लरिकाई के प्रेम . . . (लम्बी कहानी) – महेन्द्र प्रजापति महेन्द्र प्रजापति त्रैमासिक पत्रिका ‘समसामयिक सृजन’ का पांच वर्षों से संपादन पुस्…
आगे पढ़ें »मैं राम की बहुरिया राजेन्द्र राव सुखदेव प्रसाद अपनी मारुति-८०० में पहुंचे। पार्किंग में खड़ी करने लगे तो कुछ अकिंचन होने का एहसास…
आगे पढ़ें »एक बार फिर होली ! तेजेन्द्र शर्मा नजमा के लाल होते गालों ने जैसे दुर्गा मासी पर लाल सुर्ख लोहे की छड़ ज़ैसा काम किया था। शाम होते-होते इस…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
Social Plugin