पारुल पुखराज की कविताएँ

बातूनी और अति-आग्रही न हो कर पारुल पुखराज की कविताएँ अवकाश को स्वयं रचे जाने का स्थान देती हैं। उनका शब्द संयम और शैल्पिक सधाव कविता को उसके उच्चतम स्तर तक ले जाता है। जीवन इनकी कविताओं में अपने राग होने की अवस्था को बहुत ही नैसर्गिक रूप में प्राप्त कर पाता है। वरिष्ठ लेखिका राजी सेठ के अनुसार,'तुम्हें पाने के लिए बार-बार तुम्हारे शब्द-चिन्हों से गुजरना पड़ेगा। वे कोई वस्तु या पदार्थ नहीं हैं जिन्हें कोई छू-पा ले। लय की यह यात्रा संकेतों के आकाश में खुलती है।'
शब्दांकन पर आप कविता अनुरागियों के लिए, पारुल पुखराज द्वारा रचित काव्य श्रृंखला
तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है'
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1_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है⋮
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देखना भाया मुझे
तुम्हें छूना
देख कर छू लिया
तुम्हें
मुझे छू कर तुमने
लिया देख
अब हम
दृश्य
स्पर्श से परे
गान हैं खुद का
तिरते
मानसरोवर के मराल
धीमे-धीमे
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2_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
००००००००००००००००
अकुलाती रही देर तक
चेतना पर
किसी अस्तित्व की भाप
दृष्टि का उछाह
विलास
नेह का
स्पर्श
रह गया
होते-होते वहाँ
अक्सर स्वप्न में
अंकित किया
उसके
होंठ के किनार पर
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3_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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स्मृति गिर रही थी जब
बासी देह पर
तुम्हारी
चेतना पर स्वेद कण
चुग रहे थे
रतनारे नयन
क्षण वह
प्रार्थना का
आनन्द
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4_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
ईमेल: parul28n@gmail.com
मोबाईल: 9430313123
अधूरे आलिंगन के निकट
छूट गए
थोड़े
रह गए जहाँ तुम
चैत चढ़ी साँझ
हुई समाप्त अनमनी
मेरी यात्रा
वहीं पथ पर
देखने के बाद का रहना
बताएँगी
परछाईं छू कर लौटी आँखें
अंजन की बह आई रेख
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5_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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तारीख है या कोई घर
प्रतीक्षा
द्वारपाल
हम
तुम
आगन्तुक या
रहवासी
आए गए
या
नहीं भी
कौन जाने
देख भर लेने की कामना में
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6_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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इतने करीब बैठे
जैसे बहुत पास
सच में
कंधे का कंधा
सहारा
पीठ से पीठ टेक
बोल-अबोल
सघन चाह
गान सरस
थिरक अनाम धुन पर
उड़ा मेहराब को मेरे
तेरा मौन पाखरू
पतझर अपनी ही हथेली पर
पाँव
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7_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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जाने कितने दिवस बीते
बिन बतियाए
पत्ते बटोरते
भर जाता बार-बार
सहन
हृदय
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8_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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योजन पार से निहारती
तिनका भर दूब
कीट पतंगों
भेड़ शावकों से
उपेक्षित
सकुचाई तन्द्रिल धरा पर
तुम्हारी हथेली की
चरागाह में
अपनी एषणा
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9_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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चिहुँक उठी स्मृति कोई
अस्तित्व के अँधेरे ताल पर
फूँकती तट पर बला दीप
बिखेरती फूल अल्पना के अँगूठे की कोर से
मुस्काती पुनः भरती पोरों से रँग
टोहती
हथेलियों से छुपा देह-राग
साँस-साँस सम्पूर्ण मालकौंस
करुण उजास में अपने
जैसे दूज का यह कोमल
नवजात चन्द्र
अकेला और
पवित्र
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10_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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आनन्द में हूँ
भोग से परे
प्यासा जानकर भी
तुम्हें
न दे सकी जल
ओ महानद !
