गीताश्री की मनोवैज्ञानिक कहानी - केस स्टडी | Psychological Story in Hindi by Geetashree - Case Study

गीताश्री इस समय की सशक्त कथाकार अकारण नहीं हैं, आप 'केस स्टडी' पढ़िए, उनकी इस कहानी का प्लॉट और उसका ट्रीट्मन्ट, पात्र और उनका संचालन सब दिखलाता है कि इस लेखक का फलक लगातार बढ़ रहा है। शब्दांकन पाठकों के लिए इस कहानी को भेजने का उन्हे आभार ~ सं० 

Psychological Story in Hindi by Geetashree - Case Study



केस स्टडी

गीताश्री 

कॉल बेल बजते ही दरवाजा ख़ुद ही खोला था। घरेलू सहायिका फूलों में पानी दे रही थी और सारे लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त। उसने देखा — दरवाजे पर एक लड़का खड़ा है, फूल लेकर। अपने दरवाजे पर उसे देख कर हकबका जाती है। यहां कैसे,क्या करने आया है। बिल्कुल बदला हुए लड़का, हंसता खिलता हुआ... उसके प्रति कृतज्ञता के भाव से भरा हुआ। अकेले आया था। आज उसका बड़ा भाई साथ में नहीं था। वो लड़के को घर के अंदर नहीं बुलाना चाहती थी, किसी पेशेंट को घर पर नहीं आने देती थी... वह तब तक दरवाजे पर खड़ा रहा, जब तक उसने उसे अंदर आने का रास्ता नहीं दिया। 

सामने बैठा हुआ लड़का उसका पूर्व पेशेंट था। उससे कहने को बहुत कुछ था, मगर वह चुप थी। लड़के के पास थे — वही कृतज्ञता के दो बोल... जो घिसे पिटे होते हैं... जो हमेशा सुनती आई है। 

लड़का प्रफुल्लित था और चहक रहा था। मानो बड़ी मुसीबत से पार पाकर निकला हो। हां, ये लड़का उसके लिए जटिल केस की तरह ही था। कुछ ही दिन पहले इस केस को निपटाया था। उसके पास विचित्र केसेज आते हैं। यह जरा अलग-सा था। उसके लिए ‘आउट ऑफ द वे’ जाकर काम करना पड़ा था। अगर नहीं करती तो ये केस सुलझता नहीं। 

लड़का सामने बैठा प्रशस्तिगान करता रहा और क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट शोभना वाजपेयी अपने खयालों में गुम हो गई। 

शोभना के पास विचित्र-विचित्र मामले आते हैं जिन्हें सुलझाते हुए उसे अनेक प्रकार के अनुभव होते रहे हैं। ये केस जरा अलग था। वो रांची का लड़का था, अपनी जातीय अभिमान से भरा हुआ। जाति, पैसे का दंभ उसके रुआब में टपकता था। उसने शोभना का भी चयन इसीलिए किया होगा, वाजपेयी देख कर। इस झारखंड के लड़के के केस ने उसे उलझा कर रख दिया था। इसे सुलझाने में लंबा वक्त लगा। उस लड़के पर कोई दवा, कोई समझाइश काम ही नहीं कर रही थी। लड़का यानी विशाल चौहान, ऐसा युवा जो करियर से मायूस हो चुका था, प्रेम में विफल होने के बाद उसका दिल टूट चुका था। वो बिखरने लगा था। उसके घर वाले परेशान थे। हर तरह से समझा-बुझा कर हार गए। वह बीमार पड़ गया। अच्छी खासी इंजीनियरिंग की नौकरी से छुट्टी लेकर घर बैठ गया। दूसरे नंबर का छोटा बेटा। मां बाप करे क्या... शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे। वे सोचते थे शादी करा देंगे तो लड़का ठीक हो जाएगा। लेकिन वह तैयार नहीं होता। अपने को ख़त्म कर देने पर आमादा था। लगातार अवसाद में डूबता चला जा रहा था। खाना-पीना छूट रहा था। लगातार वजन गिर रहा था। किसी को बीमारी समझ में नहीं आ रही थी। डॉक्टर से लेकर झाड़-फूंक तक करा लिया, सब व्यर्थ। किसी ने सलाह दी कि मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। विशाल तैयार न हुआ। जैसा कि आम भारतीय, मध्यवर्गीय लोगों को लगता है कि मनोचिकित्सक के पास पागल लोग ही जाते हैं इलाज के लिए। लड़के को भी यही लगता था। घरवाले कहते तो उन पर चिल्ला पड़ता — “मैं कोई पागल हूं क्या... आप लोग मुझे पागल ही समझते हैं... मुझे अकेला छोड़ दीजिए। मैं संभाल लूंगा ख़ुद को... ज्यादा तंग करेंगे तो घर छोड़ कर चला जाऊंगा... ”

घरवाले डर गए थे। जवान लड़का है, क्या पता कुछ कर ले। उस पर हमेशा नजर रखने लगे कि कोई कांड न कर बैठे। पूरे घर में तनाव पसर गया था।  विशाल का दिल्ली निवासी बड़ा भाई किसी तरह उसे समझा-बुझा कर काउंसिलर के पास ले जाने को तैयार किया।

शोभना कई दिन तक उस लड़के को डेट देकर बुलाती रही। उसे सुनती... समझती... वो धीरे धीरे खुलता। शोभना जटिल से जटिल केस अधिकतम तीन सीटिंग में निपटा देती है। ये केस जटिल था, क्योंकि लड़के का मामला खुल कर सामने आ गया था मगर उसके मन के भीतरी तहों में क्या चल रहा है, वह खोलने को तैयार न था। कहीं कुछ था, जिसे वह छुपा रहा था। उसे खोलना चाहती थी शोभना। इसीलिए वक्त लग रहा था। हालांकि वह हर सीटिंग के बाद थोड़ा रिलैक्स दीखता। अगली सीटिंग में उसी मूड में आता, लेकिन बात करते-करते फिर उसके चेहरे पर अवसाद की स्याह लकीरें उभर आतीं। कोई बात थी जो उसे अंदर ही अंदर घुन की तरह खाए जा रही थी। 

मामला वही प्रेम का था, एक असफल प्रेम, एक धोखेबाज प्रेमिका और एक चोट खाया हुआ दिशाहारा प्रेमी। कई बार लगता है कि पुरुष-इगो को चोट लगी है। ज्यादातर पुरुष स्त्रियों द्वारा ठुकराए जाने पर खूंखार हो जाते हैं। वे प्रेमिकाओं पर हमला बोल देते हैं, उसे नुकसान पहुंचाते हैं, गाली-गलौज, मारपीट कुछ भी संभव है। मध्यवर्गीय प्रेमियों में संबंधों का खात्मा हिंसा से ही होता है। यहां ब्रेकअप आसानी से नहीं होते। एक न एक पक्ष हिंसक जरूर हो उठता है। अधिक सेंसेटिव पुरुष या स्त्री अवसाद में चले जाते हैं। उन्हें प्रेम नाम से नफरत हो जाती है। विशाल उस पुरुषवादी अहंकार का शिकार लग रहा था। जिसे इस बात से गहरी चोट पहुंची है कि उसे प्रेमिका ने ठुकरा दिया। ये बात उसकी शान के खिलाफ जा रही थी। शोभना ने चौथी सीटिंग में जो जाना, समझा उससे वह चौंक गई। उसके सारे सिद्धांत, सारी सोच, सारे निष्कर्ष धराशायी हो गए।    

