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टॉल्स्टॉय की अन्ना केरेनिना | Anna Karenina of Leo Tolstoy

रवींद्र कालिया संपादित ‘नया ज्ञानोदय’ का प्रेम महाविशेषांक (नवंबर, 2009) के पुनर्प्रकाशन  (जिसमें पहले ममता कालिया की कहानी निर्मोही आ चुकी है) में अब विजयमोहन सिंह का ‘अन्ना केरेनिना - टॉल्स्टॉय’ का पुनर्पाठ, गीताश्री की महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ पढ़ें। ~ सं० 

Anna Karenina of Leo Tolstoy


अन्ना केरेनिना

~ गीताश्री 
 
विश्व प्रसिद्ध स्त्री पात्र “अन्ना केरेनिना” के चरित्र को लेकर जितना असमंजस उसके लेखक लियो टॉल्स्टॉय को रहा होगा, उतना किसी भी युग में किसी सहृदय पाठक-आलोचक को शायद ही रहा है। चाहे देशकाल की दुहाई दी जाए और तथाकथित भद्र रुसी समाज की “फॉल्स नैतिकता” का हवाला देकर अन्ना के चरित्र को, उसकी मनोदशा को गढ़ा गया हो और उसे अंतिम परिणति तक पहुंचाया गया हो। उसे ऐसे गढ़ा गया कि अन्ना को मर जाना चाहिए। उसने जो राह पकड़ी, वैवाहिक मर्यादा का उल्लंघन किया तो उसकी सजा मौत से कम नहीं। बेवफाई को लेकर स्त्री-पुरुष के लिए अलग मानक गढ़ने वाले संसार में अन्ना के लिए कोई रास्ता कहां बचता है। उससे जीवित बचे रहने का अधिकार छिन जाता है। स्त्री पात्र का चरित्र इतना जटिल बना दिया जाता है कि वह विक्षिप्तता के आवेग में स्वयं ही मृत्यु का रास्ता चुन लेती है। अपनी मौत की दोषी वह खुद करार दी जाती है, समाज और परिवार को बरी रखा जाता है।

इंटरनेट पर अन्ना केरेनिना का पहला संस्करण। कीमत 15 लाख 


सुप्रसिद्ध आलोचक विजयमोहन सिंह का वर्षों पूर्व लिखा आलेख लंबा, सुचिंतित आलेख अन्ना जैसे जटिल किरदार पर पुनर्विचार करने को प्रेरित कर रहा है। वे इस आलेख में स्पष्ट लिखते हैं कि टॉलस्टॉय खुद अपनी नायिका को लेकर अंत तक आश्वस्त नहीं हो पाए थे। अपने मित्र को लिखे पत्र में यह खुल कर स्वीकारा कि उन्हें अंत तक पता नहीं कि अन्ना का क्या हश्र होने जा रहा है। जब लेखक स्वयं अपने गढ़े गए चरित्रों को लेकर आश्वस्त नहीं होता तो उसे इसी तरह छोड़ देता है कि वह अपना अंत खुद चुन ले। ऐसा अंत जो लेखक के लिए आसान और पलायनवादी रास्ता हो और नैतिकतावादी समाज के लिए उचित।

यह आलेख गहराई से उन सवालों की पड़ताल करता है, टकराता है जो पाठकों के मन में उठता रहता है कि क्या एक अन्ना जैसी स्त्रियों के लिए मुक्ति का रास्ता सिर्फ मृत्यु है। आभिजात्य समाज की ऊब से भरी स्त्रियां क्या सिर्फ अपनी ऊब मिटाने के लिए विवाहेतर संबंधों में फंसती हैं। आभिजात्य वर्ग की विवाहित स्त्रियों पर खुश रहने का, सुखी दिखने का दबाव इतना ज्यादा क्यों होता है। निरंतर संशयग्रस्त अन्ना किसी निर्णय तक क्यों नहीं पहुंचती।
इस आलेख में इन तमाम सवालों की सूक्ष्मता से पड़ताल की गई है और साथ ही ये आलेख कथित भद्रलोक का मुखौटा उतारते हुए, प्रेम की भयंकर त्रासद-कथा पर पुनर्विचार और पुनर्पाठ करने को उकसाता है।  


