tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post8718111249970163948..comments2024-03-20T22:06:43.980+05:30Comments on Shabdankan शब्दांकन: कहानी : प्रेम भारद्वाज : था मैं नहीं (भाग 2)Bharathttp://www.blogger.com/profile/09488756087582034683noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-28821017243038634152013-08-25T01:51:43.145+05:302013-08-25T01:51:43.145+05:30achhi kahani hai
-om sapra, delhi-9
achhi kahani hai<br />-om sapra, delhi-9<br />Om Saprahttps://www.blogger.com/profile/14194981019196817883noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7457103707258421115.post-86845866859871182302013-02-25T13:40:02.496+05:302013-02-25T13:40:02.496+05:30इस कहानी को पहली बार मैं घर जाते वक्त "पुनर्न...इस कहानी को पहली बार मैं घर जाते वक्त "पुनर्नवा" में पढ़ रहा था और ऐसा महसूस रहा था कि यह कहानी नहीं, मेरी जिन्दगी है- मसलन मेरे पिता भी किसान मैं कैरियर की तलाश में पलायनवादी पुत्र। अरे मेरी ही नहीं उसकी भी जिन्दगी जो मेरे साथ दिल्ली में रहता है। और कौन? ....... इस कौन के जवाब में सारे के सारे अपने-अपने गाँव के पलायनवादी मेरी नज़रों में इस कहानी के अन्दर वैसे ही दिख रहे थे जैसे कभी अर्जुन को कृष्ण के विराट रूप में सारा हाहाकार दिख रहा था।<br /> वाकई प्रेमजी की इस कहानी ने अन्दर तक छुआ। एक बार पुनः इस कहानी से साक्षत्कार कराने के लिए "शब्दांकन" को धन्यवाद। सिद्धार्थ प्रताप सिंह https://www.blogger.com/profile/07682756014136700966noreply@blogger.com