मुझे हमेशा लगता रहा है कि हम जितना दूसरों के अनुभवों को समझकर जानकार बनते हैं, उतनी आसानी से और किसी तरह नहीं। खुश हूँ कि गीताश्री ने अपनी यादों को …
रवींद्र कालिया संपादित ‘नया ज्ञानोदय’ का प्रेम महाविशेषांक (नवंबर, 2009) के पुनर्प्रकाशन (जिसमें पहले ममता कालिया की कहानी निर्मोही आ चुकी है) में …
साहित्यकार गीताश्री ने बिहार की पाँच कवयित्रियों - उपासना झा, नताशा, निवेदिता, सौम्या सुमन और पूनम सिंह की कविता पर यह आलेख लिखकर बहुत ज़रूरी काम किय…
विज्ञान में पीएचडी अभिषेक मुखर्जी ने गीताश्री के उपन्यास क़ैद बाहर (राजकमल प्रकाशन) की समीक्षा पूरे हृदय से लिखी और अच्छी हिन्दी से सजाई है। उन्हे और…
अच्छी फ़िल्मों को देखना बहुत ज़रूरी (और साहित्यिक) होता है। यह तब और अच्छा हो जाता है जब गीताश्री सरीखा संवेदनशील लेखक किसी ऐसी फिल्म को देख, फ़िल्म की…
गीताश्री इस समय की सशक्त कथाकार अकारण नहीं हैं, आप 'केस स्टडी' पढ़िए, उनकी इस कहानी का प्लॉट और उसका ट्रीट्मन्ट, पात्र और उनका संचालन सब दिखल…
किसी एक व्यक्ति के सुख से न तो खेतों में हरियाली छा जाती है, न उसके दुख के ताप से खेत, नदियां तालाब सूख जाते हैं। जब मन में पीड़ा का आलोड़न हिलोरें ले…
मत्स्यगंधा गीताश्री की कहानी “हे निषाद देवता...ई औरत तो सचमुच सनकल पुजारिन हो गई है। क्या गा रही है। सुरसती लोकगीत गाती है सुर में। गीतगाइन सुर…
मैंने राजवंती के गले में उस बूंदे को छूते हुए टोका — “ये बेटे के लिए पहना है न ?” गीताश्री पराई पीर समझने का नतीजा है ‘परिवर्तन’ — गीत…
शहर छूटा, लेकिन वो गलियां नहीं! — गीताश्री आखिर बाईजी का नाच शुरु हुआ। घर की औरतों को ऐसा नाच देखने की मनाही तो होती है, लेकिन घर की …