" जाति एक सच है परंतु उस के भीतर वर्ग भी साँस लेता है, किसी गर्भस्थ शिशु की तरह। ", दलित साहित्य का स्वरूप निखारती, अजय नावरिया की र…
यह आम रास्ता नहीं है अजय नावरिया अशोक इस तरह की मुस्कुराहटों का का…