विजयमोहन सिंह 

अन्ना केरेनिना 

पहले भी कहा जा चुका है कि अन्ना केरेनिना उपन्यास को चरित्र रचना और संरचना को लेकर टॉल्स्टॉय शुरू से ही गहरे असमंजस में थे। इसीलिए उसके प्रारूप में उन्होंने अनेक परिवर्तन किये जिनका जिक्र भी किया जा चुका है : संरचना सम्बन्धी अपनी उलझन को तो उन्होंने उसे क्रमशः जटिलतर बनाते हुए दूर कर दिया, किन्तु अन्ना केरेनिना के चरित्र को लेकर उनका असमंजस अन्त तक बना रहा। वे अपनी नायिका को लेकर अन्त तक आश्वस्त नहीं हो पाये। बाद में उन्होने अपने एक मित्र को लिखा भी कि मुझे अन्त तक पता नहीं था कि अन्ना केरेनिना का क्या हश्र होने जा रहा है। सबकुछ स्वतः और अपने आप होता गया। दरअसल टॉल्स्टॉय का रचनाकार उनके सभी निश्चयों को लिखने के क्रम में बदलता गया। यह पूरी ‘ प्रेम कहानी’ ही जैसे ‘डिक्टेटैड’ है मानो कोई ‘अदृश्य शक्ति’ उन्हें वहीं ले जाने के लिए प्रेरित कर रही थी जहां वह पहुंची। ‘ रचनात्मकता’ के इसी पक्ष पर विचार करते हुए ज्यां-पाल सार्त्र ने लिखा था कि किसी उपन्यास के चरित्र तब जीवन्त और सशक्त बनते हैं जब वे अपने लेखक को आंख बचाकर और कलम से फिसलकर अपना स्वरूप स्वयं निर्मित कर पाते हैं। अन्ना केरेनिना के साथ ठीक यही घटित होता है : वह स्वयं अपने निर्णयों के बारे में स्पष्ट नहीं है। सीधे तौर पर तो वह अपने पति से घृणा करती है और ब्रांस्की से प्रेम करती है। फिर अचानक एक क्षण विशेष में उसे लगता है कि उसका लक्ष्य प्रेम नहीं है, बल्कि स्वतन्त्रता है। अस्तित्ववादी शब्दावली में कहें तो वह प्रेम का नहीं, स्वतन्त्रता का ‘वरण’ करना चाहती है। बाद में समीक्षकों ने टॉल्स्टॉय की अनेक रचनाओं में अस्तित्ववाद के बीज तथा संकेत पाये हैं। उपन्यास में एक स्थल पर अन्ना केरेनिना यह निर्णय लेती है कि वह न तो अपने पति के साथ रहेगी और न अपने प्रेमी के साथ, बल्कि अपने आठ वर्षीय बेटे को साथ लेकर स्वतन्त्र रहेगी। लेकिन कहाँ और कैसे? यह ‘कहाँ’ और ‘कैसे ‘ का प्रश्न ही उसके निर्णय को ध्वस्त कर देता है। अतः ‘ स्वतन्त्रता’ के इस प्रश्न को यहीं स्थगित कर दिया जाता है। 

‘ऊब’ या ‘बोरडम’ के प्रश्न को अन्ना केरेनिना में भी उठाया गया है। एक समारोह में अन्ना की एक सहेली उससे कहती है, ‘तुम जीवन का आनन्द ले रही हो, तुम सुखी हो पर में हमेशा ऊबी रहती हूं।’ अन्ना आश्चर्य से कहती है, ‘तुम ऊबी रहती हो? तुम जिसे पूरे पीटर्सबर्ग की महिलाओं में सबसे जीवन्त और प्रसन्न माना जाता है?’ उसकी सहेली कहती है, ‘हमारे जैसी महिलाओं के लिए कुछ भी आनंददायक नहीं है। है तो केवल ऊब, ऊब और केवल ऊब। सबकुछ भयानक रूप से बोरिंग है।’ वह फिर अन्ना से पूछती है कि तुम ऊब से बचने के लिए क्या करती हो? तुम हमेशा उत्फुल्ल दिखती हो। तुम सुखी या दुखी हो सकती हो, लेकिन कभी ऊब नहीं सकती। 

