'विपश्यना' उपन्यास में इंदिरा दांगी ने बहुत प्रभावित किया था। बीएचयू प्रोफेसर प्रभाकर सिंह की समीक्षा (Review Vipshyana Indira Dangi) पढ़ते …
आगे पढ़ें »कहानी की कोमलता को लेखक भूल तो जाता है लेकिन वह यह नहीं जानता कि यह कोमल-तत्व घर की दाल के ऊपर तैरते जीरे की माफ़िक होता है...जो बाहर की दाल में…
आगे पढ़ें »साँप वाला बॉक्स उठाया और फिर दौड़ा — शायद बिना ही साँसों के। और अबकी जो गिरा... लिखते जाओ इंदिरा दाँगी...लिखते जाओ. प्रिय लेखक यों ही नही…
आगे पढ़ें »‘‘अम्मा भूख लगी है !’’ ‘‘अभी तो खाई थी रोटी घण्टा भर पहले !’’ दीपा चुप है किसी गुनहगार की तरह; लेकिन उसकी रिरियाती दृष्टि में भूख़ साक्षात् …
आगे पढ़ें »Hindi drama writing, an Art form getting extinct. — Anant Vijay इंदिरा दांगी के नाटक 'आचार्य' से मेरा जुड़ाव आत्मीय है, वो ऐसे …
आगे पढ़ें »कहानी - नईम कव्वाल इंदिरा दाँगी टूटी मज़ार के आगे एक सूनी सड़क जाती है। सड़क के भी आगे, कच्चे रास्ते पर चली जा रही है एक लेटेस्ट माडल क…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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