tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post5539583821623233..comments2024-03-19T11:00:05.694+05:30Comments on Shabdankan शब्दांकन: हम अपने दौर का समाज दिखा रहे हैं - महुआ माजीBharathttp://www.blogger.com/profile/09488756087582034683noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-30363922307733730822013-10-20T20:07:44.524+05:302013-10-20T20:07:44.524+05:30एक लेखिका हैं, जिन्होंने अपने दौर का समाज ही नहीं ...एक लेखिका हैं, जिन्होंने अपने दौर का समाज ही नहीं बल्कि अपने जन्म से पूर्व या छह वर्ष की उम्र में ही उस देश के भूगोल का आखों देखा हाल लिख दिया जिस देश में उनका कभी जाना ही नहीं हुआ...उनको दंभ इस बात का भी है कि वे आदिवासी की हित रक्षक हैं और इतने हित रक्षक कि यह हित रक्षण उनको देश हित से या राष्ट्र हित से बढ़ कर लगता है...आदिवासी(एस,टी.) के नाम पर बहुत से लेखक व्यवसाय करते हैं...जिनमें आदिवासी भी शामिल हैं और गैर आदिवासी भी...लेकिन, उनकी दशा दिशा को राह दिखलाने वाला साहित्य लिखने की जगह वह विदेशी चिंतन को अग्रसर करती हैं, आदिवासी के नाम की ओट में नोट बनाने के लिए...एक लेखिका हैं, जिनको एक मठाधीश ने अपनी किताब में 'कुतिया' कह कर संबोधित कर दिया और वह मस्त हैं इस उपाधि को पा कर...पुष्पा जी ने ऐसी ही लेखिकाओं को अपने लेख में समावेशित कर बहुत नेक काम किया है.... dilip tetarbehttps://www.blogger.com/profile/08054354469122484403noreply@blogger.com