रीता दास राम अपनी इस ईमानदार कहानी ‘रंगीन होते ख़्वाब’ में लिखती हैं:
कोई झेल पाता है कोई नहीं। बस आत्म-सम्मान ज़िंदा रहे। उसके बिना चलना ज़िंदा मौत है। झेलना तो अपनी ख़ुद की ईमानदार तैयारी पर निर्भर है। रुकावटें कहाँ नहीं आती। व्यक्ति पार पाने की कम से कम कोशिश तो करे। समय अपने आप सामने-सामने रास्ता बताता चलता है।
रीताजी को शब्दांकन के लिए कहानी लिखने का आभार और शुक्रिया। ~ सं०