हंस – एक अंजुमन जिसमे जाना था बारबार रवींद्र त्रिपाठी राजेंद्र यादव के बारे में कहां से बात शुरू करूं? शुरू से शुरू करूं या अंत से? शुरुआत तो …
आगे पढ़ें »अब जो प्रस्तुत है उसका आधार है जैसा मैने जाना के अलावा जैसा राजेन्द्र जी ने जहां तहां लिखा और उसे जैसा मैने पढ़ा। – अर्चना वर्मा आत्मकथ्य सिर्फ अप…
आगे पढ़ें »एक विचार के रूप में हमारे साथ सदा रहेंगे राजेन्द्र यादव अजित राय ठीक रात के बारह बजे जब तारीख बदलती है, जब 28 अक्टूबर 2013 की जगह चुपके से 29 अ…
आगे पढ़ें »अवसान एक युग पुरुष का अशोक मिश्र सुबह की पौ फूटते ही जैसे ही मोबाइल फोन को उठाया वैसे ही स्क्रीन पर कई मिस्ड काल और इनबाक्स में मैसेज दिखे। पह…
आगे पढ़ें »राजेन्द्र यादव और नामवर सिंह Rajendra Yadav and Namvar Singh
आगे पढ़ें »राजेंद्र यादव होने का महत्व चंचल चौहान राजेंद्र यादव नहीं रहे। अभी अभी उनके पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित करके दिल्ली के लेखकों का भारी हजूम…
आगे पढ़ें »राजेन्द्र यादव ने मुझे अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी दी राजेन्द्र यादव नहीं रहे, सोचकर हैरानी होती है कि वे अब नहीं हैं। दो-चार दिनों पहले तक वो…
आगे पढ़ें »राजेंद्र यादव स्मृति सभा जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित साहित्य कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के जा…
आगे पढ़ें »श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए एस० आर० शर्मा
आगे पढ़ें »श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए उनके परम मित्र श्री टी.एन. लालानी श्री राजेन्द्र यादव की य…
आगे पढ़ें »मैंने अपना मोबाइल उठाया है, राजेंद्र जी और फोनबुक में आपके नाम तक पहुंची हूं। वह चमक रहा है, लग रहा है अभी उस नंबर से घंटी बजेगी और आप बोल पड़ेंगे। …
आगे पढ़ें »श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए कथाकार संजीव .
आगे पढ़ें »परिचय को रोमांचक कर गए। प्रश्नो को मुक्त करने वाले, तुम सोए नहीं अब जागे हो। रूढ़ीवादिता के छज्जे तले, घुटती सांसो को खुला आसमान देने वाले। द…
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एक युग का अंत ''डॉ राजेन्द्र यादव का साहित्यिक परिवेश से अचानक चले जाना-एक युग के अंत जैसा है, इस अभाव की पूर्ति नहीं जा सकती''…
आगे पढ़ें »राजेन्द्र यादव और ओम थानवी Rajendra Yadav and Om Thanvi
आगे पढ़ें »किसी के जाने से समय रुकता नहीं, साहित्य भी समय सा ही गतिमान, समय सा निष्ठुर कहाँ किसी के आने जाने से विचलित हुआ है, किंतु राजेन्द्र यादव का आना और अ…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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