समीक्षा लिखते समय यदि लेखक यह याद रखे कि गद्य पढ़ने का आनंद उसके प्रवाह में होता है, तो वह विजय पंडित द्वारा लिखित, हाल में आयी किताब — अवसाद का आनंद…
भाषा मौन है। हृदय में उल्लास के बजाय सिहरन हो रही है। यह कैसी कहानी है जो इतनी अ यथार्थ होते हुए भी, किस जादू से एकदम सच हो गई है। यथार्थ नहीं सत्य…
समीक्षा हो सकता है कि इस मुद्दे की कोई अंतर्कथा हो, लेकिन उनकी अनुपस्थिति खलती है और यह हिदी साहित्य के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है... लमही के अमृत …