अन्ना केरेनिना के बारे में यह धारणा विडम्बनात्मक है, पर शायद सच है, वह ऊबी हुई नहीं है। पर दुखी है, बेहद दुखी। एक आन्तरिक यातना में जीती हुई। दुखी मनुष्य कभी ऊब नहीं सकता। ऊबने के लिए बहुत फुरसत चाहिए। दरअसल अन्ना केरेनिना एक बहुत मुश्किल किस्म की औरत है। कोई चाहे तो उसे ग्रन्थियों से भरा चरित्र कह सकता है। ब्रांस्की केवल उससे प्रेम ही नहीं करना चाहता, वह उससे विवाह करना चाहता है, उससे बच्चे पेंदा करना चाहता है। इस प्रेम के परिणाम स्वरूप एक बच्ची तो तभी पैदा हो जाती है, जब वह अपने पति के घर में है। अब ब्रांस्की चाहता है कि वह अपने पति से तलाक ले ले और उसके साथ रहे। किन्तु अन्ना को यह स्वीकार नहीं है। अपने पति से तलाक वह अन्त तक नहीं लेती। अन्ना का पति कैरेनिन इसके लिए तैयार है, वह इसके लिए एक नामी-गिरामी वकील से बात भी कर लेता है। पर अन्ना तैयार नहीं है। वह प्रेम के लिए विवाह से विद्रोह करना चाहती है। वह मन ही मन विवाह को बन्धन मानती है और एक मुक्त जीवन जीना चाहती है। एक विवाह से तलाक लेकर वह दूसरे विवाह के बन्धन में नहीं बंधना चाहती। वह विवाह को बन्धन ही नहीं गुलामी भी मानती है। ब्रांस्की से पैदा हुई बच्ची के बाद वह और बच्चे पैदा करने लायक भी नहीं रह गयी थी। उसके डॉक्टर ने उसे यह बताया था। पर इस रहस्य को वह अपने तक ही सीमित रखती है। शायद उसे भी वह मुक्ति मानती है। पर क्या वह कभी मुक्त हो पाती है? 

बकौल ग़ालिब, ‘मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाये क्यों?’ शायद वह इसी ‘मुक्ति’ के लिए बनी है। सम्भवतः यही टॉल्सटॉय का मैसेज भी है। 

अन्ना केरेनिना लगातार संशयग्रस्त रहती है। अपने प्रेम को लेकर भी वह आश्वस्त नहीं है। वह अपनी मित्र और भाई की पत्नी डली से ब्रांस्की के वारे में कहती है, ‘वह मेरा पति नहीं है : ही विल लव मी ऐज़ लांग लव लास्ट्स।’ यानी वह जानती है कि इस प्रेम को कभी-न-कभी खत्म होना ही है। यही प्रेम से मोहभंग है। 

निरन्तर संशयग्रस्त रहने के कारण अन्ना केरेनिना कभी सुखी नहीं रह पाती। वह नींद के लिए अफीम का सेवन करती है। भारतीय शास्त्रों में कहा गया है कि संशयग्रस्त व्यक्ति का विनाश हो जाता है। अन्ना केरेनिना का ‘विनाश’ सुनिश्चित है। वह हमेशा क्षुब्ध तथा असन्तुष्ट रहती है। टॉल्सटॉय उसे सहानुभूति देकर भी पूरी तरह उसके पक्षधर नहीं हो पाये हैं। उनकी सामन्त वर्ग से घृणा यहाँ भी परोक्ष रूप से झलक ही जाती है क्योंकि यदि तटस्थ होकर अन्ना केरेनिना के स्वभाव का विश्लेषण करें तो लगता है कि वह एक संभ्रांत वर्ग को ऐसी बिगड़ैल युवती है जो ‘पैमपर्ड’ है। वह कभी सुखी और सन्तुष्ट हो ही नहीं सकती। वह चाहती है कि उसकी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति हो। ऐसे व्यक्ति को नियति हमेशा अभिशप्त होती है। उसकी आत्महत्या ‘त्रासदी’ नहीं है, वह उस वर्ग के व्यक्ति के प्रेम की तार्किक परिणति है। यद्यपि सम्भवतः टॉल्सटॉय इस निहितार्थ के प्रति स्वयं ‘कांसस’ न रहे हों, किन्तु अन्ना के चरित्र विश्लेषण से यह छुपा हुआ निहितार्थ झलक ज़रूर जाता है। 

