जीव गान - प्रेम शर्मा

नाहिन चाहिबे
नाहिन रहिबे
हंसा व्है उड़ि जइबे रे !
*
काया-माया
खेल रचाया
                 आपु अकेला
                 जग में आया
भीतर रोया
बाहिर गाया
नाहिन रोइबे
नाहिन गाइबे
तम्बूरा चुपि रहिबे रे !
**
सब सुख सूने
सब दुख दूने
                 पात पडंता
                 मरघट-धूने,
नेह बिहूने
गेह बिहूने
                 अगिन पंख
                 झरि जइबि रे,
नाहिन जीइबे
नाहिन मरिबे
मरन-कथा क्या कहिबे रे !



प्रेम शर्मा
                                            ('गंगाआँचल', जनवरी-मार्च, २०००)

काव्य संकलन : प्रेम शर्मा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी