पारुल पुखराज की कविताएँ बातूनी और अति-आग्रही न हो कर पारुल पुखराज की कविताएँ अवकाश को स्वयं रचे जाने का स्थान देती हैं। उनका शब…
निरन्तर अन्तर्यात्रा की कविता — प्रभात त्रिपाठी समीक्षा ‘जहाँ होना लिखा है तुम्हारा’ अभी मैं इसी पर सोच रहा हूँ। मैं अपने सोचने को ह…
लौटना है फिलवक्त जहाँ हूँ — अनिरुद्ध उमट "कोई कवि यशः प्रार्थी कवि है या नहीं, इसे जाँचने की मेरे पास एक ही कसौटी है। यदि वह मुझ स…