की झूठ के सहारे कोई शुरुआत हो रही है। प्रधान सेवक कहना ही भारत की राजनीति में सबसे बड़े झूठ का प्रवेश था। क्योंकि यह कथन पहली बार नहीं कहा जा रहा था। यह कथन हमें देकर कोई इस दुनिया से बहुत पहले जा चुका था। जिस पेशे से मैं आता हूँ, देखता हूँ कि धीरे-धीरे लोग उनके कदमों में झुकने लगे हैं। एक स्वचालित भीड़ तैयार की जा रही है जिसके बारे में हमें कोई अंदाज़ा नहीं था कि ऐसी भीड़ हमारे आस-पास है और लोग आटोमेटिक तरीके से ट्रिगर होकर जहाँ-तहाँ अटैक करने लगे हैं।
‘जनता’ का मतलब सत्ता नहीं विपक्ष होता है। — रवीश कुमार #RavishKumar
इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में रवीश को उनकी पुस्तक 'द फ्री वॉइस' के लोकार्पण में सुनने आये लोग, साथ हैं प्रो० अपूर्वानंद. |
अब जो मैं अनुभव कर रहा हूं, वह अलबत्ता जरूर नया है। अगर आपके पास पैसा है, ताकत है, संगठन है, तो आप भीड़ को हिंसा की तरफ मोड़ सकते हैं। देश की जनता पहले से ऐसी नहीं थी। आज भी नहीं है। पर जब वह विकल्प की दुनिया में जाती है तो उसे वहां से कोई जवाब नहीं मिलता है। कि आख़िर विकल्प क्या है? दूसरे, उसे भी तो भयभीत किया गया है। बहुत सारे लोग जो बोल सकते थे, वे पीछे हट गए और हटते-हटते उस डर को उन्होंने भी ओढ़ लिया। डरने के कारण उन्होंने भी प्रतिकार नहीं किया।
गांधी के संघर्ष की इच्छा अब भी हम में है। हमारे पास वही एक आदर्श है। लेकिन उसका एक फेक वर्जन हमारे सामने प्रस्तुत किया गया। उसे एक इवेंट के रूप में लॉन्च किया गया। उसके झांसे में सब आए और उसे संभावनाओं की नजर से देखने लगे। उस वक्त विपक्ष के रूप में भाजपा की वही हालत थी, जो आज हम कमोबेश विपक्ष के रूप में कांग्रेस की देखते हैं। तब हमें लगा कि जनता अपना एक विकल्प बना रही है। पर संगठित पार्टियों के पास दूसरी तरह की चालाकियां होती हैं। उन्होंने इवेंट किया। वह इवेंट आज भी चल रहा है।
देखिए कि गुजरात के चुनाव में क्या हुआ? पानी में एक जहाज उतरा। अब वह जहाज कहां उतर रहा है, किसी को पता है? एक प्रक्रिया है, जहाँ जनता की संवेदनशीलता लगातार आहत हो रही है। पर आप समझ नहीं रहे हैं इस बात को। आप जो खुद को जनता समझते हैं। ‘जनता’ का मतलब सत्ता नहीं विपक्ष होता है। इसीलिए मैं कहता हूँ आपका बोलना बहुत जरूरी है। आप ही समय के साक्षी हैं। अगर लोग नहीं बोलेंगे तो इस तरह के और भी इवेंट आने वाले हैं। मई 2019 के तक इतना झूठ बोला जाएगा, जितना भारत में पूरी सभ्यता की यात्रा में नहीं बोला गया होगा। उन लोगों ने राजनीति में झूठ को वैध किया है।
(रवीश का अपनी पुस्तक ‘द फ्री वॉइस’ के लोकार्पण के दौरान दिए गए वक्तव्य का सम्पादित रूप)
(साभार पत्रिका)
1 टिप्पणियाँ
रवीश जी आपको देख सुन और पढ़ कर मुझे लगता है कि जयचन्द आज भी हमारे बीच रवीश कुमार के रूप में है और हमारे भारत को तोड़ने में लगा है.. जय हिंद
जवाब देंहटाएं