tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post5953968861084173672..comments2024-03-20T22:06:43.980+05:30Comments on Shabdankan शब्दांकन: गीताश्री — आ जाओ धड़कते हैं अरमां — कथा-शिविर कोलाज memory of a village #GeetaShreeBharathttp://www.blogger.com/profile/09488756087582034683noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-58095356425460936422019-07-31T12:55:48.361+05:302019-07-31T12:55:48.361+05:30Bahut Acha likha apne Mam.Bollywood se related new...Bahut Acha likha apne Mam.Bollywood se related news pde <a href="https://www.bollywoodtadka.in/" rel="nofollow">Manoranjan Samachar</a> par.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-49847939600995743412017-06-14T15:17:57.942+05:302017-06-14T15:17:57.942+05:30बढ़िया रिपोर्ताज है। भाषा भी अच्छी है। यद्यपि किसी ...बढ़िया रिपोर्ताज है। भाषा भी अच्छी है। यद्यपि किसी को इससे भी शिकायत हो सकती है कि इसमें गांव के यथार्थ की कठोरता की जगह भ्रमण की मृदुता है। सुखद स्मृतियों की ही आत्मीयता है। खैर,<br /><br />सत्यनारायण पटेल की प्रियंवद की कथा भाषा और कथानक के संबंध में टिप्पणी आपको भले साहसिक लगी हो लेकिन मुझे लगता है वह सत्यनारायण जी की समझ की रूढ़ि है।<br /><br />भाषा को लेकर और कहानी के पात्रों को लेकर ऐसी ना समझी बड़ी मुखर रही हैं। इसमें सत्यनारायण जी ने केवल अपना हाथ उठाया है।<br /><br />वास्तव में कहानी के संबंध में यह एक धारणा है। और काफ़ी हद तक जितनी साहित्य में हो सकती है गणितीय है। <br /><br />हिंदी कथा साहित्य में दबे पांव एक ऐसा एक्टिविज्म चलाया जाता है जिसके शिकार निर्मल वर्मा, विनोद कुमार शुक्ल, कृष्णा सोबती आदि हमेशा रहते हैं।<br /><br />मज़ेदार यह है कि पहले कहा जाता है कि प्रियंवद की कथा स्थितियां कृत्रिम हैं। फिर धीरे से बोल दिया जाता है प्रियंवद कहाँ से लाएंगे सरोकार? वे बिजनेस मैन हैं। यह एक बड़ी गहरी समस्या है।<br /><br />यदि इसके शिकार न हों तो प्रियंवद दार्शनिक कथाकार हैं। उनके यहां यथार्थ न केवल काव्यात्मक है बल्कि रागात्मक स्फीति में हमारी चेतना के बहुत निकट है।<br /><br />कुछ साल हुए प्रियंवद का उपन्यास आया था 'धर्मस्थल' न्याय व्यवस्था पर इससे अच्छा उपन्यास मुझे हिंदी में नहीं मिला। <br /><br />भाषा में ही साहित्य संभव होता है। साहित्य भाषा की ही बुलंदी है। और अर्थ केवल पंक्तियों के बीच ही नहीं होता देशकाल के अनुरूप भी होता है। <br /><br />लेकिन जिस तरह की वाचालता और यथातथ्य वर्णन की प्रवृत्ति इन दिनों हावी है उसमें प्रियंवद ऐसी ही महीन ना समझी के शिकार होते रहेंगे। इसका प्रतिवाद होना चाहिए। प्रियंवद की कहानियों की एक लंबी फेहरिश्त है। उनके यहां प्रेम, राजनीति, साम्प्रदायिकता, इतिहास से लेकर दर्शन और कलाओं के अन्तर्सम्बन्ध तक सब बड़े सघन हैं। इतनी व्याप्ति के कथाकार बहुत बहुत कम हैं इन दिनों। प्रियंवद की एक कहानी पर फ़िल्म भी है। 'अनवर' नाम से। एक लंबी कहानी आयी थी वर्षों पहले 'कलंदर'।<br /><br />इस वक़्त की एक बड़ी साहित्यिक ख़ासियत यह भी है कि बहसें नहीं होती। या तो समर्थन होते हैं या नाराज़गी।<br /><br />जो अच्छा है, रागात्मक है और सुंदर है उसकी रक्षा करना और उसे दर्ज़ करना भी साहित्य का बड़ा सरोकार है।<br /><br />प्रेम केवल प्रेम ही नहीं है कि उसमें स्त्री पुरुष ही तो मिलते है । प्रेम सामाजिक मुक्ति का भी उदघोष है। प्रियंवद ने जो जीवन जिया है और जैसी उनकी गहरी दृष्टि है तो वही प्रेम की मुक्ताकाशीय कहानी लिख सकते हैं। वातारण निर्माण में उलझे बिना प्रेम की संवेदना, करुणा और ममता को कहानी बना देना प्रियंवद से ही हो सकता था।<br /><br />एक प्रेम से कितना बदलता और टूटता है इसे किसी प्रेम कहानी को बचाकर भी दिखाया जा सकता है। जब कोई प्रेम कहानी पढ़ता है तो वह भी विद्रोह है।<br /><br />गुरुदत्त और अक्षय कुमार का फ़र्क़ समझा जाना चाहिए। गुरुदत्त ने किसी फ़िल्म में उतना सरोकार नहीं दिखाया जितना अक्षय कुमार ने।<br />शशिभूषणhttps://www.blogger.com/profile/15611262078016168965noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-79143428341335163032017-06-12T20:54:11.004+05:302017-06-12T20:54:11.004+05:30बहुत सुंदर वृतांत... दो ताबीज का सच..बहुत प्रभावित...बहुत सुंदर वृतांत... दो ताबीज का सच..बहुत प्रभावित करने वाला.. ताकि अपनी तकदीर बदल सकूं ������Anil Kumar Singhhttps://www.blogger.com/profile/13391601135493675446noreply@blogger.com