"स्मिता पाटिल" की याद में लिखी "कृष्ण बिहारी" की कविता

तुम्हारे बाद स्मिता…

                                               कृष्ण बिहारी
13 दिसम्बर 1986 को स्मिता पाटिल की याद में लिखी गयी कविता

स्मिता !
कैसी मजबूरी है
कि आज जब मैं यह लिख रहा हूँ
तुम सो गयी हो।
तुम्हारा शरीर सो चुका है
तुम सिर्फ शरीर रह गई हो…
दुनिया में इस वक्त्त जिसे लोग
लाश कहते होंगे।
तुम्हारे आस-पास जमघट होगा
जिससे तुम्हे नफरत थी।
फिर भी बिना प्रतिवाद के बगैर किसी खीज के
आज तुम जमघट के
चारों तरफ मुस्कुराती हुई पूछ रही होगी
कि मुझसे कोई शिकायत तो नहीं रही…
कोई भी…कभी भी…या फिर अब…?

काश !
मेरे स्वर, मेरे शब्द ताकतवर होते और
मेरा शोर तुम्हे जगा पाता
नींद से !
तुम्हारी मौत एक हादसा है मेरे लिये
अखबार में छपी
इस ख़बर पर आँखें फाड़े, दिल थामे
यकीन करना होगा…जबरन !
क्योंकि हादसे
सच्चाई के सिवा और कुछ नहीं होते
और सच पर जल्दी यकीन नहीं होता।

हर किसी की आँख के
खुलने और बंद होने का
दुनिया की गतिविधि पर
कुदरत की धड़कन पर
कोई फर्क नहीं पड़ता
लेकिन कुछ पलकों पर नींद का छा जाना
पल भर के लिये ही सही
दुनिया को वजनी बना जाता है
धरती की गति हो जाती है मद्धम।
शायद… इसीलिये कभी-कभी दिन हो जाते हैं बड़े !
लोग कहते हैं कि यह वक्त्त भारी होता है
ऐसे दिन आसानी से नहीं कटते।
तुम्हारी मौत की ख़बर ने
सुबह से मेरा दिन बढ़ा दिया है।

लगता है … जल्दी मुरझाने वाले खुश्बूदार फूलों की तरह
तुममें भी धैर्य नहीं था
या फिर … एक-एक सीढ़ी चढ़कर
ऊपर पहुँचने में ही
सारा धीरज चुक गया।
तुम जिस जगह पहुँची थी…
वहाँ से हर ऊँचाई साफ नज़र आती थी।
कुछ देर ठहरना था उस ऊँचाई पर
दुनिया की हकीकत
ऐसी जगहों से ही पकड़ में आती है
जहाँ से दृष्टि निर्बाध
हर तरफ जाती है।

स्मिता !
इस बढ़े दिन को मैं
तुम्हारे नाम करता हूँ…
सिर्फ तुम्हारे नाम
और सोचना चाहता हूँ सिर्फ तुम्हारे बारे में।

पलों के साथ ने
किस कदर तुम्हारे करीब कर दिया है मुझे
यह पास आना भी कितना कष्टदायक है
सारा जीवन निरर्थकता को जीते हुये लोग
पास आने की कोशिश में कितना दूर हो जाते हैं!
और-
कभी -कभी कुछ पल…कुछ घड़ियाँ
दूरस्थ लोगों को कितना करीब कर जाती हैं।

याद है वह शाम…वह रात…
वह बादलों से ढ़की दोपहर
और भीगता मौसम…बातें…बातें…और बातें
मित्र और मैं…और तुम…और तुम्हारा मित्र राज बब्बर
सब कुछ याद है मुझे
क्योंकि अब इस याद को ही तो मेरे साथ रहना है…
जिस्म का क्या है
उसे तो धुआं – धुआं होना है
चटक – चटक जलना है।


(स्मिता पाटिल को श्रद्धांजलि – कृष्ण बिहारी)

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. दुनिया की हकीकत
    ऐसी जगहों से ही पकड़ बनाती है
    जहां से दृष्टि निर्बाध हर तरफ जाती है

    ह्रदय भेदी शब्द लिखे आपने| बहुत बहुत बधाई स्मिता के नाम इस श्र्द्धा-सृजन को
    सादर !!

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
कहानी: छोटे-छोटे ताजमहल - राजेन्द्र यादव | Rajendra Yadav's Kahani 'Chhote-Chhote Tajmahal'
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी