अयोध्या में रामपथ के निर्माण के लिए सड़कों का चौढ़ीकरण किया जा रहा है,उसके जद में मकान नहीं पेड़ भी आ रहे हैं। बहुत से ह्रदयविदारक दृश्य दिखायी दे रहे। यही वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव की इन दारूण कविताओं की पृष्ठभूमि है। ~ सं०
Ped Ki Jagah Bulldozer - Poems: Swapnil Srivastava |
'पेड़ की जगह बुलडोज़र' व अन्य कविताएं
स्वप्निल श्रीवास्तव
05 अक्टूबर 1954 को पूर्वी उ. प्र. के जनपद सिद्धार्थनगर (तत्कालीन बस्ती) के एक ठेठ गांव मेहदौना में जन्म। शुरूवाती शिक्षा गांव के स्कूल में। उसके बाद जनपद कुशीनगर (पूर्व में देवरिया) के रामकोला कस्बें से हाईस्कूल और इंटर। आगे की पढ़ाई गोरखपुर के सेंट एंड्रूज कालेज के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई। गोरखपुर में शिक्षा के साथ जीवन की दीक्षा भी मिली। गोरखपुर से एमए, एलएलबी, उप्र सरकार के अधिकारी के रूप में प्रदेश के विभिन्न जनपदों में तैनाती।
कविता संग्रह – ईश्वर एक लाठी है, ताख पर दियासलाई, मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिये, जिन्दगी का मुकदमा – जब तक है जीवन, घड़ी में समय / कहानी संग्रह -एक पवित्र नगर की दास्तान – स्तूप, महावत तथा अन्य कहानियां, दूर के मेहमान / जैसा मैंनें जीवन देखा तथा –लेखक की अमरता (संस्मरण) की किताब के अलावा ताकि स्मृति बची रहे – मंगलेश डबराल के बारे में किताब का सम्पादन / एक सिनेमाबाज की कहानी (वृतांत) / सम्मान और पुरस्कार - कविता के लिये भारतभूषण अग्रवाल, फिराक सम्मान, केदार सम्मान, शमशेर सम्मान के साथ रूस का अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान / रूसी, अंग्रेजी, नेपाली, बंगाली, मराठी, पंजाबी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में कविताओं के अनुवाद।
फिलहाल फैज़ाबाद में स्थायी निवास और लेखन. सम्पर्क – 510 – अवधपुरी कालोनी – अमानीगंज, फैज़ाबाद – 224001 मोबाइल फोन – 09415332326
पेड़ की जगह बुलडोज़र
पेड़ ही उसके घर की
पहचान थी
कोई पूछता – तुम्हारा घर कहां है
तो वह बताता – ठीक पेड़ के
पीछे है मेरा घर
कई बार वह भूल जाता था
कि वह पेड़ के बारे में बता रहा है
या घर के बावत जानकारी
दे रहा है
कभी–कभी उसे लगता था कि
पेड़ ही उसका घर है
रात में अमूमन किसी के घर का
रास्ता खोजना कठिन होता है
लेकिन इस पेड़ ने घर का पता
आसान कर दिया था
***
सैकड़ों वर्ष पहले जब उसके पुरखे
इस शहर में आए थे
उन्होनें बनाया था यह घर
और घर के सामने लगाया था
यह पेड़
जैसे–जैसे पेड़ की शाखाएं बढ़ती
उसके वंश में वृद्धि होती गयी
बढ़ने लगी थी खुशियां
पेड़ पर चिड़ियों के घोंसले और कलरव
सुनाई देने लगे थे
***
जब तेज बारिश होती, गर्मी से तपने
लगता था शहर
तो लोग इस पेड़ के सायबान के नीचे
पनाह लेते थे और बारिश थम
जाने के बाद घर लौटते थे
सड़कों पर आवाजाही से उठती थी
इतनी धूल कि पेड़ धूल से नहा
उठता था
जब बारिश होती उसकी सुंदरता निखर
जाती थी
पतझड़ में पुराने पत्ते झड़ते
हवा चलती तो वे परिंदों की तरह
उड़ने लगते थे
नये पत्ते आते तो लगता नये नये
मेहमान आ गये हैं
उनकी किलक देखते ही बनती थी
विराट होने लगी थी पेड़ की छाया `
सड़क तक होने लगा था छाया का
विस्तार
***
बचपन मे जब वह स्कूल से
आता–जाता था वह नये–नये पक्षियों को
देखता था
परिंदों के बारे में जानने के लिए उसे
नही पढ़नी पड़ती थी किताब
तूफान और बारिश के बीच अविचल
खड़ा रहा यह पेड़
भूकंप के झटके इस पेड़ को नही
डिगा सके
***
एक दिन क्रूर शासनदेश के साथ
सरकारी लकड़हारे और कुल्हाड़ियाँ
आयी और पेड़ की हत्या का आदेश
दिया गया
पेड़ की लकड़ियों से शासकों के मेज
और कुर्सियाँ बनी
उस पर बैठ कर वे अपने आदेश
निर्गत करते थे
पेड़ के अवशेष से नौरशाहों के आतिशदान
गरमाए गये
इस तरह हुई इस पेड़ की
अंतिम क्रिया
कोई नही जानता कितने दिन
इस पेड़ के लिए मनाया गया
पारिवारिक शोक
कितनी बार डबडबाई होगी लोगों की
आंखे
पेड़ की जगह खाली हो गयी है
वहाँ खड़ा है बुलडोज़र
पिता ने कहा था
पिता ने कहा था
कभी भी सड़क के किनारे
मत बनाना घर
पता नहीं कब आ जाए
हुकुमनामा
और तुम्हारा घर सड़क के
विस्तार में न आ जाए
तुम्हारा घर ध्वस्त करनेवाले
नहीं सोचेंगे कि यहाँ तुमने
जन्म लिया था
बसायी थी गृहस्थी
यही से तुम जाते थे स्कूल
और अपने बस्ते के साथ
लौटते थे
घर तोड़नेवाले नहीं जानते
क्या होता है घर
उन्हें तब पता चलेगा
जब टूटेगा उनका घर
शहर की इमारतें और घर
ज़मीन-दोज़ हो रहे हैं
मिटायी जा रही है उनकी शिनाख़्त
जिनके घर टूट रहे है
वे भीतर से हो रहे हैं
क्षत विक्षत
क्या वे दे पाएंगे
स्मृतियों का मुआवज़ा?
क्या वे जान पाएंगे कि
यह घर बनाने में ज़िंदगी की
कितनी ईटें खर्च हुई हैं ?
क्या वे लौटा पाएंगे घर के
बीते हुए अच्छे दिन ?
क्या मुंडेर पर फिर लौट के
पाएगी वह चिड़िया जिन्हें
शिकारियों ने बंदूक दिखाकर
उड़ा दिया था
बुलडोज़र
शहर में चारों ओर घूम
रहे हैं बुलडोज़र
जैसे शहर कोई समुन्दर हो
उसमें मगरमच्छ अपने जबड़े
खोल कर निगलने को तैयार
बैठे हो
वे अपने ख़ूनीं पंजे उठाते है
मकान कांपने लगते हैं
बुलडोज़र का ड्राइवर संगदिल है
वह मकानों को मलबों के
ढेर में बदल देता है
उससे कुछ बोलो तो कहता है
कि वह अपने मालिक के हुक्म
की तामील कर रहा है
कोई इस मामले में दख़्ल देगा
तो उसे पुलिस के हवाले
कर दिया जाएगा
अनुरोध
मेरा घर टूट रहा है
अतिथियों अभी मत आना
मेरे घर
उसमें नहीं बची है
तुम्हारे ठहरने की जगह
मित्रों !
अभी नहीं है तुम्हारे लिए समय
कुछ लोगों ने मुझसे मेरा समय
छीन लिया है
मैं बे-समय हो गया हूँ
रसोईघर की बिल्ली बेचैन है
यह घर में उसका आखिरी दिन है
घर में घोंसले बनानेवाले पक्षी भी
उड़ने की तैयारी में हैं
वे कहां जाएंगे
शहर की खूबसूरती बढ़ाने में
काट दिए गए है आसपास के
जंगल
हवाओं !
तुम भी मत आना मेरे घर
सारे दरवाजे और खिड़कियां
घर से बिछुड़ गयी हैं
हवाओं !
तुम किधर से आवोगी
००००००००००००००००
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