मुसलमान - मीडिया का नया बकरा ― अभिसार शर्मा #AbhisarSharma

भारतीय मीडिया में मुसलमानों की छवि अक्सर नकारात्मक और पक्षपाती होती है। अभिसार शर्मा का यह आलेख इस संदर्भ में मीडिया के पूर्वाग्रह और उसके दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालता है, जो समाज में ध्रुवीकरण और गलतफहमियाँ उत्पन्न करता है।

अभिसार शर्मा का व्यंग्य

मुसलमान - मीडिया का नया बकरा



एक जमाना था और वो भी क्या जमाना था . जब टीवी स्टूडियो मे एक पाकिस्तानी को इस्लामाबाद मे बिठा दिया जाता था और खुलकर सब उसे गरियाते थे. जमकर पिटाई होती थी और घरों मे बैठे दर्शकगण ताली पीटते थे और उन्हे आभास होता था कि हमने पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया .बहुत मज़ा आता था. कुछ एंकर्स तो इसके चलते सुपरस्टार हो गए . पाकिस्तनियों को भी कोई प्राबलम नहीं होती थी क्योकि उन्हे टीवी पर ज़लील होने की मोटी रकम मिलती थी . मगर फिर टीवी चैनल्स को आभास हुआ कि पाकिस्तानियों को टीवी पर बुलाकर ज़लील करना थोड़ा महंगा पड़ रहा है . अब अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन तो आए नहीं , लिहाज़ा किनारों को कुतरने का काम शुरू हो गया जिसे अंग्रेज़ी मे कास्ट कटिंग कहते हैं. लिहाज़ा नए बकरे ढूंढ़े जाने लगे . फिर किसी को याद आया कि भई देश का मुसलमान कब काम आएगा . एक तो वैसे भी कोई काम नहीं करता . घर बैठे दिन भर बीफ खाता रहता है, ऊपर से इसे वंदे मातरम से भी प्राबलम है यानि के देशभक्त भी खास नहीं है . ऊपर से सोशल मीडिया और आम जन जीवन मे एकटिव मोदी भक्त भी इससे परेशान रहता है . वो मोदी भक्त जो टीवी चैनल्स को टीआरपी देता है . लिहाज़ा दाव खेला गया . और क्या खेला गया . बम्पर रेटिंग . छप्पर फाड़ दर्शक .

अचानक टीवी पर बाढ़ आ गई मुद्दों की. मानो देश मे इससे बड़ा कोई मुद्दा ही नहीं है . तीन तलाक , गौरक्षा और बीफ , अज़ान से उठने वाला शोर , एंटी रोमियो अभियान . अब देश मे पूरी तरह राम राज्य आ चुका है . दिल्ली मे मोदी तो लखनऊ मे योगी हैं.  कोई भूखा नहीं है . अर्थव्यवस्था दहाड़ रही है  . कश्मीर मे शांतिकाल आ गया है. इतना अच्छा वक्त तो यहां कभी नहीं आया. क्यों ?  किसान अपनी खुशी को संभाल नहीं पा रहा है  . खुशी के आंसू तो सुने होंगे ...वो खुशी के मारे आत्महत्या कर रहा है  . जाहिर सी बात है मुद्दे बस यही रह गए हैं  . अब टीवी पर पहलू खान की हत्या , तेजबहादुर की बर्खास्तगी , बाबरी पर फैसला , तमिल नाडु के किसानो का मुद्दा थोड़े ही दिखाया जाएगा . इन तुच्छ मुद्दो को दिखा कर हम अच्छे दिनो की चमक धूमिल नही न करेंगे ?

अब जहां नज़र दौड़ाएं , यही मंज़र दिखाई देता है . मुसलमान या तो आईएसआईएस मे शामिल हो सकता है ,  अपनी बेचारी पत्नी पर अत्याचार कर सकता है या फिर गौ माता का भक्षक हो सकता है . हिंदू मर्द कहां अत्याचार करते हैं? वो गाय की भी कितनी रिस्पेक्ट करता है . कभी देखा है सड़क या गलियों मे गाय माता तो कचरा खाते हुए. तभी तो . किसी की मजाल है गाय माता के बारे मे कुछ कह दे . जान मार देंगे . और हां.  कभी देखा है किसी हिंदू औरत को जिसे उसके पति ने बेसहारा छोड़ दिया हो. संस्कारी हिंदुओं का नमूना देखना हो तो मोदी भक्तों की जुबान देखिए . सोशल मीडिया पर इनका आचरण देखिए. टोटल संस्कारी . अब इस सरकार और मीडिया का मक़सद है कि जिस खुशहाली मे हिंदू औरत रह रही है वैसे ही हालात मुस्लिम महिलाओं के लिए पैदा करना है .

क्योकि असल मुद्दा भी यही है अब मीडिया के लिए . वैसे भी मुद्दे भी वही दिखाए जाएं ना , जिसे दिखाने के बाद किसी की फीलिंग्स हर्ट न हो . किसी को चोट न पहुंचे . बीजेपी और उसकी सहयोगी संस्थाओं की फीलिंग्स हम कैसे हर्ट कर सकते हैं . बोलो तो ? आप भी ना .


ये मीडिया का स्वर्ण काल है . इससे बेहतर हालात शायद ही रहे हों . हां , 1975-77 के दौर मे भी मीडिया का गोल्डन काल आया था , कुछ लोग बताते हैं. सुना है उस वक्त भी झुकने के लिए कहा गया था ....पूरी तरह लेट गए थे .

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय