तुम देह लेकर क्या गए वो देह शेष है - अपर्णा प्रवीन कुमार | Hindi Poetry: Aparna Praveen Kumar

अपर्णा प्रवीन कुमार... पांच सालों तक हिंदुस्तान टाइम्स जयपुर लाइव के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता। . साथ ही कुछ कवितायेँ और लेख अहा ज़िन्दगी और दैनिक भास्कर  में भी प्रकाशित।  राज्य सन्दर्भ केंद्र जयपुर के साथ रिपोर्ट लेखन का कार्य किया साथ ही यूनिसेफ और राज्य सन्दर्भ केंद्र के साथ सन्दर्भ पुस्तिकाएं लिखीं। पांच छः  सालों तक गांधीवादी लेखक विष्णु प्रभाकर जी से पत्राचार ।


बाबा!


वो उंचाइयां जो पिरो लीं थी अपनी बातों में तुमने,
वो गहराइयाँ जो थमाँ दी थी मेरे हाथों में तुमने,
वो वक़्त जो बेवक्त ख़त्म हो गया,
सपने सा जीवन, जो अब सपना हो गया,

मैं मुन्तजिर हूँ, खड़ी हूँ द्वार पे उसी,
आना था तुम्हे तुम्हारी देह ही पहुंची,
जो तुम थे बाबा तो तुमसे रंग उत्सव था,
माँ का अपनी देह से एक संग शाश्वत था,

तुम देह लेकर क्या गए वो देह शेष है,
जीने में है न मरने में, जैसे एक अवशेष है,
जोड़ा है सबका संबल फिर भी टूट कर उसने,
जीवन मरण की वेदना से छूट कर उसने,

इस उम्मीद में हर रात देर तक मैं सोती हूँ,
सपने में तुम्हे गले लग के जी भर के रोती हूँ,
बाबा! कहाँ चले गए कब आओगे?
बाबा! जहाँ हो वहां हमें कब बुलाओगे?


अखबार की कतरनें


पुरानी किताबों डायरीयों में,
मिल जाती हैं अब भी इक्की दुक्की,
दिलाती है याद सुबह की चाय की,
कोई सीख, कोई किस्सा, कोई नसीहत,
सिमट आती है उस सिमटी हुई 
मुड़ी, तुड़ी, बरसों पन्नों के बीच दबी हुई,
अखबार की कतरनों में...............

चाय पीते हुए, अखबार पढ़ते हुए,
कभी मुझे कभी भैया को बुलाकर,
थमा देते थे हाथों में पिताजी 
अखबार की कतरन.............

कागज़ का वो टुकड़ा,
जीवन का सार होता था,
हम पढ़ते थे उन्हें,
संभल कर रख लेते थे,
अब जब निकल आती हैं,
कभी किसी किताब से अचानक,
तो कागज़ की कतरने भी,
उनकी मौजूदगी, उनका आभास बन जाती हैं...........................


ताम्बे का एक लोटा 


ताम्बे का एक लोटा,
बरसों भरा मैंने,
उनके आने से पहले उनके सिरहाने रखा,
यह एक काम मेरे हिस्से आया था,


यह एक काम मुझे बहुत अच्छा लगता था,
रोज़ मांज कर भर कर रख दिया करती थी,
उस दिन भी तो रखा था...........................

उस लोटे की भी एक तस्वीर बन गयी है मन में,
वो लोटा भी मानो वहीँ सिरहाने रखा,
अब तक इंतज़ार कर रहा है बाबूजी के आने का..........................




एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
कहानी: छोटे-छोटे ताजमहल - राजेन्द्र यादव | Rajendra Yadav's Kahani 'Chhote-Chhote Tajmahal'
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी