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तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया


जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंदी व पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर रह चुके, हिंदुस्तान की कई पीढ़ियों को हास्य-व्यंग्य  से परिचित कराने वाले अशोक चक्रधर की अपने विश्वविद्यालय पर आजबीती पर टिप्पणी

तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की

अशोक चक्रधर

तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया

चौं रे चम्पू! तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की?



जामिआ मिल्लिआ इस्लामिया में आने के बाद मैंने जनाब अब्दुल गफ़्फ़ार मधोली की ‘जामिआ की कहानी’ नामक किताब पढ़ी थी। जामिआ के पुस्तकालय में बैठ कर। वहीं  पुरानी जामिआ की पुरानी अलबम भी देखीं थीं। गांधीजी के अतिरिक्त अनेक वतनपरस्त मुस्लिम नेताओं के चित्र थे। सन् उन्नीस सौ बीस में बारह अक्टूबर को, बारह बजकर बारह मिनट पर, अलीगढ़ के अंजुमन-ए-इत्तेहाद के विक्टोरिया गेट पर गांधीजी का भाषण हुआ, जिससे प्रेरित होकर तेरह अक्टूबर को कॉलेज के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ से अपील की गई कि वे ब्रिटिश सरकार से ग्रांट लेना बन्द कर दें और उसके शिकंजे से अपनी संस्था को आज़ाद कराएं। मौलाना मौहम्मद अली ने जोशीली तकरीर करी। छब्बीस अक्टूबर को ट्रस्टीज़ की मीटिंग हुई। ब्रिटिशपरस्तों को वतनपरस्तों के तेवर नागवार गुज़रे। कुछ छात्रों ने कॉलेज पर कब्जा कर लिया। कॉलेज ख़ाली कराया गया और चचा, अलीगढ़ की जामा मस्जिद के पास उन्नीस अक्टूबर उन्नीस सौ बीस को, तम्बुओं में जामिआ मिल्लिआ इस्लामिया की स्थापना हुई। कुछ बरस बाद संस्था दिल्ली के ओखला क्षेत्र में स्थापित हुई।



तौ अगले साल पूरे सौ साल है जामिंगे?

हां हो जाएंगे सौ साल, पर साल रहा है एक सवाल कि उस पुस्तकालय में कैसे हुआ बवाल, जहां बैठकर मैंने एक तस्वीर रह रह कर निहारी थी। सैकड़ों की संख्या में बच्चे सड़क बना रहे हैं। आज ओखला से एस्कॉर्ट्स अस्पताल तक, जिस सड़क पर पुलिस और छात्रों की झड़प हुई और पत्थर बिखरे पड़े हैं, वह सड़क किशोर बच्चों ने सिर पर पत्थर ढो-ढो कर बनाई थी। एक बच्चे ने ही जामिआ की बुनियाद रखी थी। फोटो में बच्चों का श्रमदान देख कर आपकी भी आंखों में प्रशंसा के आंसू आ जाएंगे। जामिआ के कुछ घोषित जीवन-मूल्य थे, तालीमी आज़ादी, वतन दोस्ती, कौमी यकजहती यानी राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, ज्ञान की विविधता, सादगी और किफ़ायत, समानता, उदारता, इंसान-दोस्ती, धर्मनिरपेक्षता, सहभागिता और प्रयोगधर्मिता।


तोय तौ रटे परे ऐं।

आख़िर उन्तीस साल जामिआ में बिताए हैं चचा। मुझे अफ़सोस है कि आज उसका नाम हिंसक संदर्भों में लिया जा रहा है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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