टॉल्सटॉय इस उपन्यास को एक प्रेम कहानी तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उसके प्रेम के माध्यम से अपने समय और उस वर्ग को चित्रित करना चाहते थे जिसको प्रतिनिधि अन्ना तो है ही, वे स्वयं भी थे और जिसकी कथा अन्ना की कथा के समानान्तर लेविन और किटी की उस कथा के रूप में पूरे उपन्यास में चलती रहती है जो अन्ना की प्रेम कहानी की एंटी थिसिस है। उपन्यास का अन्त भी लेविन और किटी की कथा से ही होता है। समीक्षकों के अनुसार लेविन के माध्यम से टॉल्सटॉय स्वयं अपनी कहानी कहते हूँ— अपने प्रेम, परिवार और जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण की कहानी। किन्तु यहाँ हमारा मकसद प्रेम के इस दूसरे पक्ष का विश्लेषण नहीं है। वह एक पृथक विश्लेषण की मांग करता है। अतः वह फिर कभी। 

उपन्यास के दूसरे भाग में हम अन्ना को ‘नयी ज़िंदगी’ के विश्लेषण से उस ‘जन्नत की हक़ीक़त’ को समझ सकते है जो वस्तुतः अन्ना के ‘प्रेम को हक़ीक़त’ है। तीन महीने तक अन्ना और ब्रांस्की यूरोप में घूमते रहते है। इसे उनका ‘हनीमून ट्रिप’ भी कह सकते हैं। वे वहाँ के महँगे होटलों के शानदार कमरों में ठहरते हूँ और वहां के सम्भ्रान्त वर्ग के लोगों को दावतें देते है जिनमें लजीज व्यंजन और महंगी शराब परोसी जाती है। पूरे शहर के लोग जान जाते है कि वहां रूस का कोई बड़ा जागीरदार ठहरा हुआ है। इटली में ब्रांस्की वहाँ के महान चित्रकारों के चित्र से प्रेरित होकर स्वयं पेंटिंग करना शुरू कर देता है जो उसका पुराना शौक है। वह वहां के समकालीन चित्रकारों से भी मिलता है और उनसे चित्रकला को विशेषताओं के बारे में लम्बी-लम्बी बहसें करता है। स्पष्टतः अन्ना को दावतें तथा संगीत समारोह तो पसन्द आते हैं किन्तु चित्रकला में उसको कोई दिलचस्पी नहीं है। वह उनकी लम्बी बहसों से बोर हो जाती है। फिर भी उसके सामने एक नई जगमगाती हुई दुनिया है जो रूस से अधिक सम्पन्न, सुरुचिपूर्ण और विकसित है। अपनी ‘मुक्ति’ के इस पहले चरण में अन्ना एक अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव करती है। वह भूल जाती है कि अपने पति से विलग होकर उसने उसे कितना बड़ा दुख दिया है। ‘‘उनका दाम्पत्य दो डूब रहे व्यक्तियों की तरह था जिनमें से एक अपने को छुड़ाकर बच जाता है और दूसरा डूब जाता है।” 

किन्तु एक दुख उसे इस ‘ सुख के स्वर्ग’ में भी सालता रहता है और वह है अपने बेटे की याद जिसे वह छोड़कर चली आई है। उसको लेकर अन्ना के मन में अपराध बोध है। बह सोचती है कि मुझे सुखी होने का कोई अधिकार नहीं है। वह दुखी होना चाहती है पर नहीं हो पाती। इस नयी ज़िंदगी और नयी दुनिया के सुख से वह इतनी आप्लावित है कि दुखी होने का अभिनय भी नहीं कर पाती। ब्रांस्की को वह जितना अधिक जानती जाती है, उतना ही अपने प्रति उसके प्यार से अभिभूत होती जाती है। 

लेकिन दूसरी और ब्रांस्की यद्यपि वह सबकुछ प्राप्त कर चुका है जो प्राप्त करना चाहता था, उतनी प्रसन्नता और सुख का अनुभव नहीं कर पाता जितना उसे करना चाहिए था। उसके जीवन में एक मूलभूत रिक्तता बनी रहती है जिसे वह समझ नहीं पाता। सुख के इस अम्बार में ‘कहीं रेत का कोई कण रह गया है जो किरकिराता रहता है’ उसे अपने मुक्त और कुँवारे जीवन की याद आती रहती है जब वह देर रात तक मौज मस्ती में डूबा रहता था बिना किसी जिम्मेदारी के और बिना किसी बाध्यता के। अब उसकी कोई निजी मित्र मंडली नहीं रही। अब उसको दिनचर्या के केन्द्र में बस अन्ना ही अन्ना है। अतः वह जल्दी ही कोई ‘ डाईवर्जन’ ढूंढने लगा। अपने पुराने शौक पेंटिंग को ओर तो वह लौट ही चुका था, अब आसपास की राजनीति में भी दिलचस्पी लेने गया। बाक़ी बचे समय में वह किताबें पढ़ता रहता। 

यूरोप से लौटकर वे पीटर्सबर्ग जाते है। वहाँ भी वे एक शानदार होटल में ठहरते है। लेकिन अन्ना का असली मकसद वहाँ अपने बेटे से मिलना था। केरेनिन इसको अनुमति नहीं देता। अतः अन्ना उसको अनुपस्थित में छुपकर बेटे से मिलती है और उससे लिपटकर कहती है, “तुम अपने पिता को प्यार करो। वे एक भले व्यक्ति है। में अभागन हूं और मैंने एक बड़ी गलती की है। जब तुम बड़े हो जाओगे तब तुम खुद यह समझ सकोगे।“ तभी अचानक केरेनिन आ जाता है। अन्ना उसे देखते ही तेजी से बाहर निकलती है। केरेनिन बिना कुछ कहे सिर झुका कर उसका अभिवादन करता है और अन्दर चला जाता है। 

बेटे से मिलने के बाद जब वह वापस लौटती है तो महसूस करती है कि इस मुलाक़ात ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया है। उसे सबकुछ बेमानी लगने लगता है। इसके अलावा पीटर्सबर्ग के भद्र समाज में जिस तरह उसे अपमानित और लांछित होना पड़ता है, उससे वह बुरी तरह टूट जाती है। यद्यपि इस तथाकथित भद्र समाज के पुरुष और स्त्रियाँ सब नितान्त भ्रष्ट, एय्याश और पाखंडी हैं , पर उन्हें अन्ना का यह मुक्त जीवन स्वीकार्य नहीं है। स्वयं केरेनिन अब एक काउंटेस लिडिया इवानोवा की गिरफ़्त में है। इस काउंटेस के वारे में टॉल्सटॉय लिखते है ‘‘काउंटेस लिडिया इवानोवा का बहुत पहले से ही अपने पति से कोई प्रेम सम्बन्ध नहीं रह गया था, पर वह हमेशा किसी-न- किसी से प्यार करती रहती थी। उसके बारे में मशहूर था कि वह एक साथ कई लोगों से प्यार करती रहती थी। इनमें मर्द और औरतें दोनों होते थे। वह हमेशा किसी प्रभावशाली व्यक्ति को ही अपने प्रेम का शिकार बनाती थी। उनमें अधिकांश राजघरानों के राजकुमार और राजकुमारियां होती थीं।” अब केरेनिन की बारी थी। इस काउंटेस ने केरेनिन सहित उसके पूरे घर के रखरखाव को जिम्मेदारी ले ली थी। केरेनिन बिना उसको राय के कोई निर्णय नहीं लेता था। 

ऐसे ही ‘ भद्र समाज’ से अन्ना बहिष्कृत थी। इसके वाद ब्रांस्की अपने पैतृक जायदाद की देखभाल के लिए अन्ना के साथ अपने गाँव चला जाता है। वहाँ महलनुमा भव्य घर और पर्याप्त सम्पत्ति है। ब्रांस्की उस घर का नये सिरे से निर्माण करवाता है और उसे उन दिनों यूरोप में प्रचलित आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित कर दिया जाता है। इन सबके पीछे उसका मकसद है कि अन्ना यहाँ हर तरह से सुखी और सन्तुष्ट रहे। किन्तु सुख और सन्तोष मानो अन्ना की नियति में ही न हो। कुछ दिनों के बाद ही अन्ना का मन वहाँ से भी उचटने लगता है। ब्रांस्की को सरकारी तथा जायदाद से जुड़े मामलों को सुलझाने  के लिए बीच-बीच में शहर जाना पड़ता है, जहाँ वह अकसर कई दिनों तक रह जाता है। अन्ना गाँव के उस विशाल वीरान घर में अकेली ऊबती रहती है। हालांकि सही मायने में वह घर वीरान नहीं है : उसमें दास-दासियों का अच्छा-खासा हजूम है, जिनके कारण अन्ना को कभी अकेली नहीं रहना पड़ता। शानदार बग्घियों में वह कहीं भी घूम-फिर सकती है। पर उसके प्राण केवल ब्रांस्की में अटके रहते हैं। ब्रांस्की का बार-बार शहर आना-जाना और वहां कभी-कभी हफ़्तों रुक जाना उसे खटकने लगता है। कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है : अन्ना को लगता है कि ब्रांस्की वहाँ  किसी दूसरी स्त्री को प्यार करने लगा है और धीरे-धीरे उससे ऊबता जा रहा है। यह नाकाबिले  बर्दाश्त है और जैसा कि कहा जा चुका है कि वह बेहद शंकालु और ‘हिस्टिरीकल’ होती जाती है। वह ब्रांस्की से बेवजह तथा बेबात झगड़ पड़ती है। तब काफ़ी बकझक के बाद यह झगड़ा ‘बिस्तर’ पर जाकर खत्म होता है। पर यह समझौता और शान्ति भी बहुत देर तक कायम नहीं रहती। इस झगड़े की  पुनरावृत्तियां  होने लगती हैं  और इस तथाकथित ‘दाम्पत्य जीवन’ में ज़हर घुलने लगता है। 

उपन्यास में यद्यपि लेविन और किटी की समानान्तर प्रेम कथा को लोगों ने टॉल्सटॉय के अपने दाम्पत्य जीवन का प्रतिरूप माना है किन्तु अन्ना केरेनिना और ब्रांस्की की प्रेम कथा में भी कहीं-कहीं टॉल्सटॉय के जीवन तथा जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण को छवि दिख जाती है। शायद प्रत्येक महान उपन्यास के महत्त्वपूर्ण चरित्र में लेखक के व्यक्तित्व का अलग-अलग हिस्सा विभाजित होकर अन्तर्निहित रहता है। अतः कोई भी बड़ा कथाकार किसी एक चरित्र में अपने को पूरी तरह स्थापित कर अपना प्रतिरूप नहीं गढ़ता। जो कथाकार ऐसा करते है, वे उस चरित्र तथा पूरी कृति को कमज़ोर ही बनाते हैं  : हिन्दी की कालजयी उपन्यास कहलाने वाले ‘शेखर : एक जीवनी’ में यह कमज़ोरी देखी जा सकती है। 

ब्रांस्की और अन्ना केरेनिना के दाम्पत्य में टॉल्सटॉय के अपने दाम्पत्य को छवि इन पंक्तियों में देखी जा सकती है : ‘‘पति तथा पत्नी के बीच सन्तुलन के लिए आवश्यक है कि या तो उनके सम्बन्धों में पूरी तरह ‘एकतानता’ (हारमोनी) हो या पूरी तरह मतभेद (डिस्कॉर्ड) हो। ऐसा न होने पर कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना असम्भव हो जाता है। अनेक दम्पती वर्षों तक ऐसी ही अनिर्णय की स्थिति में जीते चले जाते हैं।” टॉल्सटॉय के अपने दाम्पत्य जीवन को जानने वाले लोग उपरोक्त पंक्तियों में उसकी झलक पा सकते हैं । अन्ना और ब्रांस्की का दाम्पत्य भी काफी दिनों तक ऐसी ही डगमगाती स्थिति में घिसटता रहता है : अन्ना सोचती है कि ज़रूर कोई दूसरी औरत ब्रांस्की और उसके बीच आ गयी है तभी उसका प्यार अन्ना के प्रति घटता जा रहा है। किन्तु अन्ना के पास उसका कोई  प्रमाण नहीं है। वह प्रमाण की तलाश करती रहती है। उस दिन मास्को में (जहां वे कुछ दिनों के लिए गए थे) एक ‘बैचलर पार्टी’ से ब्रांस्की दिन भर नहीं लौटा । वह रात को दस बजे लौटा। अन्ना अकेली बैठी कुढ़ती रहती है। उसका अकेलापन उदासी और गुस्सा बढ़ता जाता है। जब लौटकर ब्रांस्की बताता है कि पार्टी शानदार थी और उसके बाद वे लोग बोटिंग के लिए गये थे जहाँ एक महिला टीचर ने उन लोगों को तैरना सिखलाने के लिए खुद तैर कर प्रदर्शन किया : अन्ना चिल्लाकर पूछती है, ‘‘ क्या वह तुम लोगों के सामने तैरती रही?” फिर उनकी बातों में बदमजगी बढ़ती जाती है। ब्रांस्की भी चीख कर कहता है, ‘‘ तुम क्यों मेरे धैर्य की परीक्षा लेना चाहती हो? यह असहनीय है!” लेकिन इस झगड़े का अन्त भी हमेशा की तरह बिस्तर में जाकर होता है। 

पर यह समझौता भी क्षणिक साबित होता है और अगले दिन ब्रांस्की की माँ को लेकर अन्ना उससे लड़ पड़ती है। वह कहती है कि तुम्हारी माँ एक हदयहीन महिला है : मैं उन्हें पसन्द नहीं करती। ब्रांस्की चिड़कर कहता है, ‘ तुम्हें मेरी मां के प्रति अनादरपूर्ण शब्दों का व्यवहार नहीं करना चाहिए।’ उत्तर में अन्ना उसको और घृणा से देखती हुई कहती है, “तुम्हें अपनी माँ से प्यार नहीं है। ‘प्यार’  तुम्हारे लिए एक खोखला शब्द है— केवल शब्द, शब्द, शब्द (वर्डस, वर्डस, वर्डस- देखें, शेक्सपियर का नाटक हैमलेट)।“  आपको याद होगा कि प्यार को लेकर ऐसे ही शब्द अन्ना ने अपने पति के लिए भी व्यक्त किये थे, जैसे वह मानती हो कि उसके अलावा कोई प्यार कर ही नहीं सकता। 

अन्ततः अन्ना समझने लगती है कि केवल ‘मृत्यु’ ही उसके प्रति ब्रांस्की के प्यार को वापस ला सकती है। उसे सज़ा देना जरूरी है। इसी में उसकी जीत है। कुछ भी नहीं बचा है, केवल प्रतिशोध ही इसका एकमात्र विकल्प है। और यह प्रतिशोध केवल मर कर ही लिया जा सकता है। 

हम देखते हैं कि यहाँ अन्ना केरेनिना की प्रेम कहानी भी एक वृत्त बनाती हुई ‘वर्थर’ वाले प्रतिशोध के आसपास लौट रही है, जहां उसको आत्महत्या ही उसकी परांगमुखी प्रेमिका से उसका प्रतिशोध है। 

अन्ना की यह ‘प्रेम कहानी’ रेलवे स्टेशन से शुरू होकर रेलवे स्टेशन पर ही खत्म होती है। रेलवे स्टेशन उपन्यास में बड़े प्रतीकात्मक ढंग से प्रयुक्त हुआ है। सभी जानते है, और यह जानना बेहद‌ दिलचस्प तथा आश्चर्यजनक है कि स्वयं टॉल्सटॉय के जीवन का अन्त भी रेलवे स्टेशन पर ही हुआ था। ‘अन्ना केरेनिना’ में रेलवे स्टेशन बार-बार आता है, हर बार नये सन्दर्भ में और नई अर्थवत्ता के साथ, जैसे वह जीवन का ही प्रतीक हो। 

अन्त तक आते-आते अन्ना को जीवन पूरी तरह निरर्थक लगने लगता है— अर्थहीन और ऐबसर्ड । अन्त में जब वह अपने इस जीवन को समाप्त कर देने के लिए रेलवे स्टेशन की और जा रही है— तो उस वक्त की उसकी मनःस्थिति का जो चित्रण टॉल्सटॉय ने किया है, वह उपन्यास का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश है। एक तरह से उपन्यास के रहस्य को खोलता हुआ। अन्ना सोच रही है— ‘‘मैं  जहां से चली थी वहीं वापस आ गयी हूं। किसी ने, शायद याशिन ने कहा था कि प्रेम नहीं बल्कि घृणा हम सबको बाँधकर रखती है।’  बग्घी में बैठकर स्टेशन जाती हुई अन्ना के सामने उसका पूरा जीवन परत-दर-परत खुलता जाता है। ‘सब  व्यर्थ है। तुम अपने आपसे भाग कर कहीं नहीं जा सकते।’  अचानक एक तेज रोशनी में अन्ना के सामने ब्रांस्की के साथ अपना सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है : ‘ब्रांस्की ने मुझमें क्या देखा था? वह मुझसे क्या पाना चाहता था? शायद वह प्यार नहीं था। वह दर्प था। वह मुझे जीतना चाहता था। अब वह विजेता है। वह जो कुछ पाना चाहता था, पा चुका। अब उसे मेरी कोई ज़रूरत नहीं है। प्रारम्भ में उसके प्रेम को अभिव्यक्ति एक वफादार कुत्ते की  तरह थी जो हर वक्त अपने मालिक के सामने दुम हिलाता रहता है। अब सबकुछ समाप्त हो चुका है। अब उसे प्रेम या दर्प भी नहीं है। अब केवल उसे अपने किये पर शर्म है। अब मैं उसके लिए एक बोझ बन गयी हूं। काउंट ब्रांस्की और मैं अपने प्रेम में कभी अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप सुख नहीं प्राप्त कर सके।” 

ब्रांस्की और अपने सम्बन्धों का विश्लेषण करते हुए जैसे अन्ना के सामने ‘ जीवन का अर्थ’ आलोकित हो गया। उसे लगा यही ‘नर्क (हैल) है— (हैल इज़् अदर पिपुल— ज्यां-पाल सार्त्र)। मानवीय सम्बन्ध ही नर्क है। “प्रेम जहाँ खत्म हो जाता है, वहीं से घृणा शुरू होती है!” अन्ना बग्घी से बाहर देखती है। “एक पुलिसवाला एक शराबी को पकड़ कर ले जा रहा है। ये पहाड़ियां, ये घर, ये तमाम घर और इनमें रहने वाले लोग! ये सभी एक-दूसरे से नफरत करते हैं। क्या इसीलिए हम हमेशा अपने को और दूसरों को पीड़ित करते रहते है? यह भीख मांगने वाली अपने बच्चे  के साथ जा रही है। एक बच्चा हंसता हुआ स्कूल जा रहा है। क्या यह सर्जइ (उसका बेटा) है?” 

प्लेटफार्म पर वह एक गन्दे, बूढ़े और बदहाल आदमी को देखती है । उसका चेहरा उसे परिचित लगता है। क्या यह वही बूढ़ा नहीं है जो उसके दुःस्वप्नों में अकसर आता रहा है? क्या उसका प्रेम एक दुःस्वप्न था जो यहाँ भी उसका पीछा कर रहा है? 

अचानक उसे याद आता है जब प्लेटफार्म पर वह पहली वार ब्रांस्की से मिली थी और एक ‘ वाचमेन’ ट्रेन के नीचे कटकर मर गया था। सामने से एक ट्रेन आ रही है धीरे-धीरे। उसका पहला डिब्बा उसके सामने से गुजर गया। दूसरा डिब्बा सामने आते ही उसके पीछे की जंजीरोवाली खाली जगह में वह आंखें बन्द कर कूद पड़ी। उसने उठने की कोशिश की पर एक भारी चीज़ उसके सिर से टकराई और वह गिर पड़ी। जिस मोमबत्ती को रोशनी में वह एक किताब (जीवन को किताब) पढ़ रही थी उस मोमबत्ती की रोशनी तेज होकर फड़फड़ाई और बुझ गयी! 

यह अन्ना केरेनिना का अन्त है। पर उपन्यास यहां खत्म नहीं होता, आगे बढ़ जाता है लेविन और किटी के जीवन की और। ब्रांस्की वापस फ़ौज में भर्ती हो जाता है। ‘प्रेम’ खत्म हो जाता है पर ‘जीवन’ चलता रहता है- ‘ लव एन्ड्स बट लाइफ गोज़ ऑन’!

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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