तीन सीटिंग तक तो विशाल ने अपनी प्रेमिका के बारे में इतना ही बताया था कि लड़की ज्यादा आधुनिक सोच की है, उससे ज्यादा पढ़े लिखे परिवार की है, आवारापन उसके मिजाज में है, वह किसी एक से बंध कर नहीं रहना चाहती। ज्यादा ही उदार और खुली हुई है। वह बराबरी का संबंध चाहती थी। वह सारी शर्तें मानने को तैयार था। प्रेम में जिस वक्त होते हैं, उदारता के सारे रोशनदान खुले होते हैं। भरोसे की हरी-भरी वल्लरियां सिर तक चढ़ी रहती हैं। सच्चा प्रेम उदार बनाता है। बिन शर्त भी वह खोलता है द्वार, जहां बांधने जैसा भाव घुसा नहीं कि वर्चस्व का खेल शुरु हो जाता है। उदार प्रेम का दम घुटने लगता है। यह प्रेमिल संबंधों का अक्सर दुर्भाग्य रहा है, एक न एक पक्ष विपरीत निकल जाता है तब प्रेम मुंह के बल गिर पड़ता है। ज्यादातर प्रेम संबंधों को इस तरह की दुर्घटना के शिकार होते देखा है शोभना ने।  

विशाल बहुत उदार और खुले प्रेम का ख़ुद आकांक्षी न होते हुए भी हामी ज़रूर था। वह एक पढ़ी लिखी, अति आधुनिक लड़की से प्रेम में था, जो कतई सिर झुका कर कोई आज्ञा नहीं मानेगी। जो बराबरी चाहेगी। अब तक जिन पारंपरिक स्त्रियों के साथ जीवन गुजरा था, उन सबसे भिन्न होगी उसकी प्रेमिका और बीवी। इसके लिए वह ख़ुद को काफी हद तक बदल चुका था। वह एक उदार प्रेमी के रुप में उसके जीवन में प्रवेश कर गया था। उसे दिक्कतें तो बहुत हुईं, अपनी हर बात थोपने की, मनवाने की, एकल फैसला लेने की आदत जो थी। यहां प्रेमिका वैसी नहीं थी कि गाती रहे — “मैं सिर झुकाए खड़ी हूं प्रियतम... कि जैसे मंदिर में लौ दीए की... ”

यहां तो लौ भभक रही थी। तेजस्वी लड़की प्रेम में हो तो मशाल की तरह दिपदिपाती है। जब तक लड़की उसके जीवन में रही, वह उसकी रोशनी से दमकता रहा। उसे देख कर ही उसका सांवला चेहरा चमक उठता था। वह खुश था, अपनी तेजस्वी प्रेमिका से। जो किसी के साथ भी हर मुद्दे पर बहस कर लेती थी... बेखौफ थी। भरी भीड़ में प्रेमी की ऊंगली पकड़ कर चल देती थी। फेसबुक, इंस्टाग्राम पर रोमांटिक फोटोज डाल देती थी। मानो उसे किसी की परवाह न हो। विशाल ज़रूर अपने घरवालो से हिचकता था कि कहीं उनकी नजर पड़ी तो घर में तूफान न खड़े हों या कोई सदस्य रोड़े न अटका दे। प्रेम ने उसे रोमांटिक बनाया था, भविष्य के प्रति आश्वस्त भी किया मगर उतना साहस नहीं दिया जितना उस लड़की में था। 

विशाल ने जब ये सारी बातें शोभना के सामने उगल दीं, तब चित्त शांत हुआ। संवलाया चेहरा गुलाबी होने लगा था। उस दिन बाल ठीक से संवरे हुए थे। दाढ़ी भी बनाई थी। पहले से ठीक लग रहा था विशाल। जैसे उसके भीतर उम्मीद जगी हो कोई। 

शोभना ने उसे चौथी बैठक में थोड़ा और खोला। विशाल बातें करते हुए हिचकता था। जैसे कोई और बात भी थी जिससे होंठों तक आने से रोक लेता था। 

“तुम्हे उसका सबकुछ पसंद था तब उस लड़की ने तुम्हें क्यों छोड़ा। कोई झगड़ा हुआ, कहा सुनी, मारपीट... तुम्हें कोई वजह बताई उसने... ”

शोभना के इस सवाल से वो थोड़ा असहज हुआ। 

जवाब देने के बजाय उसने इंस्टा पर कुछ दिखाया — 

“ये देखिए, उसे संबंध टूटने का कोई फर्क नहीं पड़ा। वो पूरी मस्ती में हैं, खुल कर जीवन जी रही हैं... मैं यहां उसके बिना घुट-घुट कर मर रहा हूं... उसे कोई चिंता नहीं... उसने मुड़ कर नहीं देखा... ”

इंस्टा पर जो तस्वीरें थीं उनमें वह लड़की पार्टी कर रही थी, कहीं डांस, कहीं दोस्तों के गले से लगी हुई। “विशाल... हुआ क्या था, सच मत छिपाओ... तुम्हें कौन-सी बात परेशान कर रही है।?”

वो तस्वीर देख कर बरस पड़ा। 

“इसने अपनी जाति दिखा दी... रहेगी साली वही झुग्गी वाली... इनकी जाति का चरित्र ही ऐसा है... किसी के सगे नहीं... नीच तो नीच ही हरकत करेगा न... ”

शोभना ने हैरानी से विशाल को देखा। थोड़ी देर पहले जो अपनी प्रेमिका के बारे में बताते हुए गुलाबी हुआ जा रहा था। आंखें चमक रही थीं। वही लड़का इस समय उसे जाति की गाली दे रहा है। 

“विशाल… तुम उसे जाति की गाली क्यों दे रहे हो?”

शोभना को बहुत हैरानी हुई, जातिगत गाली सुन कर उसे ठेस पहुंची। वह जिस घर-परिवार और समाज में रहती आई है, वहां जाति की चर्चा तक नहीं होती। अपनी हाउस हेल्पर तक की जाति वो पता नहीं करती। न घर में किसी को करने देती है। उसके काम से मतलब रखती है। उसने कभी किसी क्लाइंट की जाति के बारे में बात तक नहीं की। न पता करने की कोशिश की। न कभी जाति को लेकर कोई केस आया। वह रिलेशनशिप काउंसिलर है, ज्यादातर टूटे हुए रिश्ते ही आते हैं। जो संबंध बनाए रखना चाहते हैं, ऐसे लोग ज्यादा आते हैं। एकाकी लोग भी आते हैं, जो समाज से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। यहां विफल प्रेम के कारण गहरे अवसाद में डूबा एक युवा जाति को गाली दे रहा है। कितनी जातीय हिंसा भरी है इसके भीतर। शोभना को लगा, उसकी बीमारी का एक छोर पकड़ में आ गया उसके हाथ। वह इस सिरे को पकड़ कर समाधान के सूत्र तलाश सकती है। 

शोभना ने विशाल को कड़ी निगाह से घूर कर देखा, मानो डांट देगी। 

“वो जाटव... हम राजपूत की औलाद हैं... हमारा खून खौलता है... हम किसी को आसानी से माफ़ नहीं करते मैम... हमने बहुत समझौते किए थे इसकी खातिर... सारी ज्यादतियां सहीं, ये सोच कर कि पत्नी बन कर जिम्मेदारी समझ में आ जाएगी। बहुत प्यार करता था इससे... जाति तक की परवाह न की... घर वालों से भी छुपाया था... बाद में उन्हें पता चलता तो देखा जाता... ”

“जाति छुपाने के लिए लड़की तैयार थी... ?”

शोभना को फिर हैरानी हुई। 

“पहले तो नहीं, बाद में मेरे आग्रह पर मान गई थी... मैंने मना लिया था... ”

विशाल चुप हो गया था। उसके चेहरे पर क्रोध की छाया थी। समझ गई कि एक राजपूत लड़का, एक पढ़ी लिखी, प्रखर जाटव लड़की से दीवानों की तरह प्रेम करता था। उसे अपने नियंत्रण में रखना चाहता था, वह प्रेम में असफल नहीं हुआ था, वह प्रेम और विवाह के मिशन में विफल हुआ था। और उसकी तकलीफ का कारण प्रेम की विफलता नहीं, कुछ और है। उस और को पकड़ लिया था शोभना ने। इसे इलाज मिल गया था लेकिन दवा उसके पास नहीं थी। दवा उस लड़की के पास थी। उससे बात करना ज़रूरी थी लेकिन ये काम उसके दायरे से बाहर था। वो विशाल की काउंसिलर थी, लड़की की नहीं। लड़की से कैसे बात करे... उसका दिमाग घूमने लगा था। विशाल को उसने पांचवी और अंतिम बैठक का वादा करके उसके भाई के साथ घर भेज दिया था। उसे किसी तरह इस केस को पांचवीं बैठक में निपटा देना था। 

विशाल ने सबकुछ बताया, मगर ये नहीं बताया कि उसकी प्रेमिका क्यों छोड़ गई। वह अनुमान के आधार पर कारण बताता रहा। जबकि शोभना कुछ-कुछ समझ सकती थी। उसे पांचवी बैठक से पहले कुछ काम अंजाम देना था।  

वह अपने मिशन में लग गई थी। उसे इसमें उनके प्रेम की तरह विफल नहीं होना था। 

और वह दिन आया जब विशाल उसके सामने उत्सुक होकर बैठा था। भीतर से कुछ-कुछ हल्का महसूस कर रहा था मगर पूरी तरह अवसाद से बाहर नहीं आया था। शोभना ने विशाल से उसका मोबाइल मांगा। 

उसने भोले बच्चे की तरह चुपचाप मोबाइल आगे बढ़ा दिया। 

“क्या तुम अपनी पूर्व प्रेमिका से बात करना चाहोगे... ?”

“क्या... ?” वह जोर से उछल गया। 

“वो मुझसे बात करेगी... ? उसने नंबर तक बदल लिया है... आप कैसे जानती हैं उसे... ? कहा है वो... ?”

“अरे... रे रे... इतने सारे सवाल एक साथ... थमो, थमो... आस्ते, आस्ते... ”

“अगर मैं तुम्हारी बात करा दूं तो तुम उससे क्या कहना चाहोगे... कुछ पूछना चाहोगे या फिर से रिश्ते की बात... क्या मुझे बता सकते हो... ?”

शोभना ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा। उन आंखों में कई भाव तैर रहे थे जिसे वो आसानी से पहचान सकती थी। उन आंखों में तैरती हुई हिंसा को डिकोड कर सकती थी। वे आंखें प्रेम में लाल नहीं हो उठी थीं, वहां आग जल रही थी, प्रतिहिंसा की आग। शोभना जानती थी कि यह आग बुझेगी तभी यह रोगी ठीक होगा। इसका अवसाद ख़त्म होगा। कभी-कभी दवा ढूंढने सात समंदर पार भी जाना पड़ सकता है। उसे पहली बार अहसास हुआ था। वह कामयाब हुई थी अपने अभियान में। उस लड़की ने अपने पूर्व प्रेमी से बात करना स्वीकार कर लिया था। 

उस लड़की यानी रेखा राज ने जो उसे बताया, वो विशाल छुपा गया था। रेखा ने स्वीकारा था कि विशाल उसे दीवानों की तरह प्रेम करता था मगर उसकी शादी की कुछ शर्तें थीं। जैसे नौकरी ना करे रेखा। करे भी तो एक ही शहर में करे। फिर भी जिद करके रेखा मुंबई चली गई, नौकरी करने। विशाल झारखंड के सिंदरी शहर में ही छूट गया। रेखा अपने सपनों के साथ समझौता करने को तैयार न थी। उसने लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप की बात की, विशाल ने ठुकरा दिया। बस दोनों में खूब लड़ाईयां होने लगी। विशाल उस पर शक करने लगा, इंस्टाग्राम पर उसकी ग्लैमर्स तस्वीरें देख कर। उसे लगता, रेखा उसके बिना भी बहुत खुश है, मस्ती कर रही है। उसे जरा भी ग़म नहीं है जबकि विशाल उसके ग़म में घुला जा रहा है। रेखा ने शोभना से कबूला कि उसके प्रेम में दीवानगी न थी, प्रेम था, साथ भी चाहती थी लेकिन पजेसिव पति नहीं चाहती थी। उसे रोकटोक नहीं पसंद। वह शादी के बाद और आजादी चाहती थी, दूसरी गुलामी नहीं। उसे ऐसा पति नहीं चाहिए था जो उस पर नजर रखे, अंकुश लगाए। वह पूछ पूछ कर कोई काम नहीं करना चाहती थी। उसे अपने लिए वो तमाम आजादी चाहिए थी जो विशाल को चाहिए था। किसी सामान की तरह वह विशाल के घर में पड़ी नहीं रहना चाहती थी। उसने अब तक ऐसी ही स्त्रियाँ देखीं थी, पढ़ लिख कर भात पकाती हुई, बच्चे पैदा करती और उनमें खपती हुई स्त्रियां। 

शोभना ने उसे टोका था — “ये कोई बुरा काम तो नहीं रेखा..”.

“करे न स्त्रियां... यही तो करती आ रही हैं... जिसमें वे खुश हैं, वो करें। ये उनका चयन होना चाहिए, उन पर जो थोपा जाता है, मैं उसके खिलाफ हूं। मैं हूं ही नहीं उस मानसिकता की... “

शोभना के आगे रेखा ने अपना मन खोल दिया था। शोभना को वो बहुत स्पष्टवादी लगी थी। एक ऐसी लड़की जो जीवन और करियर को लेकर बहुत स्पष्ट थी, रिश्तों को लेकर कोई उलझाव नहीं। विशाल शादी से पहले ही कुछ ज्यादा ही अंकुश लगाने लगा था तो फिर रेखा ने एक दिन झोंक में बोल ही दिया –- “इटस ओवर नाऊ।“ 

विशाल को उम्मीद न थी, वह अवसाद में डूब गया। दोनों काफी समय से रिलेशनशिप में थे। रेखा ने उसका फोन उठाना भी बंद कर दिया था। रेखा ने फोन नंबर बदले, शहर बदले और अपने काम में व्यस्त हो गई। एक रिश्ता जो बोझ बन गया था, उसे उतार कर झटके से ही फेंका जा सकता था, उसने फेंका और अब पलट कर उस तरफ देखना भी नहीं चाहती थी। शोभना ने इंस्टाग्राम पर उसे खोज कर जब संपर्क किया और सारी बात बताई और आग्रह किया कि एक बार विशाल से ठीक से बात करे, उसे समझा दे कि वो उसके जीवन में दोबारा वापस आ सकती है। सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ है... हम मिल कर बात करते हैं, मुझे माफ़ कर दो... इसी तरह की कुछ बातें। 

रेखा ने साफ मना कर दिया लेकिन जब आहिस्ते से शोभना ने रेखा को कुछ कहा... सुन कर थोड़ी देर वह चुप रही, मानो उसके आग्रह को मानने के लिए ख़ुद को तैयार करने में उसे मुश्किल हो रही हो। वह विशाल को कोई झूठी दिलासा नहीं देना चाहती थी। फिर से अपने लिए कोई मुश्किल पैदा नहीं करना चाहती थी। हालांकि वह देश से दूर पोस्टिग लेकर चली गई थी, विशाल उसके पीछे कतई नहीं आएगा। जो लड़का मुंबई तक आने को तैयार नहीं, वो दुबई क्या आएगा। थोड़ी देर आनाकानी करने के बाद शोभना के आग्रह पर वह तैयार हो गई। शोभना के अनुसार यही उसका इलाजे-ग़म है। वह मदद मांग रही थी। आखिर उसका एक्स प्रेमी उसी की वजह से इस हालत में पहुंच गया है, कुछ उसका भी फ़र्ज़ बनता है। 

शोभना की विशाल के साथ यह आखिरी और पांचवी बैठक थी। पांच दिन और साढ़े आठ घंटे चले सेशन के बाद शोभना एक नतीजे पर पहुंची थी, जिसका खुलासा वो अभी नहीं करना चाहती थी। अपने अनुमान को घटित होते देखना चाहती थी। वह विशाल की पीड़ा भी समझ गई थी और उसका इलाज भी। जो दर्द देता है, दवा उसी के पास होती है। 

शोभना ने विशाल का मोबाइल वापस कर दिया,  अपने मोबाइल से रेखा को व्हाटसप कॉल किया।  

फोन पर रेखा थी, विशाल ने जिस तेजी से मोबाइल झपट कर अपने हाथों में लिया, वो त्वरा देखने लायक थी। स्पीकर ऑन था। उधर से रेखा प्रेम में डूब कर माफी मांग रही थी... ”मुझे ऐसे रिश्ता नहीं तोड़ना चाहिए था। हम मिल कर बात करते हैं... सब ठीक हो सकता है... विशू... हम मिलते हैं, जल्दी इंडिया आती हूं... लव यू... ”

ये सबकुछ स्क्रिप्टेड था। शोभना को विशाल की प्रतिक्रिया का इंतजार था। रेखा की आवाज सुन कर क्या करेगा... जिसके प्रेम में मजनू बना बैठा है, वो वापस आने की बात कर रही है... किस तरह लेगा इसे। विश्वास करेगा या नहीं... 

शोभना का तजुर्बा कुछ और कह रहा था। वह इससे अलग हट कर सोच रही थी। और वो घटित होता है तो वही इलाज है। उसी के इंतजार में ये सबकुछ प्लांड किया गया था। संभव था, उसके उलट भी हो। शोभना आशंकाओं में डूबने लगी थी कि विशाल के चीखने की आवाज आई — “ सोलकन औरत... तुम क्या समझती हो अपने को... तुम्हारी औकात है हमारे घर में आने की... हमने जरा-सा प्रेम क्या कर दिया.. औकात बढ़ गई तुम्हारी... अपने पुरखों से पूछ लेना... हमने तुम्हारी औरतो को जियान किया है... ठीक कहता था मेरा भाई कि ऐसी जाति की लड़कियों सिर्फ भोगने के लिए होती हैं, घर की रानी बनाने के लिए नहीं, क्या हो तुम... रुप की रानी हो... तुम्हारे जैसी और नहीं मिलेगी... सैकड़ों घूमती हैं मेरे आगे-पीछे... दफा हो जाओ मेरी जिंदगी से... तुम क्या मुझे ठुकराओगी... मैं ठुकराता हूं तुम्हें... आई सेड नो... गो टू हेल। इटस ओवर नाऊ। “

उसने फोन काट दिया। वह हांफने लगा था। चेहरे पर जो मुर्दनी छाई हुई थी, वो अचानक गायब होने लगी थी। चेहरे की शिराओं में जैसे रक्त उतरने लगा था। सिर उठा कर तन गया। उसके चेहरे पर विजेता का भाव उभर आय़ा था। बड़ा भाई यह सब देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था। भीतर-भीतर खौलने के बावजूद शोभना ने ख़ुद पर काबू रखा और अपनी रहस्मयी मुस्कान बमुश्किल रोकी थी। 

इसके बाद कोई कुछ न बोला, विशाल को उसका भाई संभाल कर ले गया। शोभना ने अपना केबिन जोर से बंद किया ताकि उसकी आवाज दोनों भाइयों को सुनाई दे। उन दोनों से फिर वह मिलना नहीं चाहती थी। फोन कटने के बाद रेखा ने पलट कर शोभना को फोन नहीं किया था और रेखा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उसे फोन करे। कई दिनों तक शोभना का मूड उखड़ा रहा। 

अचानक सुबह-सुबह वही लड़का, विशाल, उसका पूर्व पेशेंट सामने आ खड़ा हुआ था। शोभना कुछ पूछती, उसके पहले ही वह उससे लिपट गया। 

“मैं सुकून से हूं मैम... मैं ठीक हो गया हूं। अब आपको तकलीफ नहीं दूंगा। मैंने सबको बहुत दुख दिए हैं। आपको भी कई दिन, कई घंटे परेशान किया। अब सब ठीक है... ”

शोभना उसे ख़ुद से अलग किया। चुपचाप उसके चेहरे के भाव देखती रही। 

“आपने उस दिन बात न कराई होती तो मैं कभी अवसाद से बाहर नहीं आता... ”

“विशाल... महाभारत का एक श्लोक है जिसका अर्थ है — एक क्षण के लिए धधक जाना ज्यादा अच्छा है, जीवन भर धुंधुआते रहने से। इसीलिए मैंने तुम्हारी बात करवाई थी कि तुम अपने गिले शिकवे दूर कर लो... लेकिन... ”

शोभना थोड़ी देर के लिए चुप हुई... 

“जानते हो, तुम्हारा रोग क्या था। तो सुनो, तुम प्रेम करते थे उससे, लेकिन तुमसे बात करने बाद मुझे यही समझ में आया कि तुम प्रेमी से ज्यादा एक सवर्ण लड़का बन कर रहे उसके जीवन में। उसने तुम्हें मना किया... उसने छोड़ा... तुम्हें यही बात दिक्कत दे रही थी। तुम अगर उसे मना करते, उसे छोड़ते तो तुम्हें ये दिक्कतें नहीं होती। कहीं न कहीं तुम्हारे भीतर दोहरा दंभ, एक पुरुषोचित दूसरा जातीय दंभ भरा हुआ था। उस दिन जो कुछ तुमने कहा, तुम्हारी रगो में जमी हुई घृणा खुल कर सामने आ गई। तुमने एक दलित लड़की से बदला ले लिया अपने अपमान का। तुम्हें चोट लगी थी कि एक दलित लड़की तुम्हें कैसे छोड़ सकती है। छोड़ने का हक तो सिर्फ तुम्हारे पास है। खैर... लेकिन अब हिसाब बराबर हो गया। यही चाहते थे न तुम।“ 

“यहां क्यों आए हो... ? तुम्हें मैंने नहीं रेखा ने ठीक किया है।“ 

विशाल चुप रहा।

“तुमको मालूम था न कि वो लड़की पत्नी नहीं बन सकती थी, उसे शादी नहीं करना था, उसे बाहर जाना था, करियर बनाने। तुमने उसे अपने क्लोज किया, वो तो शुरु से स्पष्ट थी, जैसा कि तुम्हारी बातों से लगा। पहले तुम्हें अगर नो कहने का मौका मिलता तो तुम्हें इतनी तकलीफ न होती।“

विशाल हक्का बक्का शोभना का मुंह देखने लगा। वो तो फूल लेकर मैम का धन्यवाद करने आया था। यहां माहौल ही अलग है। 

शोभना ने दरवाजे की तरफ आंखों ही आंखों में इशारा करके हुए कहा — 

“तुम्हें लगता है, तुम ठीक हो गए हो। नहीं, तुम बीमार हो... तुम कभी ठीक नहीं हो सकते... तुम जैसे सोच वाले लोग कभी नहीं... तुम लोगों ने पूरे समाज को बीमार बना दिया है... फूल लेकर निकल जाओ यहां से... । “

विशाल ने सिर झुका लिया था। लज्जित होता हुआ चुपचाप बाहर निकला। 

पीछे से कानों में आवाज आई — “मैंने समझा कि रेखा मेरे कहने पर सारे संवाद बोल रही है, मुझे क्या पता कि वो पागल तुम्हारी दशा पर तरस खाकर, गिल्ट में आकर सचमुच वापसी के बारे में सोचने लगी थी... तुमने उस दिन प्रेम के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी।“ 

“प्रेम मौके देता है, अपमान नहीं सहता।“ 

विशाल को लगा, सैकड़ों तीर उसके शरीर को बेध गए। उसके कान में रेखा के शब्द गूंज रहे थे... ”हम फिर से सब ठीक कर सकते हैं... ”

शोभना ने धड़ाम से दरवाजा बंद कर लिया था, जैसे उस दिन केबिन का दरवाजा। उसने कसम खाई. आगे से विफल प्रेमियों जिनका “आई क्यू “ लेबल नहीं, “ई क्यू “ लेबल  (इंटेलीजेंस कोशंट) खराब हो, जिन्हें दूसरों के साथ शांति बनाए रखने, समय के साथ चलने, ईमानदार होने, दूसरों की सीमाओं का सम्मान करने, विनम्र, रियलिस्टिक और विचारशील होने की क्षमता न हो, उसके इलाज का तरीका बदल देगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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