सहारा समय  यूपी/उत्तराखंड लाइव
 हम अपने दौर का समाज दिखा रहे हैं    - महुआ माजी
हम साहित्य से ही अनुभूति पाकर अधिक संवेदनशील हो सकते हैं - सीताराम येचुरी
"स्मिता पाटिल" की याद में लिखी "कृष्ण बिहारी" की कविता
कविता की रफ़्तार उबड़-खाबड़ जमीं पर तेज हो जाती है  - कल्याणी कबीर
रवीन्द्र कालिया  - दस्त़खत (अक्टूबर 2013)