लघुकथा: "चाबी का गुच्छा" - डॉ अनिता कपूर

"हेलो मैं मेघा बोल रही हूँ"
"अरे तुम फोन पर क्यों बात कर रही? मैं तो घर के बाहर ही खड़ा हूँ"
"पर मैं घर के भीतर नहीं हूँ"
"तो तुम कहाँ हो और कब तक आओगी?"
"मैंने घर छोड़ दिया है”
"मेघा ऐसे मत कहो, तुम वापस आओ, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ या तुम जहां पर भी हो वहाँ का पता दो मैं आता हूँ”
"नहीं तुषार, घर से यहाँ तक के रास्ते से मैं अपने पावों के निशान मिटाती आई हूँ ताकि वापस जाने का रास्ता पहचान न सकूँ, और घबराना नहीं क्योंकि मैं भारत में किसी से इस बात का जिक्र नहीं करूंगी और चाहूँ भी तो शर्म की वजह से कुछ कह भी नहीं पाऊँगी”।
तुषार का द्वार पर लगी घंटी के लिए उठा दायाँ हाथ वैसे ही हवा में लटका रह गया।

फोन बंद करते ही मेधा की नज़रों के सामने परसों रात का पूरा दृश्य जैसे ही घूमा, वो एक बारगी फिर सिहर उठी। जब जैक की पार्टी में मिसेज सिन्हा ने उसे तुषार के साथ देख कर बेशर्मी से हँसते हुए कहा था, “चलो आज देखते हैं कि नया माल किसके पति की सेज सजाएगा”। यह सुन कर वो आश्चर्यचकित तो हुई पर कुछ समझ नहीं पाई कि, उसे ऐसे शब्दों से क्यों बुलाया गया। क्या मिसेज सिन्हा को हमारी शादी के बारे में नहीं पता? कुछ देर में हाल में और भी जोड़े दिखाई देने लगे। मेधा अंदाजा नहीं लगा पा रही थी, कि सब लोग द्वार से अंदर दाखिल होते ही अपनी-अपनी कार की चाभियों को एक बड़े बाउल में क्यों डाल रहे है। समझते ही वो वितृष्णा से भर उठी, जब उसने मिसेज सिन्हा को तुषार के साथ बेडरूम में जाते देखा और मिस्टर सिन्हा उनकी कार का गुच्छा उसके चेहरे के सामने लहराते हुए मुस्करा रहे हैं।

अब खुले आसमान तले खड़ी मेघा दुख और असमंजस में डूबी सोच रही है, कि उसके ही पति ने चाबी के गुच्छे से आपसी विश्वास की दीवार पर न मिट सकने वाली लकीरें खींच दी है।


डॉ. अनीता कपूर - कविताएँ, चोका और लघुकथा

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6 टिप्पणियाँ

  1. हाई सोसाइटी के परिवारों का एक कड़वा और घिनौना सच !

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  2. अश्लीलता की पराकाष्ठा. अच्छा हुआ मेघा ऐसी घिनौनी दुनिया को छोड़ नई ज़िंदगी की तरफ चल पड़ी.

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  3. achha kiyaa.... is ashleelta bhare khel se nikal lee

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  4. घिनौनी आधुनिकता दिखाती अच्छी कथा.....

    सादर
    अनु

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  5. ऐसा भी होता है ? अगर यह कहीं सच्च है तो घिनौना है | अच्छी लघुकथा के लिए बधाई अनिता जी |

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