'मेरी कविता मेरे जुनून' - रेणु हुसैन की पाँच कवितायेँ (hindi kavita sangrah)

रेणु हुसैन की पाँच कवितायेँ


मेरी कविता मेरे जुनून


मैंने लिखी थी
एक कविता तुम पर
तुम्हें सुनाना चाहती थी,

रेणु हुसैन के कविता संग्रह 'जैसे' का लोकार्पण 23 फरवरी 2015 को कॉन्स्टीट्युशन क्लब, नई दिल्ली में डॉ. रामेश्वर राय की अध्यक्षता  में हुआ
तुम्हें बुलाया,
तुम्हारा इंतजार किया
तुम नहीं आए।
सदियाँ बीत गई।
आज मैंने जाना
तुम्हें अपनी कविता सुनाना
मेरी एक धुन थी,
जज़्बा था, जुनून था।
दरअसल मेरी कविता फकत एक कविता नहीं
एक खत था,
एक दस्तावेज था,
एक आगाज था
एक एलान-ए-जंग था,
मेरी कविता पीड़ा नहीं दर्द नहीं अहसास नहीं
आवाज थी।
मेरी कविता में प्यार था, पानी था,
लहरें थीं समन्दर था,
चिनगारियाँ थीं शोले थे,
पंख थे पखेरू थे,
फूल नहीं उनकी महक नहीं
पर रंग थें,
तुम क्या सुनते।
वो चंद पंक्तियाँ नहीं
जीवन पर्यंत थीं, जोवनोत्तर थीं,
उसमें भूख थी प्यास थी,
आत्मा थी, विसर्जन था,
उत्थान था पतन था
सितारे थे उनके चमक थी,
पत्थर थे और दूब की नरमी थी,
उसमें राह थी और मंजिल भी,
विचलन और बेचैनी थी,
वह किसी तंत्र के पुर्जे  हेतु नहीं
जीवट थी, आस्था थी,
उसमें संकल्प थे संकल्पों की दृढ़ता थी।
      क्या तुम आज भी पढ पाओगे
फिजा में फैले धूप के रंग,
संध्या-समय घर लौटती
सैकड़ों चिड़ियों के गीतों के स्वर,
क्या पढ़ लोगे तुम
लहरों से साहिल की बातें
तन्हाइयाँ और आहटो की रातें,
मीलों तय की गई, कदमों की कहानियां
आज भी वहीं अपने रास्ते बनाती,
गर तुम आओगे......
वहीं मिली, इन सब के साथ
राह देखती
     मेरे कविता......।





मुखर हुआ मौन

सुन यायावर
पत्थरों पर लहरों के लिखे स्वर पढो
जंगली हवा की फुसुफुसाहट सुन,
झरनों के लड़ने-झगड़ने का संगीत सुन,
साहिल पर सीप और रेत के महलों का
                     इतिहास सुन,
तारों के टूटने की व्यथा सुन,
अंधियारी काली रात में जुगनुओं से गाथा सुन
सुन तू चीत्कारों का गीत
खोज रूदन में नाच,
विलाप में नाद,
बाज़ारों में भीख माँगते आदमी का राग
खोज वेश्या के गान में मंदिरों का कर ताल,
और मंदिर की प्रतिमा में अट्ठाहास
खोज यायावर खोज स्वंयं में......
तुझे मिलेगी हंसती गाती एक नन्ही
                       चिनगारी
तू बादलों की गड़गड़ाहट ले,
नदी के तल का पानी ले,
पहाड़ों के पत्थरों की स्थिरता ले,
लहरों से टकराने की बारम्बारता ले,
फूलों से खुशबु ले, रंग ले, कोमलता ले,
बचपन से अबोध् ले,
यायावर रूक मत
जीवन चल रहा है
तुम से पहले भी,
पंछियों की उड़ान से ऊपर
चांद की रोशनी के भीतर
जीवन मिल चुका है
तू बस कर मौन का आह्वान
    कर दे मौन का आह्वान.....।


वो दिन अच्छे थे


वो दिन अच्छे थे जब हम खुद को भूले थे
मदहोश समां था हम खोने लगे थे।
वो मुहब्बत की सदाएँ इंतजार की तलखियाँ
फिर किस्सों के बहाने मेरे दिल को टटोलना
हम चुप थे मगर इकरार होने लगे थे।
अजब नशा था आवाज का भी
दिल तक उतरती हर बात का भी
क्या अदाज था मेरा क्या उसका बयाँ था
हम साथ साँस भर कर जीने लगे थे।

हम लोग कवि हैं

हम लोग कवि हैं
लोग हमें गाफिल कहते हैं,
वो कहते हैं जिंदंदगी को ज़रा तरीके से जियो
हम कहते है हम तो सफर करते हैं।

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025