जीवंत भाषा जनता के कारखाने में ढलती है - राहुल सांकृत्यायन
पुराना मार्क्सवाद सेक्सुअलिटी नहीं समझने देता - अभय दुबे
ग्यारह रचना आभा की
रक्षा में हत्‍या -  मुंशी प्रेमचंद
लोकार्पण:  ‘ख़्वाब ख़याल और ख़्वाहिशें’ - कैप्टन नूर
नव समानान्तर सिनेमा - सुनील मिश्र
टेसू - संजय वर्मा "दृष्टि"
गोल्डी साहब के साथ होली - दिलीप तेतरवे