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11_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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सम्भव है वही धूप छाई हो
वैसे ही घिरे हों मेघ
आगमन के तुम्हारे
मीठा जल कुएँ का उतना ही
तुम्हारे देखने में साँझ
करुण और विकल
सम्भव है हथेली कुतरने का निशान
अब तलक नर्म और सुवासित हो
गाता हो कोई मद्धम मालकौंस
उसी दुआरे
गुहारा था जब तुम्हें
सम्भव है
सब कुछ
लौटेगा कैसे कोई अब वहाँ
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12_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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जबकि यह सुबह है अभी
घाम इस पृथ्वी पर यूँ विस्तारित
कि जैसे तुम
समूचे मेरे लोक पर
पत्ता-पत्ता
ढाँपते
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13_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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नयन सजल थे
मेरे
तुम्हारे
आवाज़ ढावस थी
तिनका कोई बह गया था
कोर से
दृश्य क्या था
कौन जाने
विलाप
आलाप हो रहा था
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14_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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और फिर
क्षण भर ही रहे
मेरे आकाश में
डूबती साँझ के इंद्रधनुष
तुम
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15_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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एक थोड़ी-सी हँसी
अटकी है मेरे कंठ में
तुम्हारी
हिचकी सुनता है श्रावण
सुदूर किसी चरवाहे की टेर पर
समग्र जंगल गा उठा
पिए जल कौन
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16_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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स्वर सदा रहे अभंग
भटकी नहीं
प्रार्थना कभी
अंगुली पीठ पहचानती रही
सुख का आँसू अपनी आँख
साँस-साँस खरकता रहा
प्रथम अक्षर नाम का
सुध रही, फिर नहीं भी
उलझी लट सुवासित
समूची देह हरसिंगार
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17_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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निरर्थक हो गया रोना सारा
उजली इतनी हँसी थी
अनुपस्थितियों की जगह
क्षण भर होने की कौंध
तृप्त कर गयी
जीवन इतना भर
कि उसे गाया जा सके
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18_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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और फिर जो यह भी न हो
तो क्या दुःख
कुछ भी न हो
न गीत
न बोल
न सरगम
न तुम
न हम
नित विलुप्त हो रहा संसार
हमारी ऐषणाओं की निर्मिति
गूँगे लोकवासी
लौट जाएँ अपने एकांत में
यात्राएँ असमाप्त रहें, बदल जाएँ सहयात्री
कुछ भी न हो, कहीं भी
क्या दुःख
अनसुनी पीड़ाओं की ध्वनियाँ
आकाश सोखता है
चौमासा उन्हीं दुखों का गान
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19_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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देर तक भीगते रहे अधर
तुम्हारी निश्छल हँसी
रिसती रही याद में
संसार के अजाने किसी द्वीप पर
जीवों
मनुष्यों
सभ्यताओं की छुअन से दूर
गुफा एक
रचती है कमल पुष्प
शिलाएँ विहँसती हैं
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20_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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स्मृति से झाँकता काँधा
ज़रा सा वक्ष तुम्हारा
पंछी ने देखा
घर लौटते
बटोही ने
क्लान्त मुख हो गया रक्ताभ
अस्ताचल सूर्य का
तुम्हारा नाम
अब मेरा
सम्पूर्ण मालकौंस
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21_________________________तुम्हारा नाम सम्पूर्ण मालकौंस है
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साथ रह जाता है
दृष्टि का उजास
हँसी का बाँकपन
साँस इत्मीनान में अपने
कभी उछाह में
अमिट अनछुआ
छुए की भाप
प्रेमिल दोपहरों की नदी में
देह का रेत होना
भीतर टूटी कोई लहर
भय
प्रायश्चित
आशंका
मात्र शब्द
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पारुल पुखराज कविताओं के अलावा डायरी, संस्मरण आदि विधाओं में भी लिखती हैं। 2015 में इनका पहला कविता संग्रह ' जहाँ होना लिखा है तुम्हारा' प्रकाशित हुआ। इन दिनों बोकारो स्टील सिटी (झारखण्ड)में रहती हैं।⋮
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ईमेल: parul28n@gmail.com
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