कविता—दोहे—ग़ज़ल—ओ—नज़्म, पक्की है युवा कवि गौरव त्रिपाठी के कलम की सियाही अलमारी कभी गौर से देखा है? घर की अलमारी…
प्रताप सोमवंशी की ग़ज़ल Pratap Somvanshi Ki Ghazal उलझ रहा हूं, सुलझ रहा हूं, उजड़ रहा हूं, संवर रहा हूं जितना खुद में डू…
मैनें कब माँगी खुदाई मुस्कुराने के लिए डॉ. एल.जे भागिया ‘ख़ामोश’ की ग़ज़ल मैनें कब माँगी खुदाई मुस्कुराने के लिए…
असली स्वाद पाने के लिए रसिक मूल भाषा को अधिक पसंद करता है - भरत तिवारी हर बोली का एक अपना-काव्य होता है, भाषाओं का विस्तार और भा…
वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां — भरत तिवारी वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां हो बुझाने वालों तुम कहाँ यहाँ आग घर तक पहुँच रही ज…
क्या ही विडंबना है आज अंतत: दोनो जगह (भारत और पाकिस्तान) अंग्रेज़ी महारानी का ताज पहन कर सत्ता, रुतबे और महत्वाकांक्षा का प्रतीक बन राजकाज …
खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? गुलज़ार खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? एक ख़ामोश-सा जवाब तो है। डाक से आया है तो कुछ कहा होगा "कोई …
हाल की घटनाओं पर जाने-माने ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव की नई नज़्म ये टोपी और तिलक-धारी ~ आलोक श्रीवास्तव टोपी, कुर्ता, छोटा जामा हर रोज…