राजेन्द्र यादव जी के कमाल को समझना तकरीबन नामुमकिन है लेकिन प्रिय लेखक प्रियदर्शन का यह लेख यादवजी के कमाल को बहुत पास से दिखला गया। ~ सं0
पराजय कब नहीं थी कब नहीं थे झूठ के वाहवाह करने वाले लेकिन तभी दल-दल से निकल आया था समय करिश्में और भाग्य से नहीं मनुष्य के उत्साह और संसर्ग से। …
उषाकिरण खान का जाना हिन्दी जगत को स्तब्ध कर गया है। हिन्दी वाला चाहे जहां का भी हो उनसे प्यार पाता था। ऐसे ही प्यार को युवा लेखिका अणु शक्ति सिंह सा…
बीते दिनों बाबा, गुलज़ार साहब हमारे शहर फ़ैज़ाबाद गए थे. बड़ा मन था वहाँ उस समय होने का, जा नहीं सका लेकिन, शहर की उभरती लेखिका कंचन जायसवाल ने अपने (…
ममताजी जैसा मित्र तो, जैसा आप गीताश्री के संस्मरण में पढ़ेंगे, मेरा भी कोई दूजा नहीं है। ममताजी अगर कमाल हैं तो गीताश्री भी अब कमतर नहीं रहीं हैं! आज…
व्यस्त ज़िंदगी के इतवार की सुबह यदि, मृदुला गर्ग अपनी सिग्नचर स्टाइल में मगहर से जुड़ा संस्मरण लिखकर भेज दें तो, आराम को छोड़कर उसे आप तक पहुंचना मेरी …
नए, उभरते लेखकों को पढ़ने का अपना एक अलग मज़ा है। केतन यादव युवा लेखक हैं और अनामिकाजी व गीताश्री के साथ अपनी मगहर यात्रा के संस्मरण को कुछ रोमांचक ढं…
मुझे हमेशा लगता रहा है कि हम जितना दूसरों के अनुभवों को समझकर जानकार बनते हैं, उतनी आसानी से और किसी तरह नहीं। खुश हूँ कि गीताश्री ने अपनी यादों को …
वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला गर्ग ने यहाँ जो अनुभव साझा किया है वह सच में हौलनाक है। नुसरत ग्वालियारी का शेर याद आया - "रात के लम्हात ख़ून…
मंजुल भगत जी की आज 22 जून 2022, को 86वीं जयंती है। उन्हे नमन और उनकी छोटी बहन, हमसबकी प्रिय मृदला गर्ग का शुक्रिया कि उन्होंने मंजुल भगत जी का यह बे…
खीसे निपोरते सरदारों को सीख देना मुझे बख़ूबी आता था। मैंने चुपचाप अपने पड़ोसी सरदार के सामने से (पता नहीं बल्ब वाले (खुशवंत सिंह) थे या बिना बल्ब वाले…
स्मृति: मन्नू भंडारी 1931-2021 ~ ममता कालिया
जैसे-जैसे मृदुलाजी के इन संस्मरणों को पढ़ता जाता हूँ, उनके, हिन्दी साहित्य की स्त्रियों के प्रति सम्मान बढ़ता है। भारत की महिलाओं को 'स्त्री विमर्…
मृदुला गर्ग जी का आज (25/10/21) जन्मदिन है। उन्हें ढेरों शुभकामनाएं। आनंद लीजिए उनके संस्मरण 'बल्ब वाले सरदारजी' के इस अंश का, जिसमें वह लिख…
किसी एक व्यक्ति के सुख से न तो खेतों में हरियाली छा जाती है, न उसके दुख के ताप से खेत, नदियां तालाब सूख जाते हैं। जब मन में पीड़ा का आलोड़न हिलोरें ले…
हमने हर तरह की बातें की पर रचना का ज़िक्र छिड़ने पर पंडिताई पर नहीं उतरे; ख़ुशदिल रचनाकार बने रहे। सफ़र में ऐसे लोगों का साथ सुकूनदेह होता है, अपने कहे …
नाटक तो भावनाओं का खेल है – इब्राहिम अल्काज़ी – रवीन्द्र त्रिपाठी
इस आखिरी किस्त के साथ विनोद भारद्वाज जी की किताब यादनामा पूरी हो गयी है। इसका उप-नाम है, लॉकडाउन डायरी, कुछ नोट्स, कुछ यादें । जल्दी ही किताब भी स…
विनोद जी अपने संस्मरणों में, इसके पिछले लेखन (जापान वाले 'साकुरा की यादें') से, खूबसूरत कवि-से हो गए हैं! उनके इस सौन्दर्य भरे परिवर्तन से उ…