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नपुंसक समय में प्रेम और हिंसा साथ साथ चलते हैं - गीताश्री
अपने पंखों को आकाश दो - गीताश्री
अंधेरो से निकाल कर स्त्री ही देगी एक कंदील  - गीताश्री