बहीखाता | Bahikhata

‘हिंदी के लिए कुछ किया जाए’ इसी उधेड़बुन ने कोई सवा साल पहले शब्दांकन की शुरुआत की। आसान होगा और इस तरह हिंदी और उसके चाहने वालों के लिए शायद कुछ सार्थक योगदान दे सकूँगा, आरंभिक सोच यही थी।

          "शब्दांकन" को कुछ ही वक़्त में या ऐसे कहूँ कि तक़रीबन शुरू होने के साथ ही, न सिर्फ रचनाकारों का बल्कि पाठकों का स्नेह भी मिलना प्रारंभ हो गया, ये होना उत्साहवर्धक तो था लेकिन यह भी समझा रहा था कि सम्पादन शुरू करना तो आसान था, किन्तु आगे आने वाले समय में स्तर बना रहे, स्तर उठे – ये कैसे होगा ?

          विज्ञान, प्रबन्धन और कंप्यूटर की शिक्षा चुपचाप सहयोग देती रही, घर और व्यापार के बाद बचे वक़्त को सम्पादन और उससे जुडी गतिविधियों को देने लगा, अच्छी बात यह है कि ये गतिविधियाँ मुझे हमेशा से पसंद रही हैं, वो चाहे साहित्य, कला आदि से जुड़े इंसानों से मिलना हो, या तस्वीरें उतारना।  इनमे नाटक की तैयारी और नाटक (हिंदी अंग्रेजी दोनों) देखना भी शामिल है, और संगीत ...... संगीत तो जहाँ तक याददाश्त ले जाती है वहां से ही अच्छा लगता रहा है.

          सबसे महत्वपूर्ण रहा मेरी माँ का हिंदी अध्यापिका होना जिनके चलते बचपन से ही घर में हिंदी की किताबें दिखती रहीं, यही-कहीं किताबों से प्यार हुआ होगा जो कभी खत्म नहीं होना है। माँ स्वर्ग में यह देख के भी अवश्य खुश होती होंगी कि बेटा हिंदी से जुड़ा तो !

          आप शायद सोच रहे होंगे कि इतनी लम्बी भूमिका किस बात के लिए बाँधी जा रही है?

          मित्रो ! आज से शब्दांकन पर “बहीखाता” शुरू हो रहा है। “बहीखाता” उन रचनाकारों के लिए है जो अपनी अधिक-से-अधिक रचनाएँ “शब्दांकन” पर उपस्थित कराना चाहते हैं ।  शुरुआत कथाकारों से होगी और आगे आने वाले समय में अन्य विधाओं के रचनाकार भी शामिल किये जायेंगे. बहीखाते के लिए “पहले भेजें पहले प्रकाशित हो” का नियम रहेगा. आप अपनी रचनाएँ, विस्तार-से-लिख-परिचय, सम्पर्क आदि के साथ bahikhata@shabdankan.com पर भेज सकते हैं, प्रथम चरण में 31 मई तक प्राप्त रचनाएँ ही शामिल होंगी।

          'बहीखाते' का खाता खोल रहे हैं, चर्चित और संवेदनशील कथाकार हृषीकेश सुलभ, उनकी कहानी ‘उदासियों का वसंत’... इंसानी रिश्तों को जिस बारीकी से देखती है वो रोमांचक है। शीघ्र ही उनकी अन्य कहानियाँ भी प्रकाशित होंगी।

          "शब्दांकन" के पाठकों को जो देश-विदेश से अपना स्नेह दे रहे हैं उनको धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।


भरत तिवारी
09 मई 2014
बी - 71, शेख सराय - 1 , नई दिल्ली - 110 017,
sampadak@shabdankan.com    

बहीखाता 

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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बधाई और शुभकामनायें भरत इसी तरह आगे बढते रहो और हिन्दी को बढाने मे अपना सक्रिय योगदान देते रहो

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