आज है उनका जन्म दिन "शकील बदायुनी" - सुनील दत्ता

हरि ॐ ... 
मन तरपत हरि दर्शन को आज
मोरे तुम बिन बिगरे सब काज ..

     जीवन के दर्शन को अपने कागज के कैनवास पर लिपिबद्द करने वाले मशहूर शायर और गीतकार शकील बदायुनी का अपनी जिन्दगी के प्रति नजरिया उनके शायरी में झलकता है। शकील साहब अपने जीवन दर्शन को कुछ इस तरह बया करते है।

मैं शकील दिल का हूँ तर्जुमा कि मोहब्बतों का हूँ राज़दान
मुझे फ्रख है मेरी शायरी मेरी जिन्दगी से जुदा नही।

     शकील अहमद उर्फ़ शकील बदायुनी का जन्म 3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायुँ जिले में हुआ था। शकील साहब ने अपनी शिक्षा बी ए तक की और उसके बाद 1942 में वो दिल्ली चले आये। उस वक्त देश स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर से गुजर रहा था। शकील का शायर दिल भी देश के हालात का जायजा ले रहा था तभी तो शकील का शायर बोल पडा

जिन्दगी का दर्द लेकर इन्कलाब आया तो क्या
एक जोशिदा पे गुर्बत में शबाब आया तो क्या

     शकील साहब अपनी रोजी रोटी के लिए दिल्ली में आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में नौकरी करनी शुरू कर दी, उसके साथ ही उन्होंने अपनी शायरी को बदस्तूर जारी रखा। शकील बदायुनी की शायरी दिन ब दिन परवान चढने लगी और वो उस वक्त मुशायरो के जान हुआ करते थे। उनकी शायरी मुशायरो में एक अजीब शमा बाँध जाया करती थी।
शायद आगाज हुआ फिर किसी अफ़साने का
हुक्म आदम को है जन्नत से निकल जाने को

     शकील की शायरी ने पूरे देश में अपना एक मुकाम हासिल किया, उस समय शकील साहब की शोहरत बुलन्दियो पर थी। अपनी शायरी से बेपनाही कामयाबी से प्रेरित हो उन्होंने दिल्ली छोड़ने का मन बना लिया और नौकरी से त्यागपत्र देकर 1946 में वो दिल्ली से मुम्बई चले आये। मुम्बई में उनकी मुलाक़ात उस समय के मशहूर फिल्म निर्माता ए आर कारदार उर्फ़ कारदार साहब और महान संगीतकार नौशाद से हुई। नौशाद साहब के कहने पर शकील बदायुनी ने पहला गीत लिखा ....
हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे
हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे

     यह गीत नौशाद साहब को बेहद पसन्द आया इसके बाद शकील साहब को कारदार साहब की “दर्द“ के लिए साइन कर लिया गया। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फिल्म “दर्द” के गीत “अफसाना लिख रही हूँ दिले बेकरार का...” कि अपार सफलता से शकील बदायुनी फ़िल्मी दुनिया में कामयाबी के शिखर पर पहुँच गये। उसके बाद शकील साहब ने कभी ताउम्र पीछे मुड़कर नही देखा. वो सुपर हिट गीतों से फ़िल्मी दुनिया को सजाते रहे।

रूह को तड़पा रही है उनकी याद
दर्द बन कर छा रही है उनकी याद

     शकील बदायुनी के फ़िल्मी सफर पर अगर गौर करे तो उन्होंने सबसे ज्यादा गीत, संगीतकार नौशाद के लिए लिखे, जो अपने जमाने में सुपर हिट रहे। वो सारे गीत देश के हर नौजवानों के होठो के गीत बन गये - इश्क करने वालो के और इश्क में नाकाम होने वालो के। शकील साहब ने भारतीय दर्शन से जुड़े अनेकों गीत लिखे जो आज भी हर सुनने वालो के दिल और दिमाग को बरबस ही एक ऐसी दुनिया में लेकर चले जाते हैं, जहाँ उसे सुकून का एहसास होता है। “ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले” , मदर इण्डिया के गीत “दुनिया में हम आये है तो जीना ही पडेगा जीवन है अगर जहर तो पीना पडेगा”  ऐसे गीतों से उन्होंने जीवन के संघर्षो को नया आयाम दिया, प्रेम के रस में डुबते हुए उन्होंने कहा कि “दो सितारों का जमी पे है मिलन / आज की रात/ सारी दुनिया नजर आती है दुल्हन/ आज की रात... , दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है, तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करु , दिलरुबा मैंने तेरे प्यार में क्या क्या न किया , कोई सागर दिल को बहलाता नही जैसे गीतों के साथ फ़िल्मी दुनिया की मील का पत्थर बनी फिल्म मुगले आजम में शकील बोल पड़ते है “इंसान किसी से दुनिया में एक बार मुहब्बत करता है , इस दर्द को ले कर जीता है इस दर्द को ले कर मरता है”

     “ प्यार किया तो डरना क्या / प्यार किया कोई चोरी नही की / छुप छुप आहे भरना क्या” जैसे गीतों को कागज और फ़िल्मी कैनवास पे उतार कर अपने गीतों को हमेशा के लिए अमर कर दिया। जब तक ये कायनात रहेगी और जब तक यह दुनिया कायम रहेगी, शकील बदायुनी को प्यार करने वाले उनके गीतों से अपने को महरूम नही कर पायेंगे। शकील बदायुनी को उनके गीतों के लिए तीन बार फिल्म फेयर एवार्ड से नवाजा गया - 1960 में “चौदवही का चाँद हो या आफताब हो” , 1961 में फिल्म “घराना” के  “हुस्न वाले तेरा जबाब नही” , 1962 में फिल्म “बीस साल बाद”  में “कही दीप जले कही दिल / जरा देख ले आ कर परवाने / तेरी कौन सी है मंजिल / कही दीप जले कही दिल”

     आज उनका जन्म दिन है बस इतना ही कहूँगा शकील बदायुनी ने अपने गीतों के साथ हर पल याद किये जायेंगे।

सुनील दत्ता .. स्वतंत्र पत्रकार .. समीक